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इसी जद्दोजहद में उम्र छूटती जाती है...
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. विनोद पुरोहित ने इस कविता के माध्यम से जीवन के सफर को बहुत ही संजीदगी के साथ बयां किया है
समाचार4मीडिया ब्यूरो 4 years ago
डॉ.विनोद पुरोहित, संपादक
अमर उजाला, आगरा संस्करण।।
दिल मानता है तो अक्ल रुठ जाती है
इसी जद्दोजहद में उम्र छूटती जाती है।
क्या कहूं,उसके आने पर धड़कनें बढ़ जाती हैं
कितनी ही बातें करनी थी, छूट जाती हैं।
मुस्तक़िल है मेरे हर एक लफ्ज़ और इरादे
तुम्हारे सामने जाने क्यों जुबां रुठ जाती है।
हां में हां मिलाने से खुश होते हैं हुजूर
मगर क्या करें, हमारी ही रूह रुठ जाती है।
उनके अंदाज-ए-बयां के क्या कहने
अमराई की मदमाती बौर सी गीत गाती हैं।
अल्फाज़ों से खेलना, रूठना मनाना सुखनवर
जेठ की घनेरी छांव सी सुकून दे जाती है।
मोहब्बत के किस्से तो कई सुने-सुनाए होंगे
जनाब हमसे पूछिए, ये निभाई कैसे जाती है।
टैग्स कविता डॉ.विनोद पुरोहित जिंदगी