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पाञ्चजन्य के मंच पर जुटे तमाम दिग्गज, कुछ यूं कही ‘बात भारत की’
कार्यक्रम में ‘पाञ्चजन्य’ के संपादक हितेश शंकर, ‘ऑर्गनाइजर’ के संपादक प्रफुल्ल केतकर और ‘भारत प्रकाशन’ के प्रबंध निदेशक भारत भूषण अरोड़ा समेत विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े जाने-माने लोग शामिल रहे।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 9 months ago
साप्ताहिक राष्ट्रीय पत्रिका ‘पाञ्चजन्य’ (PANCHJANYA) अपनी यात्रा का 77वां वर्ष मना रही है। इसी कड़ी में 15 जनवरी 2024 को दिल्ली के होटल अशोक में ‘बात भारत की’ Confluence कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर ‘पाञ्चजन्य’ की 77वें वर्ष की यात्रा, भारत का सांस्कृतिक विकास, भारत का आर्थिक विकास, स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव, भारत का अब तक का व्यापक विकास समेत तमाम अन्य प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा हुई। जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम के पहले सत्र में ‘पतंजलि आयुर्वेद’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) आचार्य बालकृष्ण शामिल हुए। उन्होंने कहा कि वह क्षण आ गया है जब हमारे सामने भगवान श्री राम के मंदिर का निर्माण हो रहा है। हम भाग्यशाली हैं, जो मंदिर का निर्माण देख रहे हैं।
आचार्य बालकृष्ण का यह भी कहना था कि हमारी आने वाली पीढ़ी भी कहेगी कि जब राम मंदिर का उद्घाटन हो रहा था तो हमारे पूर्वज साक्षी थे। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने भी इसमें सहयोग किया। उसके लिए हमें कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए, यह हमारी संस्कृति है।
उन्होंने कहा कि भारत को समझने के लिए हमें वैश्विक स्तर के इतिहास को जानने और समझने की जरूरत है। जब हम विश्व का इतिहास पढ़ेंगे तो उसमें कहीं न कहीं भारत जरूर नजर आएगा और भारत अपने आप विश्व में चमकेगा। हमारी संस्कृति के प्रमाण 10 से 12 हजार साल के पहले के हैं। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि करीब 6 हजार वर्ष पहले हमारी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति विज्ञान के रूप में दुनियाभर में पहुंच चुकी थी। विदेशों से जितनी भी चिकित्सा विधाएं शुरू हुई हैं, उसकी जड़ में आयुर्वेद ही है।
कार्यक्रम के ‘आंखों देखी’ सत्र में राम मंदिर आंदोलन से जुड़े तीन पत्रकारों अशोक श्रीवास्तव, सुभाष और गोपाल जी ने उस दौरान के अपने अनुभव शेयर किए। उस दौरान ये तीनों पत्रकार पाञ्चजन्य के लिए कार्य कर रहे थे। गोपाल शर्मा ने बताया कि अयोध्या आंदोलन से मेरा बहुत गहरा जुड़ाव है। प्रभु राम का आशीर्वाद भी है। उन्होंने कहा कि इस आंदोनल से जुड़ी शायद ही कोई ऐसी प्रमुख घटना हो, जिसमें मैं वहां मौजूद न रहा हूं। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि किस तरीके से विवादित रहे ढांचों को ढहाया गया।
इस दौरान सुभाष जी ने बताया कि केंद्र में नेहरू की सरकार थी उस दौरान उन्होंने पत्र लिखकर यूपी सरकार को कहा था कि वहां से मूर्तियां हटवा दो। हालांकि जिला प्रशासन और यूपी सरकार ने मूर्ति हटाने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि फरवरी 1986 को जब ताला खुला था। केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। वहीं, अशोक श्रीवास्तव ने बताया कि छह दिसंबर को मैं उस घटना को कवर कर रहा था। वहां बड़ी संख्या में लोग थे और मैं स्टेज पर खड़े होकर फोटो खींच रहा था, तभी कुछ लोग ढांचे पर चढ़ गए। पहले आडवाणी जी ने उन्हें उतारने की कोशिश की, ताकि वो गिर न जाएं, लेकिन जब मामला बढ़ गया तो बाकी लोगों ने कारसेवकों पर जोश भरना शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरा ढांचा ढहा दिया गया।
कार्यक्रम के दौरान प्रख्यात अभिनेता और धार्मिक धारावाहिक ‘महाभारत’ में श्रीकृष्ण की भूमिका निभा चुके नीतीश भारद्वाज का कहना था कि हर अवतार जीवन में कुछ न कुछ मालवीय मूल्य प्रस्तुत करने के लिए हमारे समक्ष आते हैं। विष्णु पुराण अपने आप में इसको जानने के लिए परिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि आपको राम पसंद है या कृष्ण, यहां इसका सवाल नहीं है। हमें कुछ जगह राम बनके जीना पड़ेगा और कुछ जगह कृष्ण बनकर जीना पड़ेगा। कलयुग में ऐसे ही चलेगा।
अयोध्या में रामजी को नया घर मिल रहा है, ‘कान्हा जी’ क्या कह रहे हैं? इस सवाल पर नीतीश भारद्वाज का कहना था, ‘हम कान्हा जी से पूछेंगे कि क्या उनको घर चाहिए? जैसे ही जवाब मिलेगा। मैं आपको बता दूंगा।‘ उन्होंने कहा कि आखिर क्यों न उनको घर मिले। जन्म स्थान का अपना महत्व होता है, बड़े महापुरुषों का जो जन्म स्थान है वह आदर्श स्थापित करने के लिए हैं अगर उनका जन्म स्थान पवित्र नहीं होगा तो फिर किसका होगा? उन्होंने यह भी कहा कि मथुरा में भी जन्मभूमि स्वतंत्र होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने जो किया, उसे लीला इसलिए कहा गया क्योंकि उनका कृत्य एक बड़े उद्देश्य के लिए था।
वहीं, जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा का कहना था कि जी20 की बैठक के बाद जम्मू-कश्मीर में साढ़े तीन सौ गुना विदेशी सैलानियों की संख्या में वृद्धि हुई है। वहीं जम्मू-कश्मीर में इस साल दो करोड़ 11 लाख सैलानी पहुंचे, जबकि पिछले वर्ष यह संख्या एक करोड़ 88 लाख थी। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति कितनी बदल गई है।
मनोज सिन्हा ने कहा कि 2019 में पीएम मोदी ने बंधनों में जकड़े हुए जम्मू-कश्मीर को मुक्त किया और आम आदमी के विकास और उनकी प्रतिष्ठा कायम की। जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास लाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की योजनाएं काम कर रही हैं। इसमें मैं एक गिलहरी की भांति अपना योगदान दे रहा हूं। आज जम्मू-कश्मीर के युवाओं के हाथों में पत्थर नहीं, बल्कि टैबलेट और लैपटॉप दिखाई दे रहे हैं।
उप राज्यपाल ने कहा कि पिछले साढ़े चार सालों की यात्रा कई पीढ़ियों से संजोए सपनों को सफल करने की यात्रा रही है। इससे लोगों को सामान्य और गुणवत्तापूर्ण जीवन मिला है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी नव वर्ष में लाल चौक पर जश्न बताता है कि अंधेरे से अब जम्मू-कश्मीर उजाले में प्रवेश कर गया है। वहां की वादियों में अब गोलीबारी नहीं, बल्कि तरक्की का शोर है। मनोज सिन्हा ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अंतिम सांसें गिन रहा है। आज कड़ाके की ठंड में भी देशभर के सैलानी वहां नाइट लाइफ का लुत्फ उठा रहे हैं।
इनके अलावा कार्यक्रम में ‘पाञ्चजन्य’ के संपादक हितेश शंकर, ‘ऑर्गनाइजर’ के संपादक प्रफुल्ल केतकर और ‘भारत प्रकाशन’ के प्रबंध निदेशक भारत भूषण अरोड़ा समेत तमाम जाने-माने लोग मौजूद रहे। यह कार्यक्रम 15 जनवरी की सुबह दस बजे से शुरू होकर शाम करीब छह बजे तक चला। इस कार्यक्रम का ‘पाञ्चजन्य’ के फेसबुक और यूट्यूब चैनल पर भी सीधा प्रसारण किया गया।
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