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रोहित सरदाना ने बताया, चैनल्स-न्यूज एंकर्स को हमेशा किन बातों का रखना चाहिए ध्यान
enba 2019 के मंच पर रोहित सरदाना ने कहा कि वे यहां पर किसी पर आरोप लगाने के लिए नहीं बैठे हैं और न ही किसी की तरफ से सफाई देने के लिए बैठे हैं
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
देश में टेलिविजन न्यूज इंडस्ट्री को नई दिशा देने और इंडस्ट्री को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में अहम योगदान देने वालों को सम्मानित करने के लिए 22 फरवरी को नोएडा के होटल रेडिसन ब्लू में ‘एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (enba) 2019 दिए गए। इनबा का यह 12वां एडिशन था। इस मौके पर कई पैनल डिस्कशन भी हुए। ऐसे ही एक पैनल का विषय ‘Differentiating editorial content from propaganda’ रखा गया था, जिसमें मीडिया के दिग्गजों ने अपने विचार व्यक्त किए।
फिल्म मेकर, इंटरनेशनल एंटरप्रिन्योर, मोटिवेशनल स्पीकर और लेखक डॉ. भुवन लाल ने बतौर सेशन चेयर इसे मॉडरेट किया। इस पैनल डिस्कशन में ‘आजतक’ के एग्जिक्यूटिव एडिटर (स्पेशल प्रोजेक्ट्स) रोहित सरदाना, ‘एबीपी न्यूज’ के वाइस प्रेजिडेंट (प्लानिंग और स्पेशल कवरेज) सुमित अवस्थी, ‘जी बिजनेस’ के मैनेजिंग एडिटर अनिल सिंघवी, ‘राज्यसभा टीवी’ के एडिटर-इन-चीफ राहुल महाजन, ‘सीएनएन न्यूज18’ के एग्जिक्यूटिव एडिटर भूपेंद्र चौबे और ‘विऑन’ की एग्जिक्यूटिव एडिटर पलकी शर्मा उपाध्याय शामिल थे।
इस मौके पर भुवन लाल द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या कुछ टीवी नेटवर्क्स प्रोपेगेंडा चलाते हैं और सिर्फ थोड़े चैनल ही ऑब्जेक्टिव यानी सही रूप में काम कर रहे हैं, ‘आजतक’ के एग्जिक्यूटिव एडिटर (स्पेशल प्रोजेक्ट्स) रोहित सरदाना का कहना था कि वे यहां पर किसी पर आरोप लगाने के लिए नहीं बैठे हैं और न ही किसी की तरफ से सफाई देने के लिए बैठे हैं।
रोहित सरदाना के अनुसार, ‘आमतौर पर मैं जब भी अपने व्युअर्स के साथ रूबरू होता हूं, तो कहानी के साथ होता हूं, ताकि चीजें आसान हो जाएं। यहां भी मैं एक छोटी सी कहानी सुना देता हूं। इस कहानी के अनुसार, एक गांव में हाथी आ गया। सब गांववाले हाथी देखकर आए और उसके बारे में बातचीत शुरू कर दी। गांव में पांच लोग ऐसे भी थे, जो नेत्रहीन थे, उनके मन में भी आया कि हम भी जाकर हाथी देखें। आखिर वे हाथी के पास पहुंच गए और उसे छूकर देखने लगे। किसी के हाथ में हाथी का पैर आया तो वह कहने लगा कि यह तो पेड़ के तने जैसा है। किसी के हाथ में सूंड आई तो उसने कहा कि यह पाइप की तरह है। किसी के हाथ में पूंछ आई तो उसने कहा कि यह तो पेड़ से लटकी हुई जड़ की तरह है। किसी के हाथ में हाथी का दूसरा पैर आया तो उसे लगा कि यह तो खंभे के जैसा है। तो उनमें आपस में झगड़ा हो गया कि ये तो ऐसा है, ये तो वैसा है। इसी दौरान वहां से गुजर रहे एक बुद्धिजीवी ने उन्हें लड़ते हुए देखा तो इसका कारण पूछा। इस पर नेत्रहीनों ने पूरी बात बताई। सारी बात सुनकर उस बुद्धिजीवी ने कहा कि आप सब लोग अपनी-अपनी जगह सही हो। आपमें से कोई गलत नहीं है, दिक्कत ये है कि आप सब उसे अलग-अलग तरीके से देख रहे हो। सबको एक साथ ले आओ। इसके बाद ही आपको पता चलेगा कि हाथी कैसा है।‘
सरदाना का कहना था कि यही काम एक न्यूज चैनल और न्यूज एंकर का है कि इधर भी एक तथ्य है और दूसरी तरफ भी एक तथ्य है तो वह सभी को मिलाकर दर्शकों के सामने रखे। इस तरह ही वह न्यूज चैनल अथवा एंकर ऑब्जेक्टिव कहलाएगा और यदि हाथी की कहानी की तरह इसमें एक पार्ट भी कम हो गया तो वो दर्शक जिन्होंने कोई एक फैक्ट देख रखा होगा, वे कहेंगे कि यह न्यूज चैनल/एंकर ऑब्जेक्टिव नहीं है और यह झूठ बोल रहा है। ऐसे में जरूरी नहीं है कि वह झूठ बोल रहा हो। आज के दौर न्यूजरूम में डायनिज्म का दौर है। आपसे कोई चीज छूट गई है, वो दूसरे कोने में कहीं पड़ी हुई है, हो सकता है कि वह आपको थोड़ी देर बाद मिले, लेकिन उस थोड़ी देर में अगर आपने फैसला सुनाने में जल्दबाजी कर दी है, जो कि आपका काम नहीं है, तो ऐसे में लोग आरोप लगाएंगे कि आप ऑब्जेक्टिव नहीं हैं और आप एकतरफा बात करते हैं।’
डॉ. भुवन लाल द्वारा यह पूछे जाने पर कि आपने बतौर उदाहरण अपनी कहानी में हाथी का जिक्र किया, लेकिन कुछ लोग बोलेंगे कि वह हाथी ही नहीं था, शेर था तो इस बारे में आपका क्या कहना है? इस पर रोहित सरदाना का कहना था, ‘मुझे लगता है कि ऐसे में हाथी को शेर कह देना अतिशयोक्ति होगी। वो हाथी ही कहेंगे, शेर नहीं कहेंगे, ये हो सकता है कि थोड़ा वजन घटा-बढ़ाकर कह दें। हाथी को शेर कह दें, ये तो नाइंसाफी हो जाएगी। इस देश में सारे ही नेत्रहीन नहीं बैठे हुए हैं।’
एक अन्य सवाल के जवाब में रोहित सरदाना का कहना था, ‘आजतक देश का इकलौता न्यूज चैनल है जो न्यूज चैनल के तौर पर आईएफसीएन (International Fact Checking Network) सर्टिफाइड फैक्ट चेकर है। हम एक महीने में सामान्यत: पांच सौ स्टोरीज का फैक्ट चेक करते हैं। कभी इन स्टोरीज की संख्या छह सौ भी हो जाती है तो कभी चार सौ भी रह जाती हैं। अमूमन हम पांच सौ स्टोरीज का फैक्ट चेक करते हैं, जिसमें हम लोगों को यह बताने की कोशिश करते हैं कि उन्हें वॉट्सऐप, फेसबुक अथवा मैसेज के जरिये जो पोस्ट बार-बार भेजी जा रही है, यह झूठी कहानी है अथवा सच्ची और यदि झूठी है तो इसका सच यह है। इसके लिए अब आपको ऐसे मॉडल तैयार करने पड़ेंगे, जो केवल फैक्ट चेकिंग ही करते हों और फैक्ट चेकिंग के नाम पर वे शार्प शूटर न बन जाएं, जैसे कि कुछ बन चुके हैं। ऐसे फैक्ट चेकर एकतरफा फैक्ट चेकिंग भी कर देंगे और उसके बाद उस पर निशाना साधना भी शुरू कर देंगे। ऐसे में वहां पर भी एक लगाम लगाने की आवश्यकता आ गई है। हम अपने लेवल पर फैक्ट चेक करते हैं, लेकिन उसकी एक लिमिट है। ऐसे में हमें इस बारे में चिंता करने की जरूरत है कि कैसे फेक न्यूज को कम किया जाए अथवा उसे रोका जाए।’
पैनल डिस्कशन के दौरान आखिर जब डॉ. भुवन लाल ने पूछा कि देश में किसी भी मुद्दे पर कई बार तमाम न्यूज चैनल्स सेलिब्रिटीज की राय दिखाने लग जाते हैं। क्या वे सभी सेलिब्रिटीज, जिनमें फिल्मी सेलिब्रिटीज भी शामिल हैं, क्या रातोंरात इतने एकसपर्ट हो जाते हैं कि वह किसी भी मुद्दे पर अपनी राय दे सकें। कई बार ये राय गलत होती है और लोगों पर ये राय एक तरह से थोप दी जाती है, क्या यह सही है? के जवाब में रोहित सरदाना का कहना था कि हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां पर देश के बड़े-बड़े पत्रकार भी शाम को खुशी से ट्वीट कर बताते हैं कि मैं टैक्सी में था और मैंने टैक्सी ड्राइवर से बात की और उसकी राय जानी। इसके आधार पर वह तय कर देता है कि अब मैं देश के ओपिनियन को इस दिशा में लेकर जाना चाहता हूं। यदि जब सभी राय दे सकते हैं तो फिर सबकी राय ली जाए, फिर फिल्म स्टार अपनी राय दे रहे हैं तो इसमें उसमें उनकी क्या गलती है कि वह फिल्म स्टार हैं। उन्हें दोष क्यों दिया जाए।
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