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न्यूजपेपर इंडस्ट्री को किसी तरह का खतरा नहीं, बस करना होगा यह काम: राकेश शर्मा

‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (INS) के नवनिर्वाचित प्रेजिडेंट राकेश शर्मा ने इस संस्था को लेकर अपने विजन और भविष्य की रूपरेखाओं समेत तमाम अहम मुद्दों पर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है।

पंकज शर्मा 11 months ago

‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (INS) के नवनिर्वाचित प्रेजिडेंट राकेश शर्मा ने इस संस्था को लेकर अपने विजन और भविष्य की रूपरेखाओं समेत तमाम अहम मुद्दों पर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है। बता दें कि राकेश शर्मा करीब 50 वर्षों से मीडिया जगत से जुड़े हैं और तमाम प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में उन्होंने शीर्षस्थ पदों पर कार्य किया है। वर्तमान में राकेश शर्मा ‘आईटीवी नेटवर्क’ (ITV Network) और ‘गुड मॉर्निंग इंडिया मीडिया प्रा. लि.’ (Good Morning India Media Pvt. Ltd.) के डायरेक्टर हैं। गुड मॉर्निंग ग्रुप 'आज समाज', 'द डेली गार्डियन', 'द संडे गार्डियन', 'इंडिया न्यूज' और 'बिजनेस गार्डियन' जैसे प्रतिष्ठित अखबार का प्रकाशन करता है।

प्रस्तुत हैं राकेश शर्मा से इस बातचीत के चुनिंदा अंश:

सबसे पहले तो आप अपने बारे में बताएं कि आपका अब तक का सफर कैसा रहा है और यहां तक किन-किन पड़ावों से होकर पहुंचे हैं?

मैं अपने करियर के शुरुआती दौर से ही मीडिया से जुड़ा हुआ हूं। सबसे पहले मैंने करीब दस साल तक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ (Times Of India) में काम किया। इसके बाद लंबे समय तक ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ (Hindustan Times) में विभिन्न पदों पर काम किया। इसके बाद मैं पिछले करीब 15 साल से ‘आईटीवी नेटवर्क’ (ITV Network) और ‘गुड मॉर्निंग इंडिया मीडिया प्रा. लि.’ (Good Morning India Media Pvt. Ltd.) के साथ जुड़ा हुआ हूं। हमारा ग्रुप पांच अखबार पब्लिश करता है और टीवी में भी छह रीजनल और दो राष्ट्रीय चैनल हैं। डिजिटल में भी हमारे पास तीन-चार चैनल हैं और इस डोमेन में उनकी अच्छी पकड़ है।

हमारा परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला है। मेरा जन्म दिल्ली में हुआ। मेरी जन्मस्थली, पढ़ाई-लिखाई और कार्यस्थली दिल्ली रही है। हालांकि, थोड़े समय के लिए जरूप मैं चंडीगढ़ में ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ अखबार लॉन्च करने के लिए गया था। वहां पूरे उत्तर भारत के एडिशंस मैं देखा करता था। लगभग दस साल मैं चंडीगढ़ में रहा। इसके अलावा मेरा अब तक का सारा समय दिल्ली में ही बीता है।

आप मीडिया में काफी लंबे समय से हैं। वर्तमान दौर में आप प्रिंट मीडिया के सामने किस तरह की चुनौतियां देखते हैं और आईएनएस के नवनियुक्त प्रेजिडेंट के रूप में इनका कैसे सामना करेंगे?

पिछले पांच दशक की बात करें तो हर दशक में मीडिया ने एक नई चुनौती देखी है और बहुत सफलतापूर्वक इसका सामना किया है। चाहे वह टेक्नोलॉजी में चेंजओवर हो, चाहे वो टीवी से अथवा डिजिटल से प्रतिस्पर्धा का दौर हो। सबसे विषम समस्या तो कोरोनाकाल में आई, जब अखबारों का डिस्ट्रीब्यूशन काफी प्रभावित हुआ। अखबारों का एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू काफी घट गया। लंबे समय तक लॉकडाउन के कारण जब अखबार बिक ही नहीं रहे थे तो उस दौरान विज्ञापन भी काफी कम हो गए थे। उस दौरान सिर्फ न्यूजप्रिंट का खर्चा थोड़ा कम हुआ, जबकि अखबारों के अन्य खर्चे वही रहे और रेवेन्यू बिल्कुल नहीं था। इस दौरान अखबारों के समक्ष सबसे कठिन दौर आया। उस विषम परिस्थिति का भी सभी अखबारों ने मिलकर सामना किया और उससे बाहर निकलकर आए।    

पहले प्रिंट को टीवी से टक्कर मिली, फिर डिजिटल मीडिया आ गया और अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जमाना है। ऐसे में प्रिंट के भविष्य को लेकर आपका क्या मानना है। आपकी नजर में न्यूजपेपर इंडस्ट्री को किस तरह के कदम उठाने की जरूरत है?

सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि चाहे प्रिंट हो, इलेक्ट्रॉनिक हो, डिजिटल हो अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो, सबका कार्य सूचना का प्रसार करना है। मार्केट में वही अपने आपको को प्रासंगिक रख पाएगा, जो समय के साथ-साथ अपने आप में बदलाव करता है। कोई भी मीडिया एक-दूसरे का प्रतिद्वंद्वी नहीं है, बल्कि पूरक है। जो भी पाठकों/दर्शकों के लिए के लिए अपने आपको प्रासंगिक बना पाएगा और उनके लिए उपयोगी होगा, उनकी रुचि और आवश्यकताओं के अनुसार उन्हें अपनी पेशकश देगा और बदलते हुए हालातों के अनुसार खुद को विकसित करेगा, वही अपने पाठकों अथवा दर्शकों के लिए प्रासंगिक रहेगा।

असली चीज तो कंटेंट है, जिसे आप चाहे प्रिंट, टीवी, डिजिटल अथवा एआई के द्वारा दे रहे हैं, वो सब तो सिर्फ माध्यम हैं। हम आजकल मीडियम की चर्चा कर रहे हैं, लेकिन न्यूज की चर्चा नहीं हो रही है। कहने का मतलब यही है कि यदि आप पाठकों/दर्शकों के लिए खुद को प्रासंगिक बना पाते हैं तो आप मार्केट में बने रहेंगे। रही बात प्रिंट की तो तमाम माध्यम आने के बाद भी आज भी प्रिंट मीडिया की सबसे ज्यादा विश्वसनीयता है। प्रिंट मीडिया आगे बढ़ रहा है और अखबारों की प्रसार संख्या भी बढ़ रही है। कोरोनाकाल में अखबारों की प्रसार संख्या जरूर प्रभावित हुई थी, लेकिन अब ज्यादातर अखबार रिकवरी के पथ पर हैं और तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। यदि समय के साथ प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री थोड़े-थोड़े कुछ जरूरी बदलाव करती रहेगी, तो मुझे नहीं लगता कि प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री को किसी तरह का कोई खतरा है।

न्यूजपेपर इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने की दिशा में आपका रोडमैप क्या है। क्या आपने कोई ब्लूप्रिंट तैयार किया है?

देखिए, कोरोनाकाल ने हमें काफी चीजें सिखाईं। उस दौरान विज्ञापन कम आए। विज्ञापन रेवेन्यू कम आया और भारतीय परिदृश्य में यदि आप देखें तो 90 के दशक में जब से आर्थिक क्रांति आई, तब से अखबारों में विज्ञापनों की संख्या बहुत बढ़ी है। 90 के दशक से पहले होता यह था कि जब भी न्यूजप्रिंट (अखबारी कागज) के दाम बढ़ते थे तो तमाम अखबार अपने कवर प्राइज (कीमत) बढ़ा देते थे। लेकिन, जब उनका रेवेन्यू काफी बढ़ने लगा तो तमाम अखबारों ने सर्कुलेशन की कवर प्राइज पर एक चेकप्वॉइंट (एक तरह की रोक) लगा दिया।

साउथईस्ट एशिया में जब अखबार 15-20 रुपये के बिक रहे थे, उस समय हमारे देश में इनका मूल्य तीन से चार रुपये था। उसमें से भी 30-40 प्रतिशत कमीशन लोगों को दे दिया जाता था, ऐसे में अखबार मालिकों के हाथ में दो-ढाई रुपये ही आ पाते थे। जबकि अखबारी कागज के दाम बढ़ने की वजह से और अन्य तमाम खर्चों के बढ़ने से अखबारों की प्रॉडक्शन कॉस्ट (उत्पादन लागत) काफी बढ़ गई। ऐसे में जब ऐडवर्टाइजमेंट गिरा तो बहुत सारे अखबार घाटे में आ गए। अखबारों के रेवेन्यू के दो स्ट्रीम होते हैं। एक विज्ञापन और दूसरा कवर प्राइज। ऐसे में मेरा मानना है कि सर्वाइव करने के लिए सभी अखबारों को मिलकर गंभीरता से सोचना चाहिए कि आज तक जो ऐडवर्टाइजर हमारे अखबारों को सब्सिडी देने के लिए पैसा दे देता था कि इससे आप पाठकों को अखबार सस्ता दीजिए तो काम चलता रहा और प्रॉफिट भी होता रहा।

लेकिन अब समय बदल रहा है। आज के दौर में न्यूजपेपर इंडस्ट्री को बहुत गंभीरता से सोचना चाहिए कि अखबार की जो लागत आती है, वह तो पाठकों से जरूर ली जाए। 70-80 के दशक की बात करें तो लगभग एक कप चाय की कीमत के बराबर अखबारों का कवर प्राइज हुआ करता था, लेकिन अब समय के साथ वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ गई हैं। ऐसे में अखबारों का कवर प्राइज भी बढ़ना चाहिए। सबसे बड़ा इश्यू यही है कि यदि न्यूजपेपर इंडस्ट्री को आर्थिक रूप से सर्वाइव करना है तो कवर प्राइज पर ध्यान देना चाहिए।  

न्यूज प्रिंट की बढ़ती कीमतों को लेकर आपका क्या मानना है। इसके अलावा न्यूज प्रिंट के आयात पर लगी पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी का मुद्दा भी आईएनएस की ओर से समय-समय पर उठता रहता है, उस दिशा में आपका क्या मानना है? क्या आप सरकार से इस दिशा में कुछ डिमांड करने जा रहे हैं?

‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ हमेशा से सरकार से इस बारे में डिमांड करती रही है। अखबार एक तरह से नॉलेज है, क्योंकि यह सूचनाएं प्रदान कर रहा है। अब चाहे जीएसटी लगाइए या कस्टम ड्यूटी लगाइए, जैसे कि अब डिजिटल के सबस्क्रिप्शन पर भी जीएसटी लगाने की कवायद हो रही है, जिस पर हमने सरकार के सामने अपना विरोध जाहिर किया है। लेकिन कस्टम ड्यूटी की बात करें तो हमारे यहां की मशीनें इस प्रकार की हैं कि देसी (भारत में तैयार) न्यूजप्रिंट उन पर चल नहीं पाता है।

इंडस्ट्री को 14 लाख टन अखबारी कागज की जरूरत होती है, जबकि भारतीय मिलें सात लाख टन अखबारी कागज तैयार कर पाती हैं और सात लाख टन अखबारी कागज विदेश से आयात करना पड़ता है। ऐसे में यदि हम बाहर से खरीद रहे हैं और उस पर भी हमें पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी देनी पड़ रही है, तो यह एक तरह से नॉलेज पर टैक्स है। जब अखबारों की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है, उस समय पर इस प्रकार के टैक्स को जारी रखना औचित्यहीन है। हम सरकार से पुरजोर मांग करेंगे कि न्यूजप्रिंट के आयात पर लगाई गई पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी को समाप्त किया जाए।      

कोरोनाकाल के दौरान प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री का विज्ञापन राजस्व यानी एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू काफी घट गया था, अब चूंकि कोरोना नहीं है तो विज्ञापन राजस्व को लेकर वर्तमान में क्या स्थिति है और इसे बढ़ाने की दिशा में किस तरह के कदम उठाएंगे?

कोरोना के जाने के बाद कॉमर्शियल विज्ञापन काफी हद तक वापस आ गया है हालांकि अब तक यह पूर्व वाली स्थिति में नहीं आया है। सरकारी विज्ञापनों का जो बजट पहले काफी होता था, न जाने किन कारणों से सरकार ने यह बजट कम कर दिया है। हम सरकार से अनुरोध करना चाहेंगे कि कम से कम पुराने बजट को ही बहाल कर दिया जाए, जिससे कि अखबारों को उसका फायदा मिल सके। बाकी तो आप जितना प्रासंगिक होंगे, जितनी आपकी मार्केट में आवश्यकता होगी, जितना विज्ञापनदाता को आपके पास विज्ञापन देने से फायदा होगा, उसका प्रचार प्रसार होगा और उसकी बिक्री बढ़ेगी, उतना आपके पास विज्ञापन बढ़ेगा।  

कोरोना के दौरान विभिन्न कारणों से तमाम अखबार बंद हो गए थे। कोरोना के जाने के बाद अब क्या वे दोबारा से शुरू होंगे और आईएनएस क्या उनकी मदद करेगी?

अखबार बंद करना अथवा दोबारा से शुरू करना अखबार मालिकों की अपनी सोच और व्यापारिक हितों पर निर्भर है। इसमें आईएनएस कुछ नहीं कर सकती। हां, यदि वे इस बारे में आईएनएस से मदद मांगेगे तो हम इस पर जरूर विचार करेंगे और हरसंभव मदद करेंगे।   

आज के दौर में तमाम अखबार ई-प्रारूप (epaper format) में उपलब्ध हैं, जिन्हें ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है, जिनमें से कुछ तो बिल्कुल मुफ्त हैं। तमाम यूजर्स अखबार के पेजों की पीडीएफ (PDF) बना रहे हैं और उसे वॉट्सऐप और टेलिग्राम ग्रुप्स पर पाठकों को भेज रहे हैं। माना जा रहा है कि इससे अखबारों और ई-पेपर्स को सबस्क्रिप्शन रेवेन्यू के रूप में काफी नुकसान हो रहा है। इस पर क्या कहेंगे?

इससे अखबारों को कोई नुकसान नहीं है। क्योंकि, मेरा मानना है कि जिसे अखबार को हाथ में लेकर पढ़ने की आदत है, वह ई-पेपर को कभी प्राथमिकता नहीं देगा। अखबार चलते रहेंगे। अखबार को हाथ में पकड़कर पढ़ने का, उसमें से मनपसंद खबरों की कटिंग काटकर रखने का अपना अलग ही आनंद है। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि अखबारों के भविष्य पर किसी तरह का कोई संकट है। कुछ लोगों द्वारा इस तरह अखबारों की पीडीएफ बनाकर एक-दूसरे को भेजने से अखबारों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। 


टैग्स इंटरव्यू आईएनएस इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी साक्षात्कार प्रेजिडेंट अध्यक्ष राकेश शर्मा
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