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क्या आप अखबार का सम्पादकीय डेली पढ़ते हैं?
ब्रज खंडेलवाल कितने प्रतिशत पाठक सम्पादकीय पढ़ते होंगे? आजकल जिनसे मैं मिल रहा हूं और पूछ रहा हूं, वह मना कर रहे हैं, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले बताते हैं कि वह द हिन्दू पढ़ते हैं....... संपादक के नाम पत्र भी लोग लिखने से कतरा रहे हैं, स्पेस कम हो गया है....बीते जमाने में बहुत सारे रिटायर्ड लोग पत्र लिखते थे, साउथ मे
समाचार4मीडिया ब्यूरो 9 years ago
ब्रज खंडेलवाल कितने प्रतिशत पाठक सम्पादकीय पढ़ते होंगे? आजकल जिनसे मैं मिल रहा हूं और पूछ रहा हूं, वह मना कर रहे हैं, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले बताते हैं कि वह द हिन्दू पढ़ते हैं....... संपादक के नाम पत्र भी लोग लिखने से कतरा रहे हैं, स्पेस कम हो गया है....बीते जमाने में बहुत सारे रिटायर्ड लोग पत्र लिखते थे, साउथ में आज भी यह चलन है। हमारे यहां यह शौक अब खत्म हो रहा है। कुछ लोगों ने कहा की इतना टाइम और धैर्य कहां जो एडिटोरियल पढ़ें। डिजिटल इंडिया के भक्त बोले की सोशल मीडिया पब्लिक ओपिनियन का सही बैरोमीटर है। अब प्रश्न यह उठता है कि अगर ग्राहक नहीं है तो एडिटोरियल पेज का फॉर्मेट समय के साथ बदलना नहीं चाहिए क्या? लीड आर्टिकल्स शायद पलिसी और डिसिजन मेकर्स के लिए लिखे जाते हैं, राज्य सरकारों के मंत्री अगर एडिटोरिअल्स पढ़ते होते तो उनका बौद्धिक स्तर काफी बेहतर होता। महिला समाजसेवी अगर एडिटोरियल्स और लेख पढ़ती होती तो फैशन शोज और हरियाली तीज टाइप आयोजनों में भाग लेने की जगह आम आदमी के मसलों से मोर्चा ले रही होती। खीज तो होती है भाई साहब जब फंडामेंटल मुद्दों से जुडी खबरें अखबार की डस्टबिन्स में जाती हैं, और समाज की पीछे देखू प्रवृतियों को मजबूत करने वाली न्यूज महत्व के अनुपात से ज्यादा स्पेस पा जाती हैं।
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