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हिन्गलिश को हिन्दी भाषा में किस हद तक स्वीकार किया जाना चाहिये?
अभय कुमार दुबे- मैं इस सवाल का जवाब ऊपर दे चुका हूँ। अगर हिंदी का कोई प्रचलित शब्द मौज़ूद है तो अंग्रेजी का शब्द उसकी जगह इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। अगर किया जाता है, तो वह किसी भी तरह चलन में नहीं आ सकता। वह एक पैबंद की तरह ही लगेगा। दूसरे, अर्थशास्त्र जैसे विषयों में अभी हिंदी को बहुत से अंग्रेजी शब्द लेने होंगे। उन्हें अपना बनाना होगा। उन्हें
समाचार4मीडिया ब्यूरो 12 years ago
अभय कुमार दुबे- मैं इस सवाल का जवाब ऊपर दे चुका हूँ। अगर हिंदी का कोई प्रचलित शब्द मौज़ूद है तो अंग्रेजी का शब्द उसकी जगह इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। अगर किया जाता है, तो वह किसी भी तरह चलन में नहीं आ सकता। वह एक पैबंद की तरह ही लगेगा। दूसरे, अर्थशास्त्र जैसे विषयों में अभी हिंदी को बहुत से अंग्रेजी शब्द लेने होंगे। उन्हें अपना बनाना होगा। उन्हें पचा लेना होगा ताकि उनका प्रयोग करते समय हिंदीभाषी उन्हें अंग्रेज़ी का शब्द मानें ही नहीं। हिंदी का हाजमा जितना अच्छा होगा, उतनी ही वह आगे बढ़ेगी। मंगलेश डबराल- मैं शुद्धतावादी नहीं हूँ लेकिन जो शब्द हमारी हिन्दी में प्रचलन में है उनकी जगह अंग्रेजी शब्द अपनाना भाषा को खत्म करना है। पतन वास्तव में यह है कि व्यवहार की भाषा की जगह हमनें एक ऐसी भाषा बनाने की कोशिस की है जो जनता की भाषा नहीं है बल्कि चंद बाजारूओ की भाषा है। मीडिया नें आम आदमी की बोलचाल की भाषा को कम ही अपनाया है, यदि आप देखे तो बहुत से समाचार पत्र जो खिचडी लिखते हैं उसका आम जनता से कोई लेना देना नही है। हिन्दी में कुछ ऐसा हो रहा है कि हमारी बोलचाल की सामान्य भाषा को॰ हमारी भाषाई पहचान को छिनने की यह कोशिस की गई है और उसकी जगह एक गढी हुई भाषा बनाने की कोशिस हुई है। एक मुखपत्र में एकबार एक लेख अभिभावक को अपने बच्चो को अंग्रेजी स्कूल में क्यों भेजना चाहिये विषय पर छपा था जो रोमन में था, तो यह मूर्खता वास्तव में अंग्रेजी की एक चालबाजी ही कही जायेगी या कुछ लोगों की भाषाई भ्रष्टता। भला कौन सा अंग्रेजी का पत्र सम्पादकीय आलेख देवनागरी में छापने की मूर्खता करेगा? हमें हिन्दी को न केवल भ्रष्टताओं से बचाना है बल्कि बाजारू मूर्खता से भी बचाना और उसे सहज रूप से प्रवाहित होने देना है। अंग्रेजी की आदत का हिन्दी द्वारा निर्माण किया जा रहा है तो उसका विरोध किया जाना चाहिये। हिन्दी में पर्यावरण की जगह एनवायरमेन्ट लिखने की जरूरत नहीं है, इस स्तर पर अंग्रेजी के किसी शब्द को स्वीकार करने की जरूरत नहीं है। यही वास्तविक घपला है जिससे खतरा है। हमें अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी को अन्य भाषाओ से समृद्ध करने की ज्यादा जरूरत है, यदि एनवायरमेन्ट के लिये हम उर्दू से आबोहवा लें और लिखे तों कोई समस्या नही है, इसे कौन नहीं समझता। अंग्रेजी के ज्यादा सही कहें तो हिंगलिश बोलने वाले नकलची बन्दरों ने ही हिन्दी को हाईब्रिड बनाने की कोशिस की है। ओम थानवी: यह वही सवाल है। ऐसी स्वीकृति मिल नहीं सकती। एक जमाने में जी टीवी ने अपनी हिंदी में बहुत अंग्रेजी का प्रयोग किया था, लेकिन उन्हें बाद में खुद समझ में आया कि यह गलत रास्ता है। वे फिर सही हिन्दी का प्रयोग करने लगे। यह कहना एकदम गलत है कि बगैर हिंगलिश कें हिन्दी भाषा मे गति नहीं आयेगी। बहुत सारे सीरियल और फिल्में अच्छी हिन्दी में सफल साबित हुए हैं। मसलन तमस या प्रकाश झा की फिल्में। हिंगलिश कोई भाषा ही नहीं है। यह कुछ नकचढ़े लोगों द्वारा बनाया गया मिथक है। वस्तुतः हिन्गलिश मीडिया में कुछ निकम्मे लोगों के कारण ज्यादा महत्त्व पा गई है। पत्रकारिता में यह वर्ग भाषा के सम्बन्ध में बहुत अनुत्तरदायी और दयनीय वर्ग है। डॉ वेद प्रताप वैदिक- जिन अखबारों और लोगों के परिप्रेक्ष्य में यह बाते सामने आयी थी उन लोगों का भाषा तथा संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है। उनके मालिक भी अनपढ गवांर है। उनके सम्पादक घोर आलसी है वो गुलामों के गुलाम है इसलिये भाषाई भ्रष्टता में उनका विशेष योगदान है। इससे हिन्दी को मिलजुलकर बचाना चाहिये। समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।
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