होम / साक्षात्कार / इंडिया टुडे का बदला रंग-रूप, प्रधान संपादक राज चेंगप्पा ने बताई इस बदलाव की वजह...

इंडिया टुडे का बदला रंग-रूप, प्रधान संपादक राज चेंगप्पा ने बताई इस बदलाव की वजह...

समाचार4मी‍डिया ब्यूरो ।। ‘इंडिया टुडे ग्रुप’ (India Today Group) ग्रुप के तहत प्रकाशित हो

समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago

समाचार4मी‍डिया ब्यूरो ।।

‘इंडिया टुडे ग्रुप’ (India Today Group) ग्रुप के तहत प्रकाशित होने वाली 'इंडिया टुडे' मैगजीन अब नए रंग-रूप में पाठकों के सामने है। मैगजीन के फॉर्मेट (Format) को बदलने की जरूरत क्‍यों पड़ी और पाठकों को किस तरह यह अपने से जोड़े रखेगी तथा आने वाले समय में यह कवायद कितनी सफल होगी, इस बारे में इंडिया टुडे ग्रुप के एडिटोरियल डायरेक्‍टर (पब्लिशिंग) राज चेंगप्‍पा का कहना है कि इंडिया टुडे पत्रकारिता जगत का जाना-माना नाम है। उनका मानना है कि प्रिंट की रीडरशिप में कमी होने के बावजूद इंडिया टुडे ग्रुप का वही रुतबा बरकरार है और यह लगातार आगे बढ़ रहा है।

अपने रीडरशिप ट्रेंड को बरकरार रखने के लिए ‘इंडिया टुडे’ द्वारा उठाए गए इस कदम के बारे में हमने राज चेंगप्‍पा से बातचीत की। प्रस्‍तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

इंडिया टुडे के इस नए फॉर्मेट के पीछे क्‍या कारण था और इसका विचार कैसे आया ?

मेरा मानना है कि आज के प्रतिस्‍पर्द्धी युग में जब आपके पास सूचनाओं का अपार भंडार है और सभी का अपना महत्‍व है तो किसी भी पब्लिकेशन को नियमित रूप से उसके साज-सज्‍जा अथवा रूप-रंग के बारे में सोचना होगा ताकि वह अन्‍य तरह के बाहरी दबावों से निपट सके। पूर्व में टेलिविजन जैसे प्‍लेटफार्म आने और उसके बाद टेलिविजन की खबरों पर दैनिक अखबारों की प्रतिक्रिया के फलस्‍वरूप इंडिया टुडे भी इस तरह की चुनौतियों से जूझ चुका है। अब अखबार हमारी तरह भूमिका निभा रहे थे। विवेचनात्‍मक और विश्‍लेषणात्‍मक विस्‍तार के साथ ज्‍यादा फीचर्स भी दे रहे थे। इसके अलावा उनके पास पेज भी ज्‍यादा थे। ऐसे में वे हमें कई मुद्दों पर पीछे छोड़ सकते थे इसलिए उस समय हमारे पास काफी दबाव था और समय की नजाकत को देखते हुए हमने भी काफी बदलाव किया। इसके बाद इंटरनेट ने भी काफी हलचल मचाई और इसने इतनी सूचनाओं के भंडार खोल दिए जिसके बारे में लोगों ने कभी नहीं सोचा था। किसी भी समय, कहीं पर भी आप न्‍यूज पा सकते थे। इसलिए आपको न तो अखबार पढ़ने की और न ही टेलिविजन देखने की जरूरत थी। आप बस अपने मोबाइल पर उंगली चलाते जाइऐ और मनचाही सूचनाओं अथवा न्‍यूज आपकी पहुंच में आसानी से होने लगी। फिर चाहे व आपके शहर का मामला हो चाहे उससे लाखों किलोमीटर दूर किसी अन्‍य देश का, न्‍यूज के लिए आपको अखबार और टीवी पर निभर्र रहने की जरूरत खत्‍म हो गई।

इन सबके बीच इंडिया टुडे जैसी मैगजीन कहां फिट बैठती है और कैसे हम नई जरूरतों को पूरा करने के लिए काम करते हैं, यह बड़ी बात है। हम पर टेलिविजन, अखबार और अब इंटरनेट के आ जाने से काफी दबाव आ गया है। ये दबाव हम पर हावी इसलिए भी हैं कि जब मार्केट में इतनी सारे ऑप्‍शंस हैं तो लोग फिर इंडिया टुडे को क्‍यों पढ़ें ? यह एक ऐसा सवाल है जो अक्‍सर उठता है और इस बारे में लगातार बात होती है। हमने इस बारे में सोच विचारकर निर्णय लिया कि हमें अपनी कोर वैल्‍यू (core values) को मजबूत बनाना होगा। जैसा के सभी जानते ही हैं कि हम हमेशा से काफी भरोसेमंद (credible) रहे हैं। हमने स्‍पष्‍टवादिता (clarity) और प्रासंगिकता (relevance) का समावेश किया और अपनी इन्‍हीं तीन कोर वैल्‍यू के लिए इंडिया टुडे को आज जाना जाता है।

क्‍या आप हमें इसमें हुए परिवर्तन के बारे में विस्‍तार से बता सकते हैं?

हमारी खासियत है कि हम सबसे पहले किसी खास खबर को उठाते हैं और उसके बारे में विस्‍तार से जानकारी जुटाते हैं, और जब यह खबर पूरी तरह तैयार हो जाती है तो इसे अच्‍छे से लिखा जाता है और इसे बढ़िया विजुअल और ग्राफिक्‍स के साथ पेश करते हैं। हम अपनी स्‍टोरी को काफी बेहतर तरीके से पेश करना पसंद करते हैं। हालांकि अब काफी चीजें बदल गई हैं और चारों ओर उथल-पुथल सी मची हुई है ऐसे में चीजें हमारे मनमुताबिक नहीं हो पा रही थीं। इसलिए हमने इस दिशा में काम किया और इंडिया टुडे नए रूप-रंग में लेकर आए, जो आपके सामने है। हमने इसकी कोर वैल्‍यू वही रखी है जो थी। आजकल इंटरनेट पर जो भी सामग्री दिखाई देती है, उसमें से अधिकांश कहीं न कहीं से कट और पेस्‍ट (cookie-cutter approach) की हुई होती है। लेकिन जब आप किसी मैगजीन को पढ़ने के लिए उठाते हैं तो उसका अपना ही आनंद होता है। हेडलाइन से उस स्‍टोरी के बारे में पता चलता है। फोटोग्राफ भी आपको उस स्‍टोरी के बारे में बताते हैं। आर्टिकल का पहला पैराग्राफ आपको उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करता है। उसका प्रजेंटेशन भी आपको लुभाता है और इन्‍हीं चार-पांच पेजों में आपको पर्याप्‍त सामग्री मिल जाती है। जैसा कि अखबार में होता है कि लोग उसे उठाते हैं और पढ़ने के बाद बंद करके रख देते हैं लेकिन हमें लगा कि हमें इससे कुछ अलग हटकर करना चाहिए ताकि हम कह सकें यह कई मायनों में अलग हटकर है और लोग मैगजीन को संभालकर रखें।

आजकल इंटरनेट का जमाना है और इस पर तमाम सूचनाएं मौजूद हैं जो यह आपको भी आसानी से विचलित कर सकता है। ऐसे में हमारा प्रयास है कि हम लोगों को हफ्ते भर में होने वाली 20 प्रमुख बातों अथवा घटनाओं से अवगत कराएं। हम इसमें 20 बातों को इस क्रम में और इस तरह पढ़ाएंगे जिससे लोगों को एक अलग ही अनुभव होगा और उन्‍हें पढ़ने में भी आसानी रहेगी।

अपने नए एडिशन में हमने इनफॉर्मेशन को इस तरह प्रस्‍तुत किया है जिससे आप आसानी से जान सकें कि आपके आसपास क्‍या हो रहा है। हमें महसूस हो रहा था कि मैगजीन में राज्‍यों की उपेक्षा हो रही है, इसलिए हमने इसमें दोबारा से स्‍टेट के पेजों (state pages) को शामिल किया है जिसके बारे में इंडिया टुडे को जाना जाता है। इसमें इस तरह की सामग्री रखी जाएगी जिससे आपको नहीं लगेगा कि हम सिर्फ न्‍यूज के पीछे पड़े हुए हैं। नए कलेवर में लोगों की विभिन्‍न रुचियों को ध्‍यान में रखा गया है और इस तरह तैयार किया गया है कि लोग इसे फुर्सत के क्षणों में आराम से पढ़ सकें।  हमें लगता है कि सूचनाओं के विस्‍फोट (information explosion) के बावजूद अभी भी इसमें काफी बड़ा खालीपन (gap) है। मैगजीन में बदलाव के द्वारा हम और धारदार पत्रकारिता को वापस लाना चाहते हैं और इसके लिए हमारे साथ बहुत ही प्रतिभाशाली लोग जुड़े हैं।

इस बदलाव का डिजिटल प्‍लेटफार्म पर भी कुछ असर पड़ेगा ?

इंडिया टुडे में ऐसी कोई भी स्‍टोरी हम कवर नहीं करते हैं जो फालतू हो, जिसमें तथ्‍यों का अभाव हो अथवा जो अप्रासंगिक हो। हमारे देश में इतनी तेजी से आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक बदलाव हो रहे हैं जिन्‍हें हममें में से कोई भी इन्‍हें आसानी से नहीं समझ सकता है। ऐसे में आप चीजों को कैसे पकड़ेंगे। कुछ अखबार और टीवी चैनल्‍स ऐसा कर सकते हैं लेकिन आखिर में आपको यह सब भी अपर्याप्‍त लगेगा और आपको और जानने की इच्‍छा होगी। हमारा मानना है कि हमने जिस तरह का फॉर्मेट तैयार किया है, उसमें हम देश के लोगों के साथ काफी बेहतर तरीके से जुड़ सकेंगे।

सबसे खास बात यह है कि इसके कंटेंट का भी काफी ध्‍यान रखा गया है। लगातार इस पर ध्‍यान दिया जाता है कि आप चीजों को किस तरह प्रजेंट कर रहे हैं। हम भी दूसरों की तरह अभी काफी चीजें सीख अथवा समझ रहे हैं और देख रहे हैं कि इन्‍हें और बेहतर कैसे किया जाए।

अपने अंतरराष्‍ट्रीय (international) ऑडियंस के लिए आपने क्‍या सोचा है, क्‍या आप इन दिनों उनके लिए ज्‍यादा सोच रहे हैं ?

मल्‍टी प्‍लेटफार्म प्‍लेयर होने की सबसे बड़ी बात यह है कि आपको इंफॉर्मेशन को विभिन्‍न माध्‍यमों के लिए अलग-अलग तरीके से देना होता है। यदि आप प्रधानमंत्री के हाल में लिए गए इंटरव्‍यू को ही देखें तो टीवी ने इसे काफी चलाया। डिजिटल पर इसे काफी ट्रैफिक मिला और सोशल मीडिया पर भी इसने काफी धमाल मचाया। इसलिए आपको चारों ओर ध्‍यान देना है जो यूनि मीडिया सेटअप (uni-media set up) में तैयार करना संभव नहीं है।

नोटबंदी (demonetisation) का इंडिया टुडे मैगजीन पर क्‍या प्रभाव पड़ा है ?

यदि हम एडिटोरियल के दृष्टिकोण से बात करें तो नोटबंदी से न्‍यूज का काफी मसाला मिला है। लोग जानना चाहते हैं कि क्‍या हो रहा है और अब लोगों की निगाह बजट और आम चुनाव पर भी लगी हुई है और इनके बारे में भी लोग ज्‍यादा से ज्‍यादा जानना चाहते हैं।

आखिर में आप इंडिया टुडे के आगे के सफर के बारे में क्‍या कहेंगे और समाकालीन प्रिंट पत्रकारिता के साथ चलने के लिए किस तरह की डिमांड जरूरी है ?

इंडिया टुडे को इसकी बेहतरीन पत्रकारिता ने आगे बढ़ाया है। मुझे नहीं लगता कि इंडिया टुडे ग्रुप नीचे की ओर जा रहा है। आज की तारीख में आप उस तरह से मैगजीन नहीं चला सकते हैं जैसा पहले होता है। आपको इसमें शामिल सामग्री पर नजर रखनी होगी और क्‍वालिटी कंट्रोल का खास ध्‍यान रखना होगा। इसके अलावा इसमें पहले के मुकाबले न्‍यूज को और अधिक विस्‍तार देना होगा, जैसा कि यह सब हम इंडिया टुडे में कर रहे हैं।

समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।


टैग्स
सम्बंधित खबरें

टेक्नोलॉजी, कंटेंट और दर्शकों से जुड़ाव, हमें तीनों को साथ लेकर चलना होगा: रजनीश आहूजा

‘एबीपी नेटवर्क’ में एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट (न्यूज एंड प्रॉडक्शन) रजनीश आहूजा ने ‘समाचार4मीडिया’ के साथ बातचीत में अपनी सोच और प्राथमिकताओं को शेयर किया।

1 week ago

डिजिटल व टीवी के दौर में अखबारों की भूमिका को लेकर हमें समझनी होगी यह बात: राकेश शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार राकेश शर्मा ने समाचार4मीडिया से बातचीत में प्रिंट मीडिया की वर्तमान स्थिति, सरकार से जुड़ी नीतियों और डिजिटल युग में इसकी प्रासंगिकता बनाए रखने के उपायों पर खुलकर अपनी बात रखी है।

1 week ago

पत्रकारिता के इन्हीं अटूट सिद्धांतों पर रहेगा 'Collective Newsroom' का फोकस: रूपा झा

समाचार4मीडिया से बातचीत में 'कलेक्टिव न्यूजरूम' की सीईओ और को-फाउंडर रूपा झा ने इसकी शुरुआत, आज के मीडिया परिदृश्य में विश्वसनीयता बनाए रखने की चुनौतियों और भविष्य के विजन पर चर्चा की।

10-October-2024

मीडिया को अपने अधिकारों के लिए खुद लड़ना होगा: अनंत नाथ

इस विशेष इंटरव्यू में अनंत नाथ ने इस पर चर्चा की कि कैसे मीडिया संगठनों को मिलकर अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और सरकारी नियमों व सेंसरशिप के दबाव का सामना कैसे करना चाहिए।

04-October-2024

'28 वर्षों की मेहनत और बदलाव की दिल छू लेने वाली दास्तान है The Midwife’s Confession’

वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ पाराशर और ‘बीबीसी वर्ल्ड सर्विस’ (BBC World Service) की इन्वेस्टिगेटिव यूनिट ‘बीबीसी आई’ (BBC Eye) ने मिलकर ‘The Midwife’s Confession’ नाम से एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है।

20-September-2024


बड़ी खबरें

'जागरण न्यू मीडिया' में रोजगार का सुनहरा अवसर

जॉब की तलाश कर रहे पत्रकारों के लिए नोएडा, सेक्टर 16 स्थित जागरण न्यू मीडिया के साथ जुड़ने का सुनहरा अवसर है।

55 minutes from now

‘Goa Chronicle’ को चलाए रखना हो रहा मुश्किल: सावियो रोड्रिग्स

इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म पर केंद्रित ऑनलाइन न्यूज पोर्टल ‘गोवा क्रॉनिकल’ के फाउंडर और एडिटर-इन-चीफ सावियो रोड्रिग्स का कहना है कि आने वाले समय में इस दिशा में कुछ कठोर फैसले लेने पड़ सकते हैं।

4 hours from now

रिलायंस-डिज्नी मर्जर में शामिल नहीं होंगे स्टूडियो के हेड विक्रम दुग्गल 

डिज्नी इंडिया में स्टूडियो के हेड विक्रम दुग्गल ने रिलायंस और डिज्नी के मर्जर के बाद बनी नई इकाई का हिस्सा न बनने का फैसला किया है

8 minutes from now

फ्लिपकार्ट ने विज्ञापनों से की 2023-24 में जबरदस्त कमाई

फ्लिपकार्ट इंटरनेट ने 2023-24 में विज्ञापन से लगभग 5000 करोड़ रुपये कमाए, जो पिछले साल के 3324.7 करोड़ रुपये से अधिक है।

23 hours ago

क्या ब्रॉडकास्टिंग बिल में देरी का मुख्य कारण OTT प्लेटफॉर्म्स की असहमति है?

विवादित 'ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज (रेगुलेशन) बिल' को लेकर देरी होती दिख रही है, क्योंकि सूचना-प्रसारण मंत्रालय को हितधारकों के बीच सहमति की कमी का सामना करना पड़ रहा है। 

23 hours ago