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वरिष्ठ पत्रकार शशि शेखर के पिता-कवि जे.पी. चतुर्वेदी को यूं किया गया याद...
हिंदी दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ के प्रधान संपादक शशि शेखर के पिता व हिंदी ...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
हिंदी दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ के प्रधान संपादक शशि शेखर के पिता व हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार जगत प्रकाश चतुर्वेदी की संस्मरणात्मक गोष्ठी आगरा कॉलेज के गंगाधर शास्त्री भवन में की गई, जहां शहर की साहित्यिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक, वाणिज्यिक संस्थाओं से जुड़े लोग बड़ी संख्या में पहुंचकर उन्हें कई रूपों में याद किया। उनसे जुड़े संस्मरण सुनाए। कविताओं के जरिए श्रद्धासुमन अर्पित किए। किसी ने उनके साथ बिताए पलों को याद किया, तो किसी ने सजल नेत्रों से भावांजलि अर्पित की। आगरा से उनका गहरा लगाव था। बीते दिनों जगत प्रकाश चतुर्वेदी जी ब्रह्मलीन हो गए। वे 90 साल के थे।
आगरा कॉलेज में शनिवार को उनसे जुड़े इतिहास के कई पन्ने पलटे गए। दोपहर बाद शहर के तमाम गणमान्य गंगाधर शास्त्री भवन में स्व. जगत प्रकाश चतुर्वेदी जी को श्रद्धांजलि देने जुटे थे। इनमें उनके तमाम समकालीन भी शामिल थे, जिन्होंने स्व. चतुर्वेदी के साथ इसी कॉलेज में छात्र जीवन जिया। उनके कई चाहने वाले, मार्गदर्शन से आगे बढ़ने वाले भी इसी कॉलेज के छात्र रहे। उसी कॉलेज में हुई श्रद्धांजलि सभा के दौरान तमाम स्मृतियां तैरने लगीं।
कार्यक्रम में मौजूद वक्ताओं ने कहा कि जगत प्रकाश चतुर्वेदी सच्चाई के पक्षधर रहे। सादगी, सरलता, सच्चाई और संतोष उनके जीवन की निधि थी। उन्हें आगरा से बेहद लगाव था। वे अपने अनुजों पर खूब प्याल लुटाते थे। उनकी रचनाओं में भी जीवन का यथार्थ देखने को मिलता है। साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। वह सबके प्रेरणादायी रहेंगे।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कैप्टन व्यास चतुर्वेदी ने कहा कि 1954 में आगरा कॉलेज में उनका नाम खूब विख्यात था। साहित्यिक गोष्ठियों में उनके नाम का परचम फहराया करता था। तभी वे जगत प्रकाश चतुर्वेदी के संपर्क में आए। वे मुझे नई कृतियों को सुनाया करते थे। मैं जरूरत पड़ने पर उन्हें संशोधित करके सुनाता था। वहां से एक अटूट रिश्ता बना जो अब यादगार हो गया है। वे बेहद सरल और सादगी पसंद व्यक्ति थे। उनका व्यवहार ही उन्हें अलग बनाता था।
कार्यक्रम का संचालन रंगकर्मी और अधिवक्ता डॉ. विनय पतसारिया ने किया। पतसारिया ने उनके व्यक्तित्व को इन पंक्तियों से चित्रित किया। ‘ये सच तो टूट कर बिखर गया होता, अगर मैं झूठ की ताकत से डर गया होता...’। तो वहीं डॉ. रेखा पतसारिया ने शशि शेखर द्वारा डेढ़ दशक पूर्व लिखा गया आलेख पढ़ा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरोज रानी गौरिहार भावुक हो गईं। उन्होंने कहा कि जगत प्रकाश चतुर्वेदी का आगरा से बहुत लगाव था। वे अक्सर कहते थे कि आगरा में मेरा एक घरौंदा हो तो मैं यहीं बस जाऊं।
कवि डॉ. रामेंद्र मोहन त्रिपाठी ने कहा कि जगत जी प्रेम के कवि थे। ‘जब-जब ताज देखा...’ कविता से उन्हें प्रसिद्धि मिली। उन्होंने मेरे जैसे अपने अनुजों पर खूब प्यार लुटाया। वक्त के साथ कविता में आने लगी गिरावट से खिन्न रहते थे। उन्होंने कहा कि जब मैं 1963 में शहर आया तो वे जा चुके थे। वे प्रेम के कवि थे। उनकी पीड़ा रही कि आगरा में वे घर नहीं बना पाए। मैनपुरी की मोह भी उन्हें खींचता रहा। कहा जाए तो वे इस जमीन के सूरज थे। वे अपनी धूप खुद बनाते थे।
वरिष्ठ कवि सोम ठाकुर ने कहा कि मैं तो साइंस का छात्र था और वो मुझसे एक साल सीनियर थे। आज साहित्य सेवा कर रहा हूं तो यह जगत प्रकाश चतुर्वेदी की देन है। उन्हीं के प्रोत्साहन और प्रेरणा से यह मुकाम हासिल हुआ है। नागरी प्रचारिणी सभा में एक गीत पढ़ने के दौरान उनकी नजर मुझ पर पड़ी। यहीं से उन्होंने मुझे मंच पर आमंत्रित करना शुरू कर दिया। कभी-कभी तो वे कवि सम्मेलनों में अपने स्थान पर मुझे भेज दिया करते थे। मेरे सभी बच्चों के नाम भी उन्होंने ही रखे।
स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार ने कहा कि मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि उनकी स्मृति सभा में आना पड़ेगा। यह मेरे लिए वज्रपात जैसा है। उन्हें जीवन भर कवि नहीं बल्कि भाई के रूप में जाना है। यह आगरा के साथ मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। ईश्वर उन्हें श्रीचरणों में स्थान दे।
कवयित्री डॉ. शशि तिवारी ने चंद पंक्तियों के जरिए उन्हें याद करते हुए कहा, 'है मौत भी वही कि दुनिया करे याद, जाना तो सभी को है आखिर इस जहान से।' वो हर शब्द को जीते थे। हर शब्द को गाते थे। ईश्वर ने उन्हें विशेष सांचे में ढाला था। ईश्वर ऐसी कृपा किसी खास पर ही करता है।
एससी-एसटी आयोग के चेयरमैन डॉ. रामशंकर कठेरिया ने कहा कि मुझे गर्व है कि वे केएमआई के निदेशकों में रहे हैं। मैं भी उसी संस्थान का शिक्षक रहा हूं। उन्होंने कविताओं को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का प्रयास किया। हालांकि नई कविताओं के साथ हमेशा चुनौतियां भी रही हैं।
मेयर नवीन जैन ने कहा कि उन्होंने अम्बेडकर विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक केएम इंस्टीट्यूट में अपनी सेवाएं दी हैं। हमेशा हिंदी के लिए काम करते रहे। आज हिंदी की ओर विद्वानों का ध्यान कम है। ऐसे में स्व. चतुर्वेदी जैसे विराट व्यक्तित्व से प्रेरणा लेनी चाहिए।
वरिष्ठ कवि चौ. सुखराम सिंह ने कहा कि मुझे तो समाचार सुनकर यकीन ही नहीं हुआ। वे ऐसे व्यक्ति थे कि जिनके सानिध्य में रहने वाले तमाम लोग बड़े बन गए। वे प्रेरणा का पुंज थे। मैंने उन्हें कभी बड़े भाई, कभी दोस्त के रूप में देखा। साहित्य को ऐसे लोगों की जरूरत है।
समाजसेवी पूरन डावर ने कहा कि मेरा दुर्भाग्य रहा कि उनके कभी रूबरू नहीं हो सका। उनका सानिध्य न पाने पर मैं मानता हूं कि मैंने साहित्य जगत में बहुत कुछ खो दिया। ऐसी प्रतिभाएं यदा-कदा जन्म लेती हैं। आगरा के तमाम चाहने वालों के दिलों में वे हमेशा रहेंगे।
पूर्व आईएएस अधिकारी शशिकांत शर्मा ने कहा कि मैं उनके साथ रोज आधा-एक घंटा जरूर बैठता था। समाज के तमाम पहलुओं पर चर्चाएं होती रहती थीं। अनुभव बाद मैंने पाया कि कथनी और करनी में अंतर न रखने वाला ही महान होता है। स्व. चतुर्वेदी भी ऐसे ही महान आत्मा थे।
एसएन मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. जी.के. अनेजा ने कहा कि मुझे उनके सानिध्य लाभ नहीं मिला। उनके पुत्र के साथ कुछ दिनों पहले मुलाकात हुई थी। तभी समझ गया था कि यह किसी विद्वान का अंश हैं। विद्वता वंशानुगत भी होती है। यहां इकट्ठा हुए शहर के गणमान्य इसके गवाह हैं।
कार्यक्रम में विधायक उदयभान सिंह, पूर्व विधायक धर्मपाल सिंह, जेएस फौजदार, दुष्यंत शर्मा, विजय शिवहरे, डॉ. ए.के. गुप्ता, बसंत गुप्ता, राजकुमार पथिक, वाजिद निसार, डॉ. अनुराग शुक्ला, शब्बीर अब्बास आदि अन्य ने शोक संदेश पढ़ा।
कार्यक्रम का आयोजन हम ललित कला मंच, भारतीय जन नाट्य संघ, फिल्म थियेटर ग्रुप, संगीत कला केंद्र, मित्र सोसायटी छियेटर फोरम, संगीत संगम, हेल्थ आगरा, रूद्रा संस्था, रंगलीला और रंगलोक ने किया।
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