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पत्रकारों के हत्यारों को सजा दिलाने में भारत की ये है स्थिति
हालांकि संतोष बस इतना है कि पिछले 12 सालों में भारत की स्थिति में यदि सुधार नहीं हुआ, तो बद से बदतर भी नहीं हुई है
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
दुनिया भर में पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं और सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि दोषियों को सजा दिलाने को लेकर सरकारें भी गंभीर नहीं हैं। अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (CPJ)’ का ताजा ‘इंपुनिटी इंडेक्स’ तो कम से कम यही इशारा कर रहा है। CPJ ने पिछले एक दशक के आंकड़ों के आधार पर उन 13 देशों की एक सूची तैयार की है, जहां पत्रकारों की हत्या से जुड़े मामले अभी भी अनसुलझे हैं या फिर कमजोर जांच के चलते आरोपित आजाद हो गए। गौर करने वाली बात ये है कि इस सूची में भारत को भी शामिल किया गया है, हालांकि संतोष बस इतना है कि पिछले 12 सालों में भारत की स्थिति में यदि सुधार नहीं हुआ, तो बद से बदतर भी नहीं हुई है।
CPJ के 2019 ग्लोबल इंपुनिटी इंडेक्स के मुताबिक, पत्रकारों के हत्यारों पर मुकदमा चलाने के मामले में सोमालिया की स्थिति बेहद खराब है। यह लगातार पांचवें साल दुनिया का सबसे खराब देश बना है। यानी कहां, पत्रकारों के हत्यारों को अदालत तक लाया तो जाता है, लेकिन पुलिस की कमजोर तैयारी के चलते वो आजाद हो जाते हैं। फिलहाल सोमालिया में पत्रकारों की हत्या से जुड़े 25 मामले अनसुलझे पड़े हैं। वैसे अनसुलझे केस के मामले में फिलीपींस पहले स्थान पर है। यहां पत्रकारों की हत्या के करीब 41 मामले अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सके हैं। इसके बाद, मैक्सिको (30), सीरिया (22), इराक (22), भारत (17), पाकिस्तान (16), अफगानिस्तान (11), ब्राजील (15), बांग्लादेश (7), रूस (6), नाइजीरिया (5) और दक्षिण सूडान (5) का नंबर है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1992 से लेकर 2019 तक 35 पत्रकारों को मौत के घाट उतारा गया। जिसमें से सितंबर 2009 से लेकर अगस्त 2019 के बीच के 17 मामले अनसुलझे हैं। गौरी लंकेश और सुजात बुखारी हत्याकांड इसमें सबसे प्रमुख हैं।
‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ ने मोटे तौर पर पिछले 10 सालों के आंकड़ों के आधार पर यह लिस्ट तैयार की है। CPJ का कहना है कि पिछले एक दशक में आतंकी संगठनों द्वारा पत्रकारों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया है, लेकिन स्थानीय आपराधिक गिरोह पत्रकारों के लिए फ़िलहाल सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। पत्रकारों को अपने काम के चलते जान गंवानी पड़ रही है। गौरतलब है कि इस साल अप्रैल में, प्रेस की आजादी के मामले में रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने भारत को 180 देशों में से 140 स्थान दिया था। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया था कि सांप्रदायिकता के खिलाफ बोलने वाले पत्रकारों को कई तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके विरुद्ध सोशल मीडिया अभियानों में भी तेजी आई है।
CPJ के मुताबिक, 31 अगस्त, 2019 को समाप्त हुए 10-वर्षीय सूचकांक की अवधि के दौरान, दुनिया भर में 318 पत्रकारों की उनके काम के लिए हत्या कर दी गई और 86% मामलों में किसी भी आरोपी पर सफलतापूर्वक मुकदमा नहीं चलाया गया। CPJ की इस बार की सूची में शामिल भारत सहित सभी देश हर साल इसका हिस्सा बनते रहे हैं। CPJ का इंपुनिटी इंडेक्स प्रत्येक देश की आबादी के प्रतिशत के रूप में पत्रकारों की हत्या के अनसुलझे मामलों की संख्या की गणना करता है। इस सूचकांक के लिए, CPJ ने एक सितंबर, 2009 और 31 अगस्त, 2019 के बीच हुई पत्रकारों की हत्या और अनसुलझे मामलों का डेटा जमा किया। केवल उन देशों को इस सूची में शामिल किया गया, जहां पांच या उससे अधिक केस अनसुलझे हैं। CPJ किसी पत्रकार की हत्या को उसके काम के चलते जानबूझकर की गई हत्या के रूप में परिभाषित करता है। इस सूचकांक में उन पत्रकारों को शामिल नहीं किया गया है, जिनकी मौत युद्ध या खतरनाक असाइनमेंट जैसे विरोध प्रदर्शन की कवरेज के दौरान हुई।
‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ का कहना है कि पिछले एक दशक में आतंकी संगठनों द्वारा पत्रकारों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया है, लेकिन स्थानीय आपराधिक गिरोह पत्रकारों के लिए फिलहाल सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। यही कारण है कि पत्रकारों को अपने काम के चलते जान गंवानी पड़ रही है।
गौरतलब है कि इस साल अप्रैल में प्रेस की आजादी के मामले में रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने भारत को 180 देशों में से 140वां स्थान दिया था। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया था कि सांप्रदायिकता के खिलाफ बोलने वाले पत्रकारों को कई तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके विरुद्ध सोशल मीडिया अभियानों में भी तेजी आई है। हालांकि, भारत में मीडिया की आजादी दूसरे देशों के मुकाबले बेहतर है, लेकिन पत्रकारों पर लगातार बढ़ते हमले चिंता का विषय जरूर है।
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