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पत्रकारिता में सतयुग लाना संपादकों की जिम्मेदारी है, उन्हें निभानी होगी: सईद अंसारी
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।। हैशटैग जर्नलिज्म के विषय पर आयोजित कार्यक्रम में ‘आजतक’ के मशहूर न्यूज एंकर सईद अंसारी ने कहा कि क्या ट्विटर पत्रकारिता इस देश के गांव का प्रतिनिधित्व करती है? क्या अपनी बात को शब्दों की बहुत कम सीमा में बांधना सही है?
समाचार4मीडिया ब्यूरो 8 years ago
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
हैशटैग जर्नलिज्म के विषय पर आयोजित कार्यक्रम में ‘आजतक’ के मशहूर न्यूज एंकर सईद अंसारी ने कहा कि क्या ट्विटर पत्रकारिता इस देश के गांव का प्रतिनिधित्व करती है? क्या अपनी बात को शब्दों की बहुत कम सीमा में बांधना सही है?
क्या ट्विटर के स्टेटस किसी भी व्यक्ति के विचार को व्यक्त करे के लिए पर्याप्त है? क्या तीन करोड़ ट्विटर अकाउंटधारी सवा सौ करोड़ की आबादी की आवाज बन पा रहे हैं? यदि आवाज है तो किसी व्यक्ति का स्टेटस क्यों ट्रेंड नहीं करता। दरअसल ये बहुत ही एलीट, सिलेब्रेटी का माध्यम है। हालांकि हम इसकी जरूरत को नकार नहीं सकते। बुलेटिन के बीच में हमें भी कई बार किसी की ट्वीट को शामिल करना होता है और खबरें वहां से दूसरी दिशा में मुड़ती है। ट्विटर पर जो ट्रेंड हो रहा है, वो मेनस्ट्रीम मीडिया में बतौर खबर शामिल किया जा रहा है लेकिन कभी आपने देखा है कि किसी सामान्य व्यक्ति की कोई खबर ट्रेंड कर रही हो? आप लाख तर्क देते रहिए कि इससे लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही है लेकिन क्या ये सचमुच इतना मासूम माध्यम है? जिस तरह आजकल ट्विटर पर ट्रॉलिंग हो रही हैं, वे निंदनीय है। सोशल मीडिया ने बंदर के हाथ में उस्तरा देने वाली कहावत चरितार्थ कर दी है।
बड़ी बात ये है कि टीवी पत्रकार सईद अंसारी उन कुछ ही पत्रकारों में शुमार है जो कि सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म- फेसबुक, ट्विटर या वॉट्सऐप का प्रयोग नहीं करते हैं।
टीवी पत्रकार सईद अंसारी ने पत्रकारिता के गिरते स्तर पर कहा कि कई संपादकों ने यहां कहा कि पत्रकारिता घटिया हो रही है, इसके कई कारण और मजबूरियां भी गिनाई गई है, पर मेरा मानना है कि पत्रकारिता का सतयुग आना चाहिए और ये जिम्मेदारी वरिष्ठ संपादकों को उठानी ही होगी। कीवर्ड जर्नलिज्म कतई को कतई सही नहीं ठहराया जा सकता है। पत्रकारिता में गंदगी के साथ नहीं जिया जा सकता है, इसकी सफाई का जिम्मा उठाना ही होगा। सोचना होगा कि कहीं नेता-अभिनेता मीडिया का प्रयोग अपने फायदे के लिए करके मीडिया को ही मूर्ख तो नहीं बना रहे हैं। जो सरोकार की पत्रकारिता पढ़ी है, वही करनी ही होगी।
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