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एक्सक्लूसिव: दैनिक भास्कर समूह के डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल से खास बातचीत
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।। वर्ष 2008 में ‘दैनिक भास्कर’ (Dainik Bhaskar) ग्रुप ने ‘जिद करो, दुनिया बदलो’ (Zidd Karo, Duniya Badlo) फिलॉसफी पर कैंपेन शुरू किया था। वर्ष 1956 में भोपाल से शुरुआत करने के बाद से यह ग्रुप का पहला नेशनल कैंपेन था और इसमें महेंद्र सिंह धोन
समाचार4मीडिया ब्यूरो 8 years ago
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
वर्ष 2008 में ‘दैनिक भास्कर’ (Dainik Bhaskar) ग्रुप ने ‘जिद करो, दुनिया बदलो’ (Zidd Karo, Duniya Badlo) फिलॉसफी पर कैंपेन शुरू किया था। वर्ष 1956 में भोपाल से शुरुआत करने के बाद से यह ग्रुप का पहला नेशनल कैंपेन था और इसमें महेंद्र सिंह धोनी को ब्रैंड एंबेसडर बनाया था। इसके बाद ग्रुप ने काफी तेजी से तरक्की की और अब यह देश के सबसे बड़े न्यूजपेपर पब्लिकेशन में से एक बन गया है। हाल ही में Wan- Infra World Press Trends 2015 की रिपोर्ट में दैनिक भास्कर को दुनिया में चौथे नंबर पर सबसे ज्यादा प्रसार संख्या वाला अखबार बताया गया है।
इस बारे में हमारी सहयोगी मैगजीन इंपैक्ट (IMPACT) की श्रवणा लहरी (Srabana Lahiri) और समर्पित बनर्जी (Samarpita Banerjee) ने दैनिक भास्कर ग्रुप के डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल से बातचीत कर जानना चाहा कि किस तरह अच्छे कंटेंट के आधार पर ग्रुप आगे बढ़ रहा है और भारत में प्रिंट मीडियम हमेशा सबसे ज्यादा आगे क्यों बढ़ेगा।
प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश :
अगले साल के लिए ग्रुप किन चीजों पर फोकस कर रहा है?
अगले साल हम प्रिंट और डिजिटल पर फोकस करेंगे। इसके अलावा हमारा फोकस रेडियो पर भी रहेगा क्योंकि हमने पिछली नीलामी में 13 रेडियो स्टेशन हासिल किए हैं और यह सभी रेडियो स्टेशन अगले छह महीने में शुरू होने हैं। इसके अलावा हम डिजिटल पर भी फोकस कर रहे हैं, जिसमें हमारे पास पहले से ही 40 मिलियन विजिटर मौजूद हैं। हमारा प्रयास है कि हम इस आंकड़े को और 50 प्रतिशत बढ़ाए। वहीं प्रिंट की बात करें तो हम अपना सर्कुलेशन और बढ़ाना चाहते है। विभिन्न मार्केट में प्रवेश कर हम इस बार तीन लाख कॉपी और बढ़ाना चाहते हैं।
डिजिटल और प्रिंट में रीडर्स की संख्या बढ़़ाने के लिए ग्रुप क्या कर रहा है?
ज्यादा से ज्यादा रीडर्स को अपने साथ जोड़े रखने के लिए हम कई चीजें कर रहे हैं। सबसे पहले हम कंटेंट पर खास ध्यान दे रहे हैं। हम हमेशा अपने कंटेंट को मजबूत रखते हैं। इसके अलावा हम कई काम और करते हैं जैसे कि हम पत्रकारों को प्रशिक्षण भी देते हैं,जैसा अन्य किसी भी मीडिया संस्थान में नहीं किया जाता है। इस तरह के प्रयासों को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने से हम काफी खुश है।
आप एडवर्टाइजर्स की संख्या बढ़ाने के लिए क्या करते हैं?
जब हमारे पास रीडर होते हैं तो हम एडवर्टाइजर के पास जाते हैं और उससे अपने साथ आने के लिए कहते हैं। सीधी सी बात है, आपसे जितने ज्यादा रीडर जुड़े होंगे, वैसे ही आपको एडवर्टाइजर्स भी मिलते रहेंगे। हमारा रीडर रोजाना 30 से 40 मिनट तक हमारे प्रॉडक्ट पर खर्च करता है। ऐसे में एडवर्टाइजर्स के पास भी पूरा मौका होता है कि वह विज्ञापन के जरिये अपनी बात रीडर तक पहुंचा सकता है। इसके अलावा हम अपने एडवर्टाइजर्स को यह भी बताते हैं कि कैसे वह रीडर तक अपनी बात और अच्छे से पहुंचा सकता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी दूसरे के मुकाबले हम अपने रीडर को काफी अच्छे से समझते हैं।
हाल ही में आपने अपने भोपाल में अंग्रेजी भाषा का नया दैनिक डीबी पोस्ट (DB Post)लॉन्च किया है। इसके बारे में बताएं?
अहमदाबाद, जयपुर, इंदौर, भोपाल और चंडीगढ़ जैसे शहरों में ऐसे लोगों की काफी संख्या है जो वहां के मूल निवासी नहीं हैं। उदाहरण के लिए, अहमदाबाद में ऐसे कई लोग हैं जो गुजराती नहीं हैं और वे गुजराती नहीं पढ़ सकते हैं। इसी तरह चंडीगढ़ में ऐसे कई लोग हैं जो पंजाबी नहीं हैं और न ही हरियाणा के रहने वाले हैं। ऐसे लोग हिन्दी अथवा पंजाबी अखबार पढ़ने की जगह अंग्रेजी अखबार पढ़ना काफी पसंद करते हैं। इसलिए इन मार्केट में ऐसे लोगों की काफी संख्या होती है। ऐसे लोग लगभग दस प्रतिशत हैं जो अंग्रेजी अखबार पढ़ना चाहते हैं। इसलिए हमने सोचा कि क्यों न ऐसे 10 प्रतिशत मार्केट के बारे में सोचा जाए।
मार्केटिंग और दूसरे डिपार्टमेंट में दैनिक भास्कर के पास कई तरह का टैलेंट मौजूद है। ग्रुप के लिए उनका आप कैसे बेहतर उपयोग कर पाते हैं और कैसे सामंजस्य बिठा पाते हैं?
ग्रुप की सफलता के पीछे 12000 लोगों की कड़ी मेहनत है। हमारे पास विभिन्न फील्ड्स के प्रोफेशनल्स हैं। हर साल विभिन्न स्थानों जैसे ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री, लिकर इंडस्ट्री, एफएमसीजी व टेलिकॉम इंडस्ट्री से करीब 300 लोग हमारे यहां जॉइन करते हैं। हालांकि विविध क्षेत्र के लोगों को अपने कल्चर में शामिल करना काफी मुश्किल काम होता है लेकिन हमारी एचआर टीम काफी अच्छा काम कर रही है।
आपके कई मार्केटिंग कैंपेन को पुरस्कार मिल चुका है। कैसे आप यह सब कर पाते हैं और ऐसी कौन सी चीज हैं जो इन्हें इतना सफल बनाती है?
हमारी सोच काफी सिंपल है। हम मानकर चलते हैं कि हम किसी व्यक्ति से कम्युनिकेट कर रहे हैं इसलिए उसमें इमोशनल टच भी होना चाहिए। यदि आप किसी ऐसी चीज के बारे में बात करेंगे जिससे मेरा कोई संबंध नहीं है तो मैं उस पर अपनी खास प्रतिक्रिया नहीं दूंगा लेकिन यदि आप किसी ऐसी चीज के बारे में बात करेंगे जिससे मैं समझ सकूं और वह मुझसे संबंधित हो तो मैं उस पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दूंगा। हमने एक बात तो सुनिश्चित कर रखी है कि हम कम्युनिकेशन में अपने बारे में बात करने को प्राथमिकता नहीं देते हैं और इसकी शुरुआत हमने 2002 में ही कर दी थी जब Ogilvy Consulting के साथ हमने काम किया था। हमने तभी सोच लिया था कि जब तक हम एडिशन लॉन्च नहीं करते हम अपने बारे में बात नहीं करेंगे। हम ऐसे मार्केट अथवा कुछ ऐसी चीजों के बारे में बात करते हैं जिससे हमारे उपभोक्ता की रुचि में इजाफा हो और वह उनके मतलब की हों।
कुछ पब्लिकेशन अधिग्रहण के द्वारा अपना बिजनेस बढ़ाने में लगे हुए हैं, क्या आप भी कुछ ऐसा कर रहे हैं?
यदि बिजनेस की बात आती है तो हमें अधिग्रहण (acquisitions) अथवा विलय (mergers)करने में कोई गुरेज नहीं है। हम जो कुछ भी खरीद रहे हैं उसमें मेरे लिए कुछ बिजनेस सेंस होना चाहिए। इसके अलावा मुझसे ज्यादा मेरे स्टॉक होल्डर्स को यह लगना चाहिए कि हमने किसी अधिग्रहण पर जो पैसा लगाया है वह वापस मिल जाएगा। इसलिए अधिग्रहण करते समय काफी सावधानी बरतनी चाहिए। इसलिए हमें जहां भी अधिग्रहण की कोई गुंजाइश दिखती है उसे हम अपने नजरिये से आंकते हैं और यदि यह उसमें फिट बैठती है तो हम आगे कदम बढ़ाते हैं। लेकिन यदि यह हमारी जरूरतों के हिसाब से फिट नहीं बैठती तो हम उसे जाने देते हैं और उसमें हाथ नहीं डालते हैं।
इन दिनों प्रिंट मार्केट के सामने आ रहीं चुनौतियों के बारे में आपका क्या कहना है और प्रिंट में अगला बड़ा बदलाव क्या होगा?
प्रिंट इंडस्ट्री को वर्तमान में दो चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें से एक चुनौती तो इंटरनल है। सबसे पहले तो इंडस्ट्री को अपनी सोच बदलनी होगी कि वे प्रिंट ऑर्गनाइजेशन (print organization) हैं, इसके बजाय उन्हें अपने आपको न्यूज ऑर्गनाइजेशन (news organization) के रूप में स्वीकार करना होगा। दूसरी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इंडस्ट्री का 75 प्रतिशत रेवेन्यू एडवर्टाइजिंग से आता है और इस समय एडवर्टाइजिंग किसी खास क्लाइंट अथवा खास मार्केट की ग्रोथ पर निर्भर होती है। यह इस बात पर भी निर्भर करती है कि मार्केट किस प्रकार आगे बढ़ रहा है और इकनॉमी किस तरह काम कर रही है। यदि देश की जीडीपी (GDP) सात से 10 प्रतिशत नहीं बढ़ रही है, यदि देश में ज्यादा कार नहीं बेची जा रही हैं तो यह भी हमारे लिए एक चुनौती होता है। देश को लगातार तरक्की करने की जरूरत है और इसी के अनुसार हमारी भी तरक्की होगी। हालांकि इस बारे में हम अपने स्तर से कुछ नहीं कर सकते हैं। इसलिए यह भी एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा हमारे सामने यह भी चुनौती बनी रहती है कि हमें नए कस्टमर कैसे मिलें, कैसे हमें नए क्लाइंट मिलें और कैसे हम आगे बढ़ें।
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