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मुस्कुराइए, क्योंकि 'माफी हजूर' कह खूब ले रहे हैं पांडे जी मौज...!
एक खबरिया चैनल + पर 'थप्पड़ कांड' देखकर घर से निकला ही था कि पड़ोसी वर्माजी की बेटी...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
पीयूष पांडे
व्यंग्यकार व वरिष्ठ पत्रकार ।।
‘पिंकी कैसी तैयारी चल रही है।’ मैंने पूछा
‘अंकल अभी जूडो की प्रैक्टिस चल रही है। नेक्स्ट वीक कराटे और फिर ताइक्वांडो के कुछ मूव सिखाए जाएंगे। यानी पूरा वीक फिजकल ट्रेनिंग में ही गुजरेगा।’ पिंकी ने जवाब दिया।
मुझे अच्छा लगा कि आजकल जिस तरह लड़कियों से छेड़छाड़ की खबरें आती हैं, उसमें लड़कियों को जूडो-कराटे आना ही चाहिए। और अगर संस्थान अपने पैसों पर लड़कियों को ये ट्रेनिंग दे रहा है, तो इससे अच्छा कुछ हो नहीं सकता।
मैंने पूछा- ‘तो काम कब से शुरु होगा। ट्रेनिंग कब खत्म होगी?’
‘अरे अंकल, बहुत मुश्किल ट्रेनिंग है। इतनी जल्दी कहां खत्म होगी। अभी जूडो-कराटे की ट्रेनिंग खत्म होगी, फिर क्राइंग ट्रेनिंग होगी।’
मैंने कहा- ‘रोने की ट्रेनिंग। ये कैसा काम है,जहां रोना सिखाया जाता है। क्या तुम सरकार के किसी कस्टमर केयर में काम करने जा रही हो,जिसमें लोगों की समस्याएं सुनकर बंदा खुद रोने लगे ताकि लोगों को लगे कि जब सरकारी कर्मचारी ही रो रहा है तो फिर उनकी क्या बात हो।’
‘अरे अंकल। आप भी मजाक करते हैं। क्राइंग मतलब चीखना। अभी तक हमें पता ही नहीं था कि चीखने के भी कई तरीके होते हैं। नॉर्मल चीखना, हाईलेवल चीखना। कितने डेसिमल पर कब कैसे चीखा जाए कि सामने वाला एकदम चुप हो जाए-अभी इसकी ट्रेनिंग होनी है। इतना ही नहीं, हमें होमवर्क मिलेगा कि हम रोज सुबह और शाम आधा घंटा चिल्लाने का अभ्यास करें। चिल्लाने का रियाज उसी तरह करना होगा, जैसे गायक गायकी का रियाज़ करता है। बहुत संभव है कि ऐसा करने से आप नाराज हो जाएं। लेकिन मैं जानती हूं कि आप अच्छे पड़ोसी हैं। इसलिए कुछ कहेंगे नहीं।’
मैंने कहा- ‘नहीं नहीं.. नाराज होने की क्या बात है। अगर चिल्लाना तुम्हारी ट्रेनिंग का हिस्सा है तो करना ही चाहिए। लेकिन फिर काम शुरु हो जाएगा?’
वो बोली- ‘नहीं, फिर तीन दिन क्रिकेट की ट्रेनिंग होगी।’
मैंने कहा- ‘क्रिकेट? क्या नौकरी जॉइन करते ही तुम्हें कंपनी की क्रिकेट टीम में जगह मिल गई है। ये अच्छी कंपनी है।’
वो बोली- ‘नहीं अंकल। आप पुराने जमाने के पत्रकार लगते हैं। हर बात में कन्क्लूजन निकालने लगते हैं। कुछ बातें निष्कर्ष के लिए नहीं, सिर्फ तैयारी के लिए होती हैं। हमें क्रिकेट में भी सिर्फ बैटिंग करनी है। और बैटिंग भी हेलमेट पहनकर। दरअसल, हमे हेलमेट पहनकर कैसे घूमा-फिरा जाए। हमें हेलमेट के भीतर से ठीक से दिखता है नहीं-इसकी प्रैक्टिस कराई जाएगी।’
मैंने कहा- ‘चलो अच्छा है। लेकिन ये बताओ ट्रेनिंग के बाद तुम्हारे जिम्मे फिलहाल काम क्या रहेगा। अपनी टीम की तरफ से बैटिंग करोगी ?’
‘बैटिंग नहीं अंकल एंकरिंग। मैं एंकर बन गई हूं। न्यूज चैनल में एंकर।’ पिंकी ने उत्साह से जवाब दिया।
मेरे पैर से जमीन सरकने लगी। जमीन सरकते सरकते मुझे औंधे मुंह गिराती, तब तक मैं संभला और पूछा-’तो क्या पूरी ट्रेनिंग की कवायद एंकरिंग के लिए हो रही है।’
वो बोली- ‘हां और क्या। तो आपको मालूम ही नहीं था पिंकी एंकर बन गई है। पूरे मुहल्ले की पहली एंकर। आपने लड्डू भी खा लिए और इतना तक जानने की कोशिश नहीं की-कैसे पत्रकार हैं आप।’
मैं सकुचाया। लेकिन-नए जमाने के एंकर के लिए नई किस्म की ट्रेनिंग से प्रभावित भी था। मैंने पूछा-’कुछ और खास टिप्स भी दिए जा रहे हैं क्या।’
वो बोली- ‘हां। जैसे रोज़ रात गर्म पानी से नमक डालकर गरारे करें। मुलेठी चबाएं। और आइसक्रीम से थोड़ा परहेज करें। ऐसा करने से आपका गला नहीं बैठेगा और आप नियमित तौर पर चिल्ला सकेंगे।’
मैं आश्चर्यचकित था।
वो बोली कि एक ट्रेनर ने बताया है कि एक बेहतर एंकर के लिए जरुरी है कि वो तमाम चीखों के बीच भी अपनी बात पूरी करके दम ले। यानी कुत्ते-बिल्लियां भौं भों, म्याऊं म्याऊं करते रहें लेकिन वो आपके ध्यान को तोड़ न पाएं। एंकरिंग ध्यान की एक मुद्रा है, जिसमें बाहरी शोरगुल के बीच एंकर अपने ध्यान में रहता है कि उसे खुद को सबसे ज्ञानी सिद्ध करना है। एक और ट्रेनर ने बताया कि एंकर बनता नहीं पैदा होता है। मतलब-आपके सामने कोई भी महान गेस्ट बैठा हो-आप उसे मूर्ख समझिए। क्योंकि अगर अक्लमंद की अक्लमंदी को आपने अपने ऊपर हावी होने दिया तो फिर पूरा कार्यक्रम चौपट हो सकता है।
मेरा मुंह खुला का खुला था। मैं गलती से पूछ बैठा-फिर?
पिंकी बोली- ‘फिर क्या अंकल। फिर बन गई मैं एंकर। नेक्स्ट मंथ में 21 तारीख को लॉन्च हो रही हूं। सब फाइनल हो गया है। प्रोमो बन गया है। टीजर बन रहे हैं। एक दो जगह होर्डिंग भी लगेंगे-बॉस कह रहे थे। अंकल फिर आप गर्व करेंगे कि आपकी पड़ोसी पिंकी, जिसे आपने गोद में खिलाया, वो एंकर बन गई है।’
मैंने कहा- ‘सही कहा पिंकी। मैं अभी से गर्व कर रहा हूं क्योंकि तुम्हारी मैच्योरिटी बता रही हैं कि तुम्हें एंकर बनने और सफल एंकर बनने से कोई रोक नहीं सकता।’
‘थैंक्यू अंकल।’ पिंकी बोली और निकल पड़ी ट्रेनिंग के लिए।
मैं सोचने लगा कि पत्रकारिता में 20 साल गुजारने के बाद बावजूद आज भी लगता है कि कायदे से लिखना नहीं आता। आज भी लगता है कि फलां शब्द लेख में क्यों लिख दिया। स्क्रिप्ट को ऐसे क्यों लिख दिया-वैसे क्यों नहीं लिखा। लेकिन- पिंकी 1 महीने की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के बाद एंकर बनने जा रही है तो मानना पड़ेगा कि आजकल के बच्चे हमसे कहीं ज्यादा योग्य हैं और जमाना प्रैक्टिकल ट्रेनिंग का है।
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