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‘भारत को भी अपनाना चाहिए News Media Bargaining Code’
e4m-DNPA वर्चुअल राउंडटेबल में ऑस्ट्रेलियन कॉम्पटीशन एंड कंज्यूमर कमीशन (ACCC) के पूर्व अध्यक्ष रोडनी सिम्स ने न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड के बारे में विस्तार से बातचीत की।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago
‘ऑस्ट्रेलियन कॉम्पटीशन एंड कंज्यूमर कमीशन’ (ACCC) के पूर्व अध्यक्ष रोडनी सिम्स (Rodney Sims) का कहना है कि भारत को भी ‘न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड’ (News Media Bargaining Code) अपनाना चाहिए। e4m-DNPA वर्चुअल राउंडटेबल के दौरान शुक्रवार को उन्होंने न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड के बारे में विस्तार से बातचीत की। बता दें कि ऑस्ट्रेलिया की संसद ने पिछले साल ‘News Media Bargaining Code’ नामक कानून पारित किया है। यह कानून ग्लोबल डिजिटल प्लेटफार्म्स को अपने संबंधित प्लेटफार्म्स पर ऑस्ट्रेलियाई न्यूज कंटेंट को पब्लिश करने के लिए भुगतान को अनिवार्य बनाता है।
दरअसल, डिजिटल मीडिया ईकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) की चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा करने के लिए एक्सचेंज4मीडिया और डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (डीएनपीए) ने इंटरशनेशनल स्पीकर्स के साथ 25 नवंबर को वर्चुअल रूप से गोलमेज सम्मेलन (राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस) का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में इंटरनेशनल स्पीकर्स एक मंच पर आए और तेजी से हो रहे डिजिटलीकरण के दौर में प्लेटफॉर्म्स और पब्लिशर्स के संबंधों पर अपने विचार रखे।
इस मौके पर ऑस्ट्रेलियन अर्थशास्त्री, वर्ष 1988-90 के दौरान ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री बॉब हॉक (Bob Hawke) के मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके और वर्तमान में Crawford School of Public Policy के प्रोफेसर सिम्स का कहना था कि न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड की सिफारिशों (recommendation) को लेकर की गई स्टडी के दौरान हमने पाया कि गूगल और फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों के पास बहुत ज्यादा मार्केट पॉवर है और वे बिना भुगतान किए मीडिया बिजनेस के कंटेंट का इस्तेमाल कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि फेसबुक और गूगल को अपने प्लेटफॉर्म पर न्यूज मीडिया कंटेंट की सख्त जरूरत थी। इन टेक कंपनियों को सिर्फ मीडिया बिजनेस से न्यूज मीडिया कंटेंट की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन दूसरी ओर प्रत्येक मीडिया बिजनेस को अपने अस्तित्व के लिए गूगल और फेसबुक पर होना आवश्यक था।
सिम्स के अनुसार, ‘इससे बाजार में असंतुलन की स्थिति पैदा हुई। हम इसका वर्णन कर सकते हैं और कह सकते हैं कि यह बाजार की विफलता है। एक अर्थशास्त्री के रूप में हम समझते थे कि बाजार में बहुत सारी विफलताएं हैं। लेकिन यह वास्तव में मायने रखता था, क्योंकि इसका मीडिया, पत्रकारिता और समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा था। हम इस बात को लेकर पूरी तरह स्पष्ट हैं कि बेहतर समाज के लिए पत्रकारिता मूलभूत तत्व है, इसलिए इस मुद्दे को उठाया जाना जरूरी था।’
इसके बाद सिम्स ने बताया कि कैसे न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड का ड्राफ्ट तैयार किया गया। सिम्स के अनुसार, ‘शुरू में सरकार ने सुझाव दिया कि एक स्वैच्छिक कोड होगा जो गूगल और न्यूज मीडिया बिजनेस के बीच एक समझौते की तरह काम करेगा। स्वैच्छिक कोड ने काम नहीं किया और मजबूत एक्शन की जरूरत थी। ऐसे में बातचीत शुरू हुई और सरकार ने ‘एसीसीसी’ से इस पर राय मांगी। इस पर हमने कहा कि हमें नहीं लगता कि इन वार्ताओं से उस तरह का वित्तीय परिणाम प्राप्त होगा, जैसा हम चाहते हैं। इसके बाद सरकार ने ‘एसीसीसी’ से न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड का ड्राफ्ट तैयार करने को कहा। इसके बाद हमने संचार विभाग के मंत्री के साथ मिलकर काम किया और ड्राफ्ट पर चर्चाओं के बाद कानून पास किया गया।’
इसके बाद सिम्स ने यह भी बताया कि कैसे गूगल ने ‘एसीसीसी’ द्वारा पेश किए गए ड्राफ्ट के कानून बन जाने पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार को अपनी गूगल सर्च सर्विसेज को वापस लेने की धमकी देकर उस पर हावी होने की कोशिश की। हालांकि गूगल की इस दिशा में बिल्कुल नहीं चली। फेसबुक ने एक अलग ही तरीका अपनाया और सभी न्यूज कंटेंट को अपनी फेसबुक साइट से हटा दिया। फेसबुक के साथ समस्या यह थी कि वह इस दिशा में ज्यादा ही आगे बढ़ गए। उन्होंने न केवल न्यूज कंटेंट को हटा दिया बल्कि कोविड चेतावनियों को भी हटा दिया। इससे लोगों के बीच काफी प्रतिक्रिया हुई और लोग इससे पीछे हटना शुरू हो गए। इस पर फेसबुक ने भी अपने कदम पीछे खींच लिए।
सिम्स के अनुसार, ‘नतीजा यह हुआ कि गूगल और फेसबुक द्वारा प्रति वर्ष 200 मिलियन डॉलर से अधिक का भुगतान किया गया है। न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड को कनाडा में कॉपी किया जा रहा है। इसके 2023 में पारित होने की संभावना है। इसी तरह यूएस और यूके भी इस कोड को अपना रहे हैं। ऐसे में भारत को मेरी सलाह है कि वह न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड को अपने यहां भी अपनाए।’
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