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माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय: इन शिक्षकों की नियुक्ति पर उठे हैं सवाल
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से जुड़े विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं
समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से जुड़े विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। आर्थिक अपराध अन्वेषण प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति बृजकिशोर कुठियाला सहित 20 प्रोफेसर व कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। कुठियाला पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित संस्थानों और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आयोजनों में विवि की राशि के दुरुपयोग का आरोप है। यह एफआईआर विवि में वर्ष 2010 से लेकर 2018 के बीच हुई गड़बड़ियों को लेकर यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार दीपेंद्र सिंह बघेल के आवेदन और दस्तावेजों के परीक्षण के आधार पर दर्ज की गई है।
ईओडब्ल्यू ने जिस जांच रिपोर्ट को आधार मानकर एफआईआर दर्ज की है, उसमें यह भी जिक्र है कि कैसे कुठियाला ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर यूजीसी के मापदंडों को दरकिनार कर विभिन्न पदों पर भर्तियां की। जिन उम्मीदवारों का एकेडमिक परफार्मेंस इंडिकेटर (एपीआई) स्कोर यूजीसी के अनुसार नहीं था, उन्हें भी मंजूरी देकर असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्ति दे दी गई।
ईओडब्ल्यू को सौंपी गई जांच कमेटी की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. पी. शशिकला के मामले में नियमों को ताक पर रख दिया गया। टीचर्स की सीधी भर्ती के लिए यूजीसी का स्पष्ट प्रावधान है कि भर्ती एकेडमिक परफार्मेंस इंडिकेटर के आधार पर होगी, लेकिन, स्क्रूटनी कमेटी ने एसोसिएट प्रोफेसर के चयन में इस नियम का उल्लंघन किया। डॉ. पवित्र श्रीवास्तव के खिलाफ भी कई शिकायतें प्राप्त हुईं। उन्होंने यूनिवर्सिटी से छुट्टी लिए बिना पीएचडी की। पीएचडी करते समय यह संविदा तौर पर विवि में कार्यरत थे। श्रीवास्तव की नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट में प्रकरण विचाराधीन है।
इसी तरह डॉ. अविनाश बाजपेयी की एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर हुई सीधी भर्ती में एआईसीटीई के नियमों का उल्लंघन किया गया। उन्होंने पहले प्लेसमेंट ऑफिसर के तौर पर जॉइन किया, लेकिन, जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारी की रही। बाजपेयी 2009 में मैनेजमेंट विषय के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर के इंटरव्यू में सफल नहीं हो सके। 7 जुलाई 2014 को उन्हें एसोसिएट प्रोफेसर बनाया। इसमें नियमों का उल्लंघन हुआ। उनके पास न असिस्टेंट प्रोफेसर का अनुभव था और न इंटरव्यू के समय 2013 में पीएचडी डिग्री हासिल की थी। इन्होंने दूसरी पीएचडी 2014 में पत्रकारिता विषय में प्राप्त की। स्क्रूटनी कमेटी ने दस्तावेजों व एपीआई का सही से परीक्षण नहीं किया। आरोप है कि बाजपेयी ने एपीआई स्कोर मैनेजमेंट विषय में दिखाया, जबकि पीएचडी और टीचिंग अनुभव केमिस्ट्री विषय का है। डॉ. अरुण कुमार भगत की सीधी भर्ती के तहत रीडर तौर पर नियुक्ति हुई। इस नियुक्ति को लेकर हाई कोर्ट में प्रकरण लंबित है। यह भी कहा जा रहा है कि भगत के पास रीडर के चयन के समय पीएचडी डिग्री नहीं थी। एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर के चयन के समय भी इनके पास पर्याप्त योग्यता नहीं थी।
इसी प्रकार, प्रो. संजय द्विवेदी के संबंध में शिकायत के अनुसार चयन समिति द्वारा इनके प्रकाशित कार्य को पीएचडी के तौर पर माना गया, जबकि चयन समिति इसके लिए अधिकृत नहीं थी। डॉ. अनुराग सीठा ने एमसीए की डिग्री ली। साथ ही विवि में सीनियर कंप्यूटर प्रोग्रामर बने रहे। 10 अप्रैल 2006 को रीडर बने और 12 फरवरी 2009 को रीडर के पद पर रेगुलर हुए। रिपोर्ट में इस मामले में उच्चस्तरीय जांच की बात कही गई है। हालांकि, स्क्रूटनी व चयन में नियमों का उल्लंघन नहीं मिला।
वहीं, डॉ. मोनिका वर्मा की एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति में यूजीसी के नियमों का उल्लंघन किया गया। स्क्रूटनी कमेटी ने एपीआई के आधार पर बनी मेरिट को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन नहीं किया। डॉ. कंचन भाटिया और डॉ. मनोज कुमार पचारिया के मामले में भी एआईसीटीई के मापदंड का पालन नहीं हुआ। स्क्रूटनी कमेटी ने भी एपीआई स्कोर के मापदंड का पालन नहीं किया। एपीआई स्कोर की गणना करने वाली आईक्यूएसी ने कहा था कि इनके पास जरूरी स्कोर नहीं है। इसके बाद भी प्रो. कुठियाला ने इसे स्वीकार कर लिया।
डॉ. आरती सारंग के बारे में शिकायत है कि इनके लाइब्रेरी के अनुभव को गलती से टीचिंग अनुभव में जोड़ा गया, जबकि इन्होंने एक भी क्लास नहीं ली। बावजूद इसके इन्हें एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त कर दिया गया। डॉ. रंजन सिंह की गलती से ओबीसी कैटेगरी में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर भर्ती की गई, जबकि वह उत्तर प्रदेश के मूल निवासी हैं। इसके बाद भी एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। सुरेंद्र पाल की नियुक्ति एससी कैटेगरी में की गई, जबकि वह हिमाचल प्रदेश के हैं। इस मामले में मप्र एससी एसटी वेलफेयर सेल में याचिका दर्ज है। यूनिवर्सिटी के अनुसार वह एससी कैटेगरी के लाभ नहीं लेते हैं। हालाँकि, पाल 7 जुलाई 2014 को असिस्टेंट प्रोफेसर बने। इससे पहले की सेवा में इसका लाभ लिया। इन्होंने यूजीसी नेट एससी कैटेगरी में किया। इसी तरह डॉ. सौरभ मालवीय की पीएचडी यूजीसी के मापदंड के अनुसार फाइव पॉइंट के अनुसार नहीं हुई है। इनकी नियुक्ति पब्लिकेशन अधिकारी के तौर पर हुई। नियुक्ति को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सूर्य प्रकाश के बारे में भी कहा गया है कि वह यूजीसी के मापदंड को पूरा नहीं करते, जबकि प्रदीप डेहरिया की एमजे की डिग्री को लेकर शिकायत है। सतेंद्र कुमार डहरिया की एमजे डिग्री के संबंध में भी शिकायत प्राप्त हुई है। वहीं, गजेंद्र सिंह अवश्या की नियुक्ति को चुनौती देने के लिए कई शिकायतें हुईं। डॉ. कपिल राज चंदोरिया की नियुक्ति को हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में चुनौती दी गई है। आरोप हैं कि नियुक्ति के लिए इनके एपीआई स्कोर की सही से गणना नहीं की गई थी। यह नियमों का सीधा उल्लंघन है। रजनी नागपाल की असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर हुई नियुक्ति में भी नियमों से छेडछाड़ की गई। नियुक्ति यूजीसी मापदंड को पूरा नहीं करती थी। इनके चयन के लिए स्क्रूटनी कमेटी नियमों पर ध्यान नहीं दिया।
इस बारे में विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति बृजकिशोर कुठियाला ने भी एक पत्र के माध्यम से अपना पक्ष रखा है। प्रेस को लिखे इस पत्र में कुठियाला का कहना है, ‘रिपोर्ट में जिन्हें आरोपी बनाया गया है, उनका पक्ष तो सुना ही नहीं गया। यह पूर्णत: अन्याय और गैरकानूनी है। सात दशकों से अधिक की आजादी के बाद भी नागरिक अधिकारों का हनन होना अनुचित है। एक व्यवस्था में आपके काम की सराहना होती है और इसके लिए आपको पुरस्कृत किया जाता है, लेकिन दूसरी व्यवस्था उसी काम को दण्डनीय बनाने का प्रयत्न करती है। यह तो प्रजातान्त्रिक व्यवस्था को ही हास्यास्पद बना देती है। राजनीतिक मतभेदों को शिक्षा को तहस-नहस करने का बहाना बनाना अनुचित ही नहीं, अनैतिक भी है।’
कुठियाला का यह भी कहना है, ‘मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि कुलपति के रूप में मेरे कार्यकाल में सभी कार्य विश्वविद्यालय, राज्य सरकार व यूजीसी के नियमानुसार हुए हैं। आर्थिक शुचिता पूर्ण रूप से व्यवहार में लाई गई है। कुलपति होने के नाते मैं अपनी टीम के सभी कार्यों के लिए जिम्मेदार हूं। झूठ और अर्धसत्य पर आधारित आरोप अधिक दिन नहीं चल सकेंगे। जांच व्यवस्था पर हमारा पूर्ण विश्वास है और हमारी ओर से सभी प्रकार का सहयोग मिलेगा।’
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