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न्यूजपेपर एजेंट को फ्रंट पेज के जरिए 'हरिभूमि' ने किया याद

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।। प्रिंट मीडिया के इतिहास में संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है जब अखबार के एक मामूली एजेंट के निधन की खबर व स्मृति शेष में एक लंबा आलेख किसी समाचार पत्र ने मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित किया है। छह दशक से रायपुर में पाठक और समाचार पत्र का सेतु रहे वरिष्ठ अभिकर्ता रामप्रसाद यादव का 21 सितंबर को आकस्मिक हृदयघात से निधन

समाचार4मीडिया ब्यूरो 9 years ago

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।। प्रिंट मीडिया के इतिहास में संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है जब अखबार के एक मामूली एजेंट के निधन की खबर व स्मृति शेष में एक लंबा आलेख किसी समाचार पत्र ने मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित किया है। छह दशक से रायपुर में पाठक और समाचार पत्र का सेतु रहे वरिष्ठ अभिकर्ता रामप्रसाद यादव का 21 सितंबर को आकस्मिक हृदयघात से निधन हो गया। उनके निधन की खबर छत्तीसगढ़ के अन्य अखबारों ने एक छोटी सी न्यूज के रूप में प्रकाशित की। वहीं हरिभूमि के प्रबंध संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने रामप्रसाद यादव की स्मृति में एक अग्रलेख लिखा जो हरिभूमि के फ्रंट पेज पर प्रकाशित हुआ। रामप्रसाद यादव रायपुर के पांच दशक की पत्रकारिता और उसके बदलावों के साक्षी थे। उनकी स्मृति में लिखा डॉ. हिमांशु द्विवेदी का आलेख.... नींव का पत्थर धसक गया स्मृति शेष डा. हिमांशु द्विवेदी सर!, यादव जी नहीं रहे। सांयकाल अपने साथी अनिल गहलावत का यह संदेश जब मोबाइल पर मिला तो सहज प्रतिक्रिया थी कौन यादव जी? जवाब सुनते ही मस्तिष्क मानो सुन्न-सा हो गया। जुबां मानो लड़खड़ा-सी गई। दो हफ्ते पहले ही तो मुझसे मिलकर गए थे। शारीरिक और मानसिक रूप से जिस कदर स्वस्थ्य थे, उसे देखते अगले दस-बीस साल तक भी उनके ऐसे ही हमारे बीच बने रहने की उम्मीद पर किसी को आश्चर्य नहीं होता। लेकिन, सच यही है कि छत्तीसगढ़ के समाचार पत्र जगत का ‘नींव का पत्थर’ आज धसक गया। छह दशक से रायपुर में पाठक और समाचार पत्र का सेतु रहे वरिष्ठ अभिकर्ता रामप्रसाद यादव अब हमारे बीच नहीं रहे। आज प्रात: 11 बजे उनको हुए आकस्मिक ह्रदयघात ने इस कर्मठ और समर्पित योगी को हमारे जीवन से अलग कर दिया। वो कोई बड़े नेता नहीं थे। और न वह कोई उच्च अधिकारी थे। वह अरबों-खरबों के स्वामी, उद्योगपति या लाखों लोगों की आस्थाओं के केंद्र संत-महात्मा भी नहीं थे। वह एक निहायत ही आम आदमी थे। फिर भी यह कलम आज उनके स्मृति लेखन को बेताब है तो इसकी वजह उनका कर्तव्यनिष्ठ और नेक इरादे का बहुत ऊंचा इंसान होना था। उन्होंने सांसारिक दुनिया में रहते हुए तपस्वी सा आचार-व्यवहार रखा था। यादव जी से मेरा डेढ़ दशक पुराना नाता रहा। हरिभूमि के रायपुर संस्करण के प्रकाशन की प्रक्रिया के दौरान ही मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई। मुलाकात की वजह स्पष्ट ही थी। वह राजधानी के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित समाचार पत्र विक्रेता थे, लिहाजा ‘अखबार कैसे बेचा जाए?’ यह उनसे समझना था। लेकिन उस मुलाकात ने तो कुछ और ही मोड़ ले लिया था। ‘कैसे बेचा जाए’ की जगह ‘कैसा निकाला जाए’ पर चर्चा सिमट गई। उनका ज्ञान इतनाअपरिमित था कि लिंकन की टिप्पणी जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा यकायक साकार होते दिखाई दी। अखबार जनता का, जनता के लिए निकलना चाहिए, यह उनका सूत्र वाक्य था। समाचार पत्र कैसा होना चाहिए? इस संबंध में उनके विचार स्पष्ट ही नहीं बेहद तार्किक थे। इतने तार्किक कि तमाम अनुभवी संपादक भी उनकी तुलना में शिष्यवत महसूस हो। उनके बालों में सफेदी धूप के कारण नहीं अनुभव के कारण है, यह उनकी बातचीत में स्पष्ट नजर आ रहा था। वे रायपुर के पांच दशक की पत्रकारिता और उसके बदलावों के साक्षी थे। उन्होंने इस दौरान न जाने कितने ही संस्थानों को बनते और बिगड़ते देखा। तमाम चीजें इस दौरान बदलीं। बदलाव में रायपुर का कस्बे से शहर और शहर से राजधानी में बदलाव तक शामिल था। लोगों का जीने का तरीका बदला, अखबारों के छपने का तरीका बदला। नेताओं के जीने का नजरिया बदला। पाठकों के पढ़ने का अंदाज बदला। अखबारों का छपने और बिकने का भी अंदाज तक बदला। तरीका नहीं बदला था तो बस यादव जी की सोच और काम का तरीका नहीं बदला था। आंधी बांह की शर्ट और पैंट पहने यादव जी तड़के चार बजे से भी पहले मुस्तैदी के साथ समाचार पत्र वितरण स्थल पर साठ साल तक मौजूद रहे। जब उनके बच्चे उपलब्धियों के शीर्ष पर भी पहुंच गए तब भी उन्होंने अपने हाथों से अखबार गिनना नहीं छोड़ा। जनवरी-दिसंबंर की ठंड हो या जुलाई-अगस्त की मूसलाधार बरसात, उन्होंने अपना काम कभी किसी और के भरोसे नहीं छोड़ा। वह ऐसे समाचार पत्र विक्रेता थे जो क्या बेच रहे हैं, इसको भी बखूबी जानते समझते थे। हर समाचार पत्र को वह महज पढ़ते ही नहीं थे बल्कि उसकी बखूबी मीमांसा भी करते थे। किस अखबार नवीस की कलम में कितना दम है, यह उन्हें बखूबी पता था। स्वर्गीय रम्मू श्रीवास्तव जी की राजनीतिक रिपोर्टिंग के तो वे बेहद कायल थे। अखबारों की जब वह समीक्षा करते तो लगता था मानो प्रबुद्ध समीक्षक से आपका संवाद हो रहा है। कर्मठता और ईमानदारी के साथ-साथ वह बेहद साफ और भावुक मन के भी स्वामी थे। वह तमाम समाचार पत्रों के विक्रय का काम पूरी ईमानदारी से देखते थे, लेकिन आखिरी क्षण तक उनका ‘नवभारत’ से विशेष लगाव रहा। उसकी वजह उनका इस अखबार से शुरूआती जुड़ाव रहा। इस लगाव को उन्होंने कभी छिपाया भी नहीं। अपने साथियों के प्रति प्रेम, पाठकों के प्रति समर्पण और समाचार पत्र संस्थानों के साथ ईमानदारी उनका मूल स्वभाव रहा। यही कारण था कि किसी समाचार पत्र के साथ उनका लेन-देन को लेकर कभी विवाद नहीं रहा। अपने उपभोक्ता के प्रति उनका दायित्वबोध गजब का था। चाहे जैसा भी मौसम क्यों न हो, वह पाठकों के पास उसका अखबार सुबह की चाय की प्याली के साथ उपलब्ध कराने के लिए सदैव तत्पर रहे। इसीलिए वह खुद वितरण स्थल पर सुबह चार बजे से पहले हमेशा उपलब्ध रहे। इसी का नतीजा था कि उनके हॉकर कभी विलंब से आने और देर से अखबार बांटने का साहस नहीं जुटा सके। यदि कभी कोई अखबार छपकर ही विलंब से वितरण स्थल पर पहुंचता तो वह उसी शाम प्रबंधन से अपनी नाराजगी से अवगत कराने में गुरेज नहीं करते थे। अपनी बात विनम्रता और दृढ़ता से रखने में उनका कोई सानी नहीं था। उन्हें उनकी बात से तनिक भी हिलाना कठिन था। लेकिन वह बातचीत के दौरान इतने विनम्र बने रहते थे कि उन पर नाराज भी नहीं हुआ जा सकता था। लिहाजा नतीजा हमेशा उन्हीं के पक्ष में रहता था। अखबार उनकी रगों में बहता था। आर्थिक दृष्टि से विगत दो दशक से यह व्यवसाय करते रहने का उनके पास कोई कारण नहीं था, लेकिन फिर यह इससे जुड़े हुए थे। इसकी एक मात्र वजह अखबार का उनके जीवन का आधार होना था। चौहत्तर वर्ष की उम्र में भी उनकी सक्रियता चौबीस साल के युवा को शर्मिंदा कर देने वाली बनी रही। ऐसे कर्मशील व्यक्तित्व का अवसान अखबार जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उनका निधन स्वयं मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। सच कहूं तो आज मैंने अपना मार्गदर्शक खो दिया। ऐसे कर्मयोगी को हरिभूमि परिवार का शत-शत नमन..।


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