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संपादक के खिलाफ FIR पर बोले पत्रकार संगठन, मीडिया को परेशान करना बंद करे सरकार
पीएम के ससंदीय क्षेत्र वाराणसी में गोद लिए डोमरी गांव पर रिपोर्ट लिखने वाली पत्रकार सुप्रिया शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर पत्रकारों के संगठन ने कड़ी निंदा की है
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ससंदीय क्षेत्र वाराणसी में गोद लिए डोमरी गांव पर एक रिपोर्ट लिखने वाली डिजिटल न्यूज पोर्टल ‘स्क्रॉल.इन’ की एग्जिक्यूटिव एडिटर सुप्रिया शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर पत्रकारों के संगठन ने कड़ी निंदा की है। इनमें ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ (EGI), ‘नेटवर्क ऑफ वुमेन इन मीडिया, इंडिया’ (NWMI) और ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ (CPJ) शामिल है।
शुक्रवार को एक बयान जारी कर ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने कहा कि सरकार ऐसा कर कानून का दुरुपयोग कर रही है, जो निंदनीय है जिसे तत्काल वापस लिया जाए। गिल्ड का कहना है कि पत्रकारों के खिलाफ कानून के आपराधिक प्रावधानों का उपयोग अब एक अस्वास्थ्यकर और घृणित प्रवृत्ति बन गया है जिसका किसी भी जीवंत लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है। गिल्ड इसके खत्म करने की मांग के साथ ही इसका पुरजोर विरोध करता है।
स्क्रॉल.इन के स्पष्ट कथन के मद्देनजर, गिल्ड का मानना है कि आईपीसी और एससी-एसटी अधिनियम की विभिन्न धाराओं का इस्तेमाल गलत तरह से किया गया है और यह मीडिया की स्वतंत्रता को गंभीरता से कम करेगा।
गिल्ड ने बयान में आगे कहा, ‘पत्रकार ने पांच जून को वाराणसी के डोमरी गांव में माला देवी का इंटरव्यू किया था और उनकी कही गई बातें रिपोर्ट में जस की तस शामिल की गईं। इस रिपोर्ट का शीर्षक- ‘इन वाराणसी विलेज अडॉप्डेट बाय प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी, पीपल वेंट हंगरी ड्यूरिंग द लॉकडाउन’ (पीएम मोदी द्वारा गोद लिए गए वाराणसी के गांव में लॉकडाउन के दौरान लोग भूखे रहे थे) था।
गिल्ड ने बयान में यह भी कहा कि वह सभी कानूनों का सम्मान करता है और साथ ही माला देवी के बचाव के अधिकार से भी खुद को रोकता है, लेकिन ऐसे कानूनों के अनुचित दुरुपयोग को भी निंदनीय मानता है। इससे भी बदतर, अधिकारियों द्वारा कानूनों के इस तरह के दुरुपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति भारत के लोकतंत्र के एक प्रमुख स्तंभ को नष्ट करने की तरह है।
वहीं ‘नेटवर्क ऑफ वुमेन इन मीडिया, इंडिया’ ने भी ‘स्क्रॉल’ की महिला पत्रकार के खिलाफ लिए गए एक्शन की कड़ी निंदा की है। नेटवर्क ने कहा कि कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में लागू किए कड़े लाकडाउन की वजह से दैनिक श्रमिकों और संविदा के कर्मचारियों के सामने गहरा संकट खड़ा हो गया है। फिर भी देश की सरकार विशेष रूप से यूपी सरकार व पुलिस विभाग अहम योगदान देने वाले पत्रकारों को निशाना बना रही है। नेटवर्क ने कहा कि इस तरह के मामलों से एक पत्रकार और छोटे मीडिया संगठनों का नेटवर्क खत्म हो जाता है।
नेटवर्क ने यह भी कहा कि ये मीडिया की आवाज दबाने की कोशिश है। सुप्रिया को निशाना बनाया गया है, लिहाजा हम उनके खिलाफ इस एफआईआर को वापस लेने की मांग करते हैं। नेटवर्क ने यह भी कहा कि सुप्रिया की रिपोर्ट काफी व्यापक और अच्छी तरह से किए गए शोध पर आधारित थी।
वहीं दूसरी तरफ ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों को पत्रकार सुप्रिया शर्मा पर की जा रही आपराधिक जांच को तुरंत बंद कर देना चाहिए। इसके साथ ही अपनी पत्रकारीय जिम्मेदारी का निर्वाहन कर रहे प्रेस के सदस्यों और पत्रकारों को कानूनी रूप से परेशान करना बंद करना चाहिये।
न्यूयॉर्क में एशिया महाद्वीप के लिये कार्यरत CPJ की वरिष्ठ शोधकर्ता, आलिया इफ्तिखार ने कहा, ‘प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में अपने काम को ईमानदारी से निर्वाह करने के लिये के एक पत्रकार के ऊपर जांच शुरू करना स्पष्ट रूप से डराने की रणनीति है और देशभर के पत्रकारों के लिए यह मामला कंपा देने वाले सन्देश सरीखा है।’
आलिया ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस को शीघ्र सुप्रिया शर्मा पर हो रही जांच को बंद कर देना चाहिये। उन्होंने उक्त समाचार को लिख कर कोई अपराध नहीं किया है और वे केवल एक पत्रकार के रूप में अपना काम कर रही थीं।
वहीं स्क्रॉल.इन द्वारा जारी किये गये एक आधिकारिक बयान में यह स्पष्ट किया गया है कि उनका संस्थान सुप्रिया शर्मा द्वारा लिखे गये समाचार के पक्ष में खड़ा है। बयान में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया गया है कि यह जांच वास्तव में ‘स्वतंत्र पत्रकारिता को डराने और चुप करवाने का एक प्रयास है, जो कोविड-19 के दौरान हुए लॉकडाउन के दौरान कमजोर समूहों की स्थितियों पर समाचार एवं लेख लिख रहे हैं।’
गौरतलब है कि वेबसाइट ‘स्क्रॉल.इन’ की एग्जिक्यूटिव एडिटर सुप्रिया शर्मा के खिलाफ उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के रामनगर नगर थाने में केस दर्ज किया गया है और उन पर मानहानि का आरोप लगाया गया है। सुप्रिया पर यह केस कोरोना वायरस महामारी के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव की स्थिति पर लिखी गई एक रिपोर्ट को लेकर दर्ज किया गया है। सुप्रिया शर्मा ने जो खबर लिखी थी, उसका शीर्षक था- 'वाराणसी के जिस गांव को पीएम मोदी ने गोद लिया था वहां के लोग लॉकडाउन में भूखे।'
डोमरी गांव की रहने वाली माला देवी नाम की महिला ने सुप्रिया के खिलाफ ये मुकदमा दर्जा करवाया है। माला के मुताबिक, सुप्रिया ने अपनी स्टोरी में उनकी गरीबी व जाति का मजाक उड़ाया है जिससे उन्हें ठेस पहुंची हैं। डोमरी गांव को प्रधानमंत्री ने आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया है।
पुलिस के अनुसार, सुप्रिया शर्मा ने कोविड-19 लॉकडाउन के असर पर एक खबर के लिए माला देवी का इंटरव्यू लिया था। खबर में कहा गया कि माला देवी ने बताया कि वह एक घरेलू कामगार हैं और उनके पास राशन कार्ड न होने की वजह से लॉकडाउन के दौरान उनको राशन की समस्या उत्पन्न हुई।
पुलिस ने कहा है कि एफआईआर में माला देवी ने आरोप लगाया है कि सुप्रिया शर्मा ने उनके बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया है। वह घरेलू कामगार नहीं हैं, बल्कि वह आउटसोर्सिंग के माध्यम से वाराणसी नगरपालिका में स्वच्छता कार्यकर्ता के रूप में काम करती थीं और लॉकडाउन के दौरान उनको या उनके परिवार को खाने से संबंधित ऐसी कोई समस्या नहीं आई है, जिसका स्टोरी में जिक्र किया गया।
प्राथमिकी में माला देवी ने आरोप लगाया है कि सुप्रिया ने लॉकडाउन के दौरान उनके और उनके बच्चों के भूखे रहने की बात कहकर उनकी गरीबी और जाति का मजाक उड़ाया है। रामनगर पुलिस ने इस मामले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, आईपीसी की धारा 501 और 269 के तहत केस दर्ज किया है।
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