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COVID-19 के बाद क्या हमेशा के लिए बदल जाएगी मीडिया इंडस्ट्री?

वर्ष 2019 में विभिन्न मीडिया संस्थानों से एक हजार से ज्यादा पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखाया गया था।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago

वर्ष 2019 में विभिन्न मीडिया संस्थानों से एक हजार से ज्यादा पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखाया गया था। अब नए साल को मुश्किल से चार महीने ही बीते हैं कि इंडस्ट्री पर फिर छंटनी के बादल छा गए हैं। दरअसल, महामारी का रूप धारण कर चुके कोरोनावायरस (कोविड-19) के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन किया हुआ है। इससे तमाम उद्योग धंधे बंद पड़े हैं, वहीं मीडिया इंडस्ट्री पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ने लगा है। पिछले 15 दिनों में ही कम से कम 100 पत्रकारों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है, वहीं कुछ पत्रकारों को कुछ दिनों के लिए लीव विदाउट पे (बिना वेतन अवकाश) पर भेजा गया है।

ऐसी ही एक पत्रकार ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें अभी अपने एजुकेशन लोन की 10 किस्तें चुकानी हैं और इससे पहले कि वह कुछ समझ पातीं, उन्हें अगले आदेश तक छुट्टी (furlough) पर भेज दिया गया। इस महिला पत्रकार ने अभी अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की है और एक डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म में काम करती हैं। यह सिर्फ एक मामला नहीं है, इस तरह के कई मामले सामने आ रहे हैं, जहां पर देश के विभिन्न मीडिया संस्थान न सिर्फ अपने एंप्लाईज की सैलरी में कटौती कर रहे हैं, बल्कि उन्हें लीव विदाउट पे (Leave Without Pay) पर भी भेज रहे हैं। ऐसे में पत्रकारों के लिए देश का मीडिया मार्केट और चुनौतीपूर्ण हो गया है।

जैसा कि हम जानते हैं कि देश में पत्रकारों की संख्या पहले ही काफी ज्यादा है और हर साल पत्रकारिता करने वाले स्नातकों की संख्या भी कम से कम 3000 होती है, ऐसे में नौकरी के लिए भी यहां काफी प्रतिस्पर्धा रहती है। जब वर्ष 2019 में प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया के करीब एक हजार पत्रकारों को नौकरी से हटाया गया था, तब कई लोगों ने इसे वर्ष 2012 और 2013 में आई वैश्विक मंदी के बाद न्यूज बिजनेस का सबसे खराब दौर कहा था, लेकिन तब उन्हें शायद इस बात का अंदाजा नहीं था कि आगे इंडस्ट्री में इस तरह का खराब दौर आएगा।

करीब 15 दिन पहले ‘इंडियन एक्सप्रेस’(Indian Express) और ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’(Business Standard) ने सबसे पहले अपने एंप्लाईज की सैलरी में कटौती की घोषणा की। इसके बाद तो तमाम बड़े मीडिया संस्थानों से पत्रकारों को निकालने अथवा उनकी सैलरी में कटौती की कई खबरें सामने आईं। इस बीच यह भी खबर मिली कि ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ अपनी ‘संडे मैगजीन’ टीम को भी बाहर करने जा रहा है। इस बारे में पत्रकार नोना वालिया ने फेसबुक पर एक पोस्ट की, जिसमें उनका कहना था, ‘टाइम्स ऑफ इंडिया की संडे मैगजीन की पूरी टीम को बाहर जाने के लिए कह गिया गया है। इस बारे में मुझे मेरी बॉस पूनम सिंह ने फोन किया।’   तब से विभिन्न मीडिया संस्थानों से इस तरह की खबरें सामने आ रही हैं, जहां पर कुछ ने स्टाफ की छंटनी की है तो कुछ ने एंप्लाईज की सैलरी में पांच से 30 प्रतिशत तक की कटौती की है। ‘वॉल्ट डिज्नी’ (Walt Disney) जैसी कई कंपनियों ने स्वैच्छिक वेतन कटौती योजना (voluntary salary reduction plan) शुरू की है, जिसमें वरिष्ठ अधिकारी स्वैच्छिक रूप से वेतन में कटौती कर सकते हैं। लेकिन आम पत्रकारों के लिए हालात ऐसे नहीं हैं कि वे स्वेच्छा से अपने वेतन में कटौती कर सकें।

इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री आलोक मेहता का कहना है, ‘सिर्फ दिल्ली और मुंबई के आधार पर पूरे भारत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। देश में हर जिले में ऐसे तमाम पत्रकार हैं, जो साल के सामान्य दिनों में भी 10000 रुपए से ज्यादा नहीं कमा पाते। वे लोकल बिजनेस कम्युनिटी के साथ मिलकर काम करते हैं और उनकी कमाई काफी कम रहती है। ऐसे पत्रकारों की कमाई अब बिल्कुल बंद हो गई है। इन पत्रकारों की स्थिति अब किसानों और दैनिक वेतनभोगी श्रमिकों से भी खराब हो गई है, क्योंकि पत्रकारों को किसी तरह का लाभ अथवा मुआवजा नहीं मिल रहा है।’

आलोक मेहता का कहना है, ‘पत्रकारों की सहायता के लिए सरकार को सक्रियता दिखानी होगी। दूरदर्शन में सैकड़ों पद खाली पड़े हुए हैं।  सरकार को चाहिए कि दूरदर्शन चैनल्स में जितने भी पद खाली पड़े हुए हैं, उनमें इन पत्रकारों को समायोजित किया जाए।’ वहीं, 16 मार्च को मुंबई प्रेस क्लब ने एक बयान जारी कर पत्रकारों को नौकरी से निकाले जाने की निंदा की थी।

इस बारे में एचआर विशेषज्ञों का मानना है कि इस महामारी का प्रभाव प्रिंट मीडिया पर आगे भी पड़ेगा। ‘सिंपली एचआर सॉल्यूशंस’ (Simply HR Solutions) के नाम से अपनी एचआर फर्म चलाने वाले रजनीश सिंह का कहना है, ‘लोग अब नए बदलावों को स्वीकार कर रहे हैं और यदि यह स्थिति लंबी चली तो ये बदलाव स्थायी रूप धारण कर लेंगे। अब कई लोग अखबार की जगह उसका ई-एडिशन पढ़ रहे हैं, क्योंकि कई जगह अब यह एक विकल्प नहीं, बल्कि एकमात्र विकल्प बन गया है।’

पूर्व में टीवी18 इंडिया लिमिटेड में ग्रुप हेड (एचआर) के तौर पर काम कर चुके रजनीश सिंह का कहना है कि इस तरह की लगातार स्थिति अखबारों के लिए एक चुनौती बन जाएगी और एंप्लाईज की नौकरी पर संकट आना स्वभाविक है। उनका कहना है कि सिर्फ रिपोर्टर्स को ही नौकरी से हटाने का नोटिस नहीं दिया जा रहा है, बल्कि पेजमेकर्स और डिजायनर्स आदि की नौकरी भी जा रही है। रजनीश सिंह के अनुसार, यह संकट सिर्फ प्रिंट मीडिया का नहीं है, बल्कि डिजिटल मीडिया में भी इस तरह की स्थिति सामने आ रही है।     

सूत्रों के अनुसार, पिछले दिनों ‘एचटी मीडिया’ (HT Media) के सीईओ प्रवीण सोमेश्वर ने अपने एंप्लाईज के साथ एक मीटिंग में कहा था, ‘दो-तीन सालों से पत्रकारिता छोड़कर अन्य व्यवसाय की तरफ कई लोगों का झुकाव बढ़ा है। यह ट्रेंड आगे भी जारी रहेगा, क्योंकि पत्रकारों को अभी तक ये नहीं पता है कि इस तरह की स्थिति कब तक रहेगी और उन्हें जबरन छुट्टी अथवा सैलरी कटौती के साथ काम करना पड़ेगा।’


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