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नाविका कुमार ने बताया, तमाम व्यस्तता के बावजूद किस तरह डेली न्यूज से खुद को रखती हैं अपडेट

‘एक्सचेंज4मीडिया’ की सीरीज ‘हेडलाइन मेकर्स’ के तहत सीनियर एडिटर रुहैल अमीन ने ‘टाइम्स नेटवर्क’ की ग्रुप एडिटर और ‘टाइम्स नाउ नवभारत‘ की एडिटर-इन-चीफ नाविका कुमार से तमाम मुद्दों पर खास बात की है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

‘टाइम्स नेटवर्क’ की ग्रुप एडिटर और ‘टाइम्स नाउ’ व ‘टाइम्स नाउ नवभारत‘ की एडिटर-इन-चीफ नाविका कुमार ने पत्रकारिता में अपने तीन दशक पूरे कर लिए हैं। उन्होंने अपना करियर प्रिंट मीडिया से शुरू किया था और वर्ष 2005 में टीवी न्यूज की दुनिया में आ गईं और तब से वह लगातार यहां अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं।

‘एक्सचेंज4मीडिया’ द्वारा शुरू की गई सीरीज ‘हेडलाइन मेकर्स’ (HEADLINE MAKERS) के तहत ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के सीनियर एडिटर रुहैल अमीन ने नाविका कुमार से तमाम मुद्दों पर बात की है।इस बातचीत के दौरान नाविका कुमार ने मीडिया में अपनी तीन दशक लंबी यात्रा, प्रिंट से टीवी में आने और टीवी पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति पर खुलकर अपने विचार रखे हैं।

जब आप अपने न्यूज टीवी करियर के पिछले दो दशकों पर नजर डालती हैं, तो न्यूज रूम कल्चर में आपको कौन से बड़े बदलाव दिखाई देते हैं?

वर्ष 2005 में मैं प्रिंट मीडिया से टीवी न्यूज की दुनिया में आई। मेरे जैसे व्यक्ति के लिए जो प्रिंट से टीवी में आया हो, यह एक बिल्कुल नई दुनिया थी। यहां मैंने लोगों को काफी युवा, ऊर्जावान, बातूनी और लगातार सक्रिय पाया, क्योंकि यहां काम की गति काफी तेज थी। आज भी इसकी स्थिति यही है। तमाम युवा लोग लगातार टीवी न्यूज की दुनिया में आ रहे हैं। इन युवाओं की आंखों में काफी सपने और सितारे होते हैं। उन्हें लगता है कि यह एक गुलाबी दुनिया है, लेकिन तमाम युवा अक्सर यह नहीं देखते हैं कि इसमें बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती है और पसीना बहाना पड़ता है। यानी न्यूज रूम की भावना अभी भी वही है और बिल्कुल भी नहीं बदली है। मैं जो बदलाव देखती हूं, वह यह है कि युवाओं के पास आज अधिक आइडियाज हैं। कभी-कभी वे ऐसी जगह पहुंचने की जल्दी में होते हैं जहां पहुंचने में हमें अधिक समय लगता है। साथ ही, मुझे लगता है कि आज के दौर में एनर्जी लगातार बेहतर होती जा रही है।

देखा जा रहा है कि टीवी पर न्यूज की जगह व्यूज ने ले ली है। आपकी नजर में इसके पीछे क्या कारण है?

टेक्नोलॉजी ने हमारी जिंदगी काफी बदल दी है। पहले बहुत सी खबरें जो लोगों को टीवी चैनल्स से मिलती थीं, उनमें से बहुत सी खबरें डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर कवर हो जाती हैं और आपके हाथ में मौजूद फोन पर आपको समय-समय पर लगातार हेडलाइंस मिलती रहती हैं। हम भी ऐसा करते हैं। हां, आज के दौर में टीवी चैनल्स पर न्यूज से ज्यादा व्यूज ने जगह ले ली है।  

हमें यह याद रखना होगा कि जब लोगों को मोबाइल फोन पर तुरंत खबरें मिल जाती हैं, ऐसे में जब वे अपना टेलीविजन चालू करते हैं तो इसमें उन्हें कुछ वैल्यू एडिशन मिलना चाहिए। टीवी न्यूज अब ओपिनियन वाले दौर से आगे बढ़ रही है, जहां सिर्फ हेडलाइन नहीं बल्कि अब अतिरिक्त जानकारी भी होती है। इसलिए ऐसा नहीं है कि अब टीवी पर न्यूज नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि आपने हेडलाइन ब्रेक की और आगे बढ़ गए, बल्कि हम आपको एक ऐसा आयाम देते हैं, जिसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हेडलाइन में लाना संभव नहीं है। इसलिए, न्यूज में इंफॉर्मेशन शामिल करना और वैल्यू एडिशन करना न्यूज की कवरेज का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गया है। हां, ओपिनियन जरूर केंद्र बिंदु पर  आ गया है।

काफी चीजें बदली हैं लेकिन लोगों को यह समझने की जरूरत है कि ऐसा क्यों हुआ है। अब वैल्यू ऐड, ओपिनियन, विभिन्न लोगों के विचारों को समझने के लिए उस परिप्रेक्ष्य में उन्हें प्लेटफॉर्म प्रदान करने पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। क्योंकि सामान्य समाचार भले ही उनके पास हों, लेकिन गहराई और परिप्रेक्ष्य को समझना महत्वपूर्ण है और टेलीविजन उन्हें यही प्रदान करता है।

एक न्यूज एंकर की तटस्थता के बारे में आप क्या कहेंगी, जिसके बारे में हम पत्रकारिता स्कूलों में इतनी बात करते हैं। हालांकि, व्यवहार में हमें ऐसा दिखाई नहीं देता है?

आज आप किसी भी युवा से मिलेंगे तो उसके पास अपना एक नजरिया होगा। समग्र रूप से ओपिनियन यानी राय ऐसी चीज है जो पीढ़ी को बदल रही है। टीवी न्यूज दर्शकों के लिए है और दर्शकों के अपने विचार व अपनी राय हैं। उनके लिए समाचार वह है जो उन्हें डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मिला है, अब उन्हें परिप्रेक्ष्य अथवा विस्तार की आवश्यकता है।  इसलिए हम जो करने का प्रयास करते हैं, वह केवल तटस्थता नहीं बल्कि संतुलन है। हम आपको पक्ष ‘ए’ और पक्ष ‘बी’ यानी दोनों पक्षों की बात देते हैं। ऐसे में आपके पास पूरी जानकारी रहती है और इसके आधार पर आप अपने निष्कर्ष खुद निकाल सकते हैं, क्योंकि टीवी अब 'इडियट बॉक्स' (Idiot Box) नहीं है। हम जानते हैं कि हमारे दर्शक बेहद बुद्धिमान हैं और वे जानते हैं कि उन्हें अपना निष्कर्ष कैसे निकालना है।

सोशल मीडिया के इस दौर में आपके पास सूचनाओं का अथाह भंडार है और तमाम तरह की सूचनाएं आपके इर्द-गिर्द घूम रही हैं। ऐसे में जब आप ‘टाइम्स नाउ’ अथवा ‘टाइम्स नेटवर्क’ जैसे ब्रैंड में आते हैं तो आपको पता चलता है कि यह एक मीडिया इंस्टीट्यूटशन है न कि सिर्फ मीडिया आर्गनाइजेशन। हमारा 182 साल पुराना इतिहास है। हमारी काफी विश्वसनीयता है। हालांकि, हम भी गलती कर सकते हैं, लेकिन हमारे पास इसे स्वीकार करने, इसे सुधारने और अपने दर्शकों को सूचित करने का साहस है।

किसी भी न्यूज ऑर्गनाइजेशन अथवा इंस्टीट्यूशन में विश्वसनीयता वाले पत्रकार काफी महत्वपूर्ण होते हैं। होता क्या है कि समाचार आपके चारों ओर तैर रहे हैं, लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण है कि आप समाचार और अफवाह के बीच अंतर कैसे करते हैं? यह केवल तभी हो सकता है जब आपका पत्रकार प्रकाश की गति से काम करे, विश्वसनीय प्रत्यक्ष स्रोतों के साथ क्रॉस-चेक करे और निर्णय ले सके कि वे जो सामने रख रहा है, वह तथ्य है या कल्पना है। यही काम हम करते हैं।

टीवी पर प्राइम टाइम एंकर चिल्लाते क्यों हैं। इस तरह की हाई-वॉल्यूम पत्रकारिता के प्रति यह आकर्षण कैसा है? क्या यह वास्तव में मदद करता है?

अधिकांश लोग कुछ शब्दों को कुछ ब्रैंड्स या संगठनों से जोड़ते हैं। इसलिए यह शोरगुल कुछ ब्रैंड्स के साथ जुड़ा हुआ है और वे कौन से ब्रैंड्स हैं, मुझे दर्शकों को बताने की जरूरत नहीं है। यदि कोई एक शब्द है जो टाइम्स ब्रैंड्स के साथ जुड़ता है, तो वह है विश्वसनीयता। पहले यह एक फार्मूला था। पहले टीवी पर बहुत शोरगुल था और मुझे लगता है कि इसकी उपयोगिता समाप्त हो गई है और अब किसी का इस तरह के शोरशराबे से कोई लेना-देना नहीं है। अब लोग मुद्दों पर विचार और राय सुनना चाहते हैं। शोरशराबे के स्थान पर लोग पूरी जानकारी सुनना चाहते हैं। जैसा कि मैंने कहा, परिप्रेक्ष्य के कारण ही लोग न्यूज चैनल्स पर आना चाहते हैं। हमारा मानना है कि टीवी देखना आनंददायक होना चाहिए। यह कोई तनावपूर्ण स्थिति नहीं होनी चाहिए, जहां आधे समय आप यह सुनने के लिए तनाव में रहते हैं कि दूसरे लोग क्या कह रहे हैं।

अब हम कनेक्टेड टीवी की बात करते हैं। कनेक्टेड टीवी के लिए न्यूज तैयार करना लीनियर टीवी से किस प्रकार अलग है?

न्यूज के नए तरीकों को अपनाने के बावजूद मैं अभी भी पुराने समय की रिपोर्टर/पत्रकार/संपादक हूं, फिर आप जो भी कहें। मैं अब भी पूरी तरह से व्यावहारिक होने के लिए मूल स्रोतों की जांच करने और उन तक पहुंचने में विश्वास करती हूं। नवीनतम जानकारी प्राप्त करने के लिए लोगों से मिलती हूं। यही हमारे ब्रैंड की स्टोरीज की खासियत है, जिसके लिए हम जाने जाते हैं। मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि जिस तरह की स्टोरीज नाविका कुमार टाइम्स नाउ पर करती है, कोई व्यक्ति उसकी डुप्लीकेसी नहीं कर सकता है। अगर मुझे कुछ स्टोरी दिखाई देती है तो ऐसा नहीं है कि मैं उसे उठाऊंगी और ऑन एयर कर दूंगी। पहले मैं पुराने स्टाइल में पीछे जाऊंगी, उसे अच्छे से चेक और क्रॉस चेक करूंगी, तब लोगों के सामने रखूंगी।

आलोचकों और ट्रोलर्स से आप कैसे निपटती हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें कैसे हैंडल करती हैं?

आलोचकों अथवा ट्रोलर्स से निपटना मैंने अच्छे से सीख लिया है। शुरुआत में, जब मैं सोशल मीडिया पर आई, तो सभी ट्रोल्स से मैं हैरान रह गई। लेकिन अब यदि कोई सीख होती है तो मैं उसे सीख लेती हूं लेकिन अब मैं वास्तव में इसकी चिंता नहीं करती हूं।

प्राइम टाइम के एंकर कठिन सवाल नहीं पूछते। वे महत्वपूर्ण मुद्दों पर नरम रुख अपनाते हैं। आपकी नजर में क्या यह सच नहीं है?

यह इस पर निर्भर करता है कि क्या आप कठिन प्रश्न पूछना चाहते हैं? आप भावशून्य चेहरे अथवा हल्की व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ भी कठिन और दृढ़ प्रश्न पूछ सकते हैं। हर व्यक्ति की अपनी अलग स्टाइल होती है। मैं लोगों से सामान्य रूप से बात करती हूं और अपने इंटरव्यूज में भी इसी तरह से बात करती हूं। मुझे लगता है कि कभी-कभी फॉर्म महत्वपूर्ण होती है। आप असभ्य नहीं हो सकते। आप दृढ़ और विनम्र हो सकते हैं और फिर भी आप कठिन सवाल पूछ सकते हैं। यही मेरी शैली है।

हर व्यक्ति की अपनी शैली होती है। मेरी ज्यादा उग्र शैली नहीं है।  मेरा मानना है कि यदि आप उग्र शैली में बात करते हैं, तो आपको तैयार रहना चाहिए कि आपके सामने वाला व्यक्ति भी उसी शैली में बात कर सकता है और फिर माहौल गर्म होने के साथ असहज स्थिति बन सकती है। मैं इस तरह के हालात पैदा करने वालों में से नहीं हूं।

न्यूज चैनल्स की रेटिंग्स को लेकर आपका क्या मानना है। क्या आप भी नबंरों की दौड़ में यकीन रखती हैं। आप इसे किस रूप में देखती हैं?

मेरी मानना है कि हमें हर हफ्ते होने वाली किसी अंधी प्रतिस्पर्धा (blind competition) से प्रेरित नहीं होना चाहिए और न ही इसके पीछे भागना चाहिए। मेरी नजर में इन नंबरों से ज्यादा क्रेडिबिलिटी ज्यादा महत्वपूर्ण है। आप जिस नंबरों की दौड़ की बात कर रहे हैं तो ऐसा भी होता है कि कुछ चैनल्स द्वारा खुद को नंबरों की दौड़ में आगे तो बता दिया जाता है, लेकिन उसके नीचे काफी छोटा-छोटा डिस्क्लेमर भी दे दिया जाता है कि हम फलां कैटेगरी में या फलां सेंगमेंट की बात कर रहे हैं।

मुझे लगता है कि हमें दिखावे का यह खेल बंद कर देना चाहिए जो हम हर गुरुवार सुबह इसे दिखाकर करते हैं। हमारा दृष्टिकोण उससे भी व्यापक होना चाहिए। हम नंबरों की इस साप्ताहिक ‘चूहा दौड़’ (rate race) से बाहर निकल गए हैं और वास्तव में यह हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्य की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।

मुझे पता है कि वास्तविक दुनिया में बेंचमार्क बनाने के लिए कुछ रेटिंग होनी चाहिए और उन बेंचमार्क को कैसे सुधारा जाए, इस पर लगातार काम होना चाहिए। एक इंडस्ट्री के रूप में, पत्रकारों के रूप में और विभिन्न कंपनियों में प्रबंधन के रूप में हमें ऐसा करना जारी रखना चाहिए और मार्केट में वास्तविक नंबर वन को मापने का एक फुलप्रूफ तरीका लाना चाहिए। लेकिन कहीं न कहीं, नकल करने और दौड़ने, बड़े-बड़े दावे करने आदि की इस दौड़ में हर हफ्ते होने वाले इस तरह की चीजों को व्यवस्थित करने का कोई न कोई तरीका तो होना ही चाहिए। मैं नहीं मानती कि यह एक जॉनर के रूप में, एक इंडस्ट्री के रूप में हमारी विश्वसनीयता बढ़ा रहा है और अंत में यह हममें से किसी की भी मदद नहीं करने वाला है। हमें नंबरों के पीछे दौडने के बजाय गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

आप हिंदी और अंग्रेजी दोनों न्यूजरूम्स को एक साथ किस तरह संभालती हैं?

मेरा मानना ​​है कि मैं अभी भी प्रशिक्षु हूं। मैं कभी भी सीखना बंद नहीं करना चाहती। जब मैंने प्रिंट मीडिया में लगभग 13-14 साल पूरे कर लिए और फिर टेलीविजन में काम करने का मौका आया तो मुझे लगा कि मेरे करियर के बीच में मुझे एक नया माध्यम सीखने का मौका मिल रहा है और मुझे इसमें जाना चाहिए और इस तरह मैं टीवी न्यूज की दुनिया में आ गई।

टीवी में, मैं एक रिपोर्टर और एडिटर बनने से लेकर प्राइम टाइम चेहरा बनने तक पहुंच गई हूं, जिसके बारे में मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा बन पाऊंगी, लेकिन मैंने सीखा और मैं अभी भी सीख रही हूं। ये अवसर मेरे पास आए हैं, इसलिए मुझे लगता है कि हर अवसर जो आपके सामने आता है, वह सीखने, आगे बढ़ने, अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाने और जहां आप काम करते हैं, उस स्थान की सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए नए रास्ते खोलता है, वह ईश्वर द्वारा भेजा गया है और मैं ऐसा करना जारी रखूंगी। आज भी मैं ऐसा ही जुनून रखती हूं, जैसा मैंने अपने करियर के पहले दिन दिखाया था।

मुझे यह उतनी बड़ी चुनौती नहीं लगती, क्योंकि मैं असफलता से नहीं डरती। बहुत से लोग मुझसे पूछते रहते हैं कि आपने हिंदी कैसे सीखी? यह बिल्कुल अलग दुनिया है और मैं इसे केवल इसलिए सीख पाई क्योंकि मेरा मानना है कि इसमें रॉकेट साइंस जैसा कुछ नहीं है। मैं इंतजार करती हूं, देखती हूं और सीखती हूं। इसी तरह मैंने हमेशा अपना दिमाग खुला रखा है। मैं अपने सहयोगियों से सीखती हूं, अपने जूनियर्स से सीखती हूं, क्योंकि मेरे मन में इस तरह की कोई बात नहीं है कि मैं सब कुछ जानती हूं।

मैं पूछती रहता हूं- क्या मेरी हिंदी ठीक है, क्या मेरी अभिव्यक्ति ठीक है, ऐसा नहीं है कि मुझे हिंदी नहीं आती, लेकिन मेरी बोलचाल की भाषा ठीक है। मैं अपना रास्ता निकालने में कामयाब रहती हूं और हर दिन नई चीजें सीखती रहती हूं और यही वह हिस्सा है जिसका मैं वास्तव में आनंद लेती हूं। जो कोई भी मुझे निर्देशित कर रहा है, जो भी मेरा प्रड्यूसर है, मैं उनसे बिना किसी रोक-टोक के बातचीत करती हूं और मैं उनसे सीखती हूं। मेरी बिना किसी रोक-टोक के उनके साथ बातचीत होती है और मैं उनसे सीखती हूं। मैं अपने काम से बहुत प्यार करती हूं।  

जब आप न्यूजरूम में नहीं होती हैं, उस समय को आप कैसे व्यतीत करती हैं यानी उस समय क्या करती हैं?

मुझे रात में ओटीटी देखना, क्राइम थ्रिलर, ड्रामा ये सब पसंद है। रात में प्राइम टाइम के बाद मैं घर जाती हूं और आराम से बैठकर यही सब देखती हूं। मैं बॉलीवुड की शौकीन हूं। मैं शाहरुख, सलमान, अक्षय और रणबीर की प्रशंसक हूं, लेकिन अमिताभ बच्चन मेरे फेवरेट हैं और मैंने उनकी सभी फिल्में देखी हैं। मुझे मुजफ्फर अली, इम्तियाज अली और करण जौहर की फिल्में देखना भी पसंद है और एक सच्चे पंजाबी की तरह मुझे भव्य सेट, फिल्मों में भव्यता, अच्छे आभूषण और लहंगे पसंद हैं। मुझे संगीत में बहुत रुचि है। मैंने शास्त्रीय संगीत में कुछ प्रशिक्षण भी लिया है। इसके अलावा मुझे परिवार के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है।

दो न्यूजरूम्स की रोजाना की आपाधापी के बीच आप खुद को कैसे अपडेट रखती हैं?

मेरी ट्रेनिंग बहुत अच्छी रही। मैंने मुंबई में इकोनॉमिक टाइम्स में एक बिजनेस जर्नलिस्ट के रूप में शुरुआत की। मैं इकनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट हूं, इसलिए मैं बजट और व्यापार तथा वित्त संबंधी चीजों को समझती हूं। इसके बाद मैंने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की ओर रुख किया और मैंने खोजी पत्रकारिता ज्यादातर वहीं से सीखी। मैं अखबार पढ़ती हूं और हमेशा सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करती रहती हूं, ताकि यह पता लगा सकूं कि कौन सी चीजें ट्रेंड में हैं और लोग किस बारे में बात कर रहे हैं। मैं रोजाना नौकरशाहों, राजनेताओं और न्यूज की दुनिया से जुड़े लोगों से मिलती हूं। इससे मुझे अपडेट रहने में भी मदद मिलती है। यहां तक ​​कि जब मुझे दो न्यूजरूम्स पर नजर रखनी होती है, तब भी मैं लोगों से मिलने और खबरें प्राप्त करने के इस नियम को बनाए रखती हूं।


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