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कैमरे पर सच दिखाने की हिमाकत का नतीजा यूं भुगता पत्रकार ने
हिंदी मैगजीन आउटलुक में संवाददाता मनीषा भल्ला की एक स्टोरी प्रकाशित हुई है, जिसमें बताया गया है कि कैसे जान की परवाह किए बिना भ्रष्ट तंत्र से टकराता है एक पत्रकार। पत्रकार गौतम कुमार विश्वास जनता के मौलिक अधिकारों से जुड़े अहम मुद्दों पर छोटी फिल्में बनाकर कैसे पुलिस और प्रशासन की नींद तोड़ते हैं। हालांकि कई बार उन्हें इस बात की सजा भी मिली है। आउट
समाचार4मीडिया ब्यूरो 9 years ago
हिंदी मैगजीन आउटलुक में संवाददाता मनीषा भल्ला की एक स्टोरी प्रकाशित हुई है, जिसमें बताया गया है कि कैसे जान की परवाह किए बिना भ्रष्ट तंत्र से टकराता है एक पत्रकार। पत्रकार गौतम कुमार विश्वास जनता के मौलिक अधिकारों से जुड़े अहम मुद्दों पर छोटी फिल्में बनाकर कैसे पुलिस और प्रशासन की नींद तोड़ते हैं। हालांकि कई बार उन्हें इस बात की सजा भी मिली है। आउटलुक पर छपी पत्रकार गौतम की पूरी स्टोरी आप यहां पढ़ सकते हैं: जब पुलिस इस पत्रकार को बालों से नोचती हुई ले गई ‘कैमरे पर सच दिखाने की हिमाकत का नतीजा यह रहा कि कोलकाता पुलिस गौतम कुमार विश्वास को बालों से नोचती हुई घसीट कर ले गई। उन्हें जहां चाहा मारा। लातें, घूसे सब। गौतम कोलकाता के फ्रीलांस पत्रकार हैं, जो पुलिस और प्रशासन की पोल खोलती फिल्में बनाते हैं। जान की परवाह किए बिना भ्रष्ट तंत्र से टकराने वाले गौतम के महीने के आधे से ज्यादा दिन अदालतों में जाते हैं। उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा वकीलों को जा रहा है लेकिन फिर भी गौतम इस घुन लगी व्यवस्था के आगे न झुकते हुए बखूबी अपना काम कर रहे हैं।’ वह पिछले सात सालों से कोलकाता टीवी और एनई बांग्ला के लिए इंवेस्टिगेटिव प्रोग्राम बना रहे हैं। गौतम बताते हैं ‘जैसे अगर किसी पुलिसकर्मी ने बैज नहीं लगाया है तो हमने उसे शूट कर लिया क्योंकि प्रत्येक पुलिसकर्मी के लिए बैज लगाना अनिवार्य होता है। रात के ड्यूटी में हमने तमाम पुलिस थानों का दौरा किया तो पुलिसकर्मी सोए हुए मिले। हमने वो भी शूट किया, उच्च न्यायालय में मैं दीवारें फांदते हुए हथियार लेकर घुस गया, मेरे साथी ने वो शूट किया। किसी ने न मुझे देखा न रोका। मैं आसानी से बाहर भी आ गया। फिर महिलाओं की कई गिरफ्तारियों में महिला पुलिस नहीं होती। हमने इन तमाम मुद्दों पर बेहतरीन फिल्में बनाईं।’ इसके अलावा सोनागाची जैसे इलाकों में महिलाओं की तस्करी और कोलकाता में तमाम सामाजिक मुद्दों पर भी गौतम ने फिल्में बनाईं। गौतम इसी प्रकार जनता के मौलिक अधिकारों से जुड़े अहम मुद्दों पर छोटी फिल्में दिखा पुलिस और प्रशासन की नींद तोड़े हुए थे। वह बताते हैं ‘ एक जगह पुलिस एक बूढ़े आदमी की पिटाई कर रही थी, मुझसे रहा नहीं गया। मैं बीच-बचाव के लिए कूद गया तो पुलिस ने उस आदमी को छोड़ मुझे पीटना शुरू कर दिया। वह मुझे बालों से नोचती हुई ले गई। जबकि पुलिस जानती थी कि सब शूट हो रहा है। ‘गौतम के अनुसार ‘पुलिस वालों ने मुझे देखते ही बोला आज इसे पीटेंगे।’ गौतम पर आज 15 केस हैं। जिनके लिए उन्हें सात अलग-अलग अदालतों में जाना पड़ता है। कमाई का बड़ा हिस्सा अपने खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने में दे रहे हैं। वह कहते हैं ‘मैं अदालतों में जाकर थक गया हूं। मानवाधिकार हनन वाले कार्यक्रमों में जाकर अपनी व्यथा बताते-बताते थक गया हूं बावजूद इसके सच दिखाने का मेरा हौसला कभी पस्त नहीं होता। मैं ऐसा करता रहूंगा।’ (साभार: आउटलुक) समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।
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