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मीडिया और पत्रकारों के प्रति यहां की सरकार-प्रशासन का रवैया ठीक नहीं: एडिटर्स गिल्ड

त्रिपुरा में पत्रकारों और मीडिया पर हो रहे हमलों को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने राज्य सरकार पर नराजगी व्यक्त की है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 2 years ago

त्रिपुरा में पत्रकारों और मीडिया पर हो रहे हमलों को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने राज्य सरकार पर नराजगी व्यक्त की है। एडिटर्स गिल्ड ने कहा है कि त्रिपुरा सरकार (Tripura Government) हिन्दूवाद और साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा दे रही है।

बता दें कि त्रिपुरा में पत्रकारों पर पुलिस दमन और सरकार के रवैये को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की तीन सदस्यीय टीम जांच के लिए 28 नवंबर से 1 दिसंबर तक राज्य के दौरे पर थी। इसके बाद अब गिल्ड ने अपनी रिपोर्ट जारी कर दी है। रिपोर्ट में एडिटर्स गिल्ड ने दावा किया है कि त्रिपुरा पुलिस और राज्य सरकार ने बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा और इस मुद्दे पर रिपोर्टिंग करने वालों के साथ कानून विरोधी रवैया अपनाया था।

अपनी रिपोर्ट में गिल्ड ने कहा कि एक चुनी हुई राज्य सरकार सांप्रदायिक हिंसा और हिंदूवाद को बढ़ावा दे रही है। सरकार और प्रशासन का रवैया मीडिया और पत्रकारों के प्रति ठीक नहीं है। वहां की सरकार यूएपीए (UAPA) जैसे कानून का इस्तेमाल सिविल सोसायटी और मीडिया की आवाज को दबाने के लिए कर रही है।

त्रिपुरा में गिल्ड की जिस टीम ने जाकर जांच की, उनमें वरिष्ठ पत्रकार भारत भूषण, गिल्ड के महासचिव संजय कपूर और इंफाल के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप फंजौबाम शामिल थे। हालात का पता लगाने के लिए गिल्ड की टीम ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री, मंत्रियों, डीजीपी, अन्य अधिकारियों और पत्रकारों के अलावा सिविल सोसायटी के लोगों से भी मुलाकात की थी।

बता दें कि दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेश में दुर्गा पूजा (Durga Puja) के मौके पर कट्टरपंथियों ने कई पूजा पंडालों पर हमला बोला और मूर्तियों के साथ तोड़फोड़ की। उस घटना के विरोध में त्रिपुरा में एक रैली निकाली गयी, जिसके बाद राज्य में हिंसा की खबरें सामने आयीं। इस दौरान मस्जिदों पर कथित हमले किए जाने की खबरें भी सामने आयीं। इसके बावजूद त्रिपुरा सरकार कहती रही कि सब कुछ ठीक चल रहा है और माहौल शांतिपूर्ण है। लेकिन सोशल मीडिया पर इन घटनाओं की कथित तस्वीरें वायरल हो गईं।  

बताया जाता है कि दंगों और आगजनी की घटनाओं को कवर करने वाले पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की गई। पत्रकारों के अलावा, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया। पुलिस ने कई लोगों के खिलाफ झूठी तस्वीरें और वीडियो अपलोड करने के मामले गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मामला दर्ज किया। इनमें से कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। इनमें एक निजी चैनल की दो महिला पत्रकार भी शामिल थीं। पत्रकारों के उत्पीड़न के उन मामलों ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट में ऐसे दो मामलों में पत्रकारों को राहत देते हुए त्रिपुरा सरकार को झटका दिया था। फिलहाल वे मामले अदालत में लंबित हैं।

एडिटर्स गिल्ड ने अपनी रिपोर्ट में दो महिला पत्रकारों समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा का नाम लिखा है। उनको जगह-जगह रोका गया, होटल में उनके कमरे की तलाशी ली गई और फिर उनको गिरफ्तार कर लिया गया।

त्रिपुरा मानवाधिकार संगठन ने गिल्ड की जांच टीम को बताया कि राज्य का मीडिया पर जबरदस्त दबाव था और ज्यादातर स्थानीय मीडिया ने सरकार के सामने घुटने टेक दिए थे। स्थानीय मीडिया का गला घोंटने के लिए सरकारी विज्ञापनों को हथियार बनाया गया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थानीय मीडिया और सरकार के बीच मजबूत संबंध हैं। स्थानीय मीडिया उन खबरों को ही प्रसारित/प्रकाशित करता है जो सरकार के पक्ष में हैं। यही वजह कि स्थानीय पत्रकारों ने अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ दंगों और हिंसा के बारे में नहीं लिखा। मुख्यधारा की मीडिया में लिखने वाले पत्रकारों ने ही इस बारे में लिखा।

 


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