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हम गुटखा जैसे ब्रैंड्स के विज्ञापन अपने अखबार में नहीं छापते हैं'

समाचार4मीडिया ब्यूरो सकाल मीडिया ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्‍टर अभिजीत पवार हफ्ते में सातों दिन काम करते हैं। अभिजीत का कहना है कि वह अपने काम से बहुत ज्‍यादा प्‍यार करते हैं। पुणे में रहने वाले अभिजीत ने ‘IMPACT’ से अपने बिजनेस व समाजसेवा के कार्यों के बारे में अपने अनुभव साझा किए। प्रस्‍तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश:

समाचार4मीडिया ब्यूरो 9 years ago

समाचार4मीडिया ब्यूरो सकाल मीडिया ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्‍टर अभिजीत पवार हफ्ते में सातों दिन काम करते हैं। अभिजीत का कहना है कि वह अपने काम से बहुत ज्‍यादा प्‍यार करते हैं। पुणे में रहने वाले अभिजीत ने ‘IMPACT’ से अपने बिजनेस व समाजसेवा के कार्यों के बारे में अपने अनुभव साझा किए। प्रस्‍तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश: सकाल मीडिया ग्रुप की बिजनेस स्‍ट्रेटजी और मार्केटिंग का क्‍या फंडा है ? इस ग्रुप का भविष्‍य मल्‍टीमीडिया में है। इसके अलावा हमारी स्‍ट्रेटजी में सोशल एजेंडा भी शामिल हैं। हम किसी लाभ या नंबर की दौड में नहीं है, इसलिए नंबर वन भी हम ही रहेंगे। हमारी सोच कुछ अलग है और हम चारों तरफ हाथ-पैर नहीं फेंकना चाहते हैं। हम जो भी काम करते हैं, वह समाज में हमारा सम्‍मान बढ़ता हैं। इसी कारण बिजनेस भी बढ़ता है। पिछले कुछ सालों में किस तरह पाठकों का प्रोफाइल विकसित हुआ है? समाज के विकास के साथ ही पाठकों का भी विकास होता है। हमारे पाठकों की औसत उम्र 28 साल है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम सिर्फ युवा पाठकों को केंद्रित कर रहे हैं लेकिन इससे पता चलता है कि समाज का कौन सा तबका आपसे ज्‍यादा जुड़ रहा है। हमारा अखबार घर-घर में जा रहा है और युवा वर्ग भी इसे पढ़ रहा है। हमारा फोकस पूरी फैमिली पर होता है। अपने बिजनेस के साथ आप कैसे सोशल वर्क भी कर लेते हैं और इसका बिजनेस से क्‍या संबंध है? सोशल वर्क से प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष रूप से बिजनेस में मदद मिलती है। यदि अपने बारे में कहूं तो मेरे लिए यह सोशल वर्क नहीं है। मैं यूएसए, मेक्सिको, जर्मनी और इसरायल आदि कई ऐसी जगह भी काम करता हूं, जहां हमारा अखबार नहीं है। वहां पर सक्‍सेस स्‍टोरी के बारे में बात करने के लिए मीडिया मदद करता है। हमारे पास तनिष्‍क की नौ हजार से ज्‍यादा सक्‍सेस स्‍टोरी हैं और जब हम इन सक्‍सेस स्‍टोरी को प्रकाशित करते हैं तो मुझे लगता है कि यह दूसरे लोगों को भी प्रेरित करेगी। जैसा कि गांधी जी ने कहा था कि यदि आप बदलाव चाहते हैं तो पहले खुद से शुरुआत करें। इसलिए मैंने खुद अपने आप से शुरुआत की है और मैं यह कर रहा हूं। आपको महिलाओं को भी वही प्‍लेटफॉर्म और सम्‍मान देना होगा। विभिन्‍न कंपनियों में काम करने वाली महिलाओं की भी पुरुषों की तरह सराहना करनी होगी। मैं यहां पर जो काम करता हूं, फेसबुक की सीओओ शेरिल सैंडवर्ग उस काम की सराहना करती हैं और वह जो वहां पर करती हैं, हम उसे यहां प्रमोट करते हैं। उन्‍होंने हमें बताया था कि अमेरिका में भी यही कहानी है। य‍ह सिर्फ मिथक है कि वहां महिलाएं वहां बेहतर स्थिति में हैं। उनके यहां तो महिला राष्‍ट्रपति भी नहीं हुई है, इसलिए हम किस समानता की बात कर रहे हैं? यदि हम अपने अखबारों में विज्ञापनों की बात करें तो यदि वहां कोई ऐसा ब्रैंड है जिसे मैं नहीं चाहता कि मेरा बच्‍चा उसे पीये तो मैं नहीं चाहता कि वह ब्रैंड मेरे न्‍यूजपेपर में आए। ऐसे में इस बात से काई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितना पैसा हमें ऑफर कर रहे हैं। हम कई ब्रैंड के विज्ञापनों को अपने यहां मना कर चुके हैं। मेरे पिताजी जब अखबार में पैसा लगा रहे थे तो उन्‍होंने गुटखा ब्रैंड को मना कर दिया था। इसलिए शुरुआत से ही हमने अपने अखबार में गुटखा के विज्ञापन और इसका संदेश देते विज्ञापनों पर रोक लगा रखी है। दूसरे शब्‍दों में, हमें यह कहते हुए काफी गर्व है कि ओएनजीसी (ONGC) के बाद हम देश में 25वें बड़े दानदाता हैं। हमने महाराष्‍ट्र को सूखा मुक्‍त कराने के लिए जारी रिसर्च में 20 करोड़ रुपये दिए हैं। आज इस प्रोजेक्‍ट को महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री ने अपने पायलट प्रोजेक्‍ट के रूप में शामिल किया है। अपने साइज और प्रॉफिट की तुलना में हम ज्‍यादा दान करते हैं और हमें अपने आप पर गर्व होता है कि हम यह धन समाज के ऊपर खर्च कर रहे हैं। सकाल को काफी लोग पसंद करते हैं लेकिन क्‍या आप मानते हैं कि डिजिटल के ऐड रेवेन्‍यू की तुलना प्रिंट से की जा सकती है ? डिजिटल का अभी प्रसार हो रहा है। भारतीय मीडिया एजेंसियां ऐसे लोगों से भरी हुई हैं जो डिजिटल का उपभोग नहीं करते हैं। इसलिए जब यह लोग बाहर हो जाएंगे और जब तक आप इसमें युवाओं को नहीं लाएंगे, मुझे नहीं लगता कि डिजिटल का ज्‍यादा विकास होगा। उदाहरण के लिए : आज डिजिटल का विकास हो रहा है और मेन स्‍ट्रीम से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि आज कुछ अपवादों को छोड़कर लगभग सभी समाचार पत्र विश्‍व भर में कहीं भी पढ़े जा सकते हैं। मेरा मानना है कि अखबार और मीडिया हाउस के मालिक भी डिजिटल मीडिया को लेकर पुरानी सोच रखते हैं। आजकल क्रिएटिव एजेंसियां प्रिंट की ओर ज्‍यादा ध्‍यान नहीं दे रही हैं। प्रिंट मीडिया में विज्ञापनों के इस प्रभाव को आप किस रूप में देखते हैं? हम जिस रेवेन्‍यू मॉडल और नई स्‍ट्रेटजी पर काम कर रहे हैं, उसके अनुसार आने वाले समय में प्रिंट में सर्वाइव करना काफी मुश्किल होता जाएगा। एक तरह तो हमारी कॉस्‍ट बढ़ रही है लेकिन इससे भी ज्‍यादा यह महत्‍वपूर्ण है कि आपको टैलेंट नहीं मिल पा रहा है। मेरी चिंता प्रिंट के भविष्‍य को लेकर नहीं है लेकिन यह चिंता जरूर है कि प्रिंट को सही टैलेंट नहीं मिल पा रहा है। इसलिए जब तक प्रतिभाशाली लोग प्रिंट में नहीं आएंगे, इसका क्षय होता जाएगा। मुझे नहीं पता कि कॉलेज में मास मीडिया कोर्स के दौरान कितने लोग प्रिंट जर्नलिज्‍म को चुनते हैं लेकिन मेरा मानना है कि इसमें प्रतिभाशाली लोगों को आना चाहिए, तभी यह आगे बढ़ेगा। Saam TV के साथ आपका कैसा अनुभव रहा ? आप इस बारे में क्‍या कहना चाहेंगे? मैं सोशल इंपेक्‍ट की सोच के साथ चैनल के साथ काम करने की कोशिश कर रहा हूं। मेरा मानना है कि अभी हम शुरुआती दौर में हैं और निकट भविष्‍य में आपको कुछ बदलाव अवश्‍य दिखाई देंगे। मैं इसो सिर्फ जनरल ऐंटरटेनमेंट चैनल (GEC) या न्‍यूज चैनल नहीं बनाना चाहता हूं। सकाल को ब्रैंड बनाने और इसकी सफलता का सूत्र क्‍या है ? यह बहुत साधारण सी बात है। सिर्फ ईमानदार रहें और विश्‍वसनीयता बनाए रखें। मैं ऐसे अखबारों को भी जानता हूं जो पेड न्‍यूज छापते हैं, ब्‍लैकमेलिंग करते हैं और वे सर्कुलेशन के हिसाब से काफी आगे हैं। मैं ऐसे कई मीडिया हाउस को जानता हूं जो किसी न किसी राजनेता अथवा उसके परिवार के सदस्‍य के हैं। वे अपने राजनीतिक संबंधों का लाभ उठाते हैं और खुद को नंबर वन होने का दावा करते हैं। मेरा इस बात में कतई यकीन नहीं रखता हूं कि अपने प्रॉडक्‍ट को ब्रैंड बनाने के लिए मैं उसकी मार्केटिंग करूं या और भी कई तरह के काम करूं। इसके बावजूद कुछ लोगों की इसके बारे में अलग धारणा है और वह कहते हैं कि सकाल politician’s front का अखबार है। आपके कार्यों के दौरान कुछ भावुक स्‍टोरी भी इसमें शामिल होंगी, क्‍या आप इनमें से कुछ के बारे में बता सकते हैं ? मैं उस समय इसरायल में था और दो टैक्‍सी किराए पर ली थीं। इनमें से एक टैक्‍सी का ड्राइवर अरब का नागरकि था और उसका नाम अली था जबकि दूसरा Jew का मुशॉय था। मुशाय कहता था कि आप हमेशा मुस्‍कारते और हंसते हुए रहते हैं और मैंने इस तरह का ग्रुप कभी नहीं देखा। सच कहूं तो जो हमारे साथ काम करता है, वह हमारे परिवार के सदस्‍य की तरह बन जाता है। यात्रा के अंत में मुशॉय ने मुझसे कहा कि यदि आप मुझे इस देश को छोड़कर अपने साथ आने के लिए कहेंगे तो मैं आपके साथ चलूंगा। अली और मुशॉय ने एयरपोर्ट पर हमें गले लगाया और हमें गिफ्ट भी दिए। इसलिए, वे तो सिर्फ वह लोग थे जो हमारी टैक्‍सी चला रहे थे और हमारी स्‍टोरी सुनकर और हम क्‍या कर रहे हैं, यह जानकर हमसे भावनात्‍मक रूप से जुड़ गए थे। इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) के बारे में अभिजीत पवार ने कहा कि वह इन आंकड़ों में विश्‍वास नहीं रखते हैं। मैं इन नंबर गेम पर ध्‍यान नहीं देता हूं। हम जो कर रहे हैं, उसी में खुश हैं। हालांकि ऐडवर्टाइजिंग एजेंसियां और विज्ञापनदाता इस तरह की बातों में यकीन रखते हैं और वे हमारी मार्केटिंग टीम से बातचीत कर रेट तय करते हैं, मुझे इस बारे में इससे ज्‍यादा कुछ नहीं पता है। IRS के बारे में पवार ने कहा, ‘न सिर्फ आईआरएस बल्कि भारत में कोई भी रीडरशिप सर्वे बेकार है। कोई भी अपने आप को नंबर वन कहने लगता है और कुछ लोग पैसे का भी इस्‍तेमाल करते हैं। मैंने यह सब देखा है इसलिए मुझे किसी सर्वे में कोई विश्‍वास नहीं है। मैं समाज में बदलाव लाना चाहता हूं इसलिए मैंने उन किसानों के लिए जो हमारे लिए इतना करते हैं, ‘Agrowon’ शुरू किया है। महाराष्‍ट्र के लगभग 80 प्रतिशत किसान ‘Agrowon’ पढ़ते हैं। इस अखबार को रीडरशिप सर्वे में शामिल नहीं किया गया है। इसलिए इस अखबार के प्रभाव को आंकना आसान है।’ इसलिए आप इसके ऐड रिस्‍पांस को देखें। आपको अपने आप पता चल जाएगा कि कौन नंबर वन है और कौन नंबर दो। समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।


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