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इंदिरा गांधी के जीवन के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती है पुस्तक 'इंदिरा फाइल्स'

जिस वंशवाद की आज बात होती है उसका सबसे पहला किरदार विष्णु शर्मा के अनुसार इंदिरा गांधी थीं। इसलिए उन्होंने पहले ही अध्याय में इस पर बात की है।

आनंद पाराशर by
Published - Thursday, 06 June, 2024
Last Modified:
Thursday, 06 June, 2024
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किसी भी पीढ़ी के लिए उसका इतिहास बहुत महत्वपूर्ण होता है, ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि उस पर भविष्य की नींव रखी जाती है। अगर कोई पीढ़ी अपने इतिहास से अवगत नहीं होगी तो कैसे वो एक उज्जवल भविष्य का निर्माण कर पाएगी? सोशल मीडिया के इस युग में जहां झूठ और एजेंडा की भरमार है वहां लेखक और पत्रकार विष्णु शर्मा की किताब ''इंदिरा फाइल्स'' एक अलग कालखंड में आपको लेकर जाती है और ऐसे सच और तथ्यों से आपको अवगत करवाती है जो अब तक या तो आपको बताए नहीं गए या आपसे छुपाए गए थे।

बात जब इंदिरा गांधी की आती है तो जहन में अपने आप आपातकाल और बांग्लादेश का गठन जैसी घटनाएं दिमाग में गूंजने लगती है लेकिन क्या इंदिरा गांधी जी का व्यक्तित्व सिर्फ इन्ही दो घटनाओं से आंका जाना चाहिए? लेखक विष्णु शर्मा ने इस पुस्तक में 50 अध्याय के माध्यम से इंदिरा गांधी के जीवन पर एक गहरी रिसर्च पेश की है। यह पुस्तक न सिर्फ मीडिया बल्कि राजनीति की समझ रखने वाले लोगों के लिए भी बहुत उपयोगी है। इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन, वंशवाद की राजनीति और उनके फैसलों को लेकर विष्णु शर्मा ने अपनी बात कही है।  

विष्णु शर्मा ने 'इंदिरा फाइल्स' में इंदिरा गांधी के राजनीतिक करियर के उस पहलू को भी उजागर करने का काम किया है जिस पर काफी विवाद भी हुआ है। जिस वंशवाद की आज बात होती है उसका सबसे पहला किरदार विष्णु शर्मा के अनुसार इंदिरा गांधी थी। इसलिए उन्होंने पहले ही अध्याय में इस पर बात की है। लाल बहादुर शास्‍त्री का अंतिम संस्‍कार महात्‍मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की समाधि के पास यमुना किनारे न किया जाए इसे लेकर भी इंदिरा गांधी अड़ गई थी। लेखक विष्णु शर्मा ने अपनी इस किताब में यह बताया है कि इंदिरा गांधी राजनीति में आने से पहले ही उससे जुड़े निर्णय लेने लगी थी।

उन्होंने उस समय के राष्‍ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भी झुकने पर मजबूर कर दिया था, जो कभी नेहरू के सामने भी नहीं झुका करते थे। ऐसे न जाने कितने अनसुने राज विष्णु शर्मा ने अपनी इस किताब में खोले है। सिक्किम का विलय या ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी बड़ी घटनाएं भी इस किताब का हिस्सा है और लेखक विष्णु शर्मा ने बहुत अच्छा शोध किया है। जब आप इस किताब को पढ़ते है तो आपको समझ आता है कि कैसे बड़े ऐतिहासिक सच आप तक पहुंच ही नहीं पाए।

क्या आप जानते है कि चीन की प्रगति के लिए भी इंदिरा गांधी ही उत्तरदायी थी और इन सब घटनाओं और ऐतिहासिक दस्तावेजों को समझने के लिए आपको इस पुस्तक को खरीदना होगा। इस पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण भी अब बाजार में उपलब्ध है।

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ये संपादक नेहरू परिवार के लिए कैसे बने थे मुसीबत, ‘कांग्रेस प्रेसीडेंट फाइल्स’ में खुलासा

पत्रकारिता की दुनिया के तमाम ऐसे किस्से इतिहास के पन्नों में दफन पड़े हैं, जो आज की पीढ़ी के लिए काफी दिलचस्प हो सकते हैं।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Thursday, 12 September, 2024
Last Modified:
Thursday, 12 September, 2024
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पत्रकारिता की दुनिया के तमाम ऐसे किस्से इतिहास के पन्नों में दफन पड़े हैं, जो आज की पीढ़ी के लिए काफी दिलचस्प हो सकते हैं। ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा लेखक व पत्रकार विष्णु शर्मा की किताब ‘कांग्रेस प्रेसीडेंट फाइल्स’ में मिलता है। ऐसे में जबकि इंदिरा गांधी द्वारा बनाए गए बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद वहां भारत विरोधी सुर तेज हो गए हैं, ये किस्सा आज भी मौजूं लगता है।

ये किताब बताती है कि कैसे मोतीलाल नेहरू ने अपने अखबार ‘इंडिपेंडेंट’ की जिम्मेदारी 31 साल के मनमोहक व्यक्तित्व के स्वामी सैयद हुसैन को दी थी, जो ढाका नवाब से करीबी रिश्ता रखते थे। उनकी मां भी फरीदपुर के नवाब की बेटी थीं, लंदन में पढ़े लिखे थे।

फिरोज शाह मेहता के अखबार ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ में भी काम कर चुके थे। ऐसे में मोतीलाल नेहरू ने जब उन्हें संपादक बना दिया तो उनका इलाहाबाद में नेहरू परिवार के तत्कालीन घर ‘आनंद भवन’ में आना जाना बढ़ गया, जहां अक्सर उनकी मुलाकात सरूप नेहरू से होती थी। 19 साल की सरूप जवाहर लाल नेहरू की वो बहन थीं, जिसे आज आप विजय लक्ष्मी पंडित के नाम से जानते हैं।

ऐसे में खुद विजय लक्ष्मी पंडित ने उनसे अपने रिश्तों के बारे में अपनी आत्मकथा में क्या लिखा है, वो आप इस किताब में भी पढ़ेंगे और साथ ही जानेंगे कि क्या थी नेहरू परिवार की इस रिश्ते के बारे में पता चलने पर प्रतिक्रया? गांधीजी की क्या भूमिका थी? सैयद को भारत से बाहर किस बहाने से बाहर भेज दिया गया था और कब वो वापस आकर भारत सरकार की विदेश सेवा में शामिल हुए।

यूं ये किताब ‘कांग्रेस प्रेसीडेंट्स फाइल्स’ कांग्रेस के उन अध्यक्षों के बारे में है, जो गांधीजी से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे, उनमें मोतीलाल नेहरू भी 1919 के अमृतसर अधिवेशन में अध्यक्ष बने थे, सो उनसे जुड़ी उस दौर की दिलचस्प घटनाएं भी पढ़ी जा सकती हैं। ज्यादातर वो लोग हैं, जिनके बारे में आज की पत्रकार पीढ़ी भी नाम के अलावा ज्यादा नहीं जानती है। ऐसे में पढ़ने लिखने के शौकीन पत्रकारों के लिए इस बुक में काफी अच्छा मसाला हो सकता है। खासतौर पर फैक्ट्स, क्योंकि फैक्टचैकर विष्णु शर्मा की पुरानी किताबों में तथ्यों का अच्छा संकलन है और इस किताब की तो टैगलाइन ही है कि ‘तथ्यों का खजाना जो कांग्रेस के बारे में आपकी राय बदल देगा’। तमाम मुद्दे तो ऐसे हैं जो आज की राजनीति से उनका सीधा कनेक्शन जोड़ा जा सकता है।

सबसे दिलचस्प है उस शपथ का एक-एक शब्द जानना, जो कांग्रेस अधिवेशनों में अंग्रेजी राज की वफादारी के लिए पढ़ी जाती थी, इसे ‘लॉयलिटी ऑफ ओथ’ कहा जाता था। इस किताब में ऐसे तमाम तथ्य हैं, जो आम पाठकों तो तो हैरान ही कर देंगे, जैसे कोई अध्यक्ष टीपू सुल्तान का वंशज था तो किसी का खानदान बाबर संग भारत आया था और जिन्ना संग पाकिस्तान चला गया। एक के पुरखे औरंगजेब के शिक्षक रहे थे तो सावरकर को काला पानी की सजा सुनाने वाला जज भी कांग्रेस अध्यक्ष था। एक ने ब्रिटेन की महारानी को अवतार घोषित कर दिया था तो एक ने विक्टोरिया मेमोरियल बनवाया था।

पत्रकारिता के इतिहास पर काम कर रहे मीडिया शोधार्थियों के लिए भी ये किताब काफी काम की हो सकती है क्योंकि आजादी की लड़ाई के दौर में तमाम पत्र पत्रिकाएं निकल रहे थे और उनमें से कई पत्र पत्रिकाएं कांग्रेस से जुड़े नेता भी निकाल रहे थे, ऐसे में नेहरू परिवार के पत्र पत्रिकाओं के अलावा बाकी कांग्रेस नेताओं जैसे तिलक के केसरी, मराठा, मालवीय जी के लीडर, हिंदुस्तान आदि से जुड़े कई किस्से भी इस किताब में शामिल हैं। वैसे भी उनकी किताबों में जो फैक्ट्स सहजता से एक जगह मिल जाते हैं, उनके लिए आपको कई किताबें पढ़नी पड़ेंगी।

‘कांग्रेस प्रेसीडेंट फाइल्स’ प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित हुई है और एमेजॉन व फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। किंडल एडीशन और पेपर बैक दो संस्करणों में फिलहाल उपलब्ध है। कुल 352 पेज की इस किताब में 35 अध्याय हैं, सो खास बात ये है कि एक अध्याय से दूसरे अध्याय का कोई सीधा कनेक्शन नहीं है, सो आपको जिस अध्याय की हैडिंग अच्छी लगे उसे कभी भी पढ़ सकते हैं। चूंकि हर अध्याय के साथ ही संदर्भ (REFERENCES) दिए गए हैं, इसलिए उन तथ्यों की प्रमाणिकता को और बल मिलता है।

इस पुस्तक के लेखक विष्णु शर्मा इतिहास से एमफिल, नेट क्वालीफाइड हैं, वह इससे पहले तीन पुस्तकें ‘इंदिरा फाइल्स’, ‘इतिहास के 50 वायरल सच’ और ‘गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं’ भी लिख चुके हैं। फिल्म समीक्षक हैं, इंटनेशनल फिल्म फेस्टीवल, गोवा (IFFI) की जूरी में दो साल रह चुके हैं। पत्रकारिता क्षेत्र में लगभग 25 साल से से सक्रिय हैं। अमर उजाला, न्यूज 24, इंडिया न्यूज आदि में काम कर चुके हैं। दैनिक जागरण में दिल्ली के इतिहास पर उनका कॉलम ‘दौर ए दिल्ली’ काफी चर्चा में रहा है। फैक्ट चेकिंग पर उनके बहुत से लेख और वीडियो विभिन्न न्यूज साइट्स व यूट्यूब चैनल का हिस्सा हैं। कई साहित्य समारोहों एवं टीवी बहस का भी हिस्सा रहते आए हैं। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से ठीक पहले अनु मलिक के संगीत से सजा उनका लिखा एक गीत ‘श्रीराम विराजेंगे जन्मभूमि में..’ जी म्यूजिक ने जारी किया था। बच्चों की एक एनिमेशन फिल्म '4th ईडियट' के गीत व डायलॉग भी लिख चुके हैं।

आप इस किताब को इस लिंक से प्राप्त कर सकते हैं-

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मनोरंजन के पीछे के एजेंडे को बेनकाब करती है अनंत विजय की पुस्तक 'ओटीटी का मायाजाल'

राष्ट्रीय पुरुस्कार से सम्मानित अनंत विजय के द्वारा लिखी गई यह पुस्तक संभवतया ओटीटी पर पहली पुस्तक है। इस पुस्तक को लेखक ने 9 अध्याय में विभाजित किया है।

आनंद पाराशर by
Published - Wednesday, 29 May, 2024
Last Modified:
Wednesday, 29 May, 2024
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वर्तमान समय में तकनीक के बढ़ते उपयोग के कारण दर्शकों के पास मनोरंजन के अनेक साधन हैं। कोरोना महामारी के बाद इस देश में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के दर्शकों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि देखी गई। सिनेमाघर बंद हो जाने और लॉकडाउन के कारण देश का एक बहुत बड़ा वर्ग ओटीटी पर समय व्यतीत करने लगा लेकिन क्या ओटीटी का सरोकार वाकई दर्शकों के मनोरंजन से है? कहीं मनोरंजन की आड़ में कुछ लोग अपना एजेंडा तो नहीं चला रहे हैं?

क्या ओटीटी इस देश की सभ्यता और संस्कृति की समझ रखते हैं? कहीं इस देश के युवाओं को मनोरंजन की आड़ में नग्नता तो नहीं बेची जा रही है? ऐसे ही कुछ गंभीर प्रश्न उठाती है वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय की पुस्तक 'ओटीटी का मायाजाल', इस पुस्तक में लेखक अनंत विजय ने इन सभी मुद्दों को बड़ी बारीकी से समझाया है।

राष्ट्रीय पुरुस्कार से सम्मानित अनंत विजय के द्वारा लिखी गई यह पुस्तक संभवतया ओटीटी पर पहली पुस्तक है। इस पुस्तक को लेखक ने 9 अध्याय में विभाजित किया है और हर अध्याय में एक गंभीर मुद्दे को उठाने की कोशिश की है। वर्तमान समय में मनोरंजन के नाम पर ऐसी वेब सीरीज और फिल्मों की भरमार है जो सिर्फ अश्लीलता से भरी हुई है। लेखक ''सेक्रेड गेम्स'' और ''लस्ट स्टोरीज'' का उदाहरण देकर लिखते हैं कि यहां न सिर्फ सेक्स दृश्यों की भरमार है बल्कि अप्राकृतिक यौनाचार भी दिखाया जा रहा है। ऐसे में अगर एक युवा यह सब देख रहा है तो हम समझ सकते हैं कि उसकी बुद्धि पर इन सबका कैसा प्रभाव पड़ेगा?

लेखक महिलाओं की छवि को लेकर भी चिंतित दिखाई देते हैं। एक जगह लेखक ने "रसभरी" का जिक्र किया है जहां एक छोटी बच्ची मर्दों के सामने उत्तेजक नृत्य कर रही है। अगर आपको अभिव्यक्ति की आजादी इस देश में मिली हुई है इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि आप इस देश की संस्कृति को धूमिल करने का प्रयास करेंगे। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक अनंत विजय ने पाठकों को फ़र्ज़ी एजेंडा कैसा चलाया जाता है, यह भी समझाया है।

उन्होंने ''पाताल लोक" और ''तांडव'' जैसी वेब सीरीज का उदाहरण देते हुए समझाया है कि कैसे हिन्दुओं के खिलाफ और उनके देवी देवताओं के खिलाफ बड़ी चालाकी से नफरत लोगों के दिमाग में भरी जाती है और मुस्लिम किरदारों को बेचारा दिखाया जाता है।

इस पुस्तक के माध्यम से लेखक आगाह करते हैं कि ओटीटी पर राजनीतिक द्वेष से परिपूर्ण चीजें भी दिखाई जाती हैं। उन्होंने ''लैला'' का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे हिन्दू राष्ट्र के नाम पर लोगों को बरगलाया जा रहा है। इस वेब सीरीज में महिलाओं के खिलाफ जो हिंसा दिखाई गई है वो बिल्कुल गलत और अपना एजेंडा थोपने के लिए है। ऐसे में यह पुस्तक सभी सिनेमा प्रेमियों के लिए और मीडिया के विद्यार्थियों के लिए बहुत ही अच्छी बन पड़ी है।

इस पुस्तक में इतिहास के कुछ पन्नों को भी लेखक ने खंगालने की कोशिश की है। अनंत विजय ने पाठकों को यह समझाया है कि कैसे देश के आजाद होने के बाद कम्युनिस्ट लोगों ने अपना एजेंडा थोपने के लिए सिनेमा से जुड़े लोगों का इस्तेमाल किया। यह पुस्तक भारतीय कला जगत के लिए एक अनमोल धरोहर कही जा सकती है।

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गांधीजी की हत्या के पूरे कालखंड से रूबरू करवाती है प्रखर श्रीवास्तव की किताब 'हे राम'

लेखक ने एक अध्याय में बिंदुवार तरीके से यह समझाने की कोशिश की है कि गांधीजी की हत्या को रोका जा सकता था। प्रखर श्रीवास्तव वर्ष 2005 से ही गांधी हत्याकांड से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर कार्य कर रहे हैं।

आनंद पाराशर by
Published - Wednesday, 22 May, 2024
Last Modified:
Wednesday, 22 May, 2024
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30 जनवरी 1948 की शाम को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की थी। वह एक ऐसी घटना है, जिसने इस देश की राजनीति और समाज दोनों को प्रभावित करने का काम किया। अफ़सोस की बात यह रही कि आजादी के इतने सालों के बाद भी उस घटना को पूर्ण रूप से समझने के लिए कोई प्रामाणिक दस्तावेज तैयार नहीं हुआ। पत्रकार और लेखक प्रखर श्रीवास्तव ने अपनी किताब 'हे राम' में महात्मा गांधी की हत्या की प्रामाणिक पड़ताल करने की कोशिश की है। प्रखर श्रीवास्तव ने इस पुस्तक को 2 खंड और 35 अध्याय में विभाजित किया है।

पहले खंड में उन्होंने आजादी के आंदोलन का अंतिम दौर, मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग, सांप्रदायिक दंगे, देश का विनाशकारी विभाजन, लुटे-पिटे शरणार्थियों की समस्या, मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा, पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिये गांधी का हठ जैसे कई मसलों पर बात की है। ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय गांधीजी की हत्या के पीछे ये कारण रहे हों।

वही दूसरे खंड में लेखक प्रखर श्रीवास्तव ने अद्भुत रूप से उस कालखंड का सजीव लेखन किया है। आखिर क्यों गांधीजी को मारा किया? नाथूराम गोडसे को बंदूक किसने दी? आखिर कौन कौन से किरदार उन घटनाओं से जुड़े हुए थे? गांधीजी के हत्या के बाद कैसे अहिंसा की बात करने वाले कांग्रेस के लोगों ने ब्राह्मण नरसंहार किया, वीर सावरकर कैसे इन सबमें शामिल हो गए? जैसी घटनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

इतना ही नहीं इस हत्याकांड के कई ऐसे तथ्य और राज़ हैं जो कभी सामने ही नहीं आये, या फिर आने नहीं दिये गये। यह किताब उन रहस्यों से भी पर्दा उठाती हुई नज़र आ रही है। लेखक ने इस पुस्तक को लिखने के लिए एक दशक से भी अधिक समय तक शोध किया है इसलिए यह किताब बहुत अच्छे लेखन की गवाह बनी है। लेखक ने पुलिस की तमाम छोटी-बड़ी जांच रिपोर्ट, केस डायरी, गवाहों के बयान और पूरी अदालती कार्यवाही से जुड़े हज़ारों पन्नों का बहुत ही बारीकी से अध्ययन किया है।

लेखक ने एक अध्याय में बिंदुवार तरीके से यह समझाने की कोशिश की है कि गांधी जी की हत्या को रोका जा सकता था। बता दें कि प्रखर श्रीवास्तव वर्ष 2005 से ही गांधी हत्याकांड से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर कार्य कर रहे हैं। इसी साल उन्होंने ज़ी न्यूज़ के लिए गांधी हत्याकांड पर एक विशेष शो बनाया था। इसी विषय पर वह एनडीटीवी इंडिया, इंडिया न्यूज़, न्यूज़ 24 और कैपिटल टीवी में भी कई शो बना चुके हैं।

आप अगर लेखक प्रखर श्रीवास्तव की इस किताब को पढ़ना चाहते है तो यहां क्लिक कर किताब को खरीद सकते हैं।

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बुक रिव्यू : देश के खिलाफ 'फेक नैरेटिव' को एक्सपोज करती है अशोक श्रीवास्तव की यह किताब

वर्तमान में पीएम मोदी को 'तानाशाह' कहकर पुकारा जा रहा है। इस किताब में लेखक इस झूठ का भी पर्दाफाश करते हैं।

Last Modified:
Wednesday, 15 May, 2024
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'दूरदर्शन' में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अशोक श्रीवास्तव की दूसरी किताब  'मोदी वर्सेज खान मार्केट गैंग ' प्रकाशित हो गई है। जैसा कि इस किताब के नाम से ही जाहिर है यह किताब भारत के पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चलाए जा रहे एजेंडे को बेनकाब करती है। अशोक श्रीवास्तव ने अपनी इस किताब को 25 अध्यायों में विभाजित किया है और हर अध्याय में उन्होंने साबित करने का प्रयास किया है कि कैसे पीएम मोदी को बदनाम करने के लिए एक समूह बार-बार फेक नैरेटिव को गढ़ता चला जाता है। इस पुस्तक में अशोक श्रीवास्तव लिखते हैं कि 'खान मार्केट गैंग' से उनका आशय किसी एक स्थान से नहीं बल्कि उस सोच से है जो इस देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक है।

जब आप इस किताब को पढ़ते हैं तो समझ आता है कि लेखक अशोक श्रीवास्तव अपने प्रयास में काफी हद तक सफल हुए हैं। उदाहरण के लिए 'किसान आंदोलन' के दौरान लगभग 700 किसानों की मृत्यु हुई। इसके बाद एक बड़े वर्ग ने इसके लिए पीएम मोदी को जिम्मेदार बताया लेकिन जब आप इस किताब को पढ़ते हैं तो आपको समझ आता है कि यह सब एक सोचा समझा झूठ फैलाने का प्रयास था। अशोक श्रीवास्तव ने अपनी किताब में बड़ी गहराई से जांच पड़ताल करके इन सब फेक नैरेटिव को बेनकाब कर दिया है।

वर्तमान में पीएम मोदी को 'तानाशाह' कहकर पुकारा जा रहा है। इस किताब में लेखक इस झूठ का भी पर्दाफाश करते हैं। लेखक के अनुसार दूरदर्शन एक सरकारी चैनल समझा जाता है उसके बाद भी उस पर डिबेट का आयोजन किया जाता है और विपक्ष के लोग आए दिन पीएम मोदी की आलोचना करते हैं और सालों से यह कार्यक्रम चला आ रहा है। ऐसे में पीएम मोदी कैसे तानाशाह हुए? लेखक इस प्रश्न को भी उठाते हैं कि आखिर विपक्ष के लोगों को बराबर डिबेट में शामिल होने का मौका देने के बाद भी विपक्ष के द्वारा उनका बहिष्कार क्यों किया गया?

वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने अपनी किताब में 'कश्मीर' जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी बात की है। एक अध्याय में लेखक लिखते हैं कि उन्होंने अपने करियर में लगातार कश्मीर को कवर किया है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहां अमन और शांति बनाने की कोशिश कामयाब न हो सके इसलिए 'खान मार्केट गैंग' ने सरकार को बदनाम करके की पूरी साजिश की। पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने इस किताब के हर अध्याय में आकंड़ों और सबूत के साथ अपनी बात रखी है और उसमें वो कामयाब होते हुए भी नज़र आ रहे हैं।

किताब का मूल्य सिर्फ 350 रूपये है और आप इसे इस लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं।

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