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अब इंटरनेट पर भी नहीं देख सकेंगे फिल्मों के आपत्तिजनक सीन

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।। किसी भी फिल्म में आपत्तिजनक करार दिए गए हिस्सों को अब इंटरनेट पर अपलोड नहीं किया जा सकेगा। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने इस संबंध में एक निर्णय लिया है। इसके मुताबिक, फिल्म निर्माता ऐसे हिस्सों को वेब सहित किसी भी प्लेटफॉर्म पर रिलीज नहीं कर सकेंगे। दरअसल फिल्म की रिलीज से पहले ही उसके कुछ इस त

समाचार4मीडिया ब्यूरो 8 years ago

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।। किसी भी फिल्म में आपत्तिजनक करार दिए गए हिस्सों को अब इंटरनेट पर अपलोड नहीं किया जा सकेगा। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने इस संबंध में एक निर्णय लिया है। इसके मुताबिक, फिल्म निर्माता ऐसे हिस्सों को वेब सहित किसी भी प्लेटफॉर्म पर रिलीज नहीं कर सकेंगे। दरअसल फिल्म की रिलीज से पहले ही उसके कुछ इस तरह के हिस्से इंटरनेट पर आ जाते हैं, जो आपत्तिजनक होते हैं और उन्हें सेंसरबोर्ड के दखल के बाद फिल्म से हटा दिए जाते हैं। इंटरनेट पर फिल्म के प्रमोशन के बढ़ते चलन के बाद इस तरह की समस्या भी बढ़ रही है और  देखा जाता है कि  कई बार इन दृश्यों में अश्लीलता की भरमार होती है। ये सारे दृश्य फिल्म के सेंसर बोर्ड में सर्टिफिकेट के लिए जाने से पहले इंटरनेट पर आ जाते हैं। इसके बाद सेंसर बोर्ड उन तमाम सीन पर कैंची चला देता है। सेंसर की कैची चलने के बाद फिल्म से जो सीन काटे जाते हैं वो पहले से नेट पर होते हैं। इस पर कई एनजीओ और संगठन सवाल उठाते रहे हैं। फिल्मों के सीन पहले से नेट पर आ जाने की बात को लेकर लुधियाना के एक एनजीओ ने चंडीगढ़ हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर सेंसर बोर्ड ने जवाब दिया है। देश के असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल चेतन मित्तल ने पंजाब- हरियाणा हाई कोर्ट को बताया कि फिल्म मेकर्स को इस बारे में अब एक हलफनामा देना होगा। मित्तल सूचना और प्रसारण मंत्रालय और सेंसर बोर्ड की ओर से अदालत में उपस्थित हुए थे। यह मामला एक पीआईएल पर सुनवाई के दौरान आया, जिसे जनवरी में दाखिल किया गया था। पीआईएल दो फिल्मों 'मस्तीजादे' और 'क्या कूल हैं हम 3' की रिलीज के खिलाफ दाखिल की गई थी। सेंसर बोर्ड के इस निर्णय का मकसद कानून में लूपहोल को बंद करना है। इस नियम के मुताबिक, फिल्म मेकर्स सेंसर्ड हिस्सों को सिनेमा हॉल या टीवी पर तो रिलीज नहीं कर सकते थे, लेकिन उसे इंटरनेट पर जारी कर सकते थे। इसके चलते कुछ फिल्मों के सेंसर्ड हिस्से इंटरनेट, खासतौर से यूट्यूब पर जारी हो जाते थे। याचिकाकर्ता ने दोनों फिल्मों के दृश्यों वाली एक सीडी अपनी याचिका के साथ पेश की थी। इन दृश्यों को यूट्यूब से डाउनलोड बताया गया। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि ये दृश्य बेहद आपत्तिजनक और अश्लील हैं। कोर्ट ने तब मंत्रालय और सेंसर बोर्ड से इस मामले में जवाब देने को कहा था। सीडी देखने पर पता चला कि उन दृश्यों को सेंसर बोर्ड ने काटा था और वे फिल्म का हिस्सा भी नहीं थे। मित्तल ने कोर्ट से कहा कि बोर्ड को इंटरनेट पर मौजूद कंटेंट को सर्टिफाई करने का अधिकार नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने मंत्रालय से इस मामले का समाधान पेश करने को कहा। कानून में बदलाव करने के लंबे रूट को अपनाने के बजाय मिनिस्ट्री और सेंसर बोर्ड एक पखवाड़े में इस निर्णय पर पहुंचे कि फिल्ममेकर्स से ही हलफनामा ले लिया जाए कि वे सेंसर्ड हिस्सों को किसी को रिलीज नहीं करेंगे। कोर्ट ने मिनिस्ट्री और सेंसर बोर्ड की ओर से इस संबंध में दाखिल हलफनामे को स्वीकार कर लिया। एफिडेविट में कहा गया कि सिनेमैटोग्राफ ऐक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे इंटरनेट पर मौजूद कंटेंट को सर्टिफाई किया जा सके। एफिडेविट के अनुसार, बोर्ड फिल्मों के थिऐटर या सैटेलाइट/टेलिविजन चैनलों, प्रोमो, ट्रेलर आदि के दौरान प्रदर्शन के लिए सर्टिफिकेट देता है। इससे पहले सिनेमैटोग्राफ ऐक्ट 1952, सिनेमैटोग्राफ (सर्टिफिकेशन) रूल्स, 1983 ऐंड गाइडलाइंस 1991 के प्रावधानों के अनुसार पूरे कंटेंट को देखा जाता है। इसमें कहा गया कि टेलिविजन चैनलों पर कंटेंट का गवर्नेंस केबल टेलिविजन नेटवर्क्स रूल्स 1994 के तहत किया जाता है। समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।


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