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सुधीर चौधरी का बेबाक इंटरव्यू, बोले-झूठी FIR का हुआ शिकार

‘न्यूज नेक्स्ट’ (News Next) 2023 के दौरान ‘बिजनेसवर्ल्ड’ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा के तमाम सवालों का वरिष्ठ टीवी पत्रकार सुधीर चौधरी ने दिया बेबाकी से जवाब

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

‘एक्सचेंज4मीडिया’ (e4m) समूह की ओर से एक बार फिर अपनी वार्षिक मीडिया समिट ‘न्यूजनेक्स्ट’ (NEWSNEXT) का आयोजन किया गया। नोएडा स्थित होटल रैडिसन ब्लू में 27 अगस्त को सुबह नौ बजे से इसका आयोजन किया गया। यह ‘न्यूजनेक्स्ट’ का 12वां एडिशन था। इस कार्यक्रम के तहत न्यूज टीवी के दिग्गज, मीडिया एक्सपर्ट्स, एडवर्टाइजर्स, ब्रैंड मार्केटर्स, शिक्षाविद् और ग्लोबल मीडिया से जुड़े लीडर्स एक मंच पर जुटे और टीवी न्यूज के भविष्य समेत इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर अपने विचार रखे। ‘न्यूज नेक्स्ट’ (News Next) 2023  में एक सेशन के दौरान ‘बिजनेसवर्ल्ड’ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा और ‘आजतक’ के कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी के बीच लंबा वार्तालाप हुआ और विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। इस बातचीत के दौरान डॉ. अनुराग बत्रा द्वारा पूछे गए तमाम सवालों का सुधीर चौधरी ने बेबाकी से जवाब दिया।

प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

आप 28 साल से ज्यादा समय से पत्रकारिता की दुनिया में हैं। आपने अभी जिक्र किया कि गोदी मीडिया शब्द को लेकर किस तरह ट्रोलिंग की जाती है और किस तरह का माहौल तैयार किया जाता है, आखिर यह कौन कर रहा है और जो लोग (कुछ पत्रकार) ऐसा करने में जुटे हैं, उससे उन्हें क्या फायदा होता है?

मुझे लगता है कि यह एक पॉलिटिकल ईको सिस्टम है, जो यह सब कर रहा होगा। जैसा मैंने अभी थोड़ी देर पहले कहा। ये फेसबुक पर नहीं है, इंस्टाग्राम पर नहीं है। यह सबसे ज्यादा ट्विटर पर है, जिसका कि सबसे छोटा बेस है। लगभग ढाई-पौने तीन करोड़ का बेस है। 2014 से पहले भी जब मैं देखता हूं तो ऐसा नहीं है कि लोग उस समय की सरकारों के पक्ष में गीत नहीं गाते थे। शायरी नहीं लिखते थे और हर तरह से उनको समर्थन नहीं करते थे। बिल्कुल करते थे। लेकिन तब तक वह ठीक था। वह असली (genuine) पत्रकारिता मानी जाती थी। मैं इसे किसी पार्टी से जोड़ना नहीं चाहता। मैं इसे नेशनलिज्म से पहले का दौर जोड़ना चाहता हूं। पिछले दस वर्षों में हमारे देश में कुछ बड़े बदलाव आए हैं।

एक तो हमारे मेनस्ट्रीम मीडिया में राष्ट्रवाद की जगह आ गई। इससे पहले नेशनलिज्म अथवा राष्ट्रवाद की कोई बात नहीं करता था। दूसरा, अचानक से ब्रैंड इंडिया को लेकर तेजी देखने को मिली। तीसरी बात मुझे यह लगती है कि देश में बहुसंख्यक आबादी (हिंदुओं) में जागृति आई है। मुझे लगता है कि ये तीन चीजें हुईं और एक ईकोसिस्टम जो पहले काफी कंफर्टेबल था, वह अचानक से एक्टिव हो गया। इस पूरे नैरेटिव के शिकार कुछ खास लोग होते हैं। यदि आप मुझे देखेंगे, मेरी पैकेजिंग देखेंगे तो उससे आपको अंदाजा लग जाएगा कि खास तरह के लोग ही ट्रोलिंग का निशाना बन रहे हैं, जबकि दूसरी तरह के लोग इसका निशाना नहीं बन रहे हैं। उनकी आज भी तारीफ होती है।

इसलिए मुझे लगता है कि ऐसा कुछ नहीं है, सिर्फ पॉलिटिकल टूल की तरह इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारे देश में सोशल मीडिया भी चुनाव जीतने का एक तरीका हो गया है। आज के दौर में नेता और खाकी वर्दी अपनी विश्वनसीयता खो चुके हैं। अगली बारी मीडिया की है और आपने देखा होगा कि न्यायपालिका के साथ भी यही हो रहा है। आज से कुछ साल पहले न्यायपालिका कोई फैसला सुनाती थी तो इस तरह से ट्रोलिंग नहीं होती था। लेकिन आज, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की ट्रोलिंग हो जाती है। यह कितना बड़ा बदलाव है।

आपने एक पत्रकार के तौर पर अपना करियर शुरू किया। फिर आप एक एंकर बने, एडिटर बने। फिर सीईओ बने और एक शो होस्ट बने। आपका यह सफर कैसा रहा और आप अपने शो को लेकर किस तरह तैयारी करते हैं?

काफी समय पहले टीवी18 (अब नेटवर्क18) एक छोटा सा प्रॉडक्शन हाउस हुआ करती थी। वह प्रोडक्शन हाउस एक बिजनेस शो ‘इंडिया बिजनेस रिपोर्ट’ बीबीसी के लिए और दूसरा शो ‘अमूल इंडिया शो’ स्टार टीवी के लिए करता था। मैं बतौर रिपोर्टर इन दोनों शो के लिए काम करता था। इसके बाद धीरे-धीरे मैं आगे बढ़ता गया और आज यहां तक पहुंचा हूं। जब मैंने टीवी की दुनिया में अपनी शुरुआत की थी, उस दौर में टीवी के तमाम लोग अखबार की खबरें पढ़कर खबरें तय करते थे।

अब ज्यादातर लोग सोशल मीडिया पर जो चल रहा है अथवा ट्रोल हो रहा है, उसके आधार पर अपना कंटेंट तय करते हैं। इस दौरान तमाम पत्रकारों ने बाहर निकलना बंद कर दिया। बाहर यदि निकले भी तो लोगों से बात करना बंद कर दिया। लेकिन मैं यदि कहीं जाता हूं और लोगों से बात करता हूं तो इस बातचीत के दौरान ही कोई न कोई स्टोरी आइडिया आ जाता है। मैं अपनी बात करूं तो यह मेरा सौभाग्य है कि बहुत बड़ी संख्या में लोग मुझे मेल लिखते हैं, मुझे वॉट्सऐप करते हैं। बड़ी संख्या में लोग मुझे स्टोरी को लेकर सोशल मीडिया पर संदेश भेजते हैं और कहते हैं कि आप इसे करिए। तो सोशल मीडिया पर जो ट्रोलिंग हो रही है और अखबार में जो छप रहा है।

उसके अलावा तीसरी बड़ी बात यह है कि जो आम जनता है, उसके मुद्दे कैसे आपको पता चलेंगे, क्योंकि न तो वह अखबार में आ रहे हैं और न ही सोशल मीडिया पर। मुझे लगता है कि ट्विटर तो अब सिर्फ एक पॉलिटिकल टूल बन गया है, जिसे तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रही हैं। इसलिए मुझे लगता है कि स्टोरी के लिए हमें स्टूडियो से बाहर निकलकर जनता के बीच जाने की जरूरत है। यदि आप वहां से इनपुट और फीडबैक लेंगे तो आप फिर बिल्कुल अलग नजर आएंगे।

आप पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में हैं। आपके बारे में सोशल मीडिया पर तमाम तरह की बातें हो रही हैं। क्या जो कहा जा रहा था और जिस संदर्भ में कहा जा रहा था, वह ठीक था? आपने इस बारे में न कभी सोशल मीडिया पर टिप्पणी की और न ही उस मुद्दे पर कभी चर्चा की। आज इस मंच पर इस बारे में आपका क्या कहना है?

मेरा मानना है कि एक प्रोफेशनल पत्रकार और एक प्रोफेशनल एंकर के तौर पर आपकी ट्रेनिंग इस तरह होनी चाहिए कि यदि आपका गेस्ट कुछ इस तरह का व्यवहार करता है जो आपको सकते में डाल दे अथवा सरप्राइज कर दे तो आपको पता होना चाहिए कि उस समय आपको क्या करना है। उस समय आपको वहां एक कुश्ती का मैदान नहीं बना देना चाहिए। वो मेरा मंच नहीं था बल्कि वो एक बहुत बड़े चैनल का मंच था और उसका एक मकसद था। उसका मकसद मेरी निजी बातें करने का नहीं था। मैं भी चाहता तो वहां अपनी कुछ निजी बातें कर सकता था, लेकिन वह मंच उस चीज के लिए था ही नहीं। उस जैसी स्थिति में एक प्रोफेशनल एंकर यही सोचेगा कि यह पूरी बातचीत मुद्दे से हटे नहीं और मैंने भी वही किया। मैंने उस माहौल को और आगे बिगड़ने नहीं दिया।

मुझे लगता है कि सारा देश उस क्लिप को देख चुका है। देखने वालों को यह तय करना चाहिए कि इस बारे में उनकी राय क्या बनती है। किसने क्या कहा, सवाल होने चाहिए या नहीं होने चाहिए। लेकिन, मैं फिर से आपको यह कहता हूं कि ऐसा माहौल जरूर बन रहा है, कि एक पत्रकार के ऊपर पहले से ही ऐसा दबाव बना दिया जाए कि वो अगली बार यह सवाल पूछे ही नहीं। उसे अपना पुराना समय अथवा ट्रोलिंग याद आ जाए। मैंने भी देखा कि उस दिन के बाद से एक खास वर्ग के लोग मेरे लिए ट्रोलिंग करने लगे। मैं तो यही कहूंगा कि मैंने उस मंच की पवित्रता को भंग नहीं होने दिया। शालीनता मेरा शुरू से आभूषण रहा है। मेरे 28 साल के करियर के दौरान आपको एक बार भी ऐसा कभी नहीं मिला होगा, जब मैंने किसी का अपमान किया हो। अथवा अपने मेहमान का जिसका मैंने इंटरव्यू किया हो, उससे कुछ ऐसा सवाल पूछ लिया हो, जिससे वह परेशानी में पड़ जाए। क्योंकि वो हमारा मेहमान है। अगर आप खुद को कुछ हजार लाइक्स, ट्वीट आदि देने के लिए किसी का अपमान कर करते हैं तो मुझे लगता है कि यह बहुत बड़ी कीमत है। मैंने ऐसा कभी नहीं किया। मैं बहुत खुशी से आपको बता सकता हूं कि मैंने अपना वो ट्रैक रिकॉर्ड आज भी बरकरार रखा है। 

दूसरी बात यह कि मुझसे कई लोगों ने यह पूछा है कि उस इंटरव्यू में मुझसे एक सवाल पूछा गया था कि जब आप जेल में थे तो क्या हुआ। ये ऐसी बात है, जिस बारे में मैं पहले बार किसी सार्वजनिक मंच पर बोल रहा हूं। मुझे लगता है कि आज के बाद यह सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। 2012 में राजनीतिक रूप से एक झूठा और गलत केस मेरे ऊपर दायर किया गया। उस समय तत्कालीन सरकार की पूरी कोशिश यही थी कि पूरे के पूरे मीडिया हाउस को मिटा दिया जाए। वह मीडिया हाउस जो उनके साथ जुड़ा हुआ नहीं था। उस मामले में एक एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें मेरा नाम था, 'जी बिजनेस' के एडिटर और मेरे सहयोगी समीर अहलूवालिया का नाम भी उस एफआईआर में था। ‘जी’ ग्रुप के चेयरमैन सुभाष चंद्रा और उनके भाई जवाहर गोयल का नाम भी उस एफआईआर में था। इसके साथ ही एफआईआर में सुभाष चंद्रा के बेटे पुनीत गोयनका का नाम भी था। यानी इन पांचों लोगों का नाम उस एफआईआर में था। इस बात से आसानी से समझा जा सकता है कि एफआईआर दर्ज कराने वालों की मंशा क्या रही होगी। उसके बाद अगले दो महीने मेरे ऊपर एक-एक करके लगातार पांच और एफआईआर होती गईं।

आप याद कीजिए कि निर्भया केस में मैंने निर्भया के दोस्त का इंटरव्यू किया था, उस पर भी मेरे खिलाफ एफआईआर हो गई। इसी मामले में उन्होंने मुझे गिरफ्तार किया और मैं करीब 20 दिन जेल में रहा। जब मैं वापस आया तो उसी मामले में एक एफआईआर और दर्ज हो गई। उसके बाद एक और हो गई और ये सब गैरजमानती धाराओं में थीं। कानून के जानकार इस बात को भलीभांति जानते हैं कि यदि आपको किसी को गिरफ्तार करना है तो शुरू में एक बार उस पर गैरजमानती धाराओं में मुकदमा दर्ज करवा दीजिए। बाद में अदालत के चक्कर लगाते रहिए। उस समय उन लोगों की पूरी मंशा यही थी कि हमारे चैनल को बंद कर दिया जाए। सूचना प्रसारण मंत्रालय भी हरकत में आ गया और कारण बताओ नोटिस भेज दिया।

यानी जितने भी मंच उस समय हो सकते थे, सब के सब पीछे पड़ गए। इसके बाद हम लोग सुप्रीम कोर्ट गए और वहां वही कहा, जो आज मैं आपसे कह रहा हूं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट से हमें राहत मिली, वरना उस समय वह चैनल ही बंद हो जाता। हैरानी की बात है कि किसी ने उस समय हमारा ज्यादा साथ नहीं दिया और मैं भी उस दौरान ज्यादातर चुप रहा। मैंने सोच लिया कि मैं अदालत में साबित करूंगा कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। उस केस को बंद होने में दस साल लग गए।

वर्ष 2012 में वह केस दर्ज हुआ था, उस समय मुझे ‘जी न्यूज’ में आए हुए महज दो महीने ही हुए थे। उस समय मैं समझ ही रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए, तब तक ये झूठे केस मेरे खिलाफ दर्ज हो गए। वर्ष 2022 में यह केस कोर्ट में बंद हो गया, जब पुलिस ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की और बताया कि उन्हें इस तरह का कोई सबूत नहीं मिला, जिससे साबित कर सकें कि ये आरोप सही हैं। इसलिए हम इसमें क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करना चाहते हैं। जिसने हमारे ऊपर ये आरोप लगाए थे, उन्होंने 2017-18 में अपनी शिकायत को भी वापस ले लिया और कहा कि ये मामला कंफ्यूजन में हुआ और उस समय कुछ और हित साधने के लिए हमने ये एफआईआर करा दी थी। इसके बाद ही उस केस को बंद होने में पांच साल लग गए। उस समय कोई भी होता तो बताता कि देखिए हम सही थे, इसलिए जीत गए, लेकिन मैं तब भी चुप रहा, क्योंकि मैं दस साल तक इस मामले में पहले भी कुछ नहीं बोला था। लेकिन अब मैं आपको बताना चाहता हूं कि वह केस बंद हो चुका है। मैं उस बारे में बोलना नहीं चाहता था, लेकिन आज मैंने आपके सामने सार्वजनिक तौर पर सब कुछ स्पष्ट कर दिया है। उस केस में मैं दोषी नहीं पाया गया।    

डॉ. अनुराग बत्रा और सुधीर चौधरी के बीच हुई इस पूरी बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं। 


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