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तब्लीगी जमात को लेकर मीडिया कवरेज की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात
तब्लीगी जमात की मीडिया कवरेज को लेकर जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी, उसे लेकर अब कोर्ट ने कोई भी अंतरिम निर्णय देने से इनकार कर दिया है।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
तब्लीगी जमात की मीडिया कवरेज को लेकर जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी, उसे लेकर अब कोर्ट ने कोई भी अंतरिम निर्णय देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि वह मीडिया पर पाबंदी लगाने का कोई आदेश नहीं देना चाहता है। याचिकाकर्ता पहले भारतीय प्रेस परिषद को मामले में पक्षकार बनाए, फिर उसके बाद ही कोई सुनवाई होगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह प्रेस का गला नहीं घोटेगा। दो सप्ताह बाद कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई की जाएगी।
बता दें कि यह याचिका तब्लीगी जमात के करीबी माने जाने वाले उलेमाओं के संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दायर की थी। उसने देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण के लिए तब्लीगी जमात के लोगों को जिम्मेदार ठहराने पर मीडिया के खिलाफ यह याचिका दायर की थी। साथ ही इस संगठन ने मीडिया के एक वर्ग पर मार्च में हुए निजामुद्दीन मरकज के कार्यक्रम को लेकर नफरत फैलाने का आरोप भी लगाया था। संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से इस तरह की मीडिया कवरेज पर रोक लगाने की मांग की थी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट से मीडिया और सोशल मीडिया में झूठी खबर फैलाने वालों पर कार्रवाई का आदेश देने का अनुरोध किया गया था।
जमीयत की तरफ से पेश वकील एजाज मकबूल ने दायर की याचिका में कहा कि तब्लीगी के कार्यक्रम में हुई एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इन दिनों सोशल मीडिया में कई तरह के विडियो और फेक न्यूज शेयर कि जा रही हैं, जिनसे मुस्लिमों की छवि खराब हो रही है। इनसे तनाव बढ़ सकता है, जो साम्प्रदायिक सौहार्द्र और मुस्लिमों की जान पर खतरा है। साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन भी है।
प्रधान न्यायाधीश एस ए. बोबडे, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम.एम. शांतनगौडर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस मुस्लिम संगठन की याचिका पर विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई की और उससे कहा कि इस मामले में भारतीय प्रेस परिषद को भी एक पक्षकार बनाए।
वकील एजाज मकबूल ने मामले की सुनवाई के दौरान मीडिया पर तमाम आरोप लगाए। उन्होंने कहा, ‘मीडिया सांप्रदायिकता फैला रही है। तमाम तरह की झूठी खबरें मीडिया और सोशल मीडिया पर चल रही हैं। यह दिखाया जा रहा है कि मुसलमान बर्तनों को जूठा कर रहे हैं। फल और सब्जियों को जूठा कर रहे हैं। उनका मकसद कोरोना फैलाना है। नौबत यहां तक आ गई है कि मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार करने की धमकी दी जाने लगी है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का दखल देना जरूरी है।’
लेकिन जज इन दलीलों से संतुष्ट नजर नहीं आए। उनका कहना था कि मीडिया किसी भी मामले की खबरों को दुनिया के सामने लाता है। अगर उसके तौर-तरीकों में कोई कमी हो तो उसे देखना अदालत का काम नहीं है।
इसके बाद मकबूल ने ये दलील दी कि कई जगह पर मुसलमानों को मारने की धमकी दी जा रही है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, ‘आप मरने या मारने वाली दलील न दें, तो बेहतर है। अगर किसी को ऐसी धमकी दी जा रही है तो उसके पास तमाम कानूनी विकल्प उपलब्ध हैं। इस तरह से किसी PIL पर सुनवाई करते हुए हम मीडिया पर पाबंदी लगाने का आदेश क्यों दे दें?’
लिहाजा, बेंच ने जमीयत के वकील से कहा कि वह पहले प्रेस काउंसिल को पक्षकार बनाते हुए नई अर्जी दाखिल करें। कोर्ट 2 हफ्ते के बाद मामले को दोबारा सुनेगा। फिलहाल इस याचिका पर किसी भी तरह का आदेश पारित नहीं किया जाएगा।
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