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मीडिया में बहुत तेजी से फैल रहा है ये ‘वायरस’: मनोज मनु, ग्रुप एडिटर, सहारा टीवी नेटवर्क
प्रतिष्ठित ‘एक्सफचेंज4मीडिया न्यूसज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (enba) के 11वें एडिशन का आयोजन 16 फरवरी को...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago
समाचार4मीडिया ब्यूरो।।
प्रतिष्ठित ‘एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (enba) के 11वें एडिशन का आयोजन 16 फरवरी को नोएडा के होटल रेडिसन ब्लू में किया गया। इस मौके पर देश में टेलिविजन न्यूज इंडस्ट्री को नई दिशा देने और इंडस्ट्री को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में अहम योगदान देने वालों को ‘इनबा अवॉर्ड्स’ से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के दौरान मीडिया क्षेत्र की हस्तियों ने विभिन्न पैनल डिस्कशन के जरिये अपने विचार व्यक्त किए। समाचार4मीडिया डॉट कॉम के एग्जिक्यूटिव एडिटर अभिषेक मेहरोत्रा ने बतौर सेशन चेयर एक पैनल डिस्कशन को मॉडरेट किया।
‘रीजनल मीडिया:खतरा, खबरें और कमाई’ विषय पर हुए इस पैनल डिस्कशन में ‘सहारा इंडिया टीवी नेटवर्क’ के ग्रुप एडिटर मनोज मनु, ‘नेटवर्क18’ (हिंदी नेटवर्क) के एग्जिक्यूटिव एडिटर अमिताभ अग्निहोत्री और ‘जनतंत्र टीवी’ के एडिटर-इन-चीफ वाशिंद मिश्र, ‘इंडिया न्यूज’ के चीफ एडिटर (मल्टीमीडिया) अजय शुक्ल, ‘पीटीसी नेटवर्क’ के मैनेजिंग डायरेक्टर- प्रेजिडेंट रबिंद्र नारायण और‘बीबीसी गुजराती’ के एडिटर अंकुर जैन शामिल रहे।
इस बारे में मनोज मनु का कहना था, ‘यह बात सही है कि इन क्षेत्रों में खनन माफिया काफी सक्रिय हैं और आए दिन खनन माफिया द्वारा पत्रकारों पर हमले की खबरें भी आती हैं। पहले भी इस तरह की घटनाएं होती रही हैं। लेकिन पहले इस तरह की खबरें नहीं आती थीं, यदि आती भी थीं तो अखबारों और टीवी चैनलों में उन्हें इतने दमदार तरीके से नहीं उठाया जाता था। अब चूंकि मीडिया काफी मजबूत हो चुका है तो ऐसे में रीजनल मीडिया के कारण अब कस्बा, ब्लॉक और तहसील स्तर पर इस तरह की खबरों को प्रमुखता मिलती है। हालांकि शुरुआती स्तर पर माफिया को लगता है कि उनके खिलाफ कुछ नहीं होने वाला। यदि किसी घटना को अंजाम दे भी दिया जाए तो चीजें दब जाएंगी, लेकिन ऐसा होता नहीं है। रीजनल मीडिया के प्रभाव के कारण इस तरह की घटनाओं में अब कमी आई है।’
यह पूछे जाने पर कि रीजनल मीडिया का इंपैक्ट क्या पड़ रहा है। जिस तरह से खबरों को लेकर नेशनल मीडिया इंपैक्ट डालता है और उसके आधार पर कार्रवाई भी होती है, लेकिन रीजनल मीडिया में छोटे-छोटे कस्बों और शहरों समेत दूरदराज के ग्रामीण इलाकों तक से खबरें आती हैं। ऐसे में रीजनल मीडिया के पास खबरों की भरमार होती है, तो कैसे इसकी खबरों का इंपैक्ट पड़ता है? खबर लाने वाले स्ट्रिंगर्स की क्रेडिबिलिटी सवालों के घेर में रहती है, क्यों?
इस पर मनोज मनु का कहना था, ‘स्ट्रिंगर्स से जब आप बिजनेस भी मंगाएंगे तो कहीं न कहीं गड़बड़ होनी ही है, इसलिए मैंने कार्यभार संभालते ही सबसे पहले यह सुनिश्चित किया कि स्ट्रिंगर्स सिर्फ खबरें करेंगे, बिजनेस के लिए अलग से व्यवस्था होगी। दूसरी बात ये कि हमें यह सोचना होगा कि जो नेशनल हिंदी चैनल होने का दावा कर रहे हैं, क्या वे वास्तव में नेशनल चैनल हैं। आज के समय में हिंदी भाषी रीजनल चैनल के लिए नेशनल चैनल सबसे ज्यादा परेशानी बन रहे हैं, क्योंकि मार्केट बहुत छोटी है और उसी से उनको भी शेयर जा रहा है, ऐसे में रीजनल चैनलों का शेयर कम हो जाता है।’
इसके साथ ही एक सवाल के जवाब में मनोज मनु का यह भी कहना था, ‘देश में बहुत सारी चीजें बंट रही हैं, इसलिए हमें इस सच्चाई को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है कि मीडिया भी बंट रहा है। पहले यदि पत्रकार का किसी राजनीतिक दल के नेता से संबंध हुआ करता था तो यह जरूरी नहीं था कि यह संबंध खबरों में भी दिखे, लेकिन पिछले कुछ समय से ऑनस्क्रीन भी ऐसी चीजें दिखाई दे रही हैं। मेरा कहना है कि इस तरह की चीजें ज्यादा दिन तक नहीं चलने वाली हैं, क्योंकि दर्शक बहुत समझदार हैं और यही कारण है कि कुछ समय पूर्व जब तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम आए तो मुझे लगता है कि कई टीवी एंकर्स के चेहरे पर दर्शकों ने यह भाव पढ़ लिए थे। कहने का मतलब है कि आप लंबे समय तक किसी की विचारधारा को प्रभावित नहीं कर सकते हैं। अब सोचना यह है कि विचारधारा का यह ‘वायरस’ कब तक काम करेगा, कभी न कभी तो कोई ‘वैक्सीन’ आएगा, जो इस पर काम करेगा।’
आप ये पूरी चर्चा नीचे विडियो पर क्लिक कर भी देख सकते हैं...
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