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इस वजह से मीडिया वह नहीं कर पा रहा है, जो उसे करना चाहिए: आलोक मेहता
‘गवर्नेंस नाउ’ के एमडी कैलाशनाथ अधिकारी के साथ एक बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार और ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ के पूर्व प्रेजिडेंट आलोक मेहता (पद्मश्री) ने तमाम मुद्दों पर अपनी राय रखी है।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 3 years ago
वरिष्ठ पत्रकार और ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ के पूर्व प्रेजिडेंट आलोक मेहता (पद्मश्री) ने इस बात पर क्षोभ जताया है कि सनसनीखेज खबरों के द्वारा लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए टैब्लॉयड पत्रकारिता को गंभीर पत्रकारिता के साथ मिला दिया गया है। इसके साथ ही आलोक मेहता का कहना है कि आलोचनाओं के बावजूद भारतीय मीडिया स्वतंत्र और शक्तिशाली है, लेकिन इसकी विश्वसनीयता को लेकर जो धारणा थी, उसमें कमी आई है।
‘गवर्नेंस नाउ’ (Governance Now) के एमडी कैलाशनाथ अधिकारी के साथ एक बातचीत में आलोक मेहता ने कहा, ‘टैब्लॉयड पत्रकारिता जो पहले काफी शक्तिशाली थी, वह आज के दौर में अखबारों के साथ-साथ टीवी चैनल्स में गंभीर पत्रकारिता के साथ मिल गई है। आज के दौर में एंटरटेनमेंट और सनसनीखेज पत्रकारिता न्यूज के साथ मिल गई है और सेल्स बढ़ाने के लिए हेडलाइंस काफी सनसनीखेज हो गई हैं। हालांकि भारतीय न्यूज मीडिया काफी मजबूत व शक्तिशाली है और उसे काफी स्वतंत्रता प्राप्त है, लेकिन कुछ वर्षों में इसकी विश्वसनीयता में कमी आई है।‘
पब्लिक पॉलिसी प्लेटफॉर्म पर ‘विजिनरी टॉक सीरीज’ (Visionary Talk series) के तहत होने वाले इस वेबिनार के दौरान आलोक मेहता का कहना था, ‘हालांकि यह कहना सही नहीं है कि चीजें पूरी तरह से खराब हैं, लेकिन आज मीडिया वह नहीं कर पा रहा है, जो उसे करना चाहिए। संपादकों/मीडिया मालिकों को अहंकार से दूर रहना चाहिए और रचनात्मक आलोचना को निष्पक्ष रूप से स्वीकार करना चाहिए।‘
इस बातचीत के दौरान आलोक मेहता का यह भी कहना था कि आजादी के बाद से पिछले पचास वर्षों में मीडिया का काफी विकास हुआ है। देश भर में अखबारों और न्यूज चैनल्स की संख्या में वृद्धि हुई है। अखबारों की पठनीयता के साथ-साथ न्यूज का उपभोग (consumption) भी बढ़ा है। इसके बावजूद मीडिया वह नहीं कर पा रहा है जो उसे करना चाहिए, क्योंकि वह एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहा है।
आलोक मेहता के अनुसार, ‘पहले के मुकाबले आज अंतर यह है कि मीडिया का विस्तार हुआ है और लोग यूट्यूब अथवा सोशल मीडिया के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करने में सक्षम हैं। इसके बावजूद प्रतिस्पर्धा और एक-दूसरे के खिलाफ होने की होड़ मीडिया को नुकसान पहुंचा रही है। इसमें इतना राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं है, बल्कि आपस में प्रतिस्पर्धा और अपने ही सहयोगियों के खिलाफ आलोचना है, जो मीडिया को नुकसान पहुंचा रही है। हम अपनी कमियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं बल्कि दौड़ में एक-दूसरे से आगे रहने की होड़ में हैं।‘
कई उदाहरणों का जिक्र करते हुए आलोक मेहता का कहना था कि तमाम परेशानियों के बावजूद उस समय फिर भी काफी सौहार्द था। आज मीडिया की मानसिकता यह है कि या तो आप मेरे साथ हैं या मेरे खिलाफ हैं, जबकि प्रतिस्पर्धा स्वस्थ होनी चाहिए।
कोविड-19 को लेकर रिपोर्टिंग के बारे में आलोक मेहता ने कहा कि महामारी पर रिपोर्टिंग करते समय मीडिया को स्व-विनियमित (self-regulate) होना चाहिए और इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि इन स्टोरीज का घर पर रह रहे बच्चों व युवाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जो कोविड पर हो रही काफी निगेटिव रिपोर्टिंग के कारण डिप्रेशन का सामना कर रहे हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या खबरों की प्रामाणिकता कम हो गई है, आलोक मेहता ने कहा कि रिपोर्टिंग की विश्वसनीयता के लिए लोग ब्रैंड्स से जुड़ते हैं और वह विश्वसनीयता धूमिल हो गई है। न्यूज विश्लेषण का काम एडिटोरियल पर छोड़ देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि न्यूज रिपोर्टिंग तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए। आज भारत में हर कोई खबरों पर कमेंट करना चाहता है। समाचारों का विश्लेषण संपादकीय पर छोड़ देना चाहिए, लेकिन भारत में यह सीमांकन टूट गया है। आज हर कोई खबरों पर कमेंट कर रहा है। रिपोर्टर्स समाचारों पर कमेंट्री कर रहे हैं और समाचार और विश्लेषण के बीच की सीमा रेखा टूट गई है।
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