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‘द वायर’ के संपादक के खिलाफ मानहानि मामला: SC ने JNU से मांगी ये जानकारी
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने जेएनयू के कुलपति और पोर्टल के संपादक तथा ‘डिप्टी एडिटर’ को नोटिस जारी किया।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) प्रशासन को यह सत्यापित करने का निर्देश दिया कि क्या किसी प्रोफेसर द्वारा कोई ऐसा ‘डोजियर’ (दस्तावेज) सौंपा गया था, जिसमें कथित तौर पर विश्वविद्यालय को ‘संगठित सेक्स रैकेट के अड्डे’ के रूप में दर्शाया गया है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ जेएनयू में ‘सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस’ की प्रोफेसर और अध्यक्ष अमिता सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें न्यूज पोर्टल ‘द वायर’ के संपादक और ‘डिप्टी एडिटर’ को ‘डोजियर’ के प्रकाशन पर एक आपराधिक मानहानि मामले में जारी समन को रद्द कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने जेएनयू के कुलपति और पोर्टल के संपादक तथा ‘डिप्टी एडिटर’ को नोटिस जारी किया।
पीठ ने कहा, ‘नोटिस जारी करें। हम यह भी चाहेंगे कि कुलपति के माध्यम से जेएनयू यह सत्यापित करे कि क्या कोई ‘डोजियर’ प्रस्तुत किया गया था, किस प्रभाव से और किसके द्वारा? इस सीमित पहलू में जेएनयू को नोटिस जारी किया जाना चाहिए।’
बता दें कि हाई कोर्ट ने ‘द वायर’ के संपादक और ‘डिप्टी एडिटर’ को आपराधिक मानहानि के मामले में जारी किए गए समन को 29 मार्च को निरस्त कर दिया था।
इसने कहा था कि वह यह समझने में असमर्थ है कि लेख शिकायतकर्ता को बदनाम करने वाला कैसे कहा जा सकता है, जबकि इसमें ‘कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि प्रतिवादी (अमिता सिंह) गलत गतिविधियों में शामिल है, न ही इसमें उनके बारे में कोई अन्य अपमानजनक संदर्भ दिया गया है।’
हाई कोर्ट ने कहा था कि विवादास्पद ‘डोजियर’ में गलत गतिविधियों का खुलासा किया गया था, जो कि कथित तौर पर जेएनयू परिसर में चल रही थीं और अमिता सिंह उन लोगों की एक टीम का नेतृत्व कर रही थीं, जिन्होंने दस्तावेज तैयार किया था।
कोर्ट ने कहा था कि शिकायत में निहित विषय प्रकाशन के उद्धरण को स्पष्ट रूप से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें कुछ भी ‘मानहानिकारक’ नहीं है और मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसी कोई सामग्री नहीं थी, जिसके आधार पर समन जारी किया जाए।
शिकायतकर्ता ने निचली अदालत के समक्ष दलील दी थी कि आरोपी व्यक्तियों ने उनकी प्रतिष्ठा खराब करने के लिए उनके खिलाफ घृणा अभियान चलाया था।
‘द वायर’ के संपादक और ‘डिप्टी एडिटर’ ने समन आदेश को हाई कोर्ट के समक्ष इस आधार पर चुनौती दी थी कि रिकॉर्ड में ऐसी कोई सामग्री नहीं थी, जिसके आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा उन्हें तलब किया जाए।
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