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जीवन के इस पड़ाव पर मैं टीआरपी की दौड़ से बहुत बाहर हूं: सुशांत सिन्हा

समाचार4मीडिया के साथ बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार सुशांत सिन्हा ने मीडिया में अपनी यात्रा के साथ-साथ तमाम अहम मुद्दों पर अपने विचार साझा किए है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 3 years ago

वरिष्ठ पत्रकार सुशांत सिन्हा ‘इंडिया टीवी’ को अलविदा कहने के बाद से ही अब सोशल मीडिया के जरिये अपने विचार लोगों तक पहुंचा रहे हैं। यूट्यूब और ट्विटर और उनके लाखों चाहने वाले हैं और उनके वीडियो बहुत अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। समाचार4मीडिया के साथ बातचीत में उन्होंने मीडिया में अपनी यात्रा के साथ-साथ तमाम अहम मुद्दों पर अपने विचार साझा किए है। इसके अलावा गोदी मीडिया को लेकर भी उन्होंने अपनी राय रखी है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

आपने पत्रकार बनने का निर्णय कैसे लिया? अपने प्रारंभिक जीवन के बारे में कुछ बताएं।

मैंने बहुत कम उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था। अगर बिहार की बात की जाए तो वहां एक संस्कृति देखने को मिलती है कि अक्सर अपने परिवार की जिम्मेदारी के कारण लोग जल्दी काम करने लग जाते हैं। मैंने बचपन में अपने पिताजी को खो दिया था तो मेरी मां जो कि सरकारी नौकरी में थीं, उन्होंने मुझे और मेरी बहन को बड़ी मुश्किल से पाला है। मुझे बचपन से शौक भी था न्यूज देखने का तो कम उम्र में ही पटना आकर नौकरी की। मेरी मां अक्सर मुझसे कहा करती थीं कि न्यूज का अगर इतना ही शौक है तो जाओ, वहीं नौकरी करो, तो एक वो भी आप कह सकते हैं।

2001 में पटना के एक स्थानीय चैनल के साथ शुरू हुआ सफर अब तक जारी है। कुछ समय बाद मुझे लगा कि अब मुझे पटना से बाहर निकलकर अपने आप को आगे बढ़ाना चाहिए। यही सोचकर मैं दिल्ली आया और ‘जैन टीवी’ से शुरुआत की, उसके बाद ‘जनमत’ में काम किया। ‘जनमत’ में मैंने करीब पांच साल काम किया, जिसमें एक पीरियड ‘लाइव इंडिया’ का भी था। इसके बाद मैं ‘न्यूज 24’ में चला गया और वहां कुछ समय तक काम करने के बाद मैं ‘एनडीटीवी’ चला गया। वहां मैंने पांच साल तक काम किया है। उसके बाद मैंने ‘आईटीवी नेटवर्क’ के साथ काम किया और फिर मैंने ‘इंडिया टीवी’ के साथ भी काम किया। ‘इंडिया टीवी’ को अलविदा कहने के बाद फिर मैंने किसी को जॉइन नहीं किया।

अगर देखा जाए तो आपने ‘एनडीटीवी’ के साथ काफी काम किया है। आप वहां तक कैसे पहुंचे?

दरअसल, मैं जब ‘लाइव इंडिया’ में था तो उस दौरान ही मेरी ‘एनडीटीवी’ में बात चल रही थी। मैनें इंटरव्यू भी दिया था, लेकिन जब कुछ फाइनल नहीं हुआ तो मैं ‘न्यूज 24’ में चला गया था। लेकिन कुछ ही महीनों के बाद मुझे ‘एनडीटीवी‘ से कॉल आया था और उसके बाद मैं वहां चला गया। मुझे काम करने का 10 साल से अधिक का अनुभव हो गया था और मेरी समझ भी अच्छी थी और उसी कारण मुझे जैसा कि आपने कहा कि बहुत कम उम्र में अच्छा पद प्राप्त हो गया था।

जब ‘एनडीटीवी‘ का नाम जहन में आता है तो वहां रवीश कुमार जैसे बड़े चेहरे हैं, यहां आपका पांच साल का अनुभव कैसा रहा?

देखिए, आज भी ‘एनडीटीवी‘ में मेरे कई मित्र हैं। किसी भी संस्थान में अच्छा और बुरा दोनों वक्त होता है। कभी भी ऐसा नहीं हो सकता कि सिर्फ आपका अच्छा ही समय चले। मेरा अनुभव मिला-जुला रहा है। कुछ चीजों को लेकर बहुत अच्छे दोस्त मिले तो कुछ चीजों को लेकर बहुत बंदिशें भी थीं। कई बार मेरे बोलने और कुछ कहने पर टोका जाता था। इसके अलावा अगर कुछ सोशल मीडिया पर लिख दिया, तो धमकी भरी चिट्ठी आ जाती थी। एक तरह से आप कह सकते हैं कि मैं बंधा हुआ सा महसूस करता था।

दूसरा मैंने ये देखा कि वहां का अपना ईको सिस्टम है। अगर आप उसका हिस्सा हैं तो चीजें आपके हिसाब से होंगी, वरना आपको दिक्क्तों का सामना करना पड़ेगा। अंदर जो होता था, मैं उसको लेकर आवाज उठाता ही उठाता था। इसलिए मैंने निर्णय लिया कि एक-दूसरे के लिए परेशानी खड़ी करने से बेहतर है कि कोई नया विकल्प तलाश लिया जाए।

‘इंडिया टीवी‘ को अलविदा कहने के बाद आपने कहीं जॉब क्यों नहीं की? इतनी कम उम्र में इतना बड़ा निर्णय कैसे लिया?

ऐसा नहीं था कि मैं यूट्यूब पर आने के बारे में सोच रहा था, इसलिए मैंने ‘इंडिया टीवी‘ को छोड़ दिया या इस्तीफा दिया। ऐसा भी नहीं था कि मुझे कोई ऑफर नहीं था, लेकिन कई जगह ऐसी थीं, जहां मैं जाना नहीं चाहता था। मुझे काम करते हुए 18 साल हो गए हैं और जीवन में एक पड़ाव ऐसा आता है कि जब आप खुद को समझने लग जाते हैं। आपका मन समझौते करने से मना करता है और यही कारण था कि मैंने कहीं फिर नौकरी नहीं की। कई बड़े संस्थानों से मुझे ऑफर आया था, लेकिन मैं अब खुद इस चीज को जानता हूं कि मेरे काम करने का स्टाइल ऐसा है कि मैं वहां ढल नहीं पाऊंगा।

मैं आपसे एक बात और कहना चाहूंगा कि मैं खुद उतना यूट्यूब नहीं देखता था। मैं जब घर आता था तो मेरी खुद की ये कोशिश होती थी कि मैं टीवी भी नहीं देखूं। मेरे मित्र और कई परिचित लोग हमेशा मुझसे कहते थे कि मुझे यूट्यूब पर आना चाहिए। इसके बाद मैंने ये सब शुरू किया और मुझे उम्मीद नहीं थी कि लाखों चाहने वाले होंगे और करोड़ों व्यूज होंगे। हाल ही में मेरे पास एक बहुत बड़े संस्थान से ऑफर भी आया था और जिम्मेदारी भी बहुत बड़ी थी, लेकिन उनकी एक शर्त थी कि मुझे मेरा यूट्यूब बंद करना होगा। मुझे ऐसा लगता है कि मैं जीवन के उस पड़ाव पर हूं, जहां टीआरपी की दौड़ से बहुत बाहर हूं। अब मैं जो बोलना चाहता हूं, वो बोलता हूं और ईश्वर की कृपा से लोग उसे पसंद भी कर रहे हैं। इसलिए फिर मैंने इधर ही रहना जरूरी समझा। मुझे ऐसा लगता है कि अगर देश के 10 लोगों पर भी मैं प्रभाव छोड़ पा रहा हूं तो वही मेरे लिए सफलता है और इसके बाद मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।

सोशल मीडिया पर फेक न्यूज का जमाना है और इसके अलावा कई बार आपको ट्रोल्स का भी सामना करना पड़ता है। उन चीजों को कैसे देखते हैं?

देखिए, सोशल मीडिया के साथ जो हमारा रिश्ता है, वो दोनों तरह का रहने वाला है। जैसे कोरोना के इस कठिन समय में हम सबने देखा है कि कैसे इसी सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को मदद मिल रही है और उनकी जान बच रही है। इसके साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि कुछ लोग इसे नैरेटिव सेट करने का माध्यम बना देते हैं। कई बार लोग बिना जाने और बिना समझे किसी भी बात को दिमाग में बिठा लेते हैं। इसके अलावा जिन ट्रोल्स की आपने बात की है तो मेरा मत यह है कि इनका काम सिर्फ आपको हतोत्साहित करने का होता है। अगर आप कोई सच दुनिया को बता रहे हैं तो ये आपको ओतना ट्रोल करेंगे की आप हार मान जाएं। लेकिन मैं बिहारी हूं और ऊपर से पत्रकार हूं। यदि डरना होता तो इस काम में आता ही नहीं। आपने नोटिस किया होगा कि मैं कभी ट्विटर पर लड़ाई नहीं लड़ता। मुझे वेरिफाइड अकाउंट से लेकर फेक अकाउंट तक से बहुत कुछ बोला जाता है, लेकिन मैं जीवन में बुद्ध की अवस्था को लेकर चलने वाला इंसान हूं। मुझे लगता है कि ऐसे समय में आप बुद्ध बन जाइए। 

आपने एक बड़े पत्रकार को खुली चिट्ठी लिखी थी और गोदी मीडिया जैसे शब्द पर कड़ी आपत्ति आपको है, दोनों बातें खुलकर समझाए?

मैं हमेशा अपने दर्शकों से कहता रहता हूं कि गोदी मीडिया जैसे शब्द सिर्फ अपने पाप को छिपाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। इस देश में सत्ता और पत्रकारिता का गठजोड़ सालों से चला आ रहा है।मेरे चैनल पर पद्मश्री आलोक मेहता जी का भी इंटरव्यू है और बाकी पत्रकारों के भी इंटरव्यू हैं। उन्होंने बताया है कि कैसे बड़े-बड़े पत्रकारों को लिफाफे जाया करते थे। लोगों को सोचना चाहिए कि उनके इतने बड़े-बड़े बंगले कैसे बन गए?

मैंने और अशोक श्रीवास्तव जी ने तो खुलकर इस बात को कहा है कि हर पत्रकार को अपनी संपत्ति सार्वजनिक करनी चाहिए। अगर नेताओं के लिए आप कहते हैं तो इसे पत्रकारों के लिए भी कहिए। आप पूछिए रवीश कुमार से कि क्या वो ऐसा करेंगे? वो तो परेशान हो गए थे जब मैंने सबको उनकी सैलरी बता दी थी। दरअसल जब आप चेहरा बनाते हैं कि आप बहुत बड़े समाजवादी हैं और बिल्कुल ही गरीब हैं लेकिन जब लोगों को पता चले कि आठ लाख रुपये महीना लेकर आदमी गरीबों की बात कर रहा है तो आपकी इमेज खत्म होने का आपको डर रहता है। उनको आपकी मेरी और किसी की चिंता नहीं है। उनको सिर्फ एक लक्ष्य दे दिया गया है कि इस आदमी को कुर्सी को नीचे से उतारो और वो बस अपने इसी काम में लगे हुए हैं। उनके लिए आपकी और मेरी लाश सिर्फ एक सीढ़ी है कि कैसे वो एक कदम और आगे बढ़ें, बस इससे अधिक कुछ नहीं।

आपको जानकार हैरानी होगी कि शीलाजी के समय के 16 हॉस्पिटल लगभग बनकर तैयार हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने उन्हें शुरू तक नहीं किया है। दिल्ली एक ऐसी जगह है, जहां लोग अस्पताल और दवाइयों के अभाव में मर रहे हैं। अब आप रवीश कुमार से कहिए कि आप क्यों नहीं अरविंद केजरीवाल का इंटरव्यू करते? क्यों नहीं आप उनसे सवाल पूछते कि उन्होंने वो 16 अस्पताल क्यों नहीं चलाए?

आज सोशल मीडिया के ज़माने में हर कोई अपने आप को एडिटर समझने लगा है। नई पीढ़ी के लोगों को क्या सलाह देंगे?

मैं आपको इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझाता हूं। मेरा मानना है कि जब आप शादी करते हैं तो इसलिए नहीं करनी चाहिए कि उसके पीछे कुछ पारिवारिक कारण होते हैं बल्कि इसलिए करनी चाहिए कि जीवन का ऐसा कौन सा खाली हिस्सा है, जिसे आप भरना चाहते हैं। किसी भी काम को करते वक्त अपने आप से पूछिए कि आप ये क्यों करना है?  मीडिया में आने से लेकर डॉक्टर बनने तक की भी अगर बात जो पहले दिल से पूछिए कि क्या आप उसे करते वक्त खुश रहेंगे या नहीं?

जैसे कि मैंने अपने बारे में सोच रखा है कि मैं आगे वाले कुछ सालों में पत्रकारिता छोड़ दूंगा। मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ कर लिया है और मैं अब कुछ और आयाम जीवन के अनुभव करना चाहता हूं। ये एक ऐसा पेशा है जो आपका बहुत कुछ लेता है। अगर मैं सिर्फ 2 वीडियो भी दे रहा हूं तो उसके पीछे घंटों की रिसर्च होती है। कई बार जब आपको बुद्ध वाली अवस्था में जाना भी होता है, उस समय भी आपको स्वयं को समय देकर यह समझाना होता है और उसमे भी बहुत अधिक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। हम जलते रहते हैं और सामने वाले को जवाब नहीं देतें क्योंकि आपको अपने आप को बेहतर बनाना है और उस बेहतर बनाने की लड़ाई में बहुत कुछ खपता है।

समाचार4मीडिया के साथ सुशांत सिन्हा की इस बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं-


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