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AFMEC के प्रेजिडेंट पूरन डावर ने उठाया बड़ा मुद्दा, सरकार के सामने रखी ये मांग
पूरी दुनिया में कहर बरपा रहे कोरोनावायरस (कोविड-19) का असर उद्योग-धंधों पर भी दिखाई देने लगा है।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
पूरी दुनिया में कहर बरपा रहे कोरोनावायरस (कोविड-19) का असर उद्योग-धंधों पर भी दिखाई देने लगा है। कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन के कारण तमाम उद्योग धंधे बंद पड़े हुए हैं। इससे आगरा का जूता निर्यात उद्योग भी काफी प्रभावित हो रहा है। इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों की मानें तो लॉकडाउन के बाद भी जूता निर्यात इकाइयों के खुलने की संभावनाएं न के बराबर दिखाई दे रही हैं।
बता दें कि जूता उद्योग के तहत आगरा से 3500 करोड़ रुपए का सीधा और 1500 करोड़ का डीम्ड निर्यात होता है। (डीम्ड निर्यात का मतलब उस लेनदेन से है, जिनमें सामान की उन उपयोगकर्ताओं को आपूर्ति की जाती है जो देश नहीं छोड़ते हैं और ऐसी आपूर्ति के लिए भुगतान या तो भारतीय मुद्रा में या विदेशी मुद्रा में प्राप्त होता है)। यानी कि यहां से कुल 500 करोड़ का निर्यात होता है। इस उद्योग से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से करीब चार लाख लोग जुड़े हुए हैं और यह उनकी जीविका का प्रमुख साधन है। इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों को हर साल करीब 500 करोड़ रुपए मजदूरी और सैलरी के रूप में दिए जाते हैं।
फिलहाल हालत यह है कि उद्योग पूरी तरह बंद हैं। जो माल पहुंच चुके हैं वे यूरोप व अमेरिका बंद होने के कारण बीच में रुके हैं। उनका भुगतान रोक दिया गया है। तीन महीने के बाद वह भी आधे डिस्काउंट पर बात करते हैं। कुछ माल विदेशी बंदरगाहों पर पड़ा है तो कुछ मुंबई बंदरगाह पर। कुछ बना हुआ माल इकायों में पड़ा है। कुछ के ऑर्डर कैंसिल हो चुके हैं। कच्चा माल आ चुका है और निर्यात ऑर्डर कैंसिल हो चुके हैं। निर्यात के लिहाज से पूरे वर्ष में बामुश्किल 30 प्रतिशत निर्यात की ही संभावना है।
ऐसे में निर्यातक संस्था ‘आगरा फुटवियर मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्ट्स चैंबर’ (एएफएमईसी) का कहना है कि सरकार की सहायता के बिना अप्रैल ही नहीं, अगले तीन माह तक सैलरी-मज़दूरी देना असंभव है और राज्य एवं केंद्र सरकार को उद्योगों को पुनरस्थापित करना होगा।
‘एएफएमईसी’ ने इस मामले में राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा है कि वह केंद्र सरकार को यथास्थित से अवगत कराए। ‘एएफएमईसी’ का यह भी कहना है कि बिजली बिल मात्र प्रयोग के आधार पर ही होना चाहिए और किसी भी तरह का न्यूनतम चार्ज व फ़िक्स चार्ज न लिया जाए।
इस बारे में ‘एएफएमईसी’ के प्रेजिडेंट पूरन डावर का कहना है कि सरकार को उसी प्रतिभूति पर टर्न ओवर का 10 प्रतिशत ऋण वेतन के लिए और वर्तमान लिमिट का 50 प्रतिशत तरलता (लिक्विडिटी) के लिए बिना ब्याज के देना होगा, जिसे पांच वर्ष में किस्तों में भुगतान की व्यवस्था हो, अन्यथा निर्यात क्षेत्र पुनरस्थापित नहीं हो सकता।
पूरन डावर का यह भी कहना है, ‘यदि सरकार समय से व्यवस्थाएं करती है तो आने वाले समय में न केवल उद्योग उबर सकते हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था और ऊंचे स्तर पर पहुंच सकती है। निश्चित ही यह समय है जब भारत विश्व उत्पादन के लिये चीन का स्थान ले सकता है। इस समय सरकार को आगे बढ़कर कदम उठाने होंगे।
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