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30 साल बाद दो पत्रकारों को रासुका से मिली राहत
रामजन्म भूमि आंदोलन के दौरान पत्रकारों पर दर्ज मामले अब तीस साल बाद खत्म कर दिए गए हैं। मुकदमे वापसी के शासनादेश को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने पत्रकारों को इससे राहत दे दी है।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 2 years ago
रामजन्म भूमि आंदोलन के दौरान पत्रकारों पर दर्ज मामले अब तीस साल बाद खत्म कर दिए गए हैं। मुकदमे वापसी के शासनादेश को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने पत्रकारों को इससे राहत दे दी है। इन पत्रकारों पर रासुका भी लगी थी।
दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रामजन्म भूमि आंदोलन काल में गंगोह कस्बे में जुलूस निकालने को लेकर हुए टकराव में दो पत्रकारों पर रासुका की कार्रवाई की गई थी। मामला पूरे प्रदेश में चर्चित हुआ, तो मुकदमा वापसी का शासनादेश हो गया था। अब उस आदेश को स्वीकारते हुए न्यायालय ने पत्रकारों को इससे राहत दे दी है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 1987 में कोर्ट के आदेश पर अयोध्या स्थित रामलला मंदिर के ताले खोले गए थे। लोगों ने खुशी में बाजार सजाए और प्रतिष्ठानों व घरों पर झंडे लगाए गए। प्रशासन द्वारा तीन अप्रैल 1987 को झंडे व बैनर उतरवा दिए गए। इससे क्षुब्ध दुकानदारों ने प्रदर्शन किया था।
मामले के पीड़ित गंगोह निवासी डॉ. राकेश गर्ग के अनुसार, आठ अप्रैल 1987 को श्री राम शोभायात्रा निकाली गई, जिसे नूरी मस्जिद पर जबरन रोक दिया गया। गंगोह में श्री राम की शोभायात्रा को रोकने पर तनातनी का माहौल बन गया था। पुलिस प्रशासन ने इस प्रकरण में एकपक्षीय कार्रवाई कर पत्रकार डॉ. राकेश गर्ग व स्वर्गीय राकेश गोयल समेत एक अन्य के खिलाफ संगीन धाराओं में मुकदमे बनाए और रासुका लगाकर 15 अप्रैल को जेल भेज दिया। पत्रकारों ने इसके विरोध में आंदोलन चलाया, जिसकी गूंज संसद व विधानसभा तक पहुंची।
रिपोर्ट में बताय गया है कि 29 अप्रैल को 500 पत्रकारों ने डीएम कार्यालय पर ज्ञापन चस्पा किया था। प्रशासन ने रासुका वापस लेकर 15 मई 1987 को पत्रकारों को रिहा कर दिया, लेकिन 153ए व अन्य धाराएं नहीं हटाई थीं। सपा के वरिष्ठ नेता स्व. रामशरण दास ने 1991 में तब मुकदमा वापसी का शासनादेश कराया था, मगर इसके क्रियान्वयन में 30 साल से ज्यादा समय लग गया। सिविल जज की अदालत ने प्रकरण में पत्रकारों को मुक्त कर दिया गया है। इसमें बार संघ के जिलाध्यक्ष अभय सैनी का भी योगदान रहा।
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