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इस अधिनियम के तहत कर्मचारियों की श्रेणी में नहीं आते वर्किंग जर्नलिस्ट्स: बॉम्बे हाई कोर्ट
न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि औद्योगिक अदालत के समक्ष इन अधिनियमों के तहत कामकाजी पत्रकारों द्वारा दायर की गई शिकायत सुनवाई योग्य नहीं होगी।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 months ago
बॉम्बे हाई कोर्ट का कहना है कि वर्किंग जर्नलिस्ट्स यानी कामकाजी पत्रकार महाराष्ट्र ट्रेड यूनियनों की मान्यता और अनुचित श्रम प्रथाओं की रोकथाम अधिनियम, 1971 (MRTU and PULP Act) के तहत कर्मचारियों की परिभाषा में नहीं आते हैं, क्योंकि उन्हें एक विशेष दर्जा प्राप्त है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की खंडपीठ ने 29 फरवरी के अपने आदेश में कहा है कि ऐसे में औद्योगिक अदालत (Industrial Court) के समक्ष इन अधिनियमों के तहत कामकाजी पत्रकारों द्वारा दायर की गई शिकायत सुनवाई योग्य नहीं होगी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, खंडपीठ ने कहा कि श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत विशिष्ट विशेषाधिकार के साथ श्रमजीवी पत्रकार एक अलग वर्ग का गठन करते हैं। इसलिए श्रमजीवी पत्रकार एमआरटीयू अधिनियम के तहत 'कर्मचारी' या 'कर्मकार' की श्रेणी में नहीं आएंगे। कोर्ट का कहना था कि एक बार जब श्रमजीवी पत्रकारों को एक अलग वर्ग में रखा जाता है, तो वे इसके बारे में शिकायत नहीं कर सकते।
खंडपीठ का कहना था कि एमआरटीयू अधिनियम के तहत श्रमजीवी पत्रकारों द्वारा दायर की गई शिकायतें सुनवाई योग्य नहीं होंगी क्योंकि वे विशेष वर्ग में होने का लाभ लेते हैं, और उक्त अधिनियम के प्रयोजनों के लिए कर्मचारी नहीं हैं। इसके साथ ही खंडपीठ का कहना था कि श्रमजीवी पत्रकारों से संबंधित विवादों को औद्योगिक विवाद अधिनियम में निर्धारित तंत्र का चयन करके सुलझाया जा सकता है।
यह फैसला दो कामकाजी पत्रकारों द्वारा दायर याचिकाओं पर आया है, जिसमें 2019 में औद्योगिक अदालत के आदेशों को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में इन पत्रकारों की शिकायतों को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि कामकाजी पत्रकार अनुचित श्रम व्यवहार रोकथाम अधिनियम के तहत कर्मचारी या कामगार के अंतर्गत नहीं आते हैं।
पीठ ने कहा कि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट, 1955 ने पहले ही औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत विवाद समाधान के लिए एक तंत्र स्थापित कर दिया है। याचिकाओं को खारिज करते हुए, हाई कोर्ट ने कहा कि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के तहत अपने रोजगार में अद्वितीय विशेषाधिकार और सुरक्षा के साथ वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक अलग वर्ग का गठन करते हैं।
हाई कोर्ट ने कहा, ‘अगर श्रमजीवी पत्रकार और काम करने वालों के बीच कोई अंतर नहीं है तो ऐसा नहीं हो सकता कि काम करने वाले पत्रकार के पास विशेषाधिकार हों, जबकि गैर-श्रमिक पत्रकारों सहित अन्य काम करने वालों को इससे वंचित रखा जाए।’
बता दें कि एमआरटीयू अधिनियम भारत सरकार द्वारा उद्योगों को रेगुलेट करने और औद्योगिक विकास में सुधार करने के लिए पारित किया गया था। अधिनियम का मुख्य उद्देश्य कर्मचारी और नियोक्ता संबंधों के बीच संतुलन बनाना है। यह हड़तालों, तालाबंदी और किसी कर्मचारी को बर्खास्त करने जैसे मुद्दों से जुड़ा हुआ है।
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