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मनोरंजन के पीछे के एजेंडे को बेनकाब करती है अनंत विजय की पुस्तक 'ओटीटी का मायाजाल'
राष्ट्रीय पुरुस्कार से सम्मानित अनंत विजय के द्वारा लिखी गई यह पुस्तक संभवतया ओटीटी पर पहली पुस्तक है। इस पुस्तक को लेखक ने 9 अध्याय में विभाजित किया है।
आनंद पाराशर 4 months ago
वर्तमान समय में तकनीक के बढ़ते उपयोग के कारण दर्शकों के पास मनोरंजन के अनेक साधन हैं। कोरोना महामारी के बाद इस देश में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के दर्शकों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि देखी गई। सिनेमाघर बंद हो जाने और लॉकडाउन के कारण देश का एक बहुत बड़ा वर्ग ओटीटी पर समय व्यतीत करने लगा लेकिन क्या ओटीटी का सरोकार वाकई दर्शकों के मनोरंजन से है? कहीं मनोरंजन की आड़ में कुछ लोग अपना एजेंडा तो नहीं चला रहे हैं?
क्या ओटीटी इस देश की सभ्यता और संस्कृति की समझ रखते हैं? कहीं इस देश के युवाओं को मनोरंजन की आड़ में नग्नता तो नहीं बेची जा रही है? ऐसे ही कुछ गंभीर प्रश्न उठाती है वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय की पुस्तक 'ओटीटी का मायाजाल', इस पुस्तक में लेखक अनंत विजय ने इन सभी मुद्दों को बड़ी बारीकी से समझाया है।
राष्ट्रीय पुरुस्कार से सम्मानित अनंत विजय के द्वारा लिखी गई यह पुस्तक संभवतया ओटीटी पर पहली पुस्तक है। इस पुस्तक को लेखक ने 9 अध्याय में विभाजित किया है और हर अध्याय में एक गंभीर मुद्दे को उठाने की कोशिश की है। वर्तमान समय में मनोरंजन के नाम पर ऐसी वेब सीरीज और फिल्मों की भरमार है जो सिर्फ अश्लीलता से भरी हुई है। लेखक ''सेक्रेड गेम्स'' और ''लस्ट स्टोरीज'' का उदाहरण देकर लिखते हैं कि यहां न सिर्फ सेक्स दृश्यों की भरमार है बल्कि अप्राकृतिक यौनाचार भी दिखाया जा रहा है। ऐसे में अगर एक युवा यह सब देख रहा है तो हम समझ सकते हैं कि उसकी बुद्धि पर इन सबका कैसा प्रभाव पड़ेगा?
लेखक महिलाओं की छवि को लेकर भी चिंतित दिखाई देते हैं। एक जगह लेखक ने "रसभरी" का जिक्र किया है जहां एक छोटी बच्ची मर्दों के सामने उत्तेजक नृत्य कर रही है। अगर आपको अभिव्यक्ति की आजादी इस देश में मिली हुई है इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि आप इस देश की संस्कृति को धूमिल करने का प्रयास करेंगे। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक अनंत विजय ने पाठकों को फ़र्ज़ी एजेंडा कैसा चलाया जाता है, यह भी समझाया है।
उन्होंने ''पाताल लोक" और ''तांडव'' जैसी वेब सीरीज का उदाहरण देते हुए समझाया है कि कैसे हिन्दुओं के खिलाफ और उनके देवी देवताओं के खिलाफ बड़ी चालाकी से नफरत लोगों के दिमाग में भरी जाती है और मुस्लिम किरदारों को बेचारा दिखाया जाता है।
इस पुस्तक के माध्यम से लेखक आगाह करते हैं कि ओटीटी पर राजनीतिक द्वेष से परिपूर्ण चीजें भी दिखाई जाती हैं। उन्होंने ''लैला'' का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे हिन्दू राष्ट्र के नाम पर लोगों को बरगलाया जा रहा है। इस वेब सीरीज में महिलाओं के खिलाफ जो हिंसा दिखाई गई है वो बिल्कुल गलत और अपना एजेंडा थोपने के लिए है। ऐसे में यह पुस्तक सभी सिनेमा प्रेमियों के लिए और मीडिया के विद्यार्थियों के लिए बहुत ही अच्छी बन पड़ी है।
इस पुस्तक में इतिहास के कुछ पन्नों को भी लेखक ने खंगालने की कोशिश की है। अनंत विजय ने पाठकों को यह समझाया है कि कैसे देश के आजाद होने के बाद कम्युनिस्ट लोगों ने अपना एजेंडा थोपने के लिए सिनेमा से जुड़े लोगों का इस्तेमाल किया। यह पुस्तक भारतीय कला जगत के लिए एक अनमोल धरोहर कही जा सकती है।
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