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डिजिटल व टीवी के दौर में अखबारों की भूमिका को लेकर हमें समझनी होगी यह बात: राकेश शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार राकेश शर्मा ने समाचार4मीडिया से बातचीत में प्रिंट मीडिया की वर्तमान स्थिति, सरकार से जुड़ी नीतियों और डिजिटल युग में इसकी प्रासंगिकता बनाए रखने के उपायों पर खुलकर अपनी बात रखी है।

पंकज शर्मा 28 minutes ago

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और विचारक राकेश शर्मा का ‘इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी’ (INS) के प्रेजिडेंट के रूप में एक साल का कार्यकाल पिछले दिनों समाप्त हुआ है। बतौर ‘आईएनएस’ प्रेजिडेंट एक साल का उनका यह कार्यकाल कैसा रहा, क्या उपलब्धियां रहीं और किस तरह की चुनौतियां आईं? जैसे तमाम मुद्दों पर समाचार4मीडिया ने राकेश शर्मा से विस्तार से बातचीत की। इस दौरान राकेश शर्मा ने प्रिंट मीडिया की वर्तमान स्थिति, सरकार से जुड़ी नीतियों और डिजिटल युग में इसकी प्रासंगिकता बनाए रखने के उपायों पर भी खुलकर बात की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

’इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ के प्रेजिडेंट के रूप में आपकी प्रमुख उपलब्धियां क्या रहीं?

मेरे एक साल के कार्यकाल में कुछ पहलू संतोषजनक रहे और कुछ में सुधार की गुंजाइश बाकी रह गई। सबसे बड़ी उपलब्धि मैं आईएनएस टॉवर के उद्घाटन को मानता हूं, जिसे बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स मुंबई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। यह हमारे सभी सदस्यों की इच्छा थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन करें। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के ‘Statutory Warning, Term and Prohibition’ (STP) के आदेश से पैदा हुई समस्याओं का समाधान भी बड़ी उपलब्धि रही। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ मिलकर हमने इस आदेश को फूड इंडस्ट्री तक सीमित करवाया।

आईएनएस के अन्य महत्वपूर्ण प्रयास क्या रहे हैं?

हमने कई मुद्दों को मंत्रालय और सेंट्रल ब्यूरो ऑफ कम्युनिकेशन (CBC) के साथ मिलकर सुलझाया। एक बड़ा मुद्दा था एबीसी यानी ‘ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन’ का ऑडिट कानून, जिसे हमने संशोधित करवाया, जिससे छोटे और मझोले पब्लिशर्स को राहत मिली। हमारी मुलाकात नए सूचना और प्रसारण मंत्री से भी हुई, जिन्होंने हमारी समस्याओं को हल करने का आश्वासन दिया।

कुछ ऐसे मुद्दे जिनका समाधान नहीं हो सका?

हां, कस्टम ड्यूटी को पांच प्रतिशत से कम कराने के प्रयास सफल नहीं हो पाए। इसके अलावा, CBC के रेट रिवीजन का मुद्दा भी अभी तक लंबित है, जबकि हमने कई बार अनुरोध किया है। अगर यह जल्द हो जाता है, तो पूरी इंडस्ट्री को बहुत लाभ होगा।

डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच प्रिंट मीडिया की प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए आईएनएस ने किस तरह के कदम उठाए?

हमने सुझाव दिया कि आईएनएस का नाम बदलकर 'इंडियन न्यूजपेपर एंड डिजिटल सोसाइटी' किया जाए, क्योंकि लगभग आज हर समाचार पत्र का डिजिटल प्लेटफॉर्म भी है। इसके अलावा, हमारा पूरा ध्यान डिजिटल और प्रिंट दोनों को साथ लेकर चलने पर है।

आज के दौर में अखबारों में विज्ञापनों की कमी की चर्चा है। इसके बारे में आप क्या सोचते हैं? 

यह धारणा गलत है कि प्रिंट मीडिया के विज्ञापन घट रहे हैं। 2019 से 2022 के बीच COVID-19 का प्रभाव जरूर पड़ा, लेकिन अब इंडस्ट्री तेजी से रिकवर हो रही है। विज्ञापनदाताओं और एजेंसियों का विश्वास पुनः जागृत करने के लिए भी हम निरंतर प्रयासरत हैं।

आपकी नजर में आने वाले समय में प्रिंट मीडिया की चुनौतियां क्या होंगी?

चुनौतियां हमेशा रहेंगी, लेकिन हमें खुद को प्रासंगिक बनाना है। डिजिटल और टेलीविजन के युग में अखबारों की भूमिका अब केवल खबरें देने की नहीं है, बल्कि हमें घटनाओं के पीछे के कारण और उनके प्रभावों को समझाना होगा। जैसे, रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर और इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के संभावित परिणाम।

नए आईएनएस प्रेजिडेंट के लिए आप क्या कहना चाहेंगे?

मेरे उत्तराधिकारी बहुत समझदार हैं। मैं केवल यह अनुरोध करूंगा कि वे जागरूक रहें और इंडस्ट्री के हितों की रक्षा के लिए दिशा निर्देश देते रहें।

छोटे और मझोले अखबारों की चुनौतियां क्या हैं और आईएनएस के इस दिशा में क्या कदम रहे हैं? 

छोटे और मझोले अखबारों की चुनौतियां बड़ी हैं, खासकर इनविटेशन प्राइस यानी आमंत्रण शुल्क के दौर में। सर्कुलेशन रेवेन्यू लगभग खत्म हो गया है और विज्ञापनों की कमी से उनका अस्तित्व संकट में है। हमने सरकारी विज्ञापनों में छोटे अखबारों के साथ भेदभाव को खत्म करने की कोशिश की है।

टेक्नोलॉजी और डिजिटल ट्रांजेक्शन को लेकर आपके क्या विचार हैं?

टेक्नोलॉजी और डिजिटल मीडिया, प्रिंट के पूरक हैं, प्रतिस्पर्धी नहीं। इन दोनों के बीच सहयोग और सिनर्जी को बढ़ावा देकर हम प्रिंट मीडिया को और मजबूत बना सकते हैं।

आपकी नजर में प्रिंट मीडिया का भविष्य कैसा है और डिजिटल के बढ़ते प्रभाव के बीच युवाओं को कैसे प्रिंट मीडिया की ओर आकर्षित किया जा सकता है? 

प्रिंट मीडिया का भविष्य उज्ज्वल है। भारत में 140 करोड़ की आबादी है और जैसे-जैसे शिक्षा और जागरूकता बढ़ेगी,  लोगों का इस ओर रुझान बढ़ेगा। हमें युवाओं को आकर्षित करने के लिए अखबारों को उपयोगी बनाना होगा, खासकर घटनाओं के पीछे के कारण और उनके प्रभाव को समझाकर। डिजिटल त्वरित समाचार देता है, लेकिन प्रिंट मीडिया गहराई और विश्लेषण प्रदान कर सकता है, जो उसे अद्वितीय बनाता है।


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