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मीडिया के सामने जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौतियां सबसे ज्यादा: राहुल महाजन
मीडिया में करीब तीन दशक बिता चुके, पूर्व में ‘राज्य सभा टीवी’ (RSTV) में एडिटर-इन-चीफ समेत तमाम न्यूज चैनल्स में प्रमुख भूमिकाएं निभा चुके वरिष्ठ पत्रकार राहुल महाजन ने तमाम विषयों पर विचार रखे हैं।
पंकज शर्मा 1 year ago
मीडिया में करीब तीन दशक बिता चुके, पूर्व में ‘राज्य सभा टीवी’ (RSTV) में एडिटर-इन-चीफ समेत तमाम न्यूज चैनल्स में प्रमुख भूमिकाएं निभा चुके वरिष्ठ पत्रकार और 'समाचार4मीडिया पत्रकारिता 40अंडर40' की जूरी के सम्मानित सदस्य राहुल महाजन जी से हाल ही में मुलाकात हुई। इस मुलाकात के दौरान मीडिया में आए बदलाव, चुनौतियां और अवसर जैसे तमाम विषयों पर उनसे खुलकर बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के चुनिंदा अंश:
आज जिस तरह की पत्रकारिता हो रही है, उसे लेकर आपका क्या मानना है? क्या आपको लगता है कि इसमें बदलाव की जरूरत है? यदि हां, तो कहां पर?
पत्रकारिता में हमने काफी सारे चरण (फेज) देखे हैं। आप जो बात कर रहे हैं, वो खासकर टीवी पत्रकारिता के बारे में है। टीवी पत्रकारिता में शुरू से ही काफी बदलाव होते आए हैं। पहले एक दौर आया, जब न्यूज को अच्छे से देने की कोशिश की गई। फिर दौर आया जब लोगों को ‘तमाशा’ पसंद आने लगा, तो न्यूज के अंदर वह दिखने लगा। फिर एक दौर आया, जब दोबारा से कोशिश की गई कि न्यूज को और बेहतर तरीके से दिया जा सके। जैसी न्यूज है, उसे वैसे ही परोसा जा सके। बाद में एक दौर आया, जिसमें टीवी न्यूज में शोरगुल (Noise) का समावेश होने लगा। ऐसे में हम कह सकते हैं कि टीवी न्यूज तमाम दौर से गुजरी है।
अपने देश में यदि हम देखें तो पूरी निजी टीवी इंडस्ट्री असंगठित (Unorganised) है। इसमें तमाम तरह की समस्याएं भी हैं, जिनकी वजह से इस इंडस्ट्री को वित्तीय रूप से मजबूत रहने के लिए काफी कुछ करना पड़ता है। यह एक ऐसा दबाव है, जिसकी वजह से हमें न्यूज में तमाम खामियां दिखाई देती हैं। यह एक दौर है, जिसमें टीवी न्यूज इंडस्ट्री आगे बढ़ने का रास्ता तलाश रही है। मुझे लगता है कि आने वाले समय में इसमें बदलाव आएगा और न्यूज चैनल्स से लोगों की जो अपेक्षाएं हैं, वह पूरी हो पाएंगी।
वर्तमान दौर में मीडिया के सामने किस तरह की चुनौतियां और किस तरह के अवसर हैं। इन्हें आप किस रूप में देखते हैं। इस बारे में कुछ बताएं।
मेरी नजर में मीडिया के सामने जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौतियां सबसे ज्यादा हैं। इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि आज के समय में लोगों का विश्वास मीडिया खासकर न्यूज मीडिया पर बहुत कम होता जा रहा है। इसका कारण है कि तमाम मीडिया संस्थानों ने (सभी ने नहीं) अपनी रिपोर्टिंग में किसी न किसी दल की तरफदारी लेना शुरू कर दिया है। मुझे लगता है कि यह सही नहीं है। दूसरी चीज यह भी है कि न्यूज में अपना ओपिनियन देना भी कहीं न कहीं लोगों को अखरता है, क्योंकि न्यूज का काम लोगों को इन्फॉर्म करना होता है, लेकिन होता यह है कि तमाम चैनल्स न्यूज देने के साथ-साथ अपना ओपिनियन भी लोगों पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं। यह स्थिति सही नहीं है। कोशिश यह होनी चाहिए कि न्यूज को बिना किसी भेदभाव और बिना ओपिनियन के लोगों के सामने जस की तस रखना चाहिए।
आजकल फेक न्यूज काफी तेजी से आगे बढ़ रही है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फेक न्यूज के प्रति गंभीर चिंता जताते हुए फैक्ट चेकिंग पर जोर दिया था, इस बारे में आपकी क्या राय है?
मैं मानता हूं कि टेक्नोलॉजी के कारण फेक न्यूज का विस्तार काफी तेज हो गया है। ऐसा नहीं है कि पुराने जमाने में गलत खबरें या यूं कहिए कि फेक न्यूज नहीं आती थीं, वह दूसरे तरीके से आती थीं। हालांकि, तब उनकी गति धीमी होती थी। उस समय भी तमाम तरह की अफवाहें फैलाई जाती थीं, लेकिन वह उतनी तेजी से नहीं फैलती थीं, जितनी आज के सोशल मीडिया के दौर में फैलती हैं। फेक न्यूज हम सभी के लिए काफी बड़ी चुनौती है और इसे ठीक करने की बहुत ज्यादा जरूरत है।
क्या आपको लगता है कि फेक न्यूज पर लगाम लगाने के लिए वर्तमान में उठाए जा रहे कदम कारगर हैं? जैसे-सरकारी स्तर पर पीआईबी समेत तमाम संस्थानों ने अपनी फैक्ट चेक टीम बना रखी है। इसके बावजूद आए दिन फेक न्यूज आती रहती हैं, जो बाद में झूठी साबित होती हैं। आपकी नजर में फेक न्यूज की रोकथाम के लिए क्या कोई ठोस ‘फॉर्मूला’ है?
देखिए, आपस में जो जानकारियां शेयर की जा रही हैं, हमें मानना चाहिए कि वह भी फेक न्यूज का एक जरिया है। बड़े मीडिया संस्थान तो फेक न्यूज पर लगाम लगाने में काफी हद तक कामयाब रहते हैं, क्योंकि उनके यहां फैक्ट चेक टीमें और तमाम संसाधन हैं। लेकिन कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जहां लोग आपस में जानकारियां शेयर करते हैं, वहां फेक न्यूज पर लगाम लगाने में काफी दिक्कतें आती हैं।
आज के दौर में मीडिया की क्रेडिबिलिटी भी सवालों के घेरे में है। क्या आपको लगता है कि मीडिया की क्रेडिबिलिटी कम हुई है? यदि हां, तो इसके पीछे क्या कारण है और इस क्रेडिबिलिटी को फिर से बनाने अथवा बरकरार रखने के लिए किस तरह के कदम उठाए जाने चाहिए?
दूरदर्शन और कई प्रामाणिक मीडिया संस्थानों की क्रेडिबिलिटी पर किसी तरह के सवाल नहीं हैं। यहां तक कि दूरदर्शन और कई चैनल्स की क्रेडिबिलिटी को कई मंचों पर सराहा भी गया है। हालांकि, कई ऐसे निजी चैनल्स हैं, जिनकी क्रेडिबिलिटी पर सवालिया निशान लगता रहता है। ऐसे में उन संस्थानों को यह देखना चाहिए कि लोगों की उनसे क्रेडिबिल न्यूज और खरी न्यूज की जो अपेक्षाएं हैं, उन पर ध्यान दें और इस दिशा में जो समस्याएं आड़े आ रही हैं, उन्हें दूर करें।
टेक्नोलॉजी के इस युग में जब सोशल मीडिया का बोलबाला है। ऐसे में बदलते समाज और अर्थव्यवस्था में मीडिया का क्या प्रभाव है? इस बारे में आप क्या कहेंगे?
मेरा मानना है कि मीडिया के माध्यम बदल रहे हैं। न्यूज देने के जो माध्यम हैं, वह बदल गए हैं। आज बहुत सारे यूट्यूब चैनल्स आ गए हैं। कह सकते हैं कि डिजिटल मीडिया का विस्तार होने से आज के समय में टीवी पर न्यूज देखने का जो चलन है, वह कम हो रहा है। आज के दौर में डिजिटल मीडिया पर न्यूज का उपभोग बढ़ा है। बड़ी संख्या में लोग डिजिटल मीडिया पर न्यूज देखना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। जिस तरह से टेक्नोलॉजी बदल रही है, जिस तरह से प्लेटफॉर्म्स बदल रहे हैं, उस तरह से न्यूज चैनल्स को अपनी प्रोग्रामिंग में भी बदलाव लाने की जरूरत है और जो प्लेटफॉर्म्स हैं, उनका भी और बेहतर इस्तेमाल करने की जरूरत है। बहुत सारे न्यूज चैनल्स ऐसा कर भी रहे हैं। तमाम न्यूज चैनल्स के अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स हैं। सोशल मीडिया हैंडल्स के जरिये भी वे न्यूज को उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं। यानी वो भी उसी हिसाब से चेंज हो रहे हैं।
समाचार4मीडिया पत्रकारिता 40 अंडर 40 का दूसरा एडिशन होने जा रहा है। पहले एडिशन की तरह इस बार भी सम्मानित जूरी में बतौर सदस्य आपकी अहम भूमिका रहेगी। इस आयोजन के बारे में आपका क्या मानना है?
मीडिया में जो युवा पीढ़ी आ रही है, उसे बढ़ावा दिए जाने की बहुत जरूरत होती है। मीडिया में जो युवा आ रहे हैं, उनके काम को यदि सराहा जाए और उन्हें नई पहचान मिले तो उससे बेहतर और क्या हो सकता है। इस तरह उन्हें बढ़ावा मिलता है कि वो और बहुत अच्छा करके दिखाएं। यह प्लेटफॉर्म बहुत अच्छा है, जिसके जरिये हम उन युवाओं की प्रतिभा को सामने ला रहे हैं और उन्हें सम्मानित कर रहे हैं, जिन्होंने बेहतरीन काम करके दिखाया है।
मीडिया में करियर बनाने के इच्छुक अथवा इसमें आने वाले नवोदित पत्रकारों के लिए आप क्या कहना चाहेंगे, सफलता का कोई ‘मूलमंत्र’ जो आप उन्हें देना चाहें।
इस बारे में मेरा यही कहना है कि मीडिया में आने अथवा इसमें बने रहने के लिए यदि मेहनत का रास्ता अपनाएंगे तो यह उन्हें एक लंबा करियर प्रदान करेगा। शॉर्टकट से हो सकता है कि आप मीडिया में आ तो जाएं, लेकिन क्या आप इसमें टिके रह पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है। मेरा मीडिया में आने के इच्छुक अथवा नवोदित पत्रकारों से यही कहना है कि मेहनत के बल पर ही आगे बढ़ा जा सकता है।
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