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जानिए, क्या कहता है भुवनेश्वर उपाध्याय का ये उपन्यास...
युवा पीढ़ी के लेखक भुवनेश्वर उपाध्याय जो पूरी तरह से लेखन को अपना कर्म और धर्म...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago
समाचार4मीडिया ब्यूरो।।
युवा पीढ़ी के लेखक भुवनेश्वर उपाध्याय जो पूरी तरह से लेखन को अपना कर्म और धर्म मान चुके हैं, उनका नया उपन्यास ‘महाभारत के बाद’ पढ़ने का मौका मिला। अभी तक मैंने उनको एक कवि, व्यंग्यकार और एक आलोचक के रूप में ही पढ़ा था। लेखक इस रचना के बाद एक नए रूप में हमारे सामने आए हैं। मैं भुवनेश्वर उपाध्याय जी को एक आदर्शवादी लेखक के रूप में मानता हूं। यह रचना भी इसी दर्शन के आधार पर लिखी गई है।
महाभारत पर न जाने कितने लेखकों ने अपनी कलम चलाई है और न जाने कितने लेखक इस विषय पर आगे भी लिखेंगे। लेकिन, लेखक ने इसे इतिहास से वर्तमान को समझने के उद्देश्य से लिखा है। जैसा कि लेखक कहता है कि जो महाभारत में नहीं है, वो भारत में नहीं है। लेखक के इस मत से हमारे मत भिन्न हो सकते हैं, क्योंकि महाभारत के बाद भारत का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है, लेकिन यह इस रूप में अलग है कि महाभारत की भीषण तबाही के कारणों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करता है।
महाभारत के कई पात्र पाठकों को अपने जैसे लग सकते हैं। असल में भुवनेश्वर उपाध्याय ने इसमें पात्रों का विश्लेष्ण अपने ही तरीके से पाठकों के लिए एक बौद्धिक खुराक देने के लिए किया है। एक सामंती समाज के दौर को पुनः लिखना जटिल तो है, लेकिन लेखन का कौशल इसी चुनौती में देखने को है। उस दौर के सामाजिक संबंधों को मनोवैज्ञानिक रूप में खंगालना और फिर उसका सारगर्भित संवादों और परिस्थितियों की निर्माण कला इसका ख़ास शिल्प है।
इस रचना में यहां-वहां-जहां भी देखेंगे, धर्म, नियति, अहंकार, स्वार्थ जैसी शासक वर्ग की एक मनोवृत्ति को चिन्हित करने का प्रयास लेखक ने अपनी आदर्शवादी दृष्टि से किया है। शासक वर्ग के चरित्र और उसके सत्य के पक्ष में अपने विचार रखे हैं, जो समय की नियति के रूप में स्वीकार किए गए हैं।
इस रचना के अधिकतर पात्र सत्ता के साथ जुड़े हुए हैं। किसी न किसी रूप में महाभारत में सक्रिय रूप से हिस्सेदार हैं और वे सभी अपने बचाव के लिए एक से बढ़कर एक तर्क प्रस्तुत करते हैं। शासक वर्ग अपने बचाव की लाख कोशिश करते हैं, लेकिन उनके द्वंद्व को लेखक पकड़ने की कोशिश करता है। उनके किए-धरे को मनोवैज्ञानिक रूप से रेखांकित करता है। अब पाठक पर निर्भर करता है कि महाभारत के लिए किसे दोषी माने, समय की नियति को या सत्ता की लालसा को।
समीक्षक : एम.एम चन्द्रा
लेखक: भुवनेश्वर उपाध्याय
पुस्तक : महाभारत के बाद
कीमत :120 रुपए
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