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आज भी ‘जी हिन्दुस्तान’ मेरे लिए लिए बच्चे जैसा है: शमशेर सिंह

‘जी हिन्दुस्तान’ के मैनेजिंग एडिटर शमशेर सिंह ने समाचार4मीडिया से खास बातचीत की और अपनी मीडिया जगत की यात्रा को खुलकर हमारे सामने रखा।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 3 years ago

‘जी हिन्दुस्तान’ के मैनेजिंग एडिटर शमशेर सिंह ने समाचार4मीडिया से खास बातचीत की और अपनी मीडिया जगत की यात्रा को खुलकर हमारे सामने रखा। उन्होंने एक रिपोर्टर से लेकर एडिटर तक का सफर तय किया है और मीडिया जगत में उनकी पहचान एक बेमिसाल लीडर के तौर पर की जाती है।

‘जी हिन्दुस्तान’ ने चार साल पूरे कर लिए हैं और आपके सानिध्य में ही ‘जी हिन्दुस्तान’ की नींव रखी गई थी, उस अनुभव के बारे में कुछ बताए?

देखिए, उस वक्त मैं ‘इंडिया टीवी’ में नेशनल अफेयर्स एडिटर था और उसी दौरान एक ऐसा चैनल लाने की रूपरेखा बनी जिसका स्वरुप ‘जी न्यूज’ से बिल्कुल अलग होने वाला था। उन्होंने मुझे आमंत्रित किया और मैंने भी हां कर दी। हमने ‘जी हिन्दुस्तान’ को लॉन्च किया और उसके केंद्र में राज्यों और प्रदेशों को रखा। हमने कहा कि ‘राज्यों से देश बनता है’ और यह सबको पसंद भी आया। हमारे पास एक बेहद शानदार टीम थी। हालांकि कुछ समय बाद मुझे छोड़कर जाना पड़ा लेकिन आज भी ‘जी हिन्दुस्तान’ मेरे लिए लिए बच्चे जैसा है।

आपके प्रारंभिक जीवन के बारे में कुछ बताए, क्या आप वाकई पत्रकार बनना चाहते थे?

जी नहीं, मैं पत्रकार बनने के लिए नहीं आया था। दरअसल बिहार के पूर्णिया जिले से मैं आता हूं और 12वीं की पढ़ाई वहीं से हुई। उस समय हर व्यक्ति यूपीएससी की तैयारी करने की ख्वाहिश रखता था और मेरा भी यही लक्ष्य था। अब जब 3 बार कोशिश करने के बाद भी मेरा चयन नहीं हुआ, तो सबसे बड़ी समस्या यह हुई की अब अगर आखिरी मौके में चयन नहीं हुआ तो क्या करेंगे? आप वापिस गांव जा नहीं सकते! कोई काम कर नहीं सकते! फैक्ट्री भी नहीं है कोई, जो आप वहां नौकरी कर लें, तो उसी उधेड़बुन में एक निर्णय मैंने लिया कि मुझे अब पत्रकार बनना है। मुझे ऐसा लगा कि पैसे भले की कम मिले, लेकिन इस पेशे में इज्जत है और ज्ञान भी है और उसके बाद आगे का मेरा जीवन एक पत्रकार के तौर पर शुरू हुआ।

आपने प्रिंट में काम नहीं किया और टीवी पत्रकारिता की है, ‘आजतक’ में पहली नौकरी कैसे मिली?

उस समय ‘आजतक’, ‘दूरदर्शन’, के लिए ‘आपका फैसला’ नाम से शो करता था और 1998 में चुनाव होने थे। उस वक्त तक किसी भी चैनल में गेस्ट कोऑर्डिनेशन के लिए लोग नहीं रखे जाते थे। उस समय वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र प्रताप सिंह (एस.पी. सिंह) जिस हिसाब से न्यूज पढ़ते थे, वो भी मुझे बहुत अच्छा लगता था। इसलिए मेरी भी खुद की इच्छा थी कि मैं ‘आजतक’ में काम करूं। संयोग से मुझे सिर्फ 3 महीने के लिए वहां इंटर्नशिप मिल गई। गेस्ट कोऑर्डिनेशन के लिए मुझे रखा गया और मैंने खूब मेहनत की। मेरे काम से वो इतना प्रभावित हुए कि बाद में मुझे 5500 रुपए महीने की नौकरी पर रख लिया गया।

आप ‘आजतक’ में 16 साल रहे और आपने डिप्टी एडिटर तक का पद प्राप्त किया। उस यात्रा के बारे में कुछ बताएं

देखिए, मैं अपने आपको खुशनसीब मानता हूं कि मुझे बड़े काबिल और अच्छे लोगों का साथ मिला है। उस समय क़मर वहीद नक़वी जी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनको अगर स्क्रिप्ट अच्छी नहीं लगती थी तो उसे फाड़ कर फेंक देते थे। उन्होंने एक नियम बना दिया था कि हर व्यक्ति को हिंदी टाइपिंग करनी होगी और रोज एक पेज हिंदी टाइप करके दिखाना होगा। इसके बाद उदय शंकर जी जैसे लोगों के साथ काम करने का मौका मिला, जिन्होंने खबरों के साथ खेलना सिखाया। एक साल तक हमारे एडिटर राहुल देव भी रहे, तो मेरा यही मानना है की हम बड़े खुशकिस्मत लोग थे कि हमें इन लोगों ने सिखाया और अच्छा सिखाया। एक आत्मविश्वास वही से बनना शुरू हुआ और उसके अलावा एक और चीज सीखी, जो थी लीडरशिप पर विश्वास करना। आपको हमेशा अपने लीडर पर विश्वास करना चाहिए कि वो जो भी कह रहा है, सही कह रहा है।

शिवसेना ने जब कोटला का पिच खोद दिया था, तो सिर्फ एक मैं ही ऐसा रिपोर्टर था, जिसने वो कवर किया था। इसके अलावा समता पार्टी और जया, जेटली को लेकर जो घटनाक्रम हुआ उसे भी रात को डेढ़ बजे मैंने कवर किया था। लगभग पूरी रात हम उस स्टोरी में ही लगे रहे थे। उस वक्त हम कुछ लोग लोकल दिल्ली की न्यूज करते थे। छोटा सा पीटीसी करता था तो भी मेरी इच्छा होती थी कि बस किसी तरह से थोड़ी देर के लिए ही सही स्क्रीन पर दिखाई दे जाउं और आप ये मान लीजिए की वही से यात्रा शुरू हुई।

आपको मैं एक और किस्सा बताता हूं, दरअसल जब भी कोई अच्छा काम करता था, तो ‘आजतक’ में समोसे और जलेबी की पार्टी होती थी। मैनें 2 बार जब ये नाइट स्टोरी की तो मेरी तारीफ में मेरे एडिटर ने पार्टी दी और हिसाब से दो बार ऑफिस को जलेबी और समोसे की पार्टी मिली। उसके बाद मैंनें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और बड़े इंटरनेशनल इवेंट वहां रहते हुए कवर किए।

आपने ‘रिपब्लिक भारत’ को लीड किया और काफी कम समय में उस चैनल ने बुलंदियों को हासिल किया। आप वहां तक कैसे पहुंचे?

देखिए, मैं हमेशा अपने दोस्तों से कहा करता था कि अगर मैं किसी चैनल का हेड बना, तो रिटायर होने में मजा है। मेरी प्रोफाइल कभी एडिटर की नहीं रही थी और मेरी इच्छा था कि मैं एडिटर बनूं। जब अरनब गोस्वामी का चैनल लॉन्च होने की बात हो रही थी, तो बड़े-बड़े एडिटर भी उनके संपर्क में थे और एक बार मैंने भी उन्हें मैसेज भेजा कि मैं आपके साथ काम करने का इच्छुक हूं और उसके बाद ढाई घंटे तक वीडियो कॉन्फ्रेसिंग पर हमारी बात हुई।

मैंने उनसे कहा कि मेरे अंदर भूख है और मुझे एडिटर बनना है। एक दिन अरनब ने मुझसे पूछा कि अगर मुझे आज रात घोषणा करनी है कि मैं हिंदी चैनल ला रहा हूं, तो मैं क्या कहू? मैंनें उनसे कहा कि बस इतना कह दीजिए कि ‘जल्द ही’ और उन्होंने ऐसा ही किया। मैं उन्हें पसंद आया और इस तरह मेरी उनके साथ ये यात्रा शुरू हुई।

मैं आपको सच बताऊं, तो वो मेरे लिए इतनी बड़ी जिम्मेदारी थी कि मैंने अरनब से भी कह दिया था कि जिस दिन ये ‘रिपब्लिक’ नंबर- 1 हो जाएगा, मैं उसके बाद रिटायर कर जाऊंगा। सिर्फ इस सपने को पूरा करने के लिए मैंने दो साल में एक भी छुट्टी नहीं ली थी। मैनें अपने पत्नी बच्चों तक को घर में कह दिया था कि बस इतना समझ लीजिए की मैं जंग के मैदान में हूं। लेकिन यहां एक बात कहना चाहूंगा कि मुझसे अधिक जूनून अरनब में था। कई बार वो मेरा नाम लेकर कहते थे कि लगता है तुम थक गए? मैं कहता था, ‘नहीं बॉस मैं नहीं थका’।

मैं आपको एक बात और बताना चाहूंगा कि अगर मेरे अपने पूरे जीवन में किसी को लगातार 36 घंटे काम करते देखा है, तो वो सिर्फ अरनब को देखा है।

इसके बाद मुझे वहां 2 साल हो गए थे और मुझे अपना प्रोफाइल भी बदलना था और इतना आसान नहीं था अरनब से कहना कि बॉस मैं अब वापस जा रहा हूं। लेकिन ‘जी हिन्दुस्तान’ भी मेरे बच्चे की तरह ही था और जब मुझे कहा गया तो एक बार फिर मैनें ‘जी हिन्दुस्तान’ की कमान संभाल ली। इसके अलावा मैं ऑफिस में बैठने वाला और अपनी टीम को लेकर चलने वाला एडिटर मैं नहीं हूं। मैं न्यूज फ्लोर पर रहता हूं और मेरा सिर्फ एक ही सिद्धांत है कि सबकी हिस्सेदारी तय हो। अगर कुछ अच्छा हो रहा है, तो वो भी आपकी कामयाबी है और अगर कुछ गलत टीवी पर चला गया तो जवाबदेही भी आपकी ही होगी।

आपको एक्सक्लूसिव स्टोरी का मास्टर माना जाता है और दूसरा आप अपने सहयोगियों से अच्छा काम करवाते हैं, ये खूबी क्या आपने किसी से सीखी है या आपके अंदर पहले से थी?

देखिए, दोनों ही बातें आप मान सकते हैं। दरअसल ये तरीका उदय शंकर जी का था। उन्होंने हमें न्यूज के साथ खेलना सिखाया था। कई बार तो ऐसा होता था कि हमारी स्टोरी को वो सहमति नहीं देते थे और कहते थे कि इसे वापस करके लाओ। फिर हम वापस उस स्टोरी को करते थे और उसके बाद वो हमारी तारीफ भी करते थे। वे सही मायनों में एक अच्छे टीम लीडर थे। मैं अपनी टीम के लोगों से वो काम करवा लेता हूं, जो उन्हें खुद भी नहीं पता होता कि उनके अंदर वो काम करने की काबिलियत थी। दरअसल ये चीज आप कह सकते है कि मैंनें अपने अनुभव से सीखा है।

कोरोना महामारी को लेकर कई चीजें बदली हैं, तो आप अपने संस्थान में किन प्रोटोकॉल्स का पालन कर रहे है?

देखिए, समय तो वाकई कठिन है और ऐसे माहौल में भी मैं ऑफिस आता हूं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि अगर टीम लीडर ही नहीं आएगा तो कैसे काम चलेगा। मेरा मानना है कि दिमागी तौर से मजबूत रहना आज के समय में बहुत जरूरी है। अगर मैं ऑफिस नहीं आऊंगा तो कल को मेरे 10 लोग बीमार हो जाएंगे। हम इस चीज को भी स्वीकार करते हैं कि कई ऐसे लोग हैं जिनके घर में कुछ न कुछ घटना इस समय में हुई है। ऐसे सभी लोगों की लिस्ट मेरे पास है और रोज सुबह आकर मैं वो लिस्ट देखता हूं। मैं व्यक्तिगत तौर पर न सिर्फ उनकी मदद कर रहा हूं बल्कि निगरानी भी कर रहा हूं और यही कारण है कि बाकी संस्थान के मुकाबले हमारे यहां इसका कम असर हुआ है।

भविष्य में आप टीवी और डिजिटल की संभावना को कैसे देखते है और फेक न्यूज को लेकर आपकी टीम कैसे काम करती है?

अगर ईमानदारी से कहे तो आने वाला समय तो डिजिटल का ही है। मेरे पास भी अगर कोई एंकर आता है और कहता है कि टीवी में काम करना है तो मैं उसे सिर्फ एक बात कहता हूं कि डिजिटल में शिफ्ट हो जाओ क्योंकि आने वाला समय डिजिटल का ही है। आने वाले दो से तीन साल में मुझे लगता है कि डिजिटल काफी तरक्की करेगा। अगर फेक न्यूज की बात करें, तो यह एक बड़ी महीन रेखा है और इसको लेकर सबको सावधान रहने की जरूरत है। हमारी टीम इसको लेकर बहुत सावधान रहती है और डिजिटल को लेकर सबसे बड़ी चुनौती अगर कोई आने वाली है, तो वो फेक न्यूज है।

आपने अपनी ट्विटर बायो में लिखा है कि आपकी अंग्रेजी कमजोर है और स्वभाव से जिद्दी है। वर्तमान समय में तो इसे कमजोरी कहा जाएगा?

मैंने कभी इंग्लिश स्कूल से पढ़ाई नहीं की और इंग्लिश तो मेरी हमेशा से ही कमजोर रही है। हालांकि अब थोड़ा सा मैं जरूर बोल लेता हूं। मुझे लगता है कि लोगों में जो हीन भावना है कि अगर हमें इंग्लिश नहीं आती तो हम वहां खड़े नहीं हो पाएंगे या उससे बात नहीं कर पाएंगे। ये मैंने सिर्फ उन बच्चों के लिए लिखा है जो ये सोचते है की मेरी इंग्लिश कमजोर हुई, तो मैं आगे नहीं बढ़ सकता हूं। इंग्लिश कमजोर होना कोई बुरी बात नहीं है और इसका उदाहरण मैं खुद हूं। एयरपोर्ट पर या फाइव स्टार होटल में सब अच्छी इंग्लिश बोलते है, तो इससे मेरा प्रोफाइल कमजोर थोड़े होता है? आप मुझे देखिए की मेरी इंग्लिश इतनी कमजोर है, लेकिन मेरा प्रोफाइल तो अच्छा है।


टैग्स जी हिन्दुस्तान पत्रकार मीडिया शमशेर सिंह इंटरव्यू
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