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सुप्रीम कोर्ट ने अरनब गोस्वामी को दी थोड़ी राहत, मीडिया की आजादी को लेकर की ये टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि एक पत्रकार के खिलाफ एक ही घटना के संबंध में अनेक आपराधिक मामले दायर नहीं किए जा सकते हैं।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
‘रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क’ के एडिटर-इन-चीफ अरनब गोस्वामी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पत्रकारिता की आजादी संविधान में दिए गए बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का मूल आधार है। अदालत ने यह भी कहा कि भारत की स्वतंत्रता उस समय तक ही सुरक्षित है, जब तक सत्ता के सामने पत्रकार किसी बदले की कार्रवाई का भय माने बिना अपनी बात कह सकता है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने अरनब गोस्वामी की दो याचिकाओं पर सुनाए गए फैसले में मीडिया की आजादी के बारे में यह टिप्पणियां कीं। पीठ ने कहा कि एक पत्रकार के खिलाफ एक ही घटना के संबंध में अनेक आपराधिक मामले दायर नहीं किए जा सकते हैं। उसे कई राज्यों में राहत के लिए चक्कर लगाने के लिए बाध्य करना पत्रकारिता की आजादी का गला घोंटना है।
अरनब गोस्वामी के खिलाफ अनेक राज्यों में दर्ज प्राथमिकियां रद्द करने की उनकी याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने यह बात कही। अरनब गोस्वामी ने पालघर में दो साधुओं सहित तीन व्यक्तियों की पीट-पीटकर हत्या किये जाने की घटना के बारे में अपने कार्यक्रम को लेकर दर्ज प्राथमिकी और निजी शिकायतों में चल रही आपराधिक जांच निरस्त करने के लिये ये याचिकायें दायर की थीं। पीठ ने अरनब गोस्वामी को राहत प्रदान करते हुए नागपुर से मुंबई ट्रांसफर किए गए मामले को छोड़कर अन्य सभी एफआईआर रद्द कर दीं। साथ ही इस मामले में उन्हें किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई से तीन सप्ताह का संरक्षण भी प्रदान कर दिया। मुंबई स्थानांतरित एफआईआर को निरस्त कराने के लिए पीठ ने गोस्वामी को सक्षम अदालत का दरवाजा खटखटाने को कहा। वहीं, पीठ ने इन मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने का अरनब गोस्वामी का अनुरोध ठुकरा दिया।
पीठ ने अपने 56 पेज के फैसले में कहा कि एक पत्रकार के खिलाफ एक ही घटना के संबंध में अनेक आपराधिक मामले दायर नहीं किये जा सकते हैं। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में प्रदत्त अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार और आपराधिक मामले की जांच के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का भी जिक्र किया।
पीठ का कहना था कि याचिकाकर्ता एक पत्रकार है। संविधान से मिले अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए याचिकाकर्ता ने टीवी कार्यक्रम में अपने विचार जताए थे। हालांकि, जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत पत्रकारों को बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए मिले अधिकार उच्च स्तर के हैं, लेकिन ये असीमित नहीं हैं। पीठ ने कहा, मीडिया की भी उचित प्रतिबंधों के प्रावधानों के दायरे में जवाबदेही है।
पीठ ने कहा कि एक पत्रकार की बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी सर्वोच्च पायदान पर नहीं है, लेकिन बतौर समाज हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पहले का अस्तित्व दूसरे के बगैर नहीं रह सकता। यदि मीडिया को एक दृष्टिकोण अपनाने के लिए बाध्य किया गया तो नागरिकों की स्वतंत्रता का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। गोस्वामी पर आरोप है कि उन्होंने पालघर में संतों की हत्या के बाद एक टीवी शो में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चुप्पी को लेकर कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
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