होम / मीडिया फोरम / 'लुप्त होने की कगार पर है हिंदी में नाट्य लेखन की विधा'
'लुप्त होने की कगार पर है हिंदी में नाट्य लेखन की विधा'
<strong>समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।</strong> हाल ही में हिंदी महोत्सव के दौरान साहित्य, रंगमंच, मीडिया और समकालीन समाज से संबंधित विविध विषयों पर चर्चा हुई, जिसमें देशभर के हिंदी भाषा के प्रख्यात विद्वान, आलोचक और प्रसिद्ध साहित्यकारों के साथ ही कई कलाकारों ने हिस्सा लिया। इस दौरान 'आज रंग है : रंगभूमि का बदलता चेहरा' विषय पर चर्चा करते हुए लेखक
समाचार4मीडिया ब्यूरो 8 years ago
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।। हाल ही में हिंदी महोत्सव के दौरान साहित्य, रंगमंच, मीडिया और समकालीन समाज से संबंधित विविध विषयों पर चर्चा हुई, जिसमें देशभर के हिंदी भाषा के प्रख्यात विद्वान, आलोचक और प्रसिद्ध साहित्यकारों के साथ ही कई कलाकारों ने हिस्सा लिया। इस दौरान 'आज रंग है : रंगभूमि का बदलता चेहरा' विषय पर चर्चा करते हुए लेखक असगर वजाहत ने कहा कि हिंदी में नाट्य लेखन की विधा धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है। पाठक वर्ग की उपेक्षा के कारण धीरे-धीरे कई नाटककारों ने हिंदी में नाटकों को लिखना बंद कर दिया है। महोत्सव का आयोजन वाणी फाउंडेशन और ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर के संयुक्त तत्वावधान में कनॉट प्लेस स्थित ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर में में हुआ। इस दौरान वजाहत ने कहा कि हिंदी के कई नाटककारों को मंच ही नहीं मिलता है। ऐसा नहीं है कि वे अच्छे नाटक नहीं है या देखे नहीं जा सकते हैं, लेकिन उन्हें नाट्य संस्थाओं और सरकार का सहयोग नहीं मिलता है। वहीं, शायर शीन काफ निजाम और लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने कालजयी साहित्य और कलाएं आस-पास परिचर्चा में भाग लिया। मालिनी ने कहा कि सामाजिक पृष्ठभूमि से जुड़े होने के कारण कला और साहित्य आपस में वार्तालाप करते नजर आते हैं। दोनों समाज में बदलावों को रेखांकित करते हैं। वहीं लोकप्रिय उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक ने कहा कि वे बौद्धिक लेखन में विश्वास नहीं रखते हैं, क्योंकि यह आम जनमानस तक नहीं पहुंचता है। वे पल्प का तिलिस्म परिचर्चा में अपना पक्ष रख रह रहे थे। उन्होंने कहा कि साहित्य का एक मात्र काम शिक्षा देना नहीं, पाठकों का मनोरंजन करना भी है। साथ में सामाजिक सच्चाइयों को आम लोगों तक पहुंचाना है। नई स्त्री की आजादी परिचर्चा में वाणी प्रकाशन से जुड़ी अदिति माहेश्वरी ने कहा कि 19वीं व 20वीं सदी से इतर 21वीं शताब्दी में स्त्री विमर्श के विषय नए हैं। पहले की सदी में महिलाओं को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, वह 21वीं सदी में नहीं है। अभी की महिलाओं ने पुरुषवादी मानसिकता को अच्छे से चुनौती दी है। कार्यक्रम में अभय कुमार दूबे, तरुण विजय व रागिनी नायक ने जहां राष्ट्रवाद की पहेली पर प्रकाश डाला। वहीं हिंदी शब्दों के बदलते प्रयोग पर प्रभात रंजन, उज्जवल नागर और आर.जे. रौनक ने प्रकाश डाला। समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।
टैग्स