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पत्रकारिता का इतिहास-भूगोल पढ़ें या नहीं, पर इसका अर्थशास्त्र जरूर पढ़ें: उदय सिन्‍हा, अमर उजाला

'अमर उजाला' के समूह संपादक उदय सिन्‍हा का कहना है कि पत्रकारिता...

समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago

समाचार4मीडिया ब्‍यूरो ।।

'अमर उजाला' के समूह संपादक उदय सिन्‍हा का कहना है कि पत्रकारिता करना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है और यह बहुत बड़ी बात है कि यह सब जानने के बावजूद बड़ी संख्‍या में विद्यार्थियों ने इस कोर्स का चुनाव किया है और इस पेशे में आना चाहते हैं।

माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय के नोएडा सेक्‍टर 62 स्थित स्‍थानीय परिसर में हुए नवागत विद्यार्थियों के प्रबोधन कार्यक्रम में विशिष्‍ट अतिथि उदय सिन्‍हा ने कहा कि काफी नए छात्र पत्रकारिता में आ रहे हैं। यह काफी गर्व की बात है कि हमारा 'समुदाय' और बड़ा होने वाला है और वे नए छात्रों का इस पेशे में स्‍वागत करते हैं। इसके अलावा उन्‍होंने छात्रों को पत्रकारिता जीवन में सफल होने के गुर भी सिखाए।

तय कीजिए कि क्‍यों बनना चाहते हैं पत्रकार : आप सबने यदि तय किया है कि आपको पत्रकार बनना है तो इसके लिए आपने कुछ न कुछ जरूर सोचा होगा कि आखिर आप क्‍यों इस पेशे में आना चाहते हैं। हालांकि कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि यह सोचने की बात नहीं है। जीवन में कुछ नहीं बने तो पत्रकार बन जाएंगे। लेकिन ऐसी बात नहीं है। आज यदि आप पत्रकारिता संस्‍थान में दाखिला लेकर पढ़ाई करते हैं तो यह तय बात है कि आपने कुछ न कुछ जरूर सोचा होगा कि हम पत्रकार क्‍यों बन रहे हैं। यदि नहीं सोचा है तो अब भी समय है और इस बारे में जरूर सोच लीजिए कि आखिर आप पत्रकार क्‍यूं बनना चाहते हैं।

बहुत बड़ी जिम्‍मेदारी है पत्रकारिता : आपमें से बहुत सारे विद्यार्थियों ने विज्ञान अथवा कॉमर्स से पढ़ाई की है और अब मॉस कम्‍युनिकेशन में दाखिला लिया है। हालांकि मॉस कम्‍युनिकेशन में दाखिला लेना सिर्फ पत्रकारिता नहीं है लेकिन शुरुआती तौर पर पत्रकारिता ही है, भले ही आप आगे जाकर कुछ करें। हो सकता है कि आपमें से कुछ विद्यार्थी डॉक्‍टर अथवा इंजीनियर बनना चाहते होंगे, लेकिन आखिर आप सोचिए कि क्‍यों आप डॉक्‍टर अथवा इंजीनियर बनना चाहते हैं। जरा सोचिए कि कोई भी व्‍यक्ति डॉक्‍टर अथवा इंजीनियर बनता क्‍यों है? दरअसल, डॉक्‍टर बनकर किसी व्‍यक्ति का उद्देश्‍य पैसा कमाना नहीं होता है। हालांकि कुछ लोग ऐसा सोचते भी होंगे, लेकिन अधिकतर लोग जब इस पेशे में आ जाते हैं और देखते हैं कि उनके सामने सबसे पहले मरीज की जिंदगी है तो डॉक्‍टर का पूरा ध्‍यान सब बातों को छोड़कर सिर्फ उस मरीज की जिंदगी बचाने पर होता है। आज बहुत सारे विद्यार्थी इंजीनियरिंग करके जब नौकरी करते हैं तो उनका उद्देश्‍य भी सिर्फ पैसा कमाना नहीं होता है। वे जानते हैं कि यदि वे कोई पुल बना रहे हैं तो इस पर से लाखों लोग गुजरेंगे और वे यह भी जानते हैं कि उनके ऊपर लाखों लोगों के जीवन की जिम्‍मेदारी है। जब ऐसी भावना उनके मन में आती है तो वे सही इंजीनियर बनते हैं। कहने का मतलब ये है कि इसी तरह एक पत्रकार के ऊपर भी बहुत बड़ी जिम्‍मेदारी होती है। आप यदि इस पेशे में आ रहे हैं तो आपको ऊपर भी एक बड़ी जिम्‍मेदारी आने वाली है कि आपको देखते हुए और सबको समझते हुए अपना काम करना है। इसके अलावा आपको सबकुछ सामने लाना है कि कहां क्‍या हो रहा है।

दरअसल, पत्रकारिता यही होती है। जब आप पत्रकार होते हैं तो आपका फर्ज होता है कि एक नागरिक को उसकी नागरिकता के बारे में सही ढंग से बता सकें कि उसकी भूमिका क्‍या है और सरकार के निर्णयों में उसकी कैसे भागीदारी होगी। दूसरी बात ये कि लोकतंत्र के रूप में आप जनता की आवाज बनते हैं और उसकी आवाज को सरकार तक पहुंचाते हैं। तभी आप एक अच्‍छे पत्रकार बनते हैं और यही पत्रकारिता है।

बहुत चुनौतियां हैं इस पेशे में : पत्रकारिता के पेशे में तमाम समस्‍याएं और चुनौतियां भी हैं। इसे मैं एक उदाहरण से बताऊं कि जब हम लोकतंत्र अथवा पत्रकारिता की बात करते हैं तो हम अमेरिका का जिक्र जरूर करते हैं। वहां हमारे देश की तरह मजबूत लोकतंत्र है। यह आज से 45-46 साल पुरानी बात है। उस समय अमेरिका में वाटरगेट कांड हुआ था। आज भी यह कांड पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्‍थर है। इस कांड का खुलासा दो युवा पत्रकारों वुडवर्ड और कार्ल बर्नस्टीन ने 1972 में किया था। तब दोनों काफी युवा पत्रकार थे और कुछ समय पूर्व ही उन्‍होंने 'वॉशिंगटन पोस्‍ट' अखबार में पत्रकारिता शुरू की थी। इस कांड ने तत्‍कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को इस्‍तीफा देने पर मजबूर कर दिया था। जबकि उस समय निक्‍सन की तूती बोलती थी और वह काफी मजबूत राष्‍ट्रपति थे।

यह घटना पत्रकारिता का ऐसा आयाम है, ऐसी चीज है जो प्रेरणा देती है कि यदि हम चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं। यह घटना इसलिए भी खास हो जाती है कि उस समय नए जमाने की मीडिया यानी वॉट्सऐप और ट्विटर की दुनिया नहीं थी। यदि ऐसा होता तो एक बड़ा वर्ग उन पत्रकारों के सामने खडा हो जाता और इसे फेक न्‍यूज बताते हुए कहता कि दोनों पत्रकार झूठ बोल रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उन दोनों पत्रकारों के सामने चुनौतियां नहीं थीं अथवा उनको धमकाया नहीं गया था। राष्‍ट्रपति रिचर्ड निक्‍सन और उनकी पार्टी ने दोनों पत्रकारों को परेशान करने में किसी भी तरह की कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन गमीनत रही कि वह लड़ाई लड़ी गई और उसे अंजाम तक पहुंचाया गया। आज की जमाने में यह थोड़ा मुश्किल है। क्‍योंकि आज जब आप जनता को सच बताएंगे तो उसे साबित करना आज के समय में बड़ा कठिन काम होगा। जो सच को सही ढंग से साबित कर सकते हैं, वे समझ सकते हैं कि हम बेहतर पत्रकारिता कर सकते हैं और लोकतंत्र को मजबूत बना सकते हैं।


निष्‍पक्ष दिखना क्यों है जरूरी : दोस्‍तों, लोकतंत्र को मजबूत करने का यह मतलब कतई नहीं है कि आप सिर्फ खोजी पत्रकारिता करें। जब आप किसी लोकतांत्रिक देश की सभ्‍यता और संस्‍कृति को मजबूत करते हैं तो भी लोकतंत्र मजबूत होता है। आपके देश में कुछ भी यदि अच्‍छा होता है और उसे सामने लेकर आते हैं, तो भी लोकतंत्र मजबूत होता है। आजकल का जो समय है, उसमें आप चाहे खुद कितने ही निष्‍पक्ष क्‍यों न हों, लेकिन आपको अपनी निष्‍पक्षता साबित खुद करनी होगी। आज आप अपने कर्म, अपने व्‍यवहार यानी हर तरफ से निष्‍पक्ष दिखिए, तो विश्‍वास रखिए कि तब आप लोकतंत्र को मजबूत कर सकेंगे और तब सही अर्थों में आप पत्रकारिता कर सकेंगे।

देश को सुलझे हुए पत्रकारों की जरूरत : मुझे लगता है कि आज के समय में अच्‍छे और सुलझे हुए पत्रकारों की देश को काफी जरूरत है। आज हम लोग कैंपस इंटरव्‍यू करते हैं। लेकिन यह देखकर बड़ी कोफ्त होती है कि इनमें से मात्र कुछ छात्र ही सफल होते हैं और कई छात्र तो सामान्‍य सवालों के जवाब भी नहीं दे पाते। तब लगता है कि आखिर आप लोगों ने दो साल पत्रकारिता की क्‍या पढ़ाई की और संस्‍थान ने आपको कितना तैयार किया। हालांकि माखन लाल चतुर्वेदी विश्‍वविद्यालय जैसे कई संस्‍थान काफी बेहतर काम कर रहे हैं और इसके लिए ये बधाई के पात्र हैं।

खुद जानने व समझने की होनी चाहिए ललक : आज जब मैं पत्रकारिता के कई विद्यार्थियों से पूछता हूं कि वे क्‍या बनना चाहते हैं तो इनमें से अधिकांश का जवाब होता है कि वे पॉलिटिकल रिपोर्टर बनना चाहते हैं। मैं जब उनसे पूछता हूं कि आखिर ये पॉलिटिकल रिपोर्टिंग क्‍या होती है लेकिन किसी ने भी सही जवाब नहीं दिया। कोई कहता है कि प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री समेत जो बड़े नेता भाषण देंगे, उसे कवर करना पॉलिटिकल रिपोर्टिंग है तो कोई कहता है कि जो काम ठीक से नहीं हो रहे हैं, मैं उन्‍हें लिखूंगा। कहने का मतलब है कि इस बारे में आपको कोई शिक्षक नहीं सिखाएगा बल्कि विद्यार्थियों को यह सब खुद जानना और सीखना होगा। आपके अंदर जानने की उत्‍सुकता होनी चाहिए, नहीं तो दो साल पढ़ाई के बाद भी आप कहेंगे कि हमें कुछ बताया नहीं।


पत्रकारिता का अर्थशास्‍त्र समझें : आप पत्रकारिता का इतिहास अथवा भूगोल पढ़ें अथवा नहीं, इससे मतलब नहीं है। मैं चाहता हूं कि आप सबसे पहले पत्रकारिता का अर्थशास्‍त्र जरूर पढ़ लें कि आखिर आप कैसे एक प्रतिष्ठित संस्‍थान में नौकरी पा सकते हैं। आप खुद से भी यह जानने का प्रयास करें कि मैं ऐसा क्‍या पढ़ूं जिससे नौकरी पा सकूं और सफल हो सकूं। आपको यह समझना होगा कि पत्रकारिता के क्‍या-क्‍या आयाम हैं। मॉस कम्‍युनिकेशन दरअसल है क्‍या और क्‍युनिकेशन व मॉस में कैसे संबंध स्‍थापित करेंगे। आप इस बारे में अपने शिक्षकों की भी राय ले सकते हैं, लेकिन उत्‍सुकता आपके अंदर होनी चाहिए। आपको सभी चीजों की जानकारी होनी चाहिए, क्‍योंकि इसमें शॉर्टकट की कोई गुंजाइश नहीं है।

 


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