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सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज चैनलों को लगाई फटकार, कहा- तय हो न्यूज एंकर्स की जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज चैनलों में होने वाली बहस की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए नाराजगी व्यक्त की है और टीवी चैनलों को फटकार लगाई है
समाचार4मीडिया ब्यूरो 2 years ago
सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज चैनलों में होने वाली बहस की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए नाराजगी व्यक्त की है और टीवी चैनलों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि न्यूज चैनल भड़काऊ बयानबाज़ी का प्लेटफार्म बन गए हैं। प्रेस की आजादी अहमियत रखती है लेकिन बिना रेगुलेशन के टीवी चैनल हेट स्पीच का जरिया बन गए हैं। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने बुधवार को यह बात कही।
कोर्ट ने कहा कि राजनेताओं ने इसका सबसे अधिक फायदा उठाया है और टेलीविजन चैनल उन्हें इसके लिए मंच देते हैं। इस पर सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने कहा कि चैनल और राजनेता ऐसी हेट स्पीच से ही चलते हैं। चैनलों को पैसा मिलता है इसलिए वे दस लोगों को बहस में रखते हैं।
कोर्ट ने कहा कि मेनस्ट्रीम मीडिया या सोशल मीडिया चैनल बिना रेगुलेशन के हैं। न्यूज एंकर्स की जिम्मेदारी पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि एंकर की जिम्मेदारी कि बहस में कोई भड़काऊ बात न हो, लेकिन एंकर ऐसा नहीं करते। इससे सख्ती से निपटा नहीं जा रहा है। एंकर की जिम्मेदारी तय होनी। अगर किसी एंकर के कार्यक्रम में भड़काऊ कंटेंट होता है, तो उसको ऑफ एयर किया जाना चहिए और जुर्माना लगाना चहिए। कोर्ट ने पूछा कि इस मामले में सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है? क्या यह एक मामूली मुद्दा है?
कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें पता होना चाहिए कि रेखा कहां खींचनी है। हेट स्पीच का हमारे दिमाग पर गंभीर प्रभाव पड़ता। यहां की मीडिया को अमेरिका जितनी आजादी नहीं है, लेकिन यह पता होना चाहिए कि सीमा रेखा कहां खींचनी है। लिहाजा टीवी पर अभद्र भाषा बोलने की आजादी नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने वाले यूनाइटेड किंगडम के एक टीवी चैनल पर भारी जुर्माना लगाया गया था। लेकिन हमारे यहां ऐसा नहीं है। उनसे सख्ती नहीं हो रही है। अगर मंजूरी मिलती है तो हम जुर्माना लगा सकते हैं या उन्हें ऑफ एयर कर सकते हैं।
नफरत फैलाने वाले शो दर्शकों को क्यों पसंद आते हैं, इस पर कोर्ट ने कहा कि किसी रिपोर्ट में नफरत से भरी भाषा कई लेवल पर होती है। ठीक वैसे, जैसे किसी को मारना। आप इसे कई तरह से अंजाम दे सकते हैं। चैनल हमें कुछ विश्वासों के आधार पर बांधे रखते हैं। लेकिन, सरकार को प्रतिकूल रुख नहीं अपनाना चाहिए। उसे कोर्ट की मदद करनी चाहिए।
हरिद्वार में पिछले साल आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान दिए गए भड़काऊ भाषण मामले पर सुनवाई के दौरान न्यूज चैनलों पर होने वाली डिबेट की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए सुनवाई करने वाली बेंच के जज जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि टीवी पर दस लोगों को डिबेट में बुलाया जाता है। जो अपनी बात रखना चाहते है, उन्हें म्यूट कर दिया जाता है। उन्हें अपनी बात रखने का मौका ही नहीं मिलता।
टीवी चैनलों की हेट स्पीच वाली रिपोर्ट वाली याचिकाओं पर अगली सुनवाई 23 नवंबर को होगी। कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह ये स्पष्ट करे कि क्या वह हेट स्पीच पर अंकुश लगाने के लिए विधि आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई करने का इरादा रखती है।
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