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सामाजिक यथार्थ और अंतर्द्वंद्व को बखूबी बयां करता है त्रिपुरारि शरण का ‘माधोपुर का घर’

दिल्ली स्थित ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ (IIC) में 12 अगस्त 2023 की शाम बिहार के पूर्व मुख्य सचिव त्रिपुरारि शरण द्वारा लिखित उपन्यास ‘माधोपुर का घर’ को लेकर चर्चा का आयोजन किया गया।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

बिहार के पूर्व मुख्य सचिव त्रिपुरारि शरण द्वारा लिखित उपन्यास ‘माधोपुर का घर’ (Madhopur Ka Ghar) पर चर्चा का आयोजन किया गया। तमाम प्रबुद्धजनों की मौजूदगी में दिल्ली स्थित ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ (IIC) में 12 अगस्त 2023 की शाम हुए इस आयोजन में त्रिपुरारि शरण, साहित्य अकादमी से पुरस्कृत लेखिका सुश्री अनामिका, उपन्यासकार वंदना राग और प्रवीण कुमार ने इस उपन्यास के बारे में अपने विचार रखे। इस दौरान सवाल-जवाब का दौर भी चला, जिसमें लेखक ने पाठकों के मन में उठने वाले तमाम सवालों के जवाब दिए।

बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले और 1985 बैच के आइएएस अफसर त्रिपुरारि शरण का कहना था कि उन्हें ‘माधोपुर का घर’ लिखने में करीब दो साल लगे। त्रिपुरारि शरण के अनुसार, ‘यह उपन्यास सामाजिक और राजनीतिक इतिहास को मिलकर रोचक तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयास है। इस उपन्यास में बाबा और दादी जैसे कई पात्र हैं, लेकिन मुख्य पात्र की बात करें तो वह लोरा नामक एक डॉग है। वह अपने तरीके से कहानी कहती है। उसकी कहानी में क्या गुण और अवगुण हैं, यहां उपन्यास पढ़ने के बाद ही समझा जा सकता है। इस उपन्यास का उद्देश्य है कि मैंने अपने जीवन में जो देखा है, महसूस किया है, उसे अपनी व्याख्या, विश्लेषण और परिप्रेक्ष्य के साथ पाठकों तक पहुंचा पाऊं।’

इसके साथ ही उनका कहना था कि यह नए तरीके से नई विधा में लिखा गया उपन्यास है। इसे काफी रोचक तरीके से लिखा गया है। अब यह पाठकों को तय करना है कि पढ़ने के बाद यह उपन्यास उनके दिल की गहराइयों में उतर पाता है अथवा नहीं। वहीं, पुस्तक के शीर्षक ‘माधोपुर के घर’ के बारे में उनका कहना था कि यह रूपक है। यानी इसमें माधोपुर और घर को रूपक के तौर पर इस्तेमाल किया गया है।

वहीं, साहित्य अकादमी से पुरस्कृत जानी-मानी लेखिका अनामिका का इस उपन्यास के बारे में कहना था, ‘इस कहानी के पात्र बाबा का अपने प्रदेश के वंचित समाज से जो खट्टा-मीठा रिश्ता होता है, खासकर, मुसलमानों अथवा निचले तबके से जुड़ी जातियों के लोगों से भी एक सौहार्द का रिश्ता बन जाता है, उसके बारे में बताया गया है। जिस सौहार्द का विकास वह घर में पत्नी और बच्चों के साथ नहीं कर पाते हैं, वो बाहर दिखा देते हैं। हालांकि, जमींदारी व्यवस्था और किसानों पर हुए अन्याय की कहानियों पर तो पहले काफी लिखा जा चुका है, लेकिन पूर्व में इस विषय पर काफी कम लिखा गया है।’ यह जो अनदेखा पक्ष है, उसे अच्छे तरीके से इस उपन्यास में बताने का प्रयास किया गया है। उपन्यास के पात्र बाबा तमाम तरह के उपक्रम करते हैं। वह कभी गन्ना लगवाते हैं तो कभी डेयरी चलाते हैं। हालांकि, उनके ये सभी उपक्रम फेल होते रहते हैं। उसका प्रभाव उनके घरेलू रिश्तों पर भी पड़ता है। वह चुप होते जाते हैं। वह पड़ोस के लोगों को प्यार करते हैं, डॉगी को प्यार करते हैं, लेकिन घर में तनातनी का माहौल रहता है। ऐसे में इस उपन्यास में उनकी जिंदगी की जद्दोजहद और जीवन में सफलता व असफलता को काफी प्रभावी ढंग से इस उपन्यास में वर्णित किया गया है।

जानी-मानी उपन्यासकार वंदना राग का इस उपन्यास के बारे में कहना था, ‘यह उपन्यास एक रूपक (Metaphor) है। यह सिर्फ एक लेखक की कहानी नहीं है। यह टूटते हुए समाज और बाद में पुनर्जीवित होते हुए समाज की कहानी है। परिवार की कहानी उतनी ही है, जितनी इस देश की कहानी। लेखक ने इस उपन्यास में 1870 के दौर के देश से कहानी खत्म होने तक के दौर को बखूबी शब्दों में पिरोया है। यानी ‘माधोपुर का घर’ में लेखक इस कहानी को पुराने दौर से 21वीं सदी तक ले आए हैं। इस दौरान देश की तमाम राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों अथवा घटनाओं को जिन्होंने हमें तोड़ा और फिर पुनर्सृजित किया, उन सबका आख्यान इस उपन्यास में है।’    

मंच संचालन प्रवीण कुमार ने किया। इस उपन्यास के बारे में प्रवीण कुमार का कहना था, ‘ये विस्थापन की कथा है। यह तीन पीढ़ियों के माध्यम से सभ्यता की विमर्श की कहानी है। इस उपन्यास में बहुत ही सजीव तरीके से बताया गया है कि किस तरह पहले हम प्रकृति से दूर होते हैं, फिर परिवार से और फिर निजता के नाम पर एकांत आता है और एकांत के साथ-साथ खालीपन। ये खालीपन की छटपटाहट है, बेचैनी है, जिसे इस उपन्यास के पात्रों के माध्यम से काफी बखूबी तरीके से लेखक ने बताया है।’  

बता दें कि इस उपन्यास को ‘राजकमल पेपबैक्स’ ने प्रकाशित किया है। 228 पेज वाले उपन्यास का मूल्य 299 रुपये रखा गया है।


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