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ये संपादक नेहरू परिवार के लिए कैसे बने थे मुसीबत, ‘कांग्रेस प्रेसीडेंट फाइल्स’ में खुलासा
पत्रकारिता की दुनिया के तमाम ऐसे किस्से इतिहास के पन्नों में दफन पड़े हैं, जो आज की पीढ़ी के लिए काफी दिलचस्प हो सकते हैं।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 weeks ago
पत्रकारिता की दुनिया के तमाम ऐसे किस्से इतिहास के पन्नों में दफन पड़े हैं, जो आज की पीढ़ी के लिए काफी दिलचस्प हो सकते हैं। ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा लेखक व पत्रकार विष्णु शर्मा की किताब ‘कांग्रेस प्रेसीडेंट फाइल्स’ में मिलता है। ऐसे में जबकि इंदिरा गांधी द्वारा बनाए गए बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद वहां भारत विरोधी सुर तेज हो गए हैं, ये किस्सा आज भी मौजूं लगता है।
ये किताब बताती है कि कैसे मोतीलाल नेहरू ने अपने अखबार ‘इंडिपेंडेंट’ की जिम्मेदारी 31 साल के मनमोहक व्यक्तित्व के स्वामी सैयद हुसैन को दी थी, जो ढाका नवाब से करीबी रिश्ता रखते थे। उनकी मां भी फरीदपुर के नवाब की बेटी थीं, लंदन में पढ़े लिखे थे।
फिरोज शाह मेहता के अखबार ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ में भी काम कर चुके थे। ऐसे में मोतीलाल नेहरू ने जब उन्हें संपादक बना दिया तो उनका इलाहाबाद में नेहरू परिवार के तत्कालीन घर ‘आनंद भवन’ में आना जाना बढ़ गया, जहां अक्सर उनकी मुलाकात सरूप नेहरू से होती थी। 19 साल की सरूप जवाहर लाल नेहरू की वो बहन थीं, जिसे आज आप विजय लक्ष्मी पंडित के नाम से जानते हैं।
ऐसे में खुद विजय लक्ष्मी पंडित ने उनसे अपने रिश्तों के बारे में अपनी आत्मकथा में क्या लिखा है, वो आप इस किताब में भी पढ़ेंगे और साथ ही जानेंगे कि क्या थी नेहरू परिवार की इस रिश्ते के बारे में पता चलने पर प्रतिक्रया? गांधीजी की क्या भूमिका थी? सैयद को भारत से बाहर किस बहाने से बाहर भेज दिया गया था और कब वो वापस आकर भारत सरकार की विदेश सेवा में शामिल हुए।
यूं ये किताब ‘कांग्रेस प्रेसीडेंट्स फाइल्स’ कांग्रेस के उन अध्यक्षों के बारे में है, जो गांधीजी से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे, उनमें मोतीलाल नेहरू भी 1919 के अमृतसर अधिवेशन में अध्यक्ष बने थे, सो उनसे जुड़ी उस दौर की दिलचस्प घटनाएं भी पढ़ी जा सकती हैं। ज्यादातर वो लोग हैं, जिनके बारे में आज की पत्रकार पीढ़ी भी नाम के अलावा ज्यादा नहीं जानती है। ऐसे में पढ़ने लिखने के शौकीन पत्रकारों के लिए इस बुक में काफी अच्छा मसाला हो सकता है। खासतौर पर फैक्ट्स, क्योंकि फैक्टचैकर विष्णु शर्मा की पुरानी किताबों में तथ्यों का अच्छा संकलन है और इस किताब की तो टैगलाइन ही है कि ‘तथ्यों का खजाना जो कांग्रेस के बारे में आपकी राय बदल देगा’। तमाम मुद्दे तो ऐसे हैं जो आज की राजनीति से उनका सीधा कनेक्शन जोड़ा जा सकता है।
सबसे दिलचस्प है उस शपथ का एक-एक शब्द जानना, जो कांग्रेस अधिवेशनों में अंग्रेजी राज की वफादारी के लिए पढ़ी जाती थी, इसे ‘लॉयलिटी ऑफ ओथ’ कहा जाता था। इस किताब में ऐसे तमाम तथ्य हैं, जो आम पाठकों तो तो हैरान ही कर देंगे, जैसे कोई अध्यक्ष टीपू सुल्तान का वंशज था तो किसी का खानदान बाबर संग भारत आया था और जिन्ना संग पाकिस्तान चला गया। एक के पुरखे औरंगजेब के शिक्षक रहे थे तो सावरकर को काला पानी की सजा सुनाने वाला जज भी कांग्रेस अध्यक्ष था। एक ने ब्रिटेन की महारानी को अवतार घोषित कर दिया था तो एक ने विक्टोरिया मेमोरियल बनवाया था।
पत्रकारिता के इतिहास पर काम कर रहे मीडिया शोधार्थियों के लिए भी ये किताब काफी काम की हो सकती है क्योंकि आजादी की लड़ाई के दौर में तमाम पत्र पत्रिकाएं निकल रहे थे और उनमें से कई पत्र पत्रिकाएं कांग्रेस से जुड़े नेता भी निकाल रहे थे, ऐसे में नेहरू परिवार के पत्र पत्रिकाओं के अलावा बाकी कांग्रेस नेताओं जैसे तिलक के केसरी, मराठा, मालवीय जी के लीडर, हिंदुस्तान आदि से जुड़े कई किस्से भी इस किताब में शामिल हैं। वैसे भी उनकी किताबों में जो फैक्ट्स सहजता से एक जगह मिल जाते हैं, उनके लिए आपको कई किताबें पढ़नी पड़ेंगी।
‘कांग्रेस प्रेसीडेंट फाइल्स’ प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित हुई है और एमेजॉन व फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। किंडल एडीशन और पेपर बैक दो संस्करणों में फिलहाल उपलब्ध है। कुल 352 पेज की इस किताब में 35 अध्याय हैं, सो खास बात ये है कि एक अध्याय से दूसरे अध्याय का कोई सीधा कनेक्शन नहीं है, सो आपको जिस अध्याय की हैडिंग अच्छी लगे उसे कभी भी पढ़ सकते हैं। चूंकि हर अध्याय के साथ ही संदर्भ (REFERENCES) दिए गए हैं, इसलिए उन तथ्यों की प्रमाणिकता को और बल मिलता है।
इस पुस्तक के लेखक विष्णु शर्मा इतिहास से एमफिल, नेट क्वालीफाइड हैं, वह इससे पहले तीन पुस्तकें ‘इंदिरा फाइल्स’, ‘इतिहास के 50 वायरल सच’ और ‘गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं’ भी लिख चुके हैं। फिल्म समीक्षक हैं, इंटनेशनल फिल्म फेस्टीवल, गोवा (IFFI) की जूरी में दो साल रह चुके हैं। पत्रकारिता क्षेत्र में लगभग 25 साल से से सक्रिय हैं। अमर उजाला, न्यूज 24, इंडिया न्यूज आदि में काम कर चुके हैं। दैनिक जागरण में दिल्ली के इतिहास पर उनका कॉलम ‘दौर ए दिल्ली’ काफी चर्चा में रहा है। फैक्ट चेकिंग पर उनके बहुत से लेख और वीडियो विभिन्न न्यूज साइट्स व यूट्यूब चैनल का हिस्सा हैं। कई साहित्य समारोहों एवं टीवी बहस का भी हिस्सा रहते आए हैं। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से ठीक पहले अनु मलिक के संगीत से सजा उनका लिखा एक गीत ‘श्रीराम विराजेंगे जन्मभूमि में..’ जी म्यूजिक ने जारी किया था। बच्चों की एक एनिमेशन फिल्म '4th ईडियट' के गीत व डायलॉग भी लिख चुके हैं।
आप इस किताब को इस लिंक से प्राप्त कर सकते हैं-
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