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कैलाश सत्यार्थी की इस पुस्तक से नई सभ्‍यता का शास्‍त्र रचा जा सकता है: रामबहादुर राय

इंदिरा गांधी राष्ट्री य कला केंद्र की ओर से नोबेल शांति पुरस्कारर से सम्माानित कैलाश सत्यार्थी की पुस्तिक ‘कोविड-19 सभ्याता का संकट और समाधान’ पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 3 years ago

इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र की ओर से नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी की पुस्‍तक ‘कोविड-19 सभ्‍यता का संकट और समाधान’ पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। 12 फरवरी को ऑनलाइन रूप से हुई इस परिचर्चा की अध्‍यक्षता इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र के अध्‍यक्ष एवं जाने-माने पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय ने की। परिचर्चा में स्‍वागत वक्‍तव्‍य लेखक, कलाविद एवं इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र के सदस्‍य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी का रहा।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘कोविड-19 सभ्‍यता का संकट और समाधान’ पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ‘कैलाश सत्‍यार्थी ने पूरे विश्‍व में बाल मजदूरों के अधिकारों के प्रति चेतना जगाने का काम किया है। कैलाश जी एक सिद्धहस्‍त लेखक भी हैं जो जीवन के विभिन्‍न पक्षों पर प्रकाश डालने का काम करते रहते हैं। उनकी कविताएं आपको रोमांच से भर देती हैं। आपके रोएं खड़े कर देती हैं। उनकी इस पुस्‍तक को पढ़ते हुए ऐसा बार-बार अहसास होता रहा कि हम किसी रिपोर्ताज से गुजर रहे हैं। कैलाश जी बिल्‍कुल सही कहते हैं कि लम्‍बे समय तक चलने वाला कोरोना संकट किसी जंतु या वायरस के द्वारा फैलाया संकट नहीं है, बल्कि यह सभ्‍यता का संकट है।’

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने कहा, ‘इस पुस्‍तक से नई सभ्‍यता का शास्‍त्र रचा जा सकता है। यह पुस्‍तक अपने आप में मौलिक है। मौलिक इस अर्थ में है कि कोरोना को लेकर जो षड्यंत्रकथाएं रची जा रही हैं, उनसे दूर जाकर यह बात करती है। यह पुस्‍तक भारत की नेतृत्‍वकारी भूमिका का भी प्रमाण है। कैलाश सत्‍यार्थी की पहचान है कि वे सत्‍य के खोजी हैं जो इस पुस्‍तक में भी दिखती है। इस पुस्‍तक में विचार की अमीरी के सूत्र छिपे हैं, जिसे लोगों को यदि समझाया जाए तो पुस्‍तक की सार्थकता बढे़गी।’ कोरोना महामारी और उससे उपजे संकट के संदर्भ में रामबहादुर राय ने कहा कि अभी अमावस की रात जरूर है, लेकिन यह पुस्‍तक हमें पूर्णिमा के चांद का भी आश्‍वासन देती है।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि व राज्‍यसभा सदस्य सोनल मानसिंह का कहना था, ‘कैलाश जी की पुस्‍तक को छापकर प्रभात प्रकाशन ने अपने प्रकाशन में एक रत्‍नमणि जोड़ने का काम किया है। यह पुस्‍तक गागर में सागर है। कोरोना काल के दौरान अपने घरों के अंदर घुट-घुटकर रहने को मजबूर लोगों में जो एक मानसिक विकृति आ गई है, उसके प्रभाव की कैलाश जी अपनी पुस्‍तक में सम्‍यक व्‍याख्‍या करते हैं और साथ ही समाधान भी पेश करते हैं।’

इस मौके पर कैलाश सत्‍यार्थी ने कहा, ‘करुणा सकारात्‍मक, रचनात्‍मक सभ्‍यता के निर्माण का आधार है। करुणा में एक गतिशीलता है। एक साहस है और उसमें एक नेतृत्‍वकारी क्षमता भी है। करुणा एक ऐसी अग्नि है जो हमें बेहतर बनाती है। जब हम दूसरे को देखते हैं और उसके प्रति हमारे मन में एक जुड़ाव का भाव पैदा होता है, तो वह सहानुभूति है। जब हम महसूस करते हैं‍ कि दूसरे का दुख, दर्द हमारी परेशानी है, तब वह संवेदनशीलता हो जाती है। लेकिन बिल्‍कुल अंदर का जो तत्‍व है वह है करुणा। यानी दूसरे के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द महसूस करके उसका निराकरण ठीक वैसे ही करें, जैसे हम अपने दुख-दर्द का करते हैं। महामारी से पीड़ित वर्तमान में दुनिया की जो स्थिति हो गई है, उससे निजात करुणा ही दिला सकती है। इसलिए करुणा का वैश्‍वीकरण समय की जरूरत है।  

सुप्रसिद्ध गीतकार एवं सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्‍म सर्टिफिकेशन के अध्‍यक्ष प्रसून जोशी ने कैलाश सत्यार्थी के दार्शनिक पक्ष को इंगित करते हुए कहा, ‘इस पुस्‍तक को पढ़ते हुए मेरा विश्‍वास पुख्‍ता हो गया कि उन्‍होंने उसी विषय को उठाया है, जिस पर मैं सोच रहा था कि उन्हें उठाना चाहिए। कैलाश जी कोविड काल को व्‍यापक दृष्टिकोण से देखते हैं। उन्‍होंने सारे विषयों को करुणा केंद्रित कर दिया है। करुणा हमारे समय का मर्म है। कैलाश जी किताब के जरिये जिन सवालों को उठाते हैं, वे मनुष्‍य की ऐसी मूल समस्‍याएं हैं, जो कल भी थीं, आज भी हैं और कल भी रहेंगी।’ प्रसून जोशी ने इस मौके पर इस पुस्तक से एक कविता का भी पाठ किया।

वहीं, सुप्रसिद्ध लेखक एवं पूर्व राजनयिक डॉ. पवन के वर्मा का कहना था, ‘महामारी के दौर में गहन चिंतन को दर्शाती यह पुस्‍तक बहुत ही प्रासंगिक है। इस महामारी ने मध्‍यवर्ग को आत्‍मचिंतन करने का एक अवसर उपलब्‍ध कराया है। कैलाश जी जिस करुणा, कृतज्ञता, सहिष्‍णुता और उत्‍तरदायित्‍व की बात करते हैं, लोग अगर उसका पालन करने लगें तो उन्‍हें पूर्ण सुख (टोटल हैप्‍पीनेस) की प्राप्ति होगी। हमारे जैसे मध्‍यवर्गीय लोगों को करुणा, कृतज्ञता और उत्‍तरदायित्‍व जैसे मूल्‍यों को अपने जीवन में ज्‍यादा उतारने की जरूरत है, क्‍योंकि ये कमी हमसे ज्‍यादा किसी में नहीं है। इसको हमने कोरोना काल के दौरान घर लौटते दिहाड़ी मजदूरों के प्रति संवेदनहीन होकर दर्शा दिया है। पुस्‍तक की महत्‍ता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि कैलाश जी को इसका दूसरा खंड भी लिखना चाहिए।’

मशहूर लेखक एवं नेहरू सेंटर, लंदन के निदेशक अमीश त्रिपाठी ने कहा, ‘कैलाश जी ने बहुत महत्‍वपूर्ण विषय उठाया है। कोरोना के संदर्भ में ज्‍यादा चर्चा स्‍वास्‍थ्‍य और आर्थिक संकट को लेकर होती है। लेकिन लोगों के दिल और दिमाग पर उसका जो मानसिक प्रभाव पड़ा है वह सालों नहीं बल्कि दशकों तक नहीं मिटने वाला। कैलाश जी जैसे महान बुद्धिजीवी ने उसके मानसिक और आध्‍यात्मिक पक्ष को पकड़ा है जो दिल को छू जाता है। पुस्‍तक की यही सार्थकता है।’ 

सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ एवं राज्‍यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि कैलाश जी ने पुस्‍तक में सभ्‍यता की चुनौतियां और समाधान दोनों पर बहुत बढि़या विचार किया है। सुधांशु त्रिवेदी ने कुछ नया करने का उपदेश देने वालों को आड़े हाथों लिया और कहा कि वे नया क्‍या कर लेंगे? जबकि हमारे पास पहले से ही कुछ ऐसी अनमोल चीजें हैं जो हमेशा नई, सदाबहार, कालजयी और प्रासंगिक रहेंगी।

परिचर्चा का संचालन इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र के डीन एवं कलानिधि के विभागाध्‍यक्ष प्रो. रमेशचंद्र गौड़ ने किया, जबकि धन्‍यवाद ज्ञापन प्रभात प्रकाशन के प्रभात ने किया। इस पूरी परिचर्चा को आप यहां देख सकते हैं-


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