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क्या हो गया है मीडिया की समझ और कल्पनाशक्ति को, बोले वरिष्ठ पत्रकार विष्णु नागर

वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार विष्णु नागर ने इंद्राणी कंटोवर्सी पर दिन भर चल रही टीवी बहसों पर सवाल उठाते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी है, हम आपके साथ उनकी ये पोस्ट शेयर कर रहे हैं। आप भी कॉमेंट के जरिए उनसे अपनी सहमति या असहमति जता सकते हैं। तो पहले पढ़िए उनकी पोस्ट और फिर लिखिए अपने मन की बात एक सप्ताह से भी ज्यादा हो गया है टीवी चैनलों

समाचार4मीडिया ब्यूरो 9 years ago

वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार विष्णु नागर ने इंद्राणी कंटोवर्सी पर दिन भर चल रही टीवी बहसों पर सवाल उठाते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी है, हम आपके साथ उनकी ये पोस्ट शेयर कर रहे हैं। आप भी कॉमेंट के जरिए उनसे अपनी सहमति या असहमति जता सकते हैं। तो पहले पढ़िए उनकी पोस्ट और फिर लिखिए अपने मन की बात

एक सप्ताह से भी ज्यादा हो गया है टीवी चैनलों और अखबारों में शीना बोरा हत्याकांड पर सुनते-सुनते, पढंते-पढ़ते। कान भी पक गए और दिमाग भन्ना गया है। आज ये हुआ है, कल ये हुआ था वगैरह। हुआ होगा बंधुओं-भगिनियो, दिला दो इंद्राणी मुखर्जी या जिस किसी को जो भी सजा दिलाना हो, फांसी दिलाना हो तो वह दिला दो।कल होती हो तो टीवीवालो-अखबारवालो आज दिला दो,कोर्ट को भी छोड़ो,तुम्हीं जिसे फांसी पर चढ़ाना हो, चढ़ा दो ताकि इस हत्याकांड नामक बीमारी से, इद्राणी-पीटर मुखर्जी आदि-आदि से हमें अब छुटकारा मिले।

हमने न इनकी पहले परवाह की है, न अब करते हैं। न हम पहले इन्हें जानते थे, न अब जरूरत से ज्यादा जानना चाहते हैं। जितना जानना था, जान चुके हैं।वै से भी जो कथित रूप से हत्यारे हैं, उनकी क्या और क्यों इतनी बात करना?

जैसे आज ही मजदूरों की हड़ताल एक बड़ा विषय था मगर मैंने रात 9-9.30 बजे टीवी चैनलों को खंगाला,तो केवल दो टीवी चैनल मजदूर हड़ताल की बात कर रहे थे-एक राज्यसभा टीवी और दूसरा एनडीटीवी इंडिया। राज्यसभा टीवी की बहस भी बढ़िया थी मगर रवीश कुमार गुड़गांव की एक मजदूर बस्ती में पहुंचे,यह बताने कि मजदूर किन हालातों में रह रहे हैं, कितना कम वेतन पाते हैं, उन्हें क्या-क्या समस्याएँ झेलनी पड़ती हैं।वैसे रवीश ही शायद एकमात्र एंकर भी हैं, जिन्होंने बहुत सोचेसमझे ढँग से अपने प्रोग्राम में शीना बोरा हत्याकांड पर कोई कार्यक्रम नहीं किया। इसके लिए बधाई।

आज के अखबार में मोदी सरकार की महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गाँधी के इस प्रस्ताव की खबर थी कि मातृत्व अवकाश की अवधि तीन महीने से बढ़ाकर आठ महीने कर दी जानी चाहिए। यह एक चर्चा का विषय हो सकता था मगर यह भी कहीं नहीं था। बाढ़ और सूखे से एकसाथ यह देश गुजर रहा है।ऐसे कई-कई विषय रोज होते हैं,जिन पर च्रर्चा हो तो समाज की हालत के बारे में, सरकार की नीतियों के बारे में जानने-समझने को मिले। क्या हो गया है मीडिया की समझ और कल्पनाशक्ति को?


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