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‘साख बचाने के संकट के बीच न्यूजरूम्स में बदलाव के साथ कदमताल के लिए रहना होगा तैयार’

समाचार जगत, खास कर ऑनलाइन न्‍यूज मीड‍िया 2022 में ज‍िन चुनौत‍ियों से गुजरा है, 2023 में भी वो चुनौत‍ियां कायम रहने वाली हैं।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

विजय झा, वरिष्ठ पत्रकार ।।

समाचार जगत, खास कर ऑनलाइन न्‍यूज मीड‍िया 2022 में ज‍िन चुनौत‍ियों से गुजरा है, 2023 में भी वो चुनौत‍ियां कायम रहने वाली हैं। इनसे न‍िपटने के ल‍िए हमें और ज्‍यादा तैयार होना पड़ेगा। साथ ही, इस संबंध में आ रहे या आने वाले बदलावों को आत्‍मसात करने के ल‍िए तैयार रहना होगा। इनसे न‍िपटने में क‍ितनी कामयाबी म‍िलती है या हम क‍िस हद तक तैयार हो पाते हैं, साल 2023 में कामयाबी को इन्‍हीं कसौट‍ियों पर परखा जाएगा। नजर डालते हैं, उन चुनौत‍ियों पर ज‍िनसे 2023 में भी ऑनलाइन न्‍यूज इंडस्‍ट्री से जुड़े लोगों को दो-चार होना पड़ेगा: 

साख और व‍िश्‍वास:

ऑनलाइन मीड‍िया के ल‍िए साख का संकट और गंभीर होने वाला है। रीडर रेवेन्‍यू और लॉयल यूजर्स- दो अहम शब्‍द रहे, जो 2022 में ऑनलाइन न्‍यूजरूम में साल भर सुनाई देते रहे। 2023 भी इस मामले में अलग नहीं रहने वाला है। पाठकों के नजर में अपनी साख बढ़ाना, उन्‍हें साइट पर ज्‍यादा से ज्‍यादा बार लौटने लायक सामग्री देना और भव‍िष्‍य में पैसे देकर पढ़ने के ल‍िए तैयार करना...ये कुछ ऐसे मोर्चे हैं, ज‍िन पर 2023 में जूझने के ल‍िए ज्‍यादा मेहनत करनी होगी। ज्‍यादा इसल‍िए क्‍योंक‍ि खबरों को लेकर पाठकों की उदासीनता लगातार बढ़ रही है। 

रॉयटर्स की र‍िसर्च र‍िपोर्ट (द डि‍ज‍िटल न्‍यूज र‍िपोर्ट 2022) कहती है क‍ि दुन‍िया भर में औसतन 38 प्रत‍िशत लोग अलग-अलग कारणों से खबरों से दूर भाग रहे हैं। 2017 में यह औसत 29 फीसदी था। कई युवा पाठक इसल‍िए खबरों से बचते हैं क्‍योंक‍ि उनके ल‍िए मुद्दे को समझना आसान नहीं होता। ऐसे में न्‍यूजरूम में काम करने वाले पत्रकारों के ल‍िए दोहरी चुनौती होगी। एक तो पाठक खबरों से कन्‍नी नहीं कटाएं, ऐसी खबरें परोसना और इस तरीके से परोसना क‍ि वह हर क‍िसी को आसानी से समझ आए। इस चुनौती से न‍िपटने के ल‍िए न्‍यूजरूम में व‍िव‍िधता के साथ-साथ व‍िशेषज्ञता भी चाह‍िए होगी। समस्‍या यह है क‍ि न्‍यूजरूम में काम करने वाले व‍िशेषज्ञ लोगों की कमी से पूरी इंडस्‍ट्री जूझ रही है। 2023 में यह समस्‍या कम होने के बजाय बढ़ने के ही आसार हैं। 

न्‍यूजरूम में टेक्‍नोलॉजी का बढ़ता दखल :

ऑनलाइन न्‍यूजरूम में काम करने वाले पत्रकारों को कई मामलों में हुनरमंद होना पड़ता है। बाजार ने इसके अभाव को एक बड़े अवसर के रूप में लेना शुरू कर द‍िया है। समस्‍या को समझते हुए बाजार ने मशीनों को तैयार करना शुरू क‍िया है और क‍िफायती व तेज होने के चलते न्‍यूजरूम में इनके इस्‍तेमाल को लेकर द‍िलचस्‍पी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में अपने आपको हुनरमंद बनाने के साथ-साथ तकनीक का दखल स्‍वीकार करने के ल‍िए भी तैयार रहना होगा। टेक्‍नोलॉजी या मशीन का दखल कंटेंट तैयार करने के साथ-साथ पर्सनलाइजेशन, सोशल मार्केट‍िंंग आद‍ि के जर‍िए पाठकों तक कंटेंट पहुंचाने में भी बढ़ेगा। पॉडकास्‍ट, शॉर्ट वीड‍ियो जैसे कंटेंट प्रेजेंटेशन फॉरमैैट की लोकप्र‍ियता साल 2023 में और बढ़ने के आसार हैं। इस फॉरमैट को सफल बनाने में भी तकनीक की ज्‍यादा दखलअंदाजी नए साल में एक ट्रेंड के रूप में देखने को म‍िलेगी।  

पाठकों तक पहुंचने की चुनौती:

सोशल मीड‍िया खबरों के ल‍िए न्‍यूज वेबसाइट्स पर जाने की न‍िर्भरता लगातार कम कर रहा है। जबक‍ि, न्‍यूज साइट्स के ल‍िए पाठकों तक खबरें पहुंचाने का मुख्‍य जर‍िया सोशल मीड‍िया और सर्च इंजन (गूगल) ही हैं। इनके अल्गोरिदम ऐसे द‍िख रहे हैं क‍ि न‍िजी और न‍िहायत स्थानीय स्‍तर पर तैयार क‍िए गए कंटेंट और नामी समाचार समूहों की सामग्री का अंतर म‍िट गया है। दूसरी चुनौती, साख की तो है ही। रॉयटर की र‍िपोर्ट बताती है क‍ि भारत के 77 प्रत‍िशत लोग खबरों में भरोसा ही नहीं करते और 41 प्रत‍िशत लोग खबरों के ल‍िए ऑनलाइन प्‍लैटफॉर्म पर यकीन नहीं  करते। भारत में करीब आधे लोग फेसबुक, गूगल, व्‍हाट्सऐप, यूट्यूब को गलत व भ्रामक खबरें फैलाने का जर‍िया मानते हैं। 

उम्‍मीद बढ़ाने वाली बात है क‍ि ज्‍यादातर पब्‍ल‍िशर्स एड‍िटोर‍ियल म‍िशन, फंड‍िंग मॉडल और टारगेट ऑड‍ियंस को लेकर क‍िसी तरह के भ्रम में नहीं हैं और वे बदलते माहौल को अपनाते हुए चलने के ल‍िए तैयार हैं। ऐसे में पाठकों को सीधे अपने ब्रांड से जोड़ने के ल‍िए अपने आप को ज्‍यादा से ज्‍यादा तैयार करना ही एक मात्र व‍िकल्‍प बचता है। 

बदली हुई पर‍िस्‍थ‍ित‍ियों में रेवेन्‍यू मॉडल भी बदल रहा है। अब रेवेन्‍यू के ल‍िए पहली प्राथम‍िकता सब्‍स्‍क्र‍िप्‍शन है। 2022 में जारी रॉयटर की एक सर्वेे र‍िपोर्ट के मुताब‍िक 79 प्रत‍िशत कॉमर्श‍ियल पब्‍लि‍शर्स के ल‍िए रेवेन्‍यू के स्रोत के तौर पर पहली प्राथम‍िकता सब्‍स्‍क्र‍िप्‍शन रही। ड‍िस्‍प्‍ले एडवर्टाइज‍िंंग दूसरे (73%) और नेट‍िव एडवर्टाइज‍िंंग  (59%) तीसरे नंबर पर रहा। इवेंट्स (40%) और प्‍लैटफॉर्म के जर‍िए कमाई (29%) का नंबर बाद में रहा। 2023 में भी स्‍थ‍ित‍ि अलग नहीं रहने वाली है। सब्‍स्‍क्र‍िप्‍शन से रेवेन्‍यू के मामले में संपादकीय टीम की भी अहम भागीदारी हो जाती है। संपादकीय टीम में काम करने वालों के ल‍िए इस सच को समझना और इसके ल‍िए खुद को तैयार करना उनकी कामयाबी का नया आधार बन सकता है।

(लेखक जनसत्ता डिजिटल के संपादक हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)


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