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वरिष्ठ टीवी पत्रकार पीयूष पांडे के इस व्यंग्य संग्रह में हैं कई रंगों के 'फूल'
दिल्ली में चल रहे पुस्तक मेले में देश के जाने-माने व्यंग्यकारों की मौजूदगी में किया गया लोकार्पण, गैर सरकारी संगठन को अग्रिम रॉयल्टी देने का किया ऐलान
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में रविवार को वरिष्ठ टीवी पत्रकार और व्यंग्यकार पीयूष पांडे के व्यंग्य संग्रह ‘कबीरा बैठा डिबेट में’ का लोकार्पण किया गया। जाने माने कवि व व्यंग्यकार अशोक चक्रधर ने इस व्यंग्य संग्रह का लोकार्पण किया।
इस मौके पर आलोक पुराणिक समेत देश के कई जाने-माने व्यंग्यकारों की मौजूदगी में पीयूष पांडे ने अपनी किताब की अग्रिम रॉयल्टी को यमुना बचाने में जुटे गैर सरकारी संगठन ब्रज हेरिटेज कंजरवेशन सोसाइटी को दान देने का ऐलान किया। उन्होंने इस मौके पर 11 हजार रुपए का चेक भी दिया, जिसे संगठन के प्रतिनिधि श्रवण कुमार ने ग्रहण किया।
पीयूष पांडे का कहना था, ‘यमुना की तरफ ध्यान दिया जाना जरूरी है। इस दिशा में मेरी ये छोटी सी कोशिश है। मेरा मानना है कि लेखकों को अवॉर्ड वापसी नहीं, रॉयल्टी दान देनी चाहिए, ताकि जरूरी मुद्दों पर सार्थक भागीदारी हो सके। ये भी एक व्यंग्य का विषय ही है कि अवॉर्ड वापसी करने वाले और पुरस्कार की जुगाड़-तुगाड़ करने वाले साहित्यकारों के एक बड़े वर्ग का जमीनी मुद्दों से कोई जुड़ाव ही नहीं होता।‘
वहीं, प्रोफेसर अशोक चक्रधर ने कहा, ‘यमुना के संरक्षण के लिए रॉयल्टी दान की पीयूष की पहल अद्भुत है। मुझे लगता है कि अब इस पर विमर्श शुरू होगा। जहां तक पीयूष के व्यंग्य की बात है तो उनकी अपनी अलग शैली है। उनके पास विषयों की विविधता है और वो जिस अंदाज में कटाक्ष करते हैं, वो दिल को छूता है और दूसरों से उन्हें अलग खड़ा करता है।‘
वरिष्ठ व्यंग्यकार आलोक पुराणिक का कहना था, ‘पीयूष ने अग्रिम रॉयल्टी दान देकर नई शुरुआत की है, जिसे आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन, सच ये भी है कि हिंदी के ज्यादातर लेखक खुद पैसे देकर किताब छपवाते हैं। उन्हें रॉयल्टी मिलती ही नहीं तो दान कैसे करेंगे। अलबत्ता अंग्रेजी भाषा में लिखकर मोटी कमाई करने वाले साहित्यकारों को अवश्य रॉयल्टी का एक हिस्सा सार्थक कामों में दान करना चाहिए।’ पीयूष की व्यंग्य शैली की तारीफ करते हुए आलोक पुराणिक का कहना था कि मीडिया से जुड़ाव होने की वजह से उनके (पीयूष के) पास विषयों का भंडार है।
वहीं, वरिष्ठ टीवी पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी ने कहा, ‘व्यंग्य का दायरा बढ़ना चाहिए। पीयूष की किताब का पहला व्यंग्य कबीरा बैठा डिबेट में आज के हालात का अक्षरक्ष: वर्णन करता है। कबीरदास जी आज वास्तव में यदि किसी डिबेट में आ जाएं तो उनका हश्र वही होगा, जिसका वर्णन पीयूष ने किया है। किताब में कई व्यंग्य मीडिया की सच्चाई को सामने लाते हैं, जो पाठकों को गुदगुदाते भी हैं और सोचने को विवश भी करते हैं।’
इस मौके पर व्यंग्य आलोचक सुभाष चंदर ने कहा, ‘ऐसा हमने कभी नहीं देखा कि किसी लेखक ने रॉयल्टी दान की हो। जहां तक पीयूष के व्यंग्य की बात है, तो आप जब तक उसे पढ़ेंगे नहीं, तब तक उसे समझेंगे नहीं कि उनमें क्या खास बात है।’
पीयूष पांडे के इस व्यंग्य संग्रह को प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इसमें 65 व्यंग्य हैं, जिसमें किसी व्यंग्य में टिकटॉक के जरिए समाजवाद लाने की परिकल्पना है तो किसी में अनुप्रास अलंकार वाली टीवी पत्रकारिता पर कटाक्ष है। पीयूष ने बताया, ‘मैं खुद 17-18 साल से टीवी मीडिया से जुड़ा हूं तो कई व्यंग्य अनायास मीडिया को केंद्र में रखकर लिखे गए हैं। लेकिन आप किताब पलटेंगे तो देखेंगे कि व्यंग्य संग्रह एक गुलदस्ते की तरह है, जिसमें कई रंगों के फूल हैं।‘
कार्यक्रम के दौरान यमुना बचाने में जुटे गैर सरकारी संगठन ब्रज फाउंडेशन के प्रतिनिधि श्रवण कुमार ने कहा,’यमुना आगरा से दिल्ली तक लोगों की लाइफलाइन है,लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं। ताजमहल का भविष्य भी यमुना के भविष्य से जुड़ा है। पीयूष पांडे की पहल भविष्य में और लेखकों को ध्यान इस ओर आकर्षित करेगी और लेखक सिर्फ रॉयल्टी दान देकर ही नहीं, बल्कि यमुना की बदहाली पर लिखकर भी यमुना का भला कर सकते हैं।‘ कार्यक्रम का संचालन प्रभात प्रकाशन के प्रमुख पीयूष कुमार ने किया। बता दें कि इससे पूर्व पीयूष के दो व्यंग्य संग्रह आ चुके हैं। 2012 मे ‘छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन’, जिसे राजकमल ने प्रकाशित किया था और 2017 में ‘धंधे मातरम्’ जिसे प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया था।
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