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इसलिए नहीं संभाली NEWSHOUR की कमान, बोले Times Now के संपादक राहुल शिवशंकर
वरिष्ठ पत्रकार अरनब गोस्वामी के Times Now से अलग होने के बाद राहुल शिवशंकर को दी गई थी एडिटर-इन-चीफ की जिम्मेदारी
समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago
करीब दो दशक पहले ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में बतौर बीट रिपोर्टर अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत करने वाले वरिष्ठ पत्रकार राहुल शिवशंकर अब टाइम्स नेटवर्क के अंग्रेजी न्यूज चैनल ‘टाइम्स नाउ’ (Times Now) के एडिटर-इन-चीफ के तौर पर चैनल को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में जुटे हुए हैं।
वरिष्ठ पत्रकार अरनब गोस्वामी ने करीब ढाई साल पहले जब ‘टाइम्स नाउ’ को अलविदा कहा था, तब चैनल ने राहुल शिवशंकर को इसका एडिटर-इन-चीफ बनाया था। शिवशंकर की इस नेटवर्क में यह दूसरी पारी है। इससे पहले वह ‘टाइम्स नाउ’ में सीनियर एंकर के तौर पर काम कर चुके हैं।
राहुल शिवशंकर की नई भूमिका और पिछले कार्यकाल के अनुभव के अलावा तमाम मुद्दों पर हमारी सहयोगी मैगजीन ‘इम्पैक्ट’ (IMPACT) की संवाददाता नीता नायर ने उनसे विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश-
‘टाइम्स नाउ’ के साथ आपकी यह दूसरी पारी है। पहले आप इसमें सीनियर एंकर थे और अब एडिटर-इन-चीफ की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इस दौरान आप चैनल में क्या बदलाव लाए हैं?
सबसे पहले तो मैं एक बात बता दूं कि ‘टाइम्स नाउ’ की पहचान अब सिर्फ एक शो की वजह से नहीं है। अब यह विविध प्राइम टाइम वाला चैनल है, जिसमें एंकर्स की अपनी अलग स्टाइल है। हमने सेलेब्रिटी एंकर के नुकसान की भरपाई अच्छे कंटेंट से कर दी है। इससे पहले, खासकर मेरे आने से पहले रिपोर्टर्स को लेकर इस तरह की तमाम चर्चाएं थीं कि उन्हें अपनी रिपोर्ट्स उस हिसाब से फिट करनी होती थी कि एडिटर शाम को किस तरह की बातें करने वाले हैं। लेकिन हमने इस स्थिति को बदल दिया है। ‘टाइम्स नाउ’ अब रिपोर्टर और स्टोरी वाला चैनल हो गया है। सबसे बड़ा बदलाव जो मैं लाया हूं, वो यह है कि यहां सभी को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है।
क्या आपके कहने का मतलब है कि आपके आने से पहले ‘टाइम्स नाउ’ में एक तरह की तानाशाही चलती थी, जो आपके आने के बाद लोकतंत्र में बदल गई है?
मैं इस तरह के कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना पसंद नहीं करता हूं। लेकिन आप देखेंगे कि टाइम्स नाउ में पहले सिर्फ एक ही व्यक्ति को पूरी तरह पता होता था कि क्या ऑनएयर होने वाला है। उस समय सिर्फ एक ही व्यक्ति का बोलबाला हुआ करता था, जो सभी चीजें तय करता था, लेकिन हमने इन चीजों को बदला है और अब सभी लोगों को यहां अपनी बात रखने का अधिकार है।
जब आपने एडिटर-इन-चीफ की कुर्सी संभाली तो आपने नौ बजे वाला प्रमुख स्लॉट क्यों नहीं लिया?
मैं एक एडिटर हूं न कि एंटरटेनर। मैं एक विचारशील व्यक्ति हूं। न्यूजऑवर (Newshour) की एंकरिंग में भले ही लोगों को बेवजह यह कहने के लिए मजबूर किया होगा कि फलां इस तरह था और फलां इस तरह का है, लेकिन मेरी अपनी पहचान है। मैं अपनी तुलना किसी और से नहीं करना चाहता हूं। इसलिए मैं रात आठ बजे बिल्कुल अलग अप्रोच के साथ आया। इसके अलावा, मैं इस तरह के शो को करने में काफी असहज महसूस करता था, जिसमें वाक चातुर्य ज्यादा था। इसलिए रात आठ बजे का जो शो मैंने चुना, वह पूरी तरह तथ्यों पर आधारित था और उसमें बेवजह का शोरशराबा और ‘शब्दों का जाल’ नहीं था। इसलिए मैंने न्यूजऑवर की जगह रात आठ बजे वाला स्लॉट चुना।
‘टाइम्स नाउ’ में मैंने जिन पत्रकारों से बात की, उनमें से कुछ का कहना था कि आपके और नविका कुमार के बीच बहुत ज्यादा तालमेल नहीं है। ऐसे में दो अलग-अलग सोच के लोगों को रिपोर्ट करने में मुश्किल होती है?
आपने जो सुना है, वह कोरी गपबाजी है। लोग तो कहीं भी बात का बतंगड़ बनाना चाहते हैं। लेकिन हमारे बीच इस तरह की कोई बात नहीं है। नविका और मैं अपना-अपना काम अच्छी तरह से करते हैं। हम दोनों मिलकर काम करते हैं, इसलिए इस तरह की बातें सिर्फ कुछ लोगों की शरारत है।
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