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दैनिक भास्‍कर के डिप्‍टी MD पवन अग्रवाल से खास बातचीत

हाल ही में नई दिल्‍ली से करीब पचास किलोमीटर दूर गुरुग्राम के सोहना कस्‍बे में दमदमा झील के पास डीबी डिजिटल की टीम एक रिसॉर्ट में एकत्रित हुई थी...

समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago

समाचार4मी‍डिया ब्यूरो ।।

हाल ही में नई दिल्‍ली से करीब पचास किलोमीटर दूर गुरुग्राम के सोहना कस्‍बे में दमदमा झील के पास डीबी डिजिटल की टीम एक रिसॉर्ट में एकत्रित हुई थी। इसका उद्देश्‍य न सिर्फ हाल ही में खत्‍म हुए वित्‍तीय वर्ष के बारे में रिव्‍यू करना था बल्कि कर्मचारियों को और बेहतर करने के लिए प्रेरित भी करना था। इन चीजों के अलावाटीम को यह भी बताया गया कि कैसे ‘रिपब्लिक टीवी’ के संस्‍थापक अरनब गोस्‍वामी की तरह सिर्फ नंबर वन की दिशा में प्रयास करना चाहिए।


कार्यक्रम में डीबी डिजिटल के सीईओ ज्ञान गुप्‍ता ने पॉवर प्‍वाइंट प्रजेंटेशन की स्‍लाइड द्वारा ग्रुप की ग्रोथ के साथ ही डीबी डिजिटल की विभिन्‍न वेबसाइट के पेज व्‍यूज के बारे में बताया। उन्‍होंने घोषणा की कि वित्‍तीय वर्ष 2016-17 में डीबी डिजिटल अपनी टॉपलाइन को 55 करोड़ रुपये बढ़ाने में सफल रहा है।


ज्ञान गुप्‍ता ने बताया, ‘रेवेन्‍यू ग्रोथ कम रही है लेकिन यह भी कहा कि रेवेन्‍यू के मामले में 21 प्रतिशत की वृद्धि संस्‍थान द्वारा तय किए गए लक्ष्‍य से अधिक थी। डीबी कॉर्प लिमिटेड के कुल रेवेन्‍यू में डिजिटल का रेवेन्‍यू अभी भी बहुत कम है।’  

हालांकि वित्‍तीय वर्ष 2017 की पहली तीन तिमाही में कंपनी का अलेखित समेकित (unaudited consolidated) रिजल्‍ट देखा जाए तो कंपनी ने 1,740.89 करोड़ रुपये का रेवेन्‍यू हासिल किया है। इसमें 90 प्रतिशत से अधिक रेवेन्‍यू (1,594.50) करोड़ रुपये डीबी के प्रिंट ऑपरेशंस से आया है। कंपनी का प्रिंट ऑपरेशंस इसके रेडियोडिजिटल और इवेंट से काफी ज्‍यादा है।

वास्‍तव मेंप्रिंट से प्राप्‍त रेवेन्‍यू इसके डिजिटल रेवेन्‍यू से लगभग 40 गुना ज्‍यादा रहा। ऐसे माहौल में जब कई लोग प्रिंट इंडस्‍ट्री के खात्‍मे की संभावना जता रहे हैंयह सवाल उठता है कि प्रिंट की यह ग्रोथ कितनी टिकाऊ है।

दैनिक भास्‍कर के चेयरमैन रहे रमेश चंद्र अग्रवाल (जिनका हाल ही में निधन हो गया है) के सबसे छोटे बेटे और दैनिक भास्‍कर ग्रुप के डिप्‍टी मैनेजिंग डायरेक्‍टर पवन अग्रवाल ने हमारी सहयोगी मैगजीन ‘IMPACT’ से विभिन्‍न मुद्दों पर खुलकर बातचीत की। इस दौरान उन्‍होंने ग्रुप के बिजनेस के साथ-साथ डिजिटलरेडियो और प्रिंट के एजेंडे को लेकर बेबाकी से अपनी राय व्‍यक्‍त की।

प्रिंट लगातार आगे बढ़ेगा

भारत में प्रिंट न्‍यूज इंडस्‍ट्री के भविष्‍य को लेकर पवन अग्रवाल काफी कॉन्फिडेंट हैं। पश्चिम के समाचार पत्रों से तुलना करते हुए उन्‍होंने कहा कि हमारे देश में अखबार ‘होम डिलीवर्ड’ और ‘हेविली लोकल’ हैं। पवन अग्रवाल ने कहा, ‘मेरा मानना है कि इससे पश्चिम में प्रिंट की प्रगति और भारतीय उपमहाद्वीप में प्रिंट की प्रगति के अंतर को साफ समझा जा सकता है। पश्चिम की तुलना में भारत में प्रिंट अभी भी काफी टिकाऊ है।’ 

उन्‍होंने यह तो स्‍वीकारा कि ग्रुप का नॉन प्रिंट बिजनेस आने वाले समय में और बढ़ेगा और छोटे बेस के बावजूद इसका ग्रोथ रेट काफी ज्‍यादा रहेगा लेकिन उन्‍होंने इस बात को मानने से इनकार कर दिया कि यह प्रिंट के खत्‍म होने का संकेत है।

पवन अग्रवाल ने कहा कि इसके विपरीत अखबारो का सर्कुलेशन और रीडरशिप आगे की दिशा में बढ़ रही है ऐसे में अभी यहां प्रिंट लंबे समय तक रहेगा। इसके अलावा वे यह भी महसूस करते हैं कि विभिन्‍न ऐडवर्टाइजर्स अपने टार्गेट ऑडियंस तक पहुंचने के लिए अखबारों में काफी पैसा लगा रहे हैं।                                                        

पवन अग्रवाल ने कहा, ‘नोटबंदी (demonetization) के कारण देश में आई मंदी के बावजूद दैनिक भास्‍कर ग्रुप भविष्‍य में ग्रोथ करेगाइसके लिए ग्रुप ने कुछ क्षेत्रों की पहचान कर ली है।

अपने गढ़ मध्‍यप्रदेश से शुरुआत करने वाला यह अखबारी ग्रुप इतने वर्षों में राजस्‍थानपंजाबझारखंड और बिहार समेत 14 राज्‍यों में पैर पसार चुका है। इस ग्रुप के तहत सात अखबारों के 62 संस्‍करण (editions) प्रकाशित होते हैं।

इस बारे में पवन अग्रवाल का कहना है, ‘इन राज्‍यों में हालांकि हमारी पहुंच 100 प्रतिशत नहीं है। अभी भी सभी व्‍यक्ति अखबार नहीं पढ़ते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि अगले चरण में या यू कहें कि आने वाले तीन से पांच सालों में आपको इन राज्‍यों में हमारी रीडरशिप और सर्कुलेशन में काफी ग्रोथ देखने को मिलेगी।’ उन्‍होंने कहा कि दैनिक भास्‍कर किसी भी सैचुरेटेड बाजार (saturated market) में ऑपरेट नहीं करता है। भारत की अधिकांश आबादी अभी भी गांवों में रहती है और मुश्किल से 20 से 25 प्रतिशत शहरीकरण हो पाया है। माना जाता है कि शहरीकरण में बढ़ावे के साथ ही लोगों की आकांक्षाओं में भी बढ़ोतरी होगी और वे घरकार अथवा न्‍यूजपेपर खरीदने में भी रुचि दिखाएंगे।

पवन अग्रवाल का कहना है, ‘डीबी कॉर्प मार्केट में ऐसे लोगों की काफी संख्‍या है जो समृद्ध हो रहे हैं और ये लोग अगले चरण में भास्‍कर की ग्रोथ को भी आगे बढ़ाने में सहायक होंगे।’ 

डिजिटल को कमजोर न समझें (DIGITAL IS NOT ABOUT BOTTOMLINE)

हालांकि डीबी कॉर्प ने अपने इंटरनेट बिजनेस की बॉटमलाइन डिजिटल के लिए काफी बेहतर प्‍लान तैयार किए हैं लेकिन यह अभी भी ग्रीन जोन से काफी दूर है। 31 दिसंबर 2016 तक डिजिटल बिजनेस को 17.7 करोड़ रुपये का घाटा हुआ लेकिन मैनेजमेंट इससे ज्‍यादा चिंतित नहीं है और डिजिटल एवं रेडियो बिजनेस को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है।

पवन अग्रवाल ने कहा कि आप डिजिटल बिजनेस को बॉटमलाइन पर नहीं कह सकते हैं क्‍योंकि देश में अभी भी इंटरनेट की उपलब्‍धता काफी कम यानी सिर्फ 25 से 30 प्रतिशत है। ऐसे में लोगों में इंटरनेट पर पढ़ने की आदत डालना काफी मुश्किल काम है।

अग्रवाल ने कहा, ‘हम अभी इसमें प्रॉफिट नहीं देख रहे हैं। हमारा यह अभी उद्देश्य भी नहीं है, लेकिन हम तो यह देख रहे हैं कि हम अपना यूजर बेस कैसे बढ़ाते हैं और कैसे हम अपनी स्टिकनेस बना पाते हैं।’ अग्रवाल ने इस बात पर भी जोर डाला कि वे अगले कुछ वर्षों में इसमें निवेश करते रहेंगे। अग्रवाल के अनुसारग्रुप का मानना है कि यदि एक बार अच्‍छे ऑडियंस आपसे जुड जाएं तो उनके पीछे प्राफिट अपने आप आता है।

पवन अग्रवाल ने कहा, ‘अन्‍य बड़े समाचार पत्र प्रतिष्‍ठानों की तरह दैनिक भास्‍कर भी ‘पेवॉल’ (paywall) के साथ एक्‍सपेरिमेंट करने का इच्‍छुक नहीं है। भारतीय अखबारों में ‘बिजनेस स्‍टैंडर्ड्स ने ही सिर्फ अभूतपूर्व कदम उठाया है और अपने एक्‍सक्‍लूसिव कंटेंट को पेवॉल के दायरे में रखा है। कुछ अन्‍य न्‍यूज आर्गनाइजेशन द्वारा अभी यह किया जाना बाकी है। भारतीय पब्लिशर्स आखिरकार पेवॉल को अपनाएंगे ही।

अग्रवाल ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि भारत में पब्लिशर्स सिर्फ यह कहकर कि मैं अपने कंटेंट को ब्‍लॉक करना चाहता हूंपेवॉल को लागू कर सकते हैं। इसके लिए पाठकों की इच्‍छा होनी चाहिए कि वह कंटेंट के लिए भुगतान करें। नहीं तो यूजर उस तरह के कंटेंट से परिचित नहीं हो पाएगाजिसे आप उपलब्‍ध कराते हैं।

पश्चिम के पब्लिशर्स के बारे में जो पहले ही पेवॉल को निर्धारित कर चुके हैंपवन अग्रवाल का कहना है कि उन्‍होंने बहुत ही बेहतर कंटेंट तैयार करने के बाद यह काम किया है जबकि भारतीयों को अभी उन जैसा करने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है।

उन्‍होंने कहा कि अपनी मजबूत टीम के द्वारा दैनिक भास्‍कर ग्रुप अपने पाठकों को विभिन्‍न कैटेगरी जैसे- फूडफिटनेसहेल्‍थबॉलिवुड आदि में महत्‍वपूर्ण (valuable) कंटेंट उपलब्‍ध कराने की दिशा में लगातार प्रयास कर रहा है। अग्रवाल के अनुसारस्‍पेस की कमी के कारण ये सब्‍जेक्‍ट कई बार छपने से रह जाते हैं लेकिन डिजिटल में ऐसा नहीं होता है। यही कारण है कि डीबी डिजिटल अपने 80 प्रतिशत डिजिटल कंटेंट के ऑरिजिनल होने का दावा करता है और यह प्रिंट से अलग है। 

डिजिटल वर्ल्‍ड में पब्लिशर्स के सामने एक और बड़ी चुनौती यह है कि इसे सोशल नेटवर्क्‍स और सर्च इं‍जन के भरोसे रहना पड़ता है।

इंटरनेट पर बल्‍क एडवर्टाइजिंग रेवेन्‍यू के अलावा सोशल नेटवर्क्‍स जैसे फेसबुक ऑनलाइन ट्रैफिक पर कड़ी कमांड रखती हैं। न्‍यूज वेबसाइट को ज्‍यादातर दर्शक सोशल मीडिया के द्वारा मिलते हैं। डीबी डिजिटल का 50 प्रतिशत से ज्‍यादा ट्रैफिक वहां से आता हैजहां पर प्रिंट मौजूद नहीं है। अग्रवाल के अनुसारअपने कोर मार्केट से हटकर डीबी कॉर्प को आगे बढ़ाने में सोशल मीडिया सकारात्‍मक भूमिका निभा रहा है।

डायरेक्‍ट ट्रैफिक और सोशल ट्रैफिक में अंतर का उल्‍लेख करते हुए पवन अग्रवाल ने कहा कि जब सोशल मीडिया पर लोग हमारा कंटेंट तलाश करते हैं तो वे हमारे द्वारा तैयार किए गए कंटेंट को काफी पसंद करते हैं और फिर सीधे हमारे प्‍लेटफार्म का इस्‍तेमाल करना शुरू कर देते हैं। हमें इस बात की काफी खुशी है कि सोशल मीडिया से हमें अपने 50 प्रतिशत उन ऑडियंस से जुड़ने में मदद मिल रही है जो हमारे ब्रैंड के बारे में नहीं जानते हैं। 

डिजिटल मीडियम के समर्थक होने के नाते अग्रवाल इसे ‘ओपन प्‍लेटफार्म’ कहते हैंजहां पर डिजिटल जर्नलिज्‍म स्‍टार्ट-अप्‍स पारंपरिक मीडिया जैसे दैनिक भास्‍कर को चुनौती दे सकते हैं। इंग्लिश न्‍यूज के क्षेत्र में ‘स्‍क्रॉल’ और ‘द वॉयर’ की मौजूदगी ने मेनस्‍ट्रीम मीडिया को पाठ पढ़ाने का काम किया है। अग्रवाल के अनुसारऐसे स्‍टार्ट-अप्‍स उनकी कंपनी को कुछ नया करने के लिए प्रेरित करते हैं लेकिन स्‍टार्ट-अप्‍स के सामने पारंपरिक मीडिया से मैच करने की चुनौती होती है।

हालांकि देश में डिजिटल न्‍यूज स्‍पेस का काफी तेजी से विस्‍तार हुआ है लेकिन अभी तक इसको लेकर दिशा-निर्देश तय नहीं किए गए हैं। अभी भी यह रूपष्‍ट नहीं है कि डिजिटल न्‍यूज का कार्यक्षेत्र मिनिस्‍ट्री ऑफ इनफोर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग के तहत आता है या मिनिस्‍ट्री ऑफ इलेक्‍ट्रोनिक्‍स एंड इनफोर्मेशन टेक्‍नोलॉजी के तहत आता है। इसके अलावा ट्रोलिंग (trolling) की समस्‍या भी बनी हुई हैजिसके तहत महिला पत्रकारों को कई तरह की धमकी दी गई है और रवीश कुमार जैसे पत्रकारों चुप बैठना पड़ रहा हैं।

पवन अग्रवाल का मानना है कि इस तरह की चीजें माध्‍यम का हिस्‍सा हैं। सब्‍जी मंडी का उदाहरण देते हुए उन्‍होंने का कि वहां पर शोरशराबे को रोकना असंभव होत है। लेकिन एक देश के रूप में हमें अपने आपको बेहतर ढंग से प्रस्‍तुत करना सीखना होगा। हमें देश को विकसित करना होगा। उन्‍होंने डिजिटल को नियंत्रित करने के लिए एक सिस्‍टम बनाने की बात पर कहा कि आप पब्लिशर को तो कंट्रोल कर लेंगे लेकिन लोग क्‍या लिखते हैंउन्‍हें आप किस तरह कंट्रोल करेंगे।

रेडियो में हम लोकल प्‍लेयर बने रहेंगे (WE’LL REMAIN A LOCAL PLAYER IN RADIO)

मल्‍टीमीडिया प्‍लेयर होने के नाते दैनिक भास्‍कर की रेडियो सेक्‍टर में भी अच्‍छी पकड़ है। 94.3 माय एफएम (94.3 MY FM) के द्वारा ग्रुप की सात राज्‍यों के 28 शहरों तक पहुंच है।

यदि वित्‍तीय वर्ष 2017 की बात करें तो भास्‍कर ने अप्रैल से दिसंबर 2016 के बीच नौ महीने के समय में अपने रेडियो बिजनेस से लगभग 100 करोड़ रुपये कमाए हैं।

अग्रवाल ने माना, ‘रेडियो बिजनेस लोकल हैहमारी यूएसपी लोकल है। हम जिन शहरों में भी हैंवहां हमारा वर्चस्‍व है। हम लोकल शहरों के लिए काम कर रहे हैं न कि नेशनल के लिए। भविष्‍य में इस रणनीति को बदलने की फिलहाल कोई योजना नहीं है।

माय एफएम’ अभी टियर टू (Tier II) और टियर थ्री (Tier III) शहरों में काम कर रहा है। प्रत्‍येक मार्केट के लिए भाषा और प्रोग्रामिंग के अनुसार रेडियो स्‍टेशनों को कस्‍टमाइज करना काफी बड़ी चुनौती बनी है। इसके अलावा दूसरी चिंता ऐडवर्टाइजर्स की है।

अग्रवाल का कहना है, ‘ऐसे लोकल ऐडवर्टाइजर्स को हम कैसे डेवलप करते हैं जो प्रिंट में मौजूद नहीं हैं। हमारे कई ऐसे ऐडवर्टाइजर्स भी हैं जो प्रिंट में ऐडवर्टाइजिंग नहीं करते हैं। वे सभी उस कैटेगरी से आए हैं जो प्रिंट फ्रेंडली नहीं है।’ लेकिन इसकी व्‍यवहार्यता (viability) और लागत (costs involved) के कारण ये क्‍लाइंट्स इस माध्‍यम को पसंद करते हैं। सरकार ने सुरक्षा को खतरा बताते हुए जहां प्राइवेट रेडियो पर न्‍यूज प्रसारण की इजाजत नहीं दी है लेकिन दैनिक भास्‍कर ग्रुप को उम्‍मीद है कि आगे चलकर इस तरह की समस्‍या नहीं होगी और इस बारे में संबंधित अधिकारियों के साथ बातचीत चल रही है।

अग्रवाल का कहना है, ‘फिलहाल इसमें समय लग रहा है क्‍योंकि सरकार को निर्णय लेना है। न्‍यूज से इस मीडियम को निश्चित रूप से तेजी मिलेगी।

दैनिक भास्‍कर’ के प्रतिद्वंद्वी अखबार ‘राजस्‍थान पत्रिका’ ने ‘पत्रिका टीवी’ के द्वारा हाल ही में टेलिविजन की दुनिया में कदम रखा है। लेकिन भास्‍कर की इस तरह की कोई योजना नहीं है।

पवन अग्रवाल का कहना है, ‘टीवी के लिए हमारी फिलहाल ऐसी कोई योजना नहीं है।’ जैसे-जैसे स्‍मार्टफोन का इस्‍तेमाल बढ़ रहा हैअग्रवाल का अनुमान है कि लोग टीवी के सामने ज्‍यादा देर तक नहीं बैठेंगे। इसके अलावा उनकी व्‍युअरशिप ऐंटरटेनमें चैनलों और धारावाहिकों तक सीमित होगी। अमेरिका का उदाहरण देते हुए अग्रवाल ने कहा कि वहां ऐंटरटेनमेंट शो भी स्‍मार्टफोन की जद में आ गए हैं। उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि भारत में यह ट्रेंड पांच-छह साल बाद आएगा जब टेलिविजन का पूरा विडियो मोबाइल फोन पर भी देखा जाने लगेगा और इस पर काम चल रहा है।

अपने भाई सुधीर अग्रवाल और गिरीश अग्रवाल के साथ मिलकर पवन अग्रवाल इतने बड़े मीडिया साम्राज्‍य को संभाले हुए हैं। हालांकि मीडिया आलोचक मीडिया के क्षेत्र में इस एकाधिकार की आलोचना करते हैं लेकिन पवन अग्रवाल इसे ज्‍यादा बड़ी समस्‍या नहीं मानते हैं।

उनका कहना है, ‘ज्‍यादा लोगों के पास टेलिविजनन्‍यूजपेपर और दूसरे स्‍टेशनों का स्‍वामित्‍व नहीं है’ और यदि उन्‍होंने ऐसा किया है तो बड़ा सवाल यह था कि क्‍या उन्‍होंने इसका दुरुपयोग किया। बाजार की बहुलता (pluralism) को सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना करते हुए उन्‍होंन इस बात पर नाखुशी जताई कि देश में एक व्‍यक्ति 15 प्रतिशत से ज्‍यादा रेडियो स्‍टेशनों का स्‍वामित्‍व नहीं रख सकता है।

पॉवर के साथ बड़़ी जिम्‍मेदारी भी आती है और प्रमुख मीडिया प्‍लेयर होने के नाते दैनिक भास्‍कर इस चीज को समझता है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान दैनिक जागरण ने एग्जिट पोल प्रकाशित कर दिया और भारतीय जनता पार्टी को विजेता के रूप में शो किया था। अखबार के ऑनलाइन एडिटर शेखर त्रिपाठी को इस मामले में गिरफ्तार भी किया गया था। इस बारे में पवन अग्रवाल ने ज्‍यादा कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।  अग्रवाल ने हिन्‍दी भाषी मीडिया राइट विंग (right wing) की ओर मुड़ जाती है जैसे परसेप्शन पर कुछ भी कहने से इंकार करते हुए इतना कहा, ‘मैं हिन्‍दी मीडिया के बारे में बात नहीं कर सकता। मैं सिर्फ भास्‍कर के बारे में बात कर सकता हूं। भास्‍कर हमेशा पाठकों का पक्ष लेता है। हमार काम लोगों के सामने सही सूचना और सही तस्‍वीर रखना है न कि उस पर अपना स्‍टैंड लेना।

देश में प्रिंट न्‍यूज इंडस्‍ट्री विज्ञापन खर्च (ad spends) के महत्‍वपूर्ण भाग को अपनी ओर आकर्षित  हुई हैदैनिक भास्‍कर जैसे पब्लिशर्स की ओर भी ऐडवर्टाइजर्स का झुकाव कम नहीं हो रहा है। लेकिन यदि प्रिंट से हटकर देखें तो वे रेडियो और डिजिटल बिजनेस में भी आ गए हैं लेकिन सफलता हासिल करने के लिए इन वेंचर्स को बड़े अंतर से बढ़ाकर लाभप्रदता बनाए जाने की जरूरत है।



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