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CEO बरुण दास ने बताया, लॉकडाउन में TV9 न्यूज नेटवर्क की क्या है खास स्ट्रैटेजी

एक्सचेंज4मीडिया के साथ एक बातचीत में टीवी9 न्यूज नेटवर्क के सीईओ बरुण दास ने तमाम मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Wednesday, 29 April, 2020
Last Modified:
Wednesday, 29 April, 2020
Barun Das


इन दिनों कहर बरपा रहे कोरोनावायरस (कोविड-19) के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने देश में लॉकडाउन किया हुआ है और लोगों से घरों पर ही रहने की अपील की है। लॉकडाउन के कारण घरों में मौजूद लोग अपना ज्यादातर समय टीवी पर न्यूज देखने में बिता रहे हैं। यही कारण है कि इन दिनों न्यूज के उपभोग (news consumption) में रिकॉर्ड वृद्धि देखी जा रही है। लॉकडाउन के दौरान न्यूज चैनल ‘टीवी9 भारतवर्ष’ (TV9 Bharatvarsh) का मार्केट शेयर दोगुना हो गया है। इस बारे में हमारी सहयोगी वेबसाइट ‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media) की सिमरन सभरवाल के साथ एक बातचीत में ‘टीवी9 न्यूज नेटवर्क’ (TV9 News Network) के सीईओ बरुण दास ने टीवी9 भारतवर्ष की ग्रोथ के साथ-साथ नेटवर्क के रीजनल चैनल्स टीवी9 कन्नड़, टीवी9 तेलुगू, टीवी9 गुजराती और टीवी9 मराठी के मजबूत प्रदर्शन को लेकर चर्चा की। इसके साथ ही दास ने कंपनी के भविष्य के प्लान और बेंगलुरु के अंग्रेजी न्यूज चैनल न्यूज9 के डिजिटल नेशनल अंग्रेजी प्लेटफॉर्म तक के विस्तार के बारे में भी बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:  

लॉकडाउन के दौरान आप ‘TV9 Network’ के प्रदर्शन का आकलन किस तरह करेंगे?

लॉकडाउन के दौरान हमारे नेटवर्क का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। टीवी9 कन्नड़ और टीवी9 तेलुगू हमेशा की तरह प्रतियोगिता में सबसे ऊपर बने हुए हैं जबकि टीवी9 गुजराती और टीवी9 मराठी ने भी अपना दबदबा कायम रखा है। हालांकि टीवी9 भारतवर्ष में हमारी ग्रोथ काफी अच्छी रही है। पिछले पांच हफ्ते में हमारा मार्केट शेयर दोगुने से ज्यादा हो गया है। लॉकडाउन से पहले जहां यह चार प्रतिशत था, वह अब (15वें हफ्ते में) 8.7 प्रतिशत हो गया है और यह टॉप 10 हिंदी चैनल्स की लिस्ट में शामिल है। हम टॉप छह के करीब हैं। यहां मैं आपको यह भी बता दूं कि ‘टीवी9 भारतवर्ष’ को आए अभी लगभग एक साल ही हुआ है, जबकि इस जॉनर में अन्य काफी बड़े ब्रैंड्स हैं।

आपको यह ग्रोथ शहरी (urban) अथवा ग्रामीण (rural) कहां से मिली है?

हमारी ग्रोथ कमोबेश संतुलित है। जब आपका मार्केट शेयर दोगुना होता है, तो ग्रोथ सभी मार्केट्स से आती है। हमें शहरी मार्केट से भी अच्छी ग्रोथ देखने को मिली है। हालांकि हमारे नेशनल चैनल ‘टीवी9 भारतवर्ष’ की ग्रोथ ग्रामीण मार्केट में थोड़ी कम है।

‘टीवी9 भारतवर्ष’ पिछले साल मार्च में लॉन्च हुआ था। चैनल को हाल ही में रीलॉन्च किया गया था। इस बारे में थोड़ा और विस्तार से बताएं

हमने ‘टीवी9 भारतवर्ष’ को रीब्रैंड और रीलॉन्च किया और लॉकडाउन से पहले इसके कंटेंट ओरियंटेशन, लुक और फील को बदल दिया। हमारे पास काफी बेहतर मार्केटिंग प्लान था। लॉकडाउन की वजह से हमें अपने मार्केटिंग प्लान में कुछ बदलाव करना पड़ा। इसे नए लुक, नए कंटेंट और इनोवेटिव मार्केटिंग के साथ रीलॉन्च किया गया। लॉकडाउन के दैरान हमारी ग्रोथ में काफी इजाफा हुआ है।

वर्तमान में कितने लोगों तक आपकी पहुंच है और वे चैनल पर कितना समय व्यतीत कर रहे हैं?

हमारी पहुंच करीब 45-46 मिलियन लोगों तक रही है। अब 13वें हफ्ते में हम 122 मिलियन पर पहुंच गए हैं और टीवी9 भारतवर्ष की पहुंच लगभग 120 मिलियन लोगों तक है, जो पहले के मुकाबले करीब ढाई गुना है। लॉकडाउन के दौरान चैनल पर बिताने वाले समय में भी करीब 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।   

टीवी पर विज्ञापनदाताओं (Advertisers) में कमी आई है। टीवी न्यूज चैनल्स व्युअरशिप में इस बढ़ोतरी का लाभ किस तरह उठा सकते हैं?

यदि विज्ञापनदाताओं के लिहाज से देखें तो व्युअरशिप में हुई इस अभूतपूर्व वृद्धि का लाभ इस जॉनर को नहीं मिल सका है। इस समय मुद्दा यह है कि किसी एडवर्टाइजर्स की तरफ से इस दिशा में कदम नहीं उठाया गया है। एफएमसीजी और ई-कॉमर्स प्रॉडक्ट्स इन दिनों विज्ञापन कर रहे हैं। कोविड-19 के बाद सभी सेक्टर्स की अर्थव्यवस्था बदलेगी और यह कहीं-कहीं पर वर्तमान से करीब 25 प्रतिशत कम होगी। हालांकि, आगे की बात करें तो अन्य टीवी जॉनर और अखबार जैसे अन्य माध्यमों की तुलना में न्यूज जॉनर अपनी बेहतर पोजीशन को बनाए रखने में सफल रहेगा। पारंपरिक रूप से एफएमसीजी टीवी न्यूज को ज्यादा पसंदीदा माध्यम के रूप में नहीं देखते हैं, लेकिन आने वाले समय में वे न्यूज जॉनर में ज्यादा दिलचस्पी दिखाएंगे।     

 चूंकि इन दिनों एडवर्टाइजर्स की संख्या कम है, इसलिए इन्वेंट्री भी कम है, लॉकडाउन खत्म होने के बाद कंपनियों को अपने स्टॉक को निकालना पड़ेगा और पंखे, कूलर्स, एसी आदि के विज्ञापनदाता आगे आएंगे। वे अपना काम शुरू करेंगे और विज्ञापन पर खर्च करेंगे। तब हम अपने नुकसान की कुछ भरपाई कर सकेंगे, जो हमें पिछले दो महीनों के दौरान हुआ है।

तो क्या न्यूज चैनल्स विज्ञापन दरों में वृद्धि करेंगे?  

सामान्य परिस्थितियों में मेरा मानना है कि रेट के बारे में किसी तरह का फैसला लेना किसी एक कंपनी का काम नहीं है। यदि कोई इस तरह का फैसला लेता है और उसे सही कीमत मिल जाती है तो बाकी इंडस्ट्री को भी सही कीमत मिलेगी। वैकल्पिक रूप से इंडस्ट्री को एक साथ आगे आना होगा और कीमतों को बढ़ाने का प्रयास करना होगा। हालांकि, कोविड-19 के बाद लोगों और इंडस्ट्री का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि इस अभूतपूर्व संकट से निपटने के लिए वे किस तरह मिलकर साथ आते हैं। यह फिलॉसफी सहयोग की होगी, न कि प्रतिस्पर्धा की।

टीवी न्यूज इंडस्ट्री के रूप में हम व्युअरशिप में इस ग्रोथ के कारण ज्यादा पंख नहीं फैलाएंगे, बल्कि हमें दोनों पक्षों के फायदे के बारे में सोचना होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि विज्ञापनदाता हमें समझेंगे और हमें भी यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें हम पर किया गया निवेश वापस मिले। मुझे लगता है कि कोविड-19 के बाद ‘टीम’ (TEAM-Together Everyone Achieves More)  का कॉंसेपेट आएगा और यह न सिर्फ हमारी इंडस्ट्री में बल्कि पूरी दुनिया के सभी सेक्टर्स में यही होगा।

आप आने वाली तिमाही और इस साल के रेवेन्यू को किस रूप में देखते हैं?

पूरी दुनिया का भविष्य काफी अनिश्चित है। यह दो फैक्टर्स पर निर्भर करता है। एक तो यह कि हम इस लॉकडाउन से कितनी जल्दी बाहर आते हैं और दूसरा ये कि दुनिया कितनी जल्दी इससे उबरती है। भारत और चीन का अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट क्रमश: 1.9% और 1.2%  घट गया है जबकि अधिकांश दुनिया की ग्रोथ में भी कमी की संभावना है। ऐसे में एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू पर काफी दबाव होगा, क्योंकि मंदी के दौरान तमाम खर्चों में कटौती होगी। हालांकि, विज्ञापन ज्यादातर खर्च नहीं बल्कि निवेश होता है। विज्ञापन में कमी आएगी, लेकिन हमारे जॉनर में दूसरों के मुकाबले स्थिति थोड़ी बेहतर रहेगी।

आगे की बात करें तो TV9 नेटवर्क से हम किस तरह की उम्मीद कर सकते हैं?

वर्तमान में व्युरअशिप टर्म्स को देखें तो हम देश के नंबर-1  न्यूज नेटवर्क हैं। यदि 15वें हफ्ते के आंकड़ों  पर नजर डालें तो TV9 नेटवर्क ने इस दौरान 654.7 मिलियन इम्प्रेशंस की रेटिंग दर्ज की। इस बीच ZEE नेटवर्क की रेटिंग 579.3 मिलियन इम्प्रेशंस, ABP नेटवर्क की 540.8 मिलियन इम्प्रेशंस, News18 नेटवर्क की रेटिंग 479.8 मिलियन इम्प्रेशंस रही है।

जो भी हमने स्थापित किया है, उसे बनाने के लिए हमारे पास एक बड़ी योजना थी। इस समय पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के संभावित बड़े क्षेत्रीय बाजारों में भी हमने विस्तार करने की  बनाई थी। लेकिन अब हमें पीछे हटना होगा और क्षेत्रीय विस्तार के लिए COVID -19 के बाद उपयुक्त समय देखना पड़ेगा। वैसे मुश्किल घड़ी एक बड़ा भी मौका देती हैं और TV9 नेटवर्क के लिए वह मौका डिजिटल स्पेस में देखने को मिला है। यह बात साफ है कि हम अपने डिजिटल संचालन को और आगे ले जाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं और वह इसलिए क्योंकि डिजिटल ही भविष्य है। इस संकट ने हमें अपनी योजनाओं को अधिक दृढ़ विश्वास के साथ आगे ले जाने का सही मौका दिया है। परिणामस्वरूप, हम पूरे नेटवर्क में अपने डिजिटल का विस्तार पर शुरू कर रहे हैं। हमारे सभी रीजनल चैनल्स और TV9 भारतवर्ष अपनी डिजिटल टीमों को तैयार करेंगी, ताकि वे प्लेटफार्म्स पर अपने रीडर्स के साथ और अधिक गहराई से जुड़ सकें।

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पत्रकारिता के इन्हीं अटूट सिद्धांतों पर रहेगा 'Collective Newsroom' का फोकस: रूपा झा

समाचार4मीडिया से बातचीत में 'कलेक्टिव न्यूजरूम' की सीईओ और को-फाउंडर रूपा झा ने इसकी शुरुआत, आज के मीडिया परिदृश्य में विश्वसनीयता बनाए रखने की चुनौतियों और भविष्य के विजन पर चर्चा की।

पंकज शर्मा by
Published - Thursday, 10 October, 2024
Last Modified:
Thursday, 10 October, 2024
RUPA JHA

भारत में ‘ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन’ यानी कि 'बीबीसी' (BBC) के चार सीनियर एंप्लॉयीज द्वारा इसी साल अप्रैल में नई और इंडिपेंडेंट कंपनी 'कलेक्टिव न्यूजरूम' (Collective Newsroom) लॉन्च की गई है। जानी-मानी पत्रकार और 'बीबीसी इंडिया' की हेड रहीं रूपा झा इस कंपनी में सीईओ और को-फाउंडर के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं। रूपा झा स्वतंत्र पत्रकारिता को लेकर गहरी प्रतिबद्धता रखती हैं और उनकी यात्रा साहस, दूरदर्शिता और पत्रकारिता की सच्चाई को बनाए रखने के प्रति समर्पण का उदाहरण है।

समाचार4मीडिया से बातचीत में रूपा झा ने 'कलेक्टिव न्यूजरूम' की शुरुआत, आज के मीडिया परिदृश्य में विश्वसनीयता बनाए रखने की चुनौतियों और इसके भविष्य के विजन पर चर्चा की। इस बातचीत में रूपा झा ने 'कलेक्टिव न्यूजरूम' के माध्यम से पत्रकारिता में उनकी सोच और मीडिया में विश्वसनीयता बनाए रखने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया। उनका मानना है कि चाहे परिदृश्य कितना भी बदल जाए, सच्चाई, सटीकता और निष्पक्षता पत्रकारिता के अटूट सिद्धांत हैं और यही 'कलेक्टिव न्यूजरूम' का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश: 

'बीबीसी' में करीब 20 साल बिताने के बाद आपने 'कलेक्टिव न्यूजरूम' शुरू करने का फैसला क्यों किया, आपको इसके लिए किस बात ने प्रेरित किया?

बीबीसी में काम करना बेहद सकारात्मक अनुभव था, लेकिन भारत में विदेशी मीडिया के लिए परिदृश्य बदलने लगा। भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के नियमों में सख्ती के कारण बीबीसी के कामकाज पर असर पड़ा। ऐसे में मैंने और मेरे तीन सहयोगियों, जो 20 साल से अधिक समय से बीबीसी के साथ थे ने सोचा कि अब कुछ स्वतंत्र रूप से करने का समय आ गया है। बीबीसी का मंच और इसके मूल्य हमें बहुत प्रिय थे, लेकिन यह सही समय था कुछ नया और स्वतंत्र करने का। इसी विचार से 'कलेक्टिव न्यूजरूम' की शुरुआत हुई, ताकि हम भारतीय और वैश्विक दर्शकों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले और विश्वसनीय कंटेंट को तैयार कर सकें, साथ ही अधिक लचीले ढंग से काम कर सकें।

'कलेक्टिव न्यूजरूम' का दृष्टिकोण बीबीसी से किस तरह अलग है?

मूल सिद्धांत वही हैं: स्वतंत्रता, विश्वसनीयता और पारदर्शिता। लेकिन 'कलेक्टिव न्यूजरूम' हमें अधिक रचनात्मक स्वतंत्रता और तेजी से कार्य करने की क्षमता देता है। बीबीसी में हमें कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता था, लेकिन अब हम तेजी से निर्णय ले सकते हैं और मीडिया के वातावरण में आने वाले बदलावों के प्रति अधिक तत्पर हो सकते हैं। हम अब भी निष्पक्ष और तथ्य आधारित पत्रकारिता कर रहे हैं, लेकिन छोटे और अधिक लचीली टीम के साथ।

क्या स्वतंत्र रूप से काम करने में कुछ चुनौतियां भी आई हैं? 

बिल्कुल। सबसे बड़ी चुनौती यह रही कि हम बीबीसी की तरह ही विश्वसनीयता और भरोसा बनाए रखें, खासकर ऐसे समय में जब मीडिया पर भारी दबाव है। मीडिया में बहुत शोर है और तथ्यात्मक और अच्छी तरह से तैयार स्टोरीज के साथ आगे आना अब और भी महत्वपूर्ण हो गया है। इसके अलावा, एक नई संस्था के रूप में स्थायी मॉडल तैयार करना और अपने मूल्यों पर कायम रहना चुनौतीपूर्ण रहा है। साथ ही, इस माहौल में नई प्रतिभाओं को पोषित करना भी एक चुनौती है।

इस बदलते मीडिया परिदृश्य में आप नई प्रतिभाओं को कैसे तैयार करते हैं और उन्हें आगे बढ़ाते हैं?

'कलेक्टिव न्यूजरूम' में हम मेंटरशिप पर जोर देते हैं और नई प्रतिभाओं को विकसित करते हैं। पत्रकारिता न केवल प्रशिक्षण पर आधारित है, बल्कि यह एक अंतर्निहित स्वभाव भी है। हम यह सुनिश्चित करते हैं कि युवा पत्रकार अनुभवी पेशेवरों से सीख सकें। हमारी टीम सहयोगात्मक है, जहां हर किसी की राय की कद्र होती है। साथ ही, अलग-अलग भाषाओं में काम करने वाले पत्रकारों की चुनौतियों को समझना और उन्हें सही समर्थन देना भी जरूरी है।

'कलेक्टिव न्यूजरूम' के कंटेंट को आप आज के मीडिया परिदृश्य में किस तरह से अलग मानते हैं? 

हम तथ्य-आधारित और निष्पक्ष पत्रकारिता पर जोर देते हैं। आज के मीडिया माहौल में, जहां अक्सर राय तथ्यों पर हावी हो जाती है, हम सच्चाई की रिपोर्टिंग पर ध्यान केंद्रित करते हैं। हम कई भारतीय भाषाओं में कंटेंट तैयार करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारी पत्रकारिता हर क्षेत्र के लिए प्रासंगिक और विश्वसनीय हो। साथ ही, हम डिजिटल और सोशल मीडिया जैसे नए माध्यमों का उपयोग करके विभिन्न प्लेटफार्म्स के माध्यम से अपने दर्शकों तक पहुंचते हैं।

बहुभाषी कंटेंट तैयार करने की राह में आने वाली जटिलताओं को आप कैसे संभालती हैं? 

यह एक चुनौती जरूर है, लेकिन हमारी ताकत भी। भारत एक विविधतापूर्ण देश है, और हर भाषा समूह की अपनी प्राथमिकताएं और संवेदनशीलताएं होती हैं। हमारे पास प्रत्येक भाषा के लिए अलग-अलग टीमें हैं, लेकिन हम यह सुनिश्चित करते हैं कि मुख्य संदेश सभी कंटेंट में समान हो। इसमें काफी समन्वय की आवश्यकता होती है, लेकिन इसी के परिणामस्वरूप हम विभिन्न भाषाओं में प्रासंगिक और उच्च गुणवत्ता वाला कंटेंट तैयार कर पाते हैं। 

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मीडिया को अपने अधिकारों के लिए खुद लड़ना होगा: अनंत नाथ

इस विशेष इंटरव्यू में अनंत नाथ ने इस पर चर्चा की कि कैसे मीडिया संगठनों को मिलकर अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और सरकारी नियमों व सेंसरशिप के दबाव का सामना कैसे करना चाहिए।

Last Modified:
Friday, 04 October, 2024
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ऐसे में जब प्रेस की स्वतंत्रता पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं और उस पर दबाव बढ़ रहा है, उस समय बॉम्बे हाई कोर्ट का हालिया फैसला मीडिया की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण जीत साबित हुआ है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अनंत नाथ ने इस फैसले के व्यापक प्रभावों, मीडिया संगठनों द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आगे का रास्ता स्पष्ट रूप से बताया।

इस विशेष इंटरव्यू में अनंत नाथ ने इस पर चर्चा की कि कैसे मीडिया संगठनों को मिलकर अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और सरकारी नियमों व सेंसरशिप के दबाव का सामना कैसे करना चाहिए।

भारत में मीडिया की स्वतंत्रता के संदर्भ में हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले का कितना महत्व है?  

यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण है। बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले ने सरकार के उस प्रयास को खारिज कर दिया है, जिसमें वे एक मजबूत सेंसरशिप तंत्र बनाना चाहते थे। सरकार ने एक फैक्ट-चेकिंग यूनिट की स्थापना की योजना बनाई थी, जिसे सरकार से जुड़ी खबरों को गलत, भ्रामक, या झूठा बताने का अधिकार होता। अगर उन्हें कंटेंट सही नहीं लगता, तो वे उसे हटा सकते थे, जो सेंसरशिप से कम नहीं है।

कोर्ट ने इस निर्णय को असंवैधानिक बताया और इसे तीन मौलिक अधिकारों - अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन माना। यह सरकार को अपनी ही बातों पर न्यायाधीश और पीड़ित बनने जैसा था, जिसे कोर्ट ने गलत ठहराया। यह फैसला संविधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक बड़ी जीत है।  

क्या आपको लगता है कि यह फैसला भविष्य में सरकार के ऑनलाइन कंटेंट को नियंत्रित करने के प्रयासों को प्रभावित करेगा?  

मुझे पूरी उम्मीद है। यह फैसला एक मजबूत मिसाल पेश करता है कि भविष्य में अगर सरकार ऑनलाइन मीडिया और अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने की कोशिश करेगी, तो उसे उच्च स्तर की न्यायिक समीक्षा का सामना करना पड़ेगा। सरकार केवल यह तय नहीं कर सकती कि क्या सही है और क्या गलत और इसे हटाने का निर्णय नहीं कर सकती जब तक कि इसका उचित न्यायिक निरीक्षण न हो। हालांकि, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आईटी एक्ट जैसी अन्य कानूनी प्रावधान सरकार को कुछ शक्तियां देते हैं, जिनसे कंटेंट को हटाया जा सकता है। इन नियमों को विभिन्न हाई कोर्ट्स में चुनौती दी जा रही है, लेकिन इस तरह के फैसले प्रेस की स्वतंत्रता के मामले को मजबूत करते हैं। 

आपके विचार में, सरकार कैसे गलत जानकारी पर लगाम लगाते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित कर सकती है?  

इसका समाधान एक स्वतंत्र नियामक निकाय में है, जिसमें मीडिया, नागरिक अधिकार संगठनों, न्यायपालिका और शायद कुछ हद तक सरकार का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। लेकिन सरकार की भूमिका सीमित होनी चाहिए। सरकार ने फैक्ट-चेकिंग यूनिट के जरिये खुद को सर्वशक्तिमान बनाने की कोशिश की थी, जो सही नहीं है। नियामक ढांचे में विभिन्न पक्षों की भागीदारी होनी चाहिए, ताकि स्वतंत्रता और जवाबदेही दोनों सुनिश्चित हों।  

आपको क्या लगता है कि इस फैसले का लोकतंत्र के संबंध में भारत की वैश्विक छवि और प्रेस स्वतंत्रता पर क्या असर पड़ेगा?  

यह फैसला भारत की प्रेस स्वतंत्रता रैंकिंग को तुरंत सुधारने में मदद नहीं करेगा, लेकिन यह इसे और खराब होने से जरूर बचाएगा। हमारी रैंकिंग कई अन्य कारकों से प्रभावित हुई है, जिनमें सरकार से आर्थिक और कानूनी दबाव शामिल हैं। अगर अदालत ने फैक्ट-चेकिंग यूनिट के पक्ष में फैसला सुनाया होता, तो हमारी छवि और खराब हो जाती। यह फैसला सुनिश्चित करता है कि हमारी स्वतंत्रता और न घटे।  

मीडिया संगठनों को सरकार की मनमानी कार्रवाइयों से खुद को बचाने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?  

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रेस संगठनों को सक्रिय और सामूहिक होना चाहिए। जब मीडिया संगठन एक साथ सरकार की कार्रवाइयों को चुनौती देते हैं, तो उन्हें सफलता मिलती है, जैसे कि फैक्ट-चेकिंग यूनिट के मामले में हुआ। सामूहिक रूप से काम करना और अधिकारों के लिए लड़ना जरूरी है।  

इस फैसले के बाद संपादकों की गिल्ड के भीतर क्या भावना है?  

हम उत्साहित और प्रेरित हैं। संपादकों की गिल्ड देशभर में संवाद कार्यक्रम आयोजित कर रही है, ताकि प्रेस की स्वतंत्रता, मीडिया नियमन और नई तकनीकों के प्रभाव पर चर्चा की जा सके। हम आने वाले समय में और भी कानूनी लड़ाइयां लड़ने के लिए तैयार हैं, ताकि प्रेस स्वतंत्रता की रक्षा की जा सके।  

क्या आपको लगता है कि निकट भविष्य में मीडिया के लिए और अधिक स्वतंत्रता का माहौल बन सकता है?  

मुझे लगता है कि राजनीतिक बदलावों के चलते मीडिया के लिए कुछ जगह बन सकती है, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं होगा क्योंकि सरकार ज्यादा समझदार हो गई है, बल्कि राजनीतिक विपक्ष की मजबूती के कारण होगा। जैसे-जैसे विपक्ष मजबूत होगा, प्रेस के लिए स्वतंत्रता की गुंजाइश भी बढ़ेगी।

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'28 वर्षों की मेहनत और बदलाव की दिल छू लेने वाली दास्तान है The Midwife’s Confession’

वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ पाराशर और ‘बीबीसी वर्ल्ड सर्विस’ (BBC World Service) की इन्वेस्टिगेटिव यूनिट ‘बीबीसी आई’ (BBC Eye) ने मिलकर ‘The Midwife’s Confession’ नाम से एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है।

पंकज शर्मा by
Published - Friday, 20 September, 2024
Last Modified:
Friday, 20 September, 2024
Amithbh Parashar

वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ पाराशर और ‘बीबीसी वर्ल्ड सर्विस’ (BBC World Service) की इन्वेस्टिगेटिव यूनिट ‘बीबीसी आई’ (BBC Eye) ने मिलकर ‘The Midwife’s Confession’ नाम से एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है। यह डॉक्यूमेंट्री बिहार के ग्रामीण क्षेत्र में नवजात बच्चियों की हत्या (infanticide) जैसी सामाजिक बुराई को उजागर करती है।

इस डॉक्यूमेंट्री में अमिताभ पाराशर ने ऐसी कई दाइयों के जीवन को भी दिखाया है, जो पहले नवजात बच्चियों की हत्या करती थीं, लेकिन बाद में उन्होंने ऐसी बच्चियों को बचाना शुरू किया। यह डॉक्यूमेंट्री लगभग तीन दशकों की कहानी है, जिसमें इन दाइयों की सोच और जीवन में आए परिवर्तन को दिखाया गया है।

हाल ही में ‘ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन’ (BBC) के दिल्ली स्थित ब्यूरो में इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रखी गई थी। इस दौरान समाचार4मीडिया के साथ बातचीत में अमिताभ पाराशर ने इस डॉक्यूमेंट्री के पीछे की प्रेरणा, इसके निर्माण के दौरान आईं चुनौतियां और उन दाइयों के अनुभवों को शेयर किया। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

इस तरह के सामाजिक मुद्दे पर फिल्म बनाने की प्रेरणा कहां से मिली और इसकी शुरुआत कैसे हुई?

मैं बिहार के एक गांव का रहने वाला हूं। मेरी शुरुआती शिक्षा भी गांव के स्कूल में हुई। मैंने अपने आसपास समाज में बहुत सी विसंगतियां देखीं जैसे-जात-पात और लड़कियों के प्रति दुर्भावना आदि। चूंकि मेरे माता-पिता शिक्षित और जागरूक थे, इस वजह से मुझे इन सामाजिक समस्याओं का अहसास हुआ। शायद यही चीजें मेरे भीतर कहीं गहराई तक छुपी थीं, जो बाद में बाहर आईं। पत्रकार होने के नाते मेरे अंदर सच को जानने की गहरी इच्छा थी। इन कारणों से ही मैंने इस संवेदनशील मुद्दे पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया।

इस तरह के संवेदनशील सामाजिक मुद्दे पर डॉक्यूमेंट्री बनाते समय आपको किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा? 

मेरे सामने चुनौतियां बहुत थीं। सबसे बड़ी चुनौती विषय की गंभीरता और हृदय विदारक घटनाएं थीं। जब मैं खुद पिता बना और अपने बच्चे को गोद में लिया तो मैं बहुत भावुक हो गया। उसी समय मैंने इस मुद्दे की गहराई को महसूस किया। यह जानना कि कैसे लोग मासूम बच्चियों की हत्या कर देते हैं, मेरे लिए झकझोर देने वाला अनुभव था। दूसरा चैलेंज था सीमित संसाधनों में काम करना। इस प्रोजेक्ट को मैंने और मेरी पत्नी ने पूरी तरह से अपने पैसे से आगे बढ़ाया। तीसरी चुनौती यह थी कि कहानी को सही तरीके से गढ़ा जाए ताकि यह केवल मुद्दा न लगे, बल्कि एक स्टोरी की तरह सामने आए।

फिल्म निर्माण के दौरान कोई ऐसी खास घटना, जिसने आपको झकझोरा हो?

ऐसी कई घटनाएं थीं, लेकिन एक घटना विशेष रूप से मुझे आज भी याद है। बिहार में एक महिला को सिर्फ इसलिए बाथरूम में तीन साल तक बंद करके रखा गया था, क्योंकि उसने बेटी को जन्म दिया था। उसकी हालत इतनी बुरी हो गई थी कि उसकी खुद की बेटी भी उसे पहचानने से इनकार कर रही थी। इस तरह की घटनाएं आपको अंदर तक झकझोर देती हैं और महसूस कराती हैं कि इस मुद्दे पर काम करना कितना जरूरी है।

डॉक्यूमेंट्री के दौरान क्या आपको लोगों की मानसिकता में कोई बदलाव देखने को मिला?

तुरंत बदलाव की उम्मीद करना मुश्किल है, लेकिन बीबीसी के साथ काम करने से हमें विश्वास मिला कि हमारा काम सही दिशा में है। शुरू में, सिर्फ मैं और मेरी पत्नी ही इस प्रोजेक्ट पर विश्वास करते थे। जब बीबीसी साथ आया, तो चीजों ने रफ्तार पकड़ी। अब लोग इस मुद्दे पर बात करने लगे हैं और कुछ लोग दहेज न लेने की शपथ भी ले रहे हैं। इससे हमें उम्मीद है कि समाज में धीरे-धीरे बदलाव आएगा।

इस फिल्म से समाज में लड़कियों के प्रति सोच बदलने की कितनी उम्मीद है?

मुझे पूरी उम्मीद है कि फिल्म देखने के बाद लोग सोच में बदलाव लाएंगे। हमने देखा है कि अब लोग बेटियों को बचाने और पढ़ाने के अभियान की जरूरत को समझने लगे हैं। हालांकि, यह सच है कि समाज में अभी भी भेदभाव मौजूद है, जिसे बदलने के लिए हमें अपनी मानसिकता में बड़ा बदलाव लाना होगा।

’बीबीसी’ तक पहुंचने की कहानी क्या रही?

मेरी एक परिचित ’बीबीसी’ में काम करती हैं। उन्होंने हमारी फुटेज को देखा और अपनी टीम से संपर्क किया। जब बीबीसी की टीम ने यह प्रोजेक्ट देखा तो वे लोग तुरंत उत्साहित हो गए और हमारा साथ देने के लिए तैयार हो गए।

क्या भविष्य में इसी तरह के किसी अन्य सामाजिक मुद्दे पर फिल्म बनाने की योजना है?

जी, हम भविष्य में भी सामाजिक मुद्दों पर काम करना चाहते हैं। समाज में मुद्दों की कोई कमी नहीं है और हम उन्हें उजागर करने के लिए तत्पर हैं।

इस फिल्म को बनने में कितना समय लगा और यह लोगों को कहां देखने को मिलेगी?

इस फिल्म को बनने में लगभग 28 साल लगे। फिल्म 63 मिनट लंबी है और इसमें 28-30 साल पुराने मामलों को भी शामिल किया गया है। यह फिल्म यूट्यूब पर और ‘बीबीसी’ की वेबसाइट पर देखने को मिलेगी।   

फिल्म में कई दाइयों ने नवजात बच्चियों को मारने की बात कबूली है। आपने इन दाइयों को कैमरे के सामने आने और स्वीकारोक्ति के लिए किस तरह तैयार किया?

यह बहुत मुश्किल काम था, लेकिन धीरे-धीरे उनके साथ विश्वास बनाकर यह संभव हुआ। पहली बार में वे कैमरे के सामने आने से हिचकिचा रही थीं, लेकिन जब उन्होंने हमारी टीम के ऊपर भरोसा किया तो उन्होंने खुलकर अपने अनुभव साझा किए।

इस डॉक्यूमेंट्री को आप इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।

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इन्हीं वजहों से पसंदीदा व भरोसेमंद न्यूज एजेंसी बनी हुई है PTI: विजय जोशी

‘पीटीआई’ के 77 साल के शानदार सफर और भविष्य़ की योजनाओं समेत तमाम अहम मुद्दों पर समाचार4मीडिया ने इस न्यूज एजेंसी के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर और एडिटर-इन-चीफ विजय जोशी से खास बातचीत की।

पंकज शर्मा by
Published - Wednesday, 11 September, 2024
Last Modified:
Wednesday, 11 September, 2024
Vijay Joshi

देश की जानी-मानी न्यूज एजेंसी ‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया’ (PTI)  ने 27 अगस्त 2024 को अपनी स्थापना के 77 वर्ष पूरे कर लिए हैं। ‘पीटीआई’ के अब तक के शानदार सफर और भविष्य़ की योजनाओं समेत तमाम अहम मुद्दों पर समाचार4मीडिया ने इस न्यूज एजेंसी के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) और एडिटर-इन-चीफ विजय जोशी से खास बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

पीटीआई’ ने 77 साल पूरे कर लिए हैं, जो काफी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस एजेंसी के कामकाज के बारे में कुछ बताएं, जिस वजह से इसने इतने वर्षों तक अपनी विश्वसनीयता बनाए रखी है?

जब देश स्वतंत्रता नहीं हुआ था, उस समय समाचार पत्रों को ‘एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया’ (API) नामक एजेंसी द्वारा सेवाएं दी जाती थीं। ‘एपीआई’ ब्रिटिश एजेंसी ‘रॉयटर्स’ के स्वामित्व में थी। हालांकि यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को कवर करती थी। लेकिन, आजादी के बाद भारतीय समाचार पत्र मालिकों को महसूस हुआ कि देश को पत्रकारिता में अपनी स्वतंत्र आवाज की जरूरत है। इस आवश्यकता के परिणामस्वरूप 27 अगस्त 1947 को यानी देश को स्वतंत्रता मिलने के सिर्फ 12 दिन बाद ‘पीटीआई’ की स्थापना हुई। इसने ‘एपीआई’ के संचालन को अपने हाथों में लिया और आधिकारिक तौर पर जनवरी 1949 से अपनी सेवाएं शुरू कीं। यह वही समय था, जब देश की सबसे विश्वसनीय न्यूज एजेंसी का जन्म हुआ और संक्षेप में कहें तो तब से आज तक हमने देश में विश्वसनीय समाचारों के उच्चतम मानकों को बनाए रखा है।

‘पीटीआई’ के सीईओ के रूप में मुझे हमारी 77 साल की यात्रा पर अत्यधिक गर्व है। ‘पीटीआई’ हमेशा से निष्पक्ष, विश्वसनीय और भरोसेमंद पत्रकारिता का प्रतीक बनी हुई है। हम तथ्यों के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं और हर खबर को अपने सबस्क्राइबर्स तक पहुंचाने से पहले पूरी तरह से तथ्यों की जांच कर उन्हें सत्यापित किया जाता है। भले ही खबर को सबसे पहले ब्रेक करने का दबाव हो, हम प्रत्येक जानकारी को दो या तीन स्तरों पर जांचने के नियमों का पालन करते हैं। हम बिना सत्यापन के कोई भी खबर प्रकाशित नहीं करते। उदाहरण के लिए, हाल ही में एक मामले में, जब तमाम मीडिया आउटलेट्स एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से जुड़ी एक हाई प्रोफाइल शख्सियत की कथित मृत्यु की खबर दे रहे थै, हमने इस सूचना को विश्वसनीय स्रोतों से पुष्टि नहीं होने के कारण नहीं चलाया। बाद में पता चला कि इस बारे में खबरें काफी हद तक बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई थीं। कुल मिलाकर तमाम स्तरों पर जानकारी के सत्यापन के बाद ही खबर चलाने के प्रति हमारी यह प्रतिबद्धता, फिर चाहे कितना भी दबाव क्यों न हो, ने हमें 77 वर्षों में विश्वास अर्जित करने में मदद की है। यही ‘पीटीआई’ की 77 वर्षों की विश्वसनीयता का आधार है।

आजकल जब फेक न्यूज लगातार पैर पसार रही है, ऐसे में पीटीआई किस तरह से सुनिश्चित करती है कि उसकी खबरें सटीक और विश्वसनीय हों? फेक न्यूज की समस्या से ‘पीटीआई’ किस तरह निपटती है?

फेक न्यूज आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, खासकर सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से तेजी से फैलने वाली गलत सूचनाओं के कारण। ‘पीटीआई’ में हमने इस चुनौती से निपटने के लिए एक फैक्ट चेक न्यूज डेस्क स्थापित की है। हमारी यह टीम टेक्नोलॉजी के साथ-साथ पत्रकारिता के सख्त मानकों का इस्तेमाल करती है, ताकि गलत जानकारी की पहचान हो सके और उसे रोककर सटीक खबरें प्रदान की जा सकें।

आज सिर्फ एक अच्छे पत्रकार होने की बात नहीं है। आपको यह समझने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करना पड़ता है कि क्या किसी फोटो, ऑडियो क्लिप अथवा वीडियो से छेड़छाड़ की गई है अथवा नहीं। हम जानकारी के सत्यापन के दौरान विभिन्न टूल्स के इस्तेमाल के साथ-साथ पत्रकारिता के मूल्यों का भी ध्यान रखते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि फेक न्यूज के शिकार न बनें।

आपकी नजर में भारत में समय के साथ किस तरह मीडिया परिदृश्य विकसित हुआ है। विशेषकर छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों से न्यूज कवरेज की बात करें तो?

छोटे शहरों और कस्बों से खबरें कवर करने में अलग तरह की चुनौतियां होती हैं, लेकिन ‘पीटीआई’ में हम इन खबरॉं को प्राथमिकता देते हैं। हमारे पास देश के हर जिले में स्ट्रिंगर्स हैं और अक्सर बड़े जिलों या शहरों में एक से अधिक रिपोर्टर होते हैं। ये स्थानीय पत्रकार हमें व्यापक कवरेज प्रदान करने में मदद करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि देश के सबसे दूरस्थ हिस्से भी राष्ट्रीय चर्चा से बाहर न रहें और उनकी खबरें सामने आएं। दरअसल, चुनौती अक्सर संसाधनों और बुनियादी ढांचे की होती है, लेकिन हमारे स्ट्रिंगर्स और रिपोर्टर अच्छी तरह से प्रशिक्षित होते हैं और ‘पीटीआई’ के कठोर रिपोर्टिंग मानकों का पालन करते हैं। इन क्षेत्रों से निष्पक्ष और विश्वसनीय कवरेज सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि मेनस्ट्रीम मीडिया अक्सर इन्हें अनदेखा कर देती है।

डिजिटल पत्रकारिता के बढ़ते चलन के साथ ‘पीटीआई’ के कामकाज में टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की क्या भूमिका है और आप इन इनोवेशंस के साथ किस तरह तालमेल बिठा रहे हैं?

टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) निस्संदेह पत्रकारिता के भविष्य को नया आकार दे रहे हैं और हम इस बदलाव में सबसे आगे बने रहना चाहते हैं। वर्तमान में हम हेडलाइंस बनाने जैसे कार्यों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन हम अभी इस प्रक्रिया के शुरुआती चरण में हैं। हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा तैयार हेडलाइंस का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि उसकी मानव प्रयासों से तुलना करते हैं ताकि यह समझ सकें कि यह कितना विकसित है। कई मामलों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस संक्षिप्त और प्रभावी हेडलाइंस तैयार करता है, लेकिन हमें लगता है कि यह अभी भी तमाम तरह की स्टोरीज के संदर्भ में मानव निर्णय को पूरी तरह से प्रतिस्थापित करने के लिए तैयार नहीं है। भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पत्रकारिता में और भी बड़ी भूमिका निभाएगा, लेकिन हम इसे बिना निगरानी के संपादकीय निर्णयों को नियंत्रित करने की अनुमति देने को लेकर सतर्क हैं। टेक्नोलॉजी तो विकसित होती रहेगी और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम हमेशा विश्वसनीयता और सटीकता को प्राथमिकता देते हुए जिम्मेदारी से इसका उपयोग करें।

भारत से अंतरराष्ट्रीय समाचारों को कवर करने की विशेष चुनौतियां क्या हैं और ‘पीटीआई’ इन चुनौतियों का सामना कैसे करती है?

अंतरराष्ट्रीय समाचारों को कवर करना हमारे लिए चुनौती और अवसर दोनों है। भारत, कई अन्य देशों की तरह, आमतौर पर आंतरिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है और विदेशी समाचार तब ही ध्यान आकर्षित करते हैं जब उनमें कोई भारतीय पहलू हो, जैसे विदेशों में संघर्षों में भारतीयों का प्रभावित होना या अन्य देशों में भारतीयों का अच्छा प्रदर्शन करना।

हर देश में विदेशी संवाददाताओं को नियुक्त करना तमाम वजहों से काफी मुश्किल होता है, इसलिए भारत समेत अधिकांश देशों के तमाम मीडिया आउटलेट्स वैश्विक कवरेज के लिए आमतौर पर AP, रॉयटर्स और AFP जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों पर निर्भर रहते हैं। हालांकि, ये एजेंसियां आमतौर पर पश्चिमी दृष्टिकोण से समाचार प्रस्तुत करती हैं। यह एक ऐसा अंतर है, जिसे पीटीआई वैश्विक दृष्टिकोण से भर सकती है। हमारा लक्ष्य पीटीआई की विश्वसनीयता का उपयोग करके अंतरराष्ट्रीय समाचार क्षेत्र में प्रमुख खिलाड़ी बनने का है, लेकिन इसके लिए महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होगी।

वर्तमान मीडिया परिदृश्य की बात करें तो आप भारत में मीडिया की स्थिति को कैसे देखते हैं, खासकर न्यूज एजेंसियों की बात करें तो?

देश में मीडिया परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। जब मैंने वर्ष 1985 में पत्रकारिता शुरू की थी, तब यहां केवल दो न्यूज एजेंसियां ‘पीटीआई’ और ‘यूएनआई’ समाचारों का प्रमुख स्रोत थीं। दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा थी, लेकिन वह स्वस्थ और सही समय पर सटीक जानकारी प्रदान करने पर केंद्रित थी। आज प्रतिस्पर्धा का स्वरूप बदल गया है और अब न्यूज को सबसे पहले यानी ब्रेकिंग न्यूज देने की होड़ है। सबसे तेज बनने की इस दौड़ में गलतियां हो सकती हैं, जो मीडिया के कुछ हिस्सों में विश्वास को कमजोर कर सकती हैं। हालांकि, ‘पीटीआई’ में हम विश्वसनीयता के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता रखते हैं। जब तक हमें खबर की सत्यता पर पूरी तरह भरोसा नहीं होता, तब तक हम उसे आगे बढ़ाने की जल्दी नहीं करते।

‘पीटीआई’ ने कुछ समय पहले ही वीडियो सर्विस शुरू की है। इसका किस तरह का रिस्पॉन्स मिल रहा है और डिजिटल विस्तार की दिशा में भविष्य की आपकी योजनाएं क्या हैं?

हमने जनवरी 2023 में ‘पीटीआई’ की वीडियो सर्विस शुरू की और इसका रिस्पॉन्स काफी शानदार है, खासकर डिजिटल प्लेटफार्म्स से। दरअसल, कई वर्षों तक वीडियो न्यूज सर्विस के क्षेत्र में लगभग एकाधिकार था और ‘पीटीआई‘ के प्रवेश ने एक आवश्यक विकल्प और प्रतिस्पर्धा प्रदान की है। सबस्क्राइबर्स के लिए प्रतिस्पर्धा फायदेमंद होती है, क्योंकि यह उन्हें अपनी पसंद चुनने का मौका देती है। ‘पीटीआई‘ में हमारा ध्यान टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल द्वारा विभिन्न प्रकार का कंटेंट प्रदान करने पर रहा है, जैसे लाइव स्ट्रीम, रॉ फुटेज, और तुरंत इस्तेमाल के लिए तैयार वॉइस पैकेज। यह विशेष रूप से डिजिटल सबस्क्राइबर्स के बीच लोकप्रिय रही है, जो हमारी कंटेंट की विविधता और उपयोग में आसानी की सराहना करते हैं। जैसा कि डिजिटल पत्रकारिता का विस्तार हो रहा है, मुझे लगता है कि हमारी वीडियो सर्विस के विस्तार की अपार संभावनाएं हैं।

आप यह कैसे सुनिश्चित करते हैं कि ‘पीटीआई’ की पत्रकारिता के मानक उच्च बने रहें, विशेषकर जब युवा पत्रकार इस क्षेत्र में आ रहे हैं?

ट्रेनिंग और डवलपमेंट ‘पीटीआई’ के संचालन का अभिन्न हिस्सा हैं। जब कोई पत्रकार हमारे साथ जुड़ता है तो हमें उम्मीद होती है कि उनके पास कुछ अनुभव होगा, लेकिन उन्हें अक्सर कुछ पुराने तरीकों को त्यागना पड़ता है। हमारा प्रशिक्षण निरंतर और काम के दौरान होता है, जिसमें सीनियर रिपोर्टर्स और संपादक नए पत्रकारों का मार्गदर्शन करते हैं। हम वर्कशॉप भी आयोजित करते हैं। हाल ही में हमने अपने यहां पत्रकारों के लिए मानहानि और कॉपीराइट एक्ट पर एक वर्कशॉप आयोजित कर उन्हें प्रशिक्षण दिया है। हम अपने यहां सभी पत्रकारों को मोबाइल जर्नलिज्मॉ (मोजो) जैसे नए मीडिया कौशल में भी प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि ‘पीटीआई’ से जुड़ा हर पत्रकार केवल आवश्यक कौशल ही नहीं बल्कि एक मजबूत नैतिक आधार भी प्राप्त करे। चूंकि हम काफी बड़ी संख्या में सबस्क्राइबर्स को सेवाएं प्रदान करते हैं और एक गलत खबर के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, इसलिए हम यह जिम्मेदारी समझते हैं और इस दिशा में उचित कदम उठाते हैं।

आने वाले वर्षों में ‘पीटीआई’ के लिए आपका क्या विजन है?

मेरा विजन है कि गुणवत्ता और प्रभाव के मामले में ‘पीटीआई’ दुनिया की प्रमुख समाचार एजेंसियों- जैसे ‘AP’, ‘रॉयटर्स’ और ‘AFP’ के समकक्ष खड़ी हो। मैं उन महान लोगों की विरासत संभाले हुए हूं, जिन्होंने 70 वर्षों से अधिक समय में इस शानदार एजेंसी को स्थापित किया है। मैं अपनी इस विरासत का सम्मान करता हूं। मेरा ध्यान भविष्य पर है और मैं एक ऐसा कल्चर तैयार करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं, जो सीखने, सहकर्मियों के प्रति सम्मान और सत्य के प्रति प्रतिबद्धता पर आधारित हो। सबसे महत्वपूर्ण बात, हमारा ध्यान अपने सबस्क्राइबर्स की निष्ठा और ईमानदारी से सेवा पर केंद्रित होगा। हम उनकी वजह से यहां मौजूद हैं। इसके साथ ही मैं यह भी बताना चाहूंगा कि भारत एक वैश्विक सुपरपावर है। भारत में हो रही घटनाओं में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की रुचि बढ़ी है। एक विश्वसनीय और स्वतंत्र दृष्टिकोण प्रदान करके जिस पर दुनिया भरोसा कर सके, ‘पीटीआई’ में वैश्विक मंच पर भारत की आवाज बनने की क्षमता है। हालांकि, हम अभी उस स्थान पर नहीं हैं, लेकिन मुझे विश्वास है कि अपने इतिहास, प्रतिष्ठा और हमारे पास मौजूद प्रतिभा के दम पर हम एक दिन उस स्तर तक जरूर पहुंचेंगे।

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'एबीपी न्यूज' को दिए इंटरव्यू में पीएम मोदी ने बताया विपक्ष में अपना पसंदीदा नेता

लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें और आखिरी चरण से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'एबीपी न्यूज' को इंटरव्यू दिया और तमाम मुद्दों पर बात की।

Last Modified:
Wednesday, 29 May, 2024
PMModi785411

लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें और आखिरी चरण से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'एबीपी न्यूज' को इंटरव्यू दिया और तमाम मुद्दों पर बात की। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार द्वारा की गई पहलों के परिणामस्वरूप, हम आने वाले समय में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेंगे। भ्रष्टाचार को लेकर पूछे गए सवाल पर पीएम मोदी ने कहा कि जिसने पाप किया है, उसको पता है कि उसका नंबर लगने वाला है।

राम मंदिर के कार्यक्रम से विपक्ष की दूरी के सवाल पर पीएम मोदी ने कहा कि इन्होंने राजनीति के शॉर्टकट ढूंढे हैं, इसलिए वो वोट बैंक की राजनीति में फंस गए हैं। इसकी वजह से वो घोर सांप्रदायिक, घोर जातिवादी, घोर परिवारवादी हो गए और गुलामी की मानसिकता से बाहर नहीं आ पाए हैं, वरना क्या कारण है कि 19वीं शताब्दी के कानून 21वीं शताब्दी में बदले गए। उन्होंने कहा कि दुनिया में महात्मा गांधी एक महान आत्मा थे। क्या 75 सालों में हमारी ये जिम्मेदारी नहीं थी कि पूरी दुनिया महात्मा गांधी को जाने। पहली बार गांधी पर फिल्म बनी, तब दुनिया में क्यूरोसिटी बनी। उन्होंने कहा कि इतिहास से हमें जुड़े रहना चाहिए। जब अदालत ने फैसला दिया तो पूरे देश में शांति रही। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा खूब गौरव के साथ हुई। खुद बाबरी मस्जिद की लड़ाई लड़ने वाले इकबाल अंसारी वहां थे। 

आर्टिकल 370 खत्म करने का फैसला कितना सही? इस सवाल के जवाब में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि 80-90 के दशक में मैं कश्मीर में रहा हूं। जब मैं प्रधानमंत्री बना तो वहां बाढ़ आई। मैं वहां चला गया। लोग मुसीबत में थे और वहां की सरकार को पता ही नहीं था। मैंने वहां एक हजार करोड़ देने का फैसला किया। इसके बाद मैंने वहां दिवाली मनाने का फैसला किया। वहां जब मैं पहुंचा तो लोगों का प्रतिनिधिमंडल मुझसे मिला। वो मुझसे अकेले मिलना चाहते थे। उन्होंने कहा कि आप जम्मू-कश्मीर के लिए जो भी कीजिए, सीधे कीजिएगा। इसमें सरकार को शामिल मत कीजिएगा। वहां के लोगों को राज्य सरकार पर भरोसा नहीं था। उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोग मेरे फैसले से खुश हैं।

पीएम मोदी को विपक्ष का कौन सा नेता पसंद है? इस सवाल के जवाब में पीएम मोदी ने कहा कि प्रणब मुखर्जी कांग्रेस के थे। 2019 के चुनाव के दौरान उन्होंने तीन-चार बार फोन किया। वो मुझे कहते थे कि इतनी मेहनत करोगे, तो तबीयत को कौन देखता है। वो तो कांग्रेस से थे। मैं तो बीजेपी का था, फिर भी वो मुझे फोन करते थे। हमने नरसिम्हा राव को भारत रत्न दिया। हमने प्रणब दा को भारत रत्न दिया, ये सब वोट पाने के लिए काम नहीं करते थे। हमने गुलाम नबी आजाद साहब को पद्म विभूषण दिया। मेरे सबसे अच्छे संबंध हैं। सिवाय शाही परिवार के। हालांकि, मैं उनकी तकलीफ के समय में मैं प्रो-एक्टिव रहा हूं। 

यहां देखें पूरा इंटरव्यू :

 

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NDTV को दिए इंटरव्यू में पीएम ने कहा, कंटेंट क्रिएटर्स ने मुझे हैरान करने वाली चीज बताई

पीएम मोदी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि आपने जो डिजिटल क्रांति भारत में देखी है, शायद मैं समझता हूं कि गरीब के एम्पावरमेंट का सबसे बड़ा साधन एक डिजिटल रेवोल्यूशन है।

Last Modified:
Monday, 20 May, 2024
NDTV78451

लोकसभा चुनावों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार ‘एनडीटीवी’ (NDTV) के सीईओ व एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया को खास इंटरव्यू दिया है।संजय पुगलिया इस इंटरव्यू के दौरान पीएम मोदी से तमाम प्रमुख मुद्दों पर बातचीत की और उनके ‘मन की बात’ जानने की कोशिश की। एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया से बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने भारत के भविष्य की झलक दिखाई। उन्होंने 125 दिन का एजेंडा, 2047 की योजना, 100 साल की सोच और 1000 साल के ख्वाब का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बड़ा पाना है तो बड़ा सोचना होगा, क्योंकि कुछ घटनाओं ने भारत को 1000 साल तक मजबूर रखा।

इंटरव्यू के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैं टुकड़ों में नहीं सोचता हूं और मेरा बड़ा कॉप्रिहेन्सिव और इंटिग्रेटिड अप्रोच होता है। दूसरा सिर्फ मीडिया अटेंशन के लिए काम करना, यह मेरी आदत में नहीं है और मुझे लगा कि किसी भी देश के जीवन में कुछ टर्निंग पॉइंट्स आते हैं। अगर उसको हम पकड़ लें तो बहुत बड़ा फायदा होता है। व्यक्ति के जीवन में भी... जैसे जन्मदिन आता है, तो हम मनाते हैं, क्योंकि उत्साह बढ़ जाता है। नई चीज बन जाती है। वैसे ही जब आजादी के 75 साल हम मना रहे थे, तब मेरे मन में वह 75वें साल तक सीमित नहीं था। मेरे मन में आजादी के 100 साल थे। मैं जिस भी इंस्टिट्यूट में गया, उसमें मैंने कहा कि बाकी सब ठीक है, देश जब 100 साल का होगा, तब आप क्या करेंगे? अपनी संसद को कहां ले जाएंगे। जैसे अभी 90 साल का कार्यक्रम था। RBI में गया था। मैंने कहा ठीक है RBI 100 साल का होगा, तब क्या करेंगे? और देश जब 100 साल का होगा, तब आप क्या करेंगे? देश मतलब आजादी के 100 साल। हमने 2047 को ध्यान में रखते हुए काफी मंथन किया। लाखों लोगों से इनपुट लिए और करीब 15-20 लाख तो यूथ की तरफ से सुझाव आए। एक महामंथन हुआ। बहुत बड़ी एक्साइज हुई है। इस मंथन का हिस्सा रहे कुछ अफसर तो रिटायर भी हो गए हैं, इतने लंबे समय से मैं इस काम को कर रहा हूं। मंत्रियों, सचिवों, एक्सपर्ट्स सभी के सुझाव हमने लिए हैं और इसको भी मैंने बांटा है।  25 साल, फिर पांच साल, फिर एक साल, 100 दिन.. स्टेजवाइज मैंने उसका पूरा खाका तैयार किया है। चीजें जुड़ेंगी इसमें। हो सकता है एक आधी चीज छोड़नी भी पड़े, लेकिन मोटा-मोटा हमें पता है कैसे करना है। हमने इसमें अभी 25 दिन और जोड़े हैं।

उन्होंने आगे कहा कि मैंने देखा कि यूथ बहुत उत्साहित है, उमंग है, अगर उसको चैनलाइज्ड कर देते हैं, तो एक्स्ट्रा बेनिफिट मिल जाता है और इसलिए मैं 100 दिन प्लस 25 दिन यानी 125 दिन काम करना चाहता हूं। हमने माई भारत लॉन्च किया है। आने वाले दिनों में मैं 'माई भारत' के जरिए कैसे देश के युवा को जोड़ूं, देश की युवा शक्ति को बड़े सपने देखने की आदत डालूं, बड़े सपने साकार करने की उनकी हैबिट में चेंज कैसे लाऊं पर मैं फोकस करना चाहता हूं और मैं मानता हूं कि इन सारे प्रयासों का परिणाम होगा। 

इस दौरान पीएम मोदी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि आपने जो डिजिटल क्रांति भारत में देखी है, शायद मैं समझता हूं कि गरीब के एम्पावरमेंट का सबसे बड़ा साधन एक डिजिटल रेवोल्यूशन है। असामनता कम करने में डिजिटल रेवोल्यूशन बहुत बड़ा काम करेगा। मैं समझता हूं कि एआई, आज दुनिया यह मानती है कि एआई में भारत पूरी दुनिया को लीड करेगा। हमारे पास यूथ है, विविधता है, डेटा की ताकत है। दूसरा आपने देखा होगा कि मैं कंटेंट क्रिएटर्स से मिला था। गेमिंग वालों से मिला था। उन्होंने मुझे एक चीज बड़ी आश्चर्यजनक बताई। मैंने उनसे पूछा कि क्या कारण है कि यह इतना फैल रहा है, उन्होंने बताया कि डेटा बहुत सस्ता है। दुनिया में डेटा इतना महंगा है, मैं दुनिया की गेमिंग कॉम्पिटिशन में जाता हूं डेटा इतना महंगा पड़ता है... भारत में जब बाहर के लोग आते हैं तो हैरान हो जाते हैं कि अरे इतने में मैं.. इसके कारण भारत में एक नया क्षेत्र खुल गया है। आज ऑनलाइन सब चीज एक्सेस हैं। कॉमन सर्विस सेंटर करीब 5 लाख से ज्यादा हैं। हर गांव में एक और बड़े गांव में 2-2, 3-3 हैं। किसी को रेलवे रिजर्वेशन करवाना है तो वह अपने गांव में ही कॉमन सर्विस सेंटर से करा लेता है। गर्वनेंस में मेरी अपनी एक फिलॉसफी है। मैं कहता हूं 'P2G2'. प्रो पीपल गुड गवर्नेंस। न्यूयॉर्क में मैं प्रफेसर पॉल रॉमर्स से मिला था। नोबेल प्राइज विनर हैं। तो काफी बातें हुईं उनके साथ डिजिटल पर। वह मुझे सुझाव दे रहे थे कि डॉक्युमेंट रखने वाले सॉफ्टवेयर की जरूरत है। जब मैंने उनसे कहा कि मेरे फोन में डिजी लॉकर है और जब मैंने मोबाइल फोन पर सारी चीजें दिखाईं, तो इतने वे उत्साहित हो गए.. दुनिया जो सोचती है, उससे कई कदम हम इस क्षेत्र में आगे बढ़ गए हैं। आपने जी 20 में भी देखा होगा भारत के डिजिटल रेवोल्यूशन की चर्चा पूरी दुनिया में है।

यहां देखें पूरा इंटरव्यू:

 

  

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पीएम मोदी ने 'आजतक' को बताया, आखिर वह क्यों नहीं करते 'प्रेस कॉन्फ्रेंस'

इंडिया टुडे ग्रुप के न्यूज डॉयरेक्टर राहुल कंवल ने पीएम से पूछा कि पीएम पद संभालने के बाद न तो वो प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और उनके इंटरव्यू का मौका भी कम ही मिलता है।

Last Modified:
Friday, 17 May, 2024
PMModi7845545

लोकसभा चुनाव के बीच 'आजतक' ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लिया है। 'आजतक' ने इस इंटरव्यू को चुनाव के दौरान लिए पीएम मोदी का अब तक का सबसे 'सॉलिड इंटरव्यू' बताया है। इस इंटरव्यू में पीएम मोदी ने विपक्ष के आरोपों से लेकर धर्म-आधारित आरक्षण तक और देश के तमाम सुलगते मुद्दों पर खुलकर बातचीत की है।

इंडिया टुडे ग्रुप के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल, मैनेजिंग एडिटर अंजना ओम कश्यप, मैनेजिंग एडिटर श्वेता सिंह और कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी ने पीएम मोदी से देश के तमाम मुद्दों पर बात की है।

इंडिया टुडे ग्रुप के न्यूज डॉयरेक्टर राहुल कंवल ने पीएम से पूछा कि जब वो गुजरात के सीएम थे तो इंटरव्यू का मौका देते थे, लेकिन पीएम पद संभालने के बाद न तो वो प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और उनके इंटरव्यू का मौका भी कम ही मिलता है।

इस सवाल पर पीएम मोदी ने कहा, “पहली बात ये है कि अगर इस चुनाव में सबसे ज्यादा मुझे कहीं देखेंगे तो 'आजतक' पर देखेंगे। मैंने तो कभी मना नहीं किया।”

पीएम मोदी ने आगे कहा, “हमारी मीडिया के बारे में ऐसा कल्चर बन गया है कि कुछ भी मत करो, बस इन्हें संभाल लो, अपनी बात बता दो तो देश में चल जाएगी। मुझे उस रास्ते पर नहीं जाना है। मुझे मेहनत करनी है, मुझे गरीब के घर तक जाना है। मैं भी विज्ञान भवन में फीते काटकर फोटो निकलवा सकता हूं। मैं वो नहीं करता हूं। मैं एक छोटी योजना के लिए झारखंड के एक छोटे से डिस्ट्रिक्ट में जाकर काम करता हूं। मैं एक नए वर्क कल्चर को लाया हूं। वो कल्चर मीडिया को अगर सही लगे तो प्रस्तुत करे, न लगे तो न करे।”

इंटरव्यू के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सालों पुराना एक वाकया याद किया। बताया कि जब वो गुजरात में थे, तब पब्लिक मीटिंग में पूछते थे- “ऐसा कार्यक्रम क्यों बनाया है, जिसमें कोई काले झंडे वाला नहीं दिखता है। दो-तीन काले झंडे वाले रखो तो कल अखबार में छपेगा कि मोदी जी आए थे, दस लोगों ने काले झंडे दिखाए। कम से कम लोगों को पता तो चलेगा कि मोदी जी यहां आए थे।”

पीएम ने कहा कि काले झंडे बिना सभा का कौन पूछेगा। उनके मुताबिक उन्होंने दस साल ऐसे कई भाषण गुजरात में दिए।

यहां देखिए पूरा इंटरव्यू:

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जल्द फिर शुरू होगा इंडियन रीडरशिप सर्वे: राकेश शर्मा, INS

'समाचार4मीडिया' के साथ बातचीत में इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी के प्रेजिडेंट राकेश शर्मा ने प्रिंट इंडस्ट्री के सामने आने वाली कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीकों पर चर्चा की

पंकज शर्मा by
Published - Thursday, 02 May, 2024
Last Modified:
Thursday, 02 May, 2024
RAKESHSHARMA78898784A

कोविड-19 (COVID-19) महामारी ने जहां भारत में प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री के लिए कठिन चुनौतियां पेश कीं, तो वहीं इसने नवाचार, अनुकूलन और लचीलेपन को भी उत्प्रेरित किया, जिससे विश्वसनीय पत्रकारिता और विविध राजस्व रणनीतियों पर नए सिरे से जोर देने के साथ एक बदलती हुई मीडिया के परिदृश्य का मार्ग प्रशस्त हुआ।

'समाचार4मीडिया' के साथ बातचीत में इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (INS) के प्रेजिडेंट राकेश शर्मा ने प्रिंट इंडस्ट्री के सामने आने वाली कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीकों पर चर्चा की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के चुनिंदा अंश :

2019 के बाद से इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) क्यों नहीं आयोजित किया गया है? क्या यह जल्द ही शुरू होगा?

कोरोना काल में 'इंडियन रीडरशिप सर्वे' (IRS) को टाल दिया गया था। लोग कोरोना वायरस के डर से सर्वेक्षकों को अपने घरों में आने नहीं दे रहे थे और अब कोरोना खत्म हुए लगभग साढ़े तीन से चार साल हो गए हैं। ऐसे में 'इंडियन रीडरशिप सर्वे' को फिर से शुरू करने के लिए IRS के बोर्ड की कई बैठकें हो रही हैं। मुझे बताया गया है, बहुत जल्द हम इसे दोबारा से शुरू करने जा रहे हैं।

आपको IRS का प्रेजिडेंट बने लगभग छह महीने हो गए हैं। आपकी नजर में इंडियन न्यूजपेपर इंडस्ट्री को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?

उद्योग जगत की सबसे बड़ी समस्या विज्ञापन का दबाव है। वॉल्यूम सूख रहा है, जो एक चुनौती है। 

अब तक, पाठकों को विज्ञापनदाताओं द्वारा सब्सिडी दी जाती रही है। अखबारों की प्रतियों को लागत मूल्य से काफी कम कीमत पर बेचा जा रहा है। केवल इसलिए क्योंकि अखबार विज्ञापन से होने वाले राजस्व से जीवित थे, जो कि संख्या में बहुत बड़ा था और वे पाठकों को सब्सिडी देने में सक्षम थे। लेकिन जब विज्ञापन मुद्रित पृष्ठों से दूर जा रहा है, तो इंडस्ट्री को राजस्व की दूसरी धारा के बारे में सोचना पड़ा है।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए क्या आपके पास कोई प्रस्तावित समाधान हैं?

यदि आप अमेरिका को लें तो वहां एक अखबार की कीमत लगभग दो डॉलर है। ब्रिटेन में यह डेढ़ पाउंड है। आप पूरा दक्षिण पूर्व एशिया को ले लीजिए, कहीं भी अखबार बीस रुपये से कम में नहीं मिलता। यह केवल भारत में ही है कि अखबार की कीमतें दो रुपये से लेकर पांच रुपये और छह रुपये तक होती हैं। बहुत कम समाचार पत्र अधिक कीमत पर बिकते हैं।

आज एक अखबार तैयार करने की लागत प्रति पृष्ठ चालीस पैसे है। अगर मुझे चालीस पन्नों का अखबार दिया जाए, तो इसका मतलब है कि उत्पादन की लागत लगभग सोलह रुपये है। ध्यान रहे, यह सिर्फ अखबार की लागत है और मैं इसे छह रुपये में बेच रहा हूं।

उस छह रुपये में से तीस प्रतिशत कमीशन के रूप में चला जाता है, जिसका मतलब है कि इसके बाद मेरे पास जो बचा वह केवल चार रुपये बीस पैसे हैं और यह चार रुपये बीस पैसा भी लॉजिस्टिक लागत, बिक्री लागत, अन्य खर्चों और अन्य कारणों से में चले जाते हैं। सबसे बढ़कर, समाचार पत्र पाठकों के लिए ऐसी योजनाएं शुरू कर रहे हैं जहां कुल कवर मूल्य का शुद्ध लाभ केवल दस प्रतिशत है। .

यदि किसी अखबार की कीमत पांच रुपये है। इसी में से सभी तरह की योजनाएं, सदस्यता योजनाएं, पाठक को दिए जाने वाले गिफ्ट शामिल हैं। इसलिए जब उत्पादन की लागत 10-16 रुपये होती है और अंत में अखबारों के पास लगभग कुछ भी नहीं बचता है, तो कोई प्रकाशन अधिक समय तक कैसे टिकेगा? विज्ञापनदाता एक पाठक को कैसे सब्सिडी देगा?

इसी कारण से, मैं जिस भी मीटिंग की अध्यक्षता कर रहा हूं, उसमें मैं कहता हूं कि यदि समाचार पत्रों को इंडस्ट्री में जीवित रहना है, तो सदस्यता मूल्य और कवर मूल्य पर बहुत गंभीरता से ध्यान देना होगा। 

क्या आपको नहीं लगता कि अखबार की कीमतें बढ़ने से पाठकों की संख्या में और गिरावट आएगी, यह देखते हुए कि प्रिंट किसी भी तरह से अपने पूर्व-कोविड स्तर तक नहीं पहुंच पाया है?

मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। 'द हिंदू' भारत में सबसे अधिक कीमत वाला अखबार है। क्या इसका प्रचलन नहीं है? इसने खुद को एक विशेष वर्ग के लिए इतना प्रासंगिक बना लिया है कि वह वर्ग इस अखबार को पढ़ना बंद नहीं करता है।

यदि इंडस्ट्री सर्वाइव करेगी, तो वह अपने पाठकों के साथ करेगी। यदि पाठक जाएगा, तो विज्ञापनदाता भी जाएगा। और यदि दोनों चले गए तो न्यूजपेपर इंडस्ट्री के पास बचेगा क्या? समग्र रूप से, हमें एक ऐसे समाधान के बारे में सोचना होगा, जहां हम पाठक को बनाए रख सकें और विज्ञापन की मात्रा बढ़ा सकें।

यदि समाचार पत्र अपनी सामग्री को प्रासंगिक और पाठक के लिए आवश्यक बना देते हैं, तो वे कभी नहीं जाएंगे।

अखबारी कागज की कीमतों पर 5% कस्टम ड्यूटी इंडस्ट्री के लिए एक और बड़ी चिंता का विषय रही है। इस पर आपकी क्या राय है?

मैं हाल ही में सूचना एवं प्रसारण सचिव से मिला और उनसे इस शुल्क को हटाने का अनुरोध किया। संजय जाजू ने मुझसे कहा कि वह इस अनुरोध को वित्त मंत्रालय को भेजेंगे।

आपने MIB के सामने और कौन सी मांगें रखी हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए?

मैंने उनसे रेट स्ट्रक्चर कमेटी रिपोर्ट पर भी गौर करने का अनुरोध किया है, जिसे पिछले कुछ वर्षों से अपडेट नहीं किया गया है। इंडस्ट्री को रेट में संशोधन की सख्त जरूरत है।

एक और बात जो मैंने सुझाई वह यह थी कि हम डिजिटल युग में हैं और सरकार को न केवल प्रिंट मीडिया के सर्कुलेशन पर बल्कि डिजिटल समाचार पत्रों के सर्कुलेशन पर भी CBC रेट तय करनी चाहिए।

एक डिजिटल पेपर पर लाखों की संख्या में लोगों का ध्यान जाता है, इसलिए उन लोगों द्वारा देखे जाने वाले विज्ञापनों पर विचार किया जाए। MIB ने कहा है कि वे इस पर गौर करेंगे कि वे इलेक्ट्रॉनिक व्युअरशिप का कैसे आकलन कर सकते हैं।

एक और चिंता जो मैंने उठाई है, वह यह है कि यदि अखबारों की कीमतों में वृद्धि की जाती है, लेकिन कुल बजट वही रहता है, तो इसका मेरे राजस्व आंकड़ों पर शायद ही कोई प्रभाव पड़े, इसलिए प्रिंट इंडस्ट्री के लिए बजट भी बढ़ाया जाए। 

सरकार डिजिटल न्यूज सब्सक्रिप्शन पर भी जीएसटी लागू करती है, लेकिन अखबारों पर कोई जीएसटी नहीं है। इसलिए उसे भी वापस ले लिया जाए।

हाल ही में अस्तित्व में लाए गए PRP बिल पर आपका क्या विचार है? क्या इसका कोई नकारात्मक पहलू है?

हम इस बिल का तहे दिल से स्वागत करते हैं। यह 150 साल पुराना बिल था, जिसे 2024 के नए बिल के साथ जोड़ा गया है।

सबसे अच्छी बात यह है कि प्रकाशकों को अपना नाम बनाने के लिए कई स्थानों पर जाने की जरूरत नहीं है। यह सब ऑनलाइन और 60 दिनों की विशिष्ट अवधि के भीतर किया जाएगा।

 इंडस्ट्री इस बात पर बंटी हुई है कि क्या वह प्रेस की स्वतंत्रता से समझौता करेगी, लेकिन हर संस्था, हर समाज स्वतंत्र है। आज मुझे लगता है कि प्रिंट इंडस्ट्री के हित में PRP अधिनियम में कुछ भी गलत नहीं है।

भविष्य के लिए न्यूजपेपर इंडस्ट्री को क्या बदलाव करने की जरूरत है?

बस एक बदलाव की जरूरत है। अपने अखबार को पाठक के लिए डिजिटल और प्रासंगिक बनाना चाहिए। पाठकों को अधिकतर जानकारी अखबार से पहले डिजिटल माध्यम से या टीवी के माध्यम से मिल जाती है।

आज अखबार महज जानकारी के लिए नहीं पढ़ा जाता। पाठक जानना चाहता है कि कोई खबर उसके जीवन, उसके देश के जीवन, उसके राज्य के जीवन पर क्या प्रभाव डालेगा। जब तक हम इस जानकारी के प्रति उनकी भूख शांत नहीं करेंगे, हम प्रासंगिक नहीं बनेंगे। 

माध्यम बदल जाएगा, लेकिन मीडिया नहीं बदलेगा। सूचना तंत्र यथावत रहेगा। हमें सूचना तंत्र में निरंतर सुधार करना होगा। हमें अपने सबसे बड़े घटक यानी मीडिया की जरूरतों, आकांक्षाओं, आवश्यकताओं को समझना होगा। 

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आज के दौर में दुनिया में नई संचार व्यवस्था की आवश्यकता है: उमेश उपाध्याय

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक उमेश उपाध्याय ने अपनी किताब ‘वेस्टर्न मीडिया नरेटिव्स ऑन इंडिया फ्रॉम गांधी टू मोदी’ से जुड़े तमाम पहलुओं को लेकर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है।

पंकज शर्मा by
Published - Monday, 29 April, 2024
Last Modified:
Monday, 29 April, 2024
Umesh Upadhyay

‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया’, ‘ऑल इंडिया रेडियो’, ‘दूरदर्शन’, ‘नेटवर्क18’ और ‘जी न्यूज’ जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में प्रमुख पदों पर अपनी जिम्मेदारी निभा चुके वरिष्ठ पत्रकार और लेखक उमेश उपाध्याय ने एक किताब ‘वेस्टर्न मीडिया नरेटिव्स ऑन इंडिया फ्रॉम गांधी टू मोदी’ (WESTERN MEDIA NARRATIVES ON INDIA FROM GANDHI TO MODI) लिखी है। इस किताब ने पिछले दिनों मार्केट में अपनी ‘दस्तक’ दे दी है। अंग्रेजी भाषा में लिखी गई इस किताब को ‘रूपा पब्लिकेशंस’ ने प्रकाशित किया है। इस किताब से जुड़े तमाम पहलुओं को लेकर उमेश उपाध्याय ने समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

सबसे पहले तो आप अपने बारे में बताएं कि आपका पत्रकार बनने और फिर लेखक बनने का अब तक का सफर कैसा रहा है?

देखिए, यात्रा पहले से तय नहीं होती है। मैंने अपनी पढ़ाई ‘जेएनयू’ से की। इसके बाद कुछ समय तक ‘दिल्ली विश्वविद्यालय‘ में पढ़ाया। फिर पत्रकारिता शुरू कर दी। पहले ‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया‘ (PTI) और फिर टीवी मीडिया में आ गए। जिस टॉपिक पर मैंने किताब लिखी है कि पश्चिमी मीडिया भारत को किस नजरिये से देखता है, यह मेरे मन में तब से था, जब मैं एम.फिल कर रहा था। इसके बाद तमाम ऐसी घटनाएं हुईं, जिसके बाद मुझे लगा कि यह सही समय है, जब इस पर पूरा शोध किया जाए और देखा जाए कि असल में स्थिति क्या है। तो यह पुस्तक उसी का परिणाम है। 

अपनी इस किताब के बारे में बताएं कि पब्लिशर कौन है और कितने चैप्टर अथवा खंड हैं? इसके अलावा यह किताब पाठकों के लिए कहां उपलब्ध है?

फिलहाल यह किताब अंग्रेजी भाषा में है। इसे रूपा पब्लिकेशंस ने पब्लिश किया है। इसमें एक ही खंड है। इस किताब को बुक स्टोर से खरीदने के अलावा ई-कॉमर्स वेबसाइट ‘एमेजॉन’ (Amazon) से भी ऑर्डर करके मंगाया जा सकता है।  

आपकी किताब में वेस्टर्न मीडिया के किस प्रकार के नरेटिव्स के बारे में बात की गई है और इन नरेटिव्स का भारतीय समाज और राजनीति पर क्या प्रभाव है?

यदि मैं अपनी किताब के बारे में एक वाक्य में बताना चाहूं तो यह colonization Of Minds यानी मानसिक दासता के बारे में है। इस किताब में बताया गया है कि भारत अथवा इस जैसे जो देश हैं, जिन्हें तीसरी दुनिया अथवा विकासशील समाज/देश कहा जाता है, उनमें साम्राज्यवाद के समाप्त होने के बावजूद किस तरह से मानसिक गुलामी लगातार जारी है। इस मानसिक गुलामी को आगे बढ़ाता है या यू कहें कि पल्लवित और पोषित करता है पश्चिम का मीडिया। दरसअल, पश्चिम के समाज में हमारे समाज को लेकर बराबरी का दर्जा देने की बात ही नहीं है। वो खुद को हमसे श्रेष्ठ समझते हैं, इसलिए इस तरह की स्थिति है। पश्चिम की इसी सोच को आगे बढ़ाने का एक टूल अथवा नरेटिव है पश्चिमी मीडिया। भारत के संदर्भ में मैं कह सकता हूं कि यह करीब दो शताब्दियों से ज्यादा समय से चला आ रहा है। यही इस किताब का सार है।   

जैसा कि किताब का शीर्षक है कि वेस्टर्न मीडिया नरेटिव्स ऑन इंडिया फ्रॉम गांधी टू मोदी। तो क्या आपका लगता है कि मोदी के शासन काल में भारत के प्रति वेस्टर्न मीडिया के नरेटिव्स में कुछ बदलाव आया है या सामान्य से शब्दों में कहें तो कुछ अंकुश लगा है?

मेरी नजर में कुछ बदलाव नहीं आया है। वेस्टर्न मीडिया का जैसा नरेटिव भारत को लेकर पहले था, वही अब भी है। इस किताब को लिखने में मुझे ढाई-तीन साल लगे हैं और मैंने तमाम शोध के बाद यह किताब लिखी है। इस आधार पर मैं अपनी बात को दावे के साथ कह सकता हूं। आप देखेंगे कि तब से लेकर अब तक प्रकरण बदल जाएंगे, घटनाएं बदल जाएंगी और वृतांत बदल जाएंगे, लेकिन भारत के प्रति पश्चिमी मीडिया के नरेटिव्स में किसी तरह का बदलाव देखने को नहीं मिलेगा।

जहां तक हम सभी ने देखा कि कोरोना काल के दौरान पश्चिमी मीडिया ने भारत की छवि धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और भारत को लेकर तमाम भ्रामक व नकारात्मक खबरें फैलाई गईं, जिसकी काफी आलोचना भी हुई थी, क्या उस तरह की बातों को भी इस किताब में जगह दी गई है?

बिल्कुल जगह दी गई है। यदि आप कोरोना की टाइमलाइन को देखेंगे तो जनवरी 2020 से कोविड के मामले आने शुरू हो गए थे। भारत में कोविड के आते-आते मार्च हो गया था। कोविड के कारण भारत में 24 मार्च 2020 में पहला लॉकडाउन लगा था, लेकिन जनवरी-फरवरी और मार्च के शुरुआती दौर की बात करें तो यूरोप के तमाम हिस्सों, खासकर इटली से बेतहाशा मौत की खबरें आने लगी थीं। वहां अस्पतालों के बाहर मरीजों की लंबी-लंबी लाइनें लगी थीं। भारत में उस समय कुछ सौ लोग ही कोविड से संक्रमित थे।

लेकिन, यदि आप मार्च के अंत के पश्चिमी मीडिया के नरेटिव को देखना शुरू करें तो 24 मार्च को लॉकडाउन लगने के बाद 27-28 मार्च को ही खबरें प्रकाशित होने लगती हैं कि भारत का डेटा सही नहीं है। उसी समय भारत में कोविड की स्थिति में क्या हो सकता है, ये भी लिखा जाने लगा। पुरानी घटनाओं का हवाला देते हुए पश्चिमी मीडिया द्वारा यह कहा जाने लगा कि भारत में यदि कोविड ने पैर पसारे तो इतने लोग मारे जाएंगे। यानी, पहले दिन से ही पश्चिमी मीडिया ने भारत के बारे में तमाम भ्रामक और अनुमानों के आधार पर खबरें चलानी शुरू कर दीं। इस किताब में पश्चिमी मीडिया के विभिन्न संस्थानों द्वारा प्रकाशित उन तमाम खबरों का सबूतों के साथ जिक्र किया गया है।

आपको क्या लगता है, क्या आने वाले समय में भारत को लेकर पश्चिमी मीडिया के नरेट्विस में सकारात्मक बदलाव आएगा? इसे लेकर किस तरह के कदम उठाए जाने की जरूरत है?

मुझे नहीं लगता कि भारत को लेकर पश्चिमी मीडिया अपने नरेटिव में बदलाव लाएगा, क्योंकि वो नहीं चाहते हैं कि दुनिया का पावर बैलेंस यानी शक्ति संतुलन गड़बड़ाए। हां, आप जितने सक्षम और सशक्त होते जाएंगे, ये नरेटिव और ज्यादा जोरदार होता जाएगा। भारत का और विरोध होता जाएगा। यदि उन्हें आपकी जरूरत पड़ेगी तो जरूर वो (पश्चिमी मीडिया) आपके सामने अच्छी-अच्छी बातें कर देंगे। अन्यथा मुझे लगता है कि यह नरेटिव और प्रखर होगा।

रही बात कि इसमें हम क्या कर सकते हैं, तो हमारा सिर्फ ये काम है कि पश्चिम के मीडिया से आने वाली प्रत्येक बात को ये न मानें कि ये अंतिम सत्य है। दूसरा, अपने आप पर विश्वास रखें। अपने स्रोतों को खोजें और देखें। पश्चिम के लोग हमारे बारे में क्या बताएंगे। उनके संस्थानों के दो-दो, चार-चार लोग ही यहां नियुक्त हैं। कोई ग्राउंड रिपोर्टिंग भी नहीं होती। ऐसे में जो लोग ग्राउंड रिपोर्टिंग करते हैं, हमें उन पर भरोसा करना होगा। इस किताब के अंत में मेरा कहना है कि दुनिया में एक नई संचार व्यवस्था की आवश्यकता है। न्यू वर्ल्ड इंफॉर्मेशन ऑर्डर (NWIO) की आवश्यकता है, जिसमें सभी चीजें सिर्फ पश्चिम मीडिया से न आएं। हम भी अपना कंटेंट क्रिएट करें। 

समाचार4मीडिया के साथ उमेश उपाध्याय की इस पूरी बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं।

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INS के अध्यक्ष राकेश शर्मा ने बताया, PRP विधेयक 2023 क्यों है जरूरी

चुनौतियों से जूझ रहे उद्योग पर इस विधेयक के संभावित प्रभाव को लेकर और अधिक जानकारी हासिल करने के लिए हमारी सहयोगी वेबसाइट 'एक्सचेंज4मीडिया' ने आईएनएस के अध्यक्ष राकेश शर्मा से बातचीत की।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Friday, 22 December, 2023
Last Modified:
Friday, 22 December, 2023
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लोकसभा में गुरुवार को प्रेस और पत्र-पत्रिका पंजीकरण विधेयक, 2023 (PRP) विधेयक 2023 पारित हो गया, जो 1867 के पुराने प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम से बदल दिया गया है, जिसने 1867 से देश में प्रिंट और प्रकाशन उद्योग के पंजीकरण को नियंत्रित किया। यह विधेयक पहले ही मानसून सत्र में राज्यसभा में पारित हो चुका है, लिहाजा विधेयक को कानून बनने के लिए अब राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार है। 

‘प्रेस एवं पत्र-पत्रिका पंजीकरण विधेयक, 2023’ के नए कानून में किसी भी कार्यालय में गए बिना ही ऑनलाइन प्रणाली के जरिए पत्र-पत्रिकाओं के शीर्षक आवंटन और पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल और समकालिक बना दिया गया है। इससे प्रेस रजिस्ट्रार जनरल को इस प्रक्रिया को काफी तेज करने में मदद मिलेगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि प्रकाशकों, विशेषकर छोटे और मध्यम प्रकाशकों को अपना प्रकाशन शुरू करने में किसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा।

सबसे जरूरी चीज यह है कि प्रकाशकों को अब जिला मजिस्ट्रेट या स्थानीय अधिकारियों के पास संबंधित घोषणा को प्रस्तुत करने और इस तरह की घोषणाओं को प्रमाणित कराने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अलावा, प्रिंटिंग प्रेस को भी इस तरह की कोई घोषणा प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके बजाय केवल एक सूचना ही पर्याप्त होगी। वर्तमान में इस पूरी प्रक्रिया में 8 चरण शामिल थे और इसमें काफी समय लगता था।

चुनौतियों से जूझ रहे उद्योग पर इस विधेयक के संभावित प्रभाव को लेकर और अधिक जानकारी हासिल करने के लिए हमारी सहयोगी वेबसाइट 'एक्सचेंज4मीडिया' ने  इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) के अध्यक्ष राकेश शर्मा से बातचीत की। शर्मा आईटीवी नेटवर्क और गुड मॉर्निंग मीडिया इंडिया के डायरेक्टर के तौर पर भी कार्यरत हैं।

बातचीत के प्रमुख अंश:

आईएनएस के नजरिए से आप हाल ही में पारित PRP विधेयक को किस तरह से देखते हैं, और क्या बता सकते हैं कि इसका समाचार पत्र उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ेगा? 

हम PRP विधेयक का तहे दिल से स्वागत करते हैं, जो समाचार पत्र प्रकाशकों को महत्वपूर्ण लाभ पहुंचाने के लिए है। पिछले कानून में राज्य और केंद्र सरकार के स्तर पर कई कार्यालय शामिल थे, जिससे देरी और बाधाएं उत्पन्न होती थीं। नए कानून से प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, सरकारी स्वीकृति को कम करने और सुचारू तौर पर संंचालित करने की सुविधा मिलने की उम्मीद है।

क्या आप मानते हैं कि ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया समाचार पत्र उद्योग के विकास में योगदान देगी, क्योंकि और अधिक प्लेयर इस क्षेत्र में प्रवेश करेंगे? वर्तमान में कितने समाचार पत्र पंजीकृत हैं और आप किस तरह की ग्रोथ की उम्मीद करते हैं?

वर्तमान में भारत में 1.5 लाख समाचार पत्र पंजीकृत हैं। हालांकि मैं अनुमानित वृद्धि का आंकड़ा नहीं दे सकता, लेकिन सुव्यवस्थित ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया से व्यापार करने में और आसानी होने की उम्मीद है। समाचार पत्र उद्योग अब आगे बढ़ने के लिए तैयार है।

नए विधेयक में जिलाधिकारी की शक्ति को समाप्त करने के साथ, क्या आपको लगता है कि यह समाचार पत्रों की गुणवत्ता से समझौता है, क्योंकि इससे किसी को भी पंजीकरण करने और प्रकाशन शुरू करने की अनुमति मिल सकती है?

नहीं, जिलाधिकारी और पुलिस प्रमुखों की मंजूरी को हटाना एक सकारात्मक कदम है। उनकी संलिप्तता लालफीताशाही के अलावा और कुछ नहीं थी। नए कानून का उद्देश्य लालफीताशाही को कम करना और प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना है। पूरी प्रक्रिया, जिसमें पहले एक वर्ष से अधिक का समय लगता था, अब 60 दिनों में समाप्त होने की उम्मीद है। यदि कोई मौजूदा स्वामित्व पंजीकृत करने का प्रयास करता है या गलत दस्तावेज प्रदान करता है, तो उनका पंजीकरण अस्वीकार कर दिया जाएगा या रद्द कर दिया जाएगा। 

नए विधेयक में उल्लंघनों के लिए ज्यादा से ज्यादा छह महीने तक की जेल की सजा का प्रावधान है, जबकि पिछले कानून में मामूली अपराधों के लिए भी कारावास की सजा होती थी। क्या आपको यह प्रावधान कमजोर लगता है और क्या कोई जोखिम दिखता है?

ब्रिटिश राज की विरासत, 1867 के अधिनियम ने भारी जुर्माने और इसके साथ ही प्रेस पर पूर्ण नियंत्रण लागू था। फर्जी खबरों से निपटने के लिए हमारे पास पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं। बड़े उल्लंघनों के लिए जेल की सजा का प्रावधान है और  छोटे अपराधों के लिए कारावास का सहारा लिए बिना ही जवाबदेही तय करना ही एक महत्वपूर्ण उपाय  है।

आईएनएस का अगला कदम क्या है और आप नए कानून के बारे में समाज, विशेषकर संभावित प्रकाशकों को कैसे शिक्षित करने की योजना बना रहे हैं?

हम अपनी होने वाली बोर्ड बैठक में कानून के हर प्रावधान की गहन जांच करेंगे और इसके फायदे व नुकसान दोनों पर चर्चा करेंगे। हम समाज और संभावित प्रकाशकों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए मीडिया से बात कर रहे हैं।

आपने इस विधेयक के केवल फायदों के बारे में ही बात की है। क्या इसमें कोई खामियां हैं?

फिलहाल मुझे इस बिल के सकारात्मक पहलू ही नजर आ रहे हैं। हालांकि, हमारी बोर्ड बैठक में विचार-विमर्श के दौरान, कुछ सदस्य संभावित कमियों की पहचान कर सकते हैं। देखिए, कानून के नियम अभी बनने बाकी हैं और सरकार इस प्रक्रिया में आईएनएस को भी शामिल करेगी। नियम-निर्माण चरण के दौरान किसी भी मुद्दे या चिंता का समाधान किया जा सकता है। 

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